सलाखें भीतर और बाहर

प्रो.परिमळा अंबेकर

प्रो.परिमळा अंबेकर हिन्दी विभाग , गुलबर्गा वि वि, कर्नाटक में प्राध्यापिका और विभागाध्यक्ष हैं . परिमला अम्बेकर मूलतः आलोचक हैं तथा कन्नड़ में हो रहे लेखन का हिन्दी अनुवाद भी करती हैं . संपर्क:

gughindi22@gmail.com

( यह आलेख केन्द्रीय कारागृह , गुलबर्गा , कर्नाटक , में सजायाफ्ता कैदियों की सजा माफी के लिए विचार की जाने वाली फाइलों के आधार पर लिखा गया है. केन्द्रीय कारागृह की सलाहकार समिति की सदस्य के नाते प्रोफ़ेसर परिमळा अंबेकर ने इन फाइलों का अध्ययन किया . हर फ़ाइल में अपराध की शिकार , कारण स्त्री है , एक अपवाद को छोड़कर, जहां वह प्रत्यक्ष अपराधी तो है लेकिन वही सारा सच नहीं है. यह आलेख केस डायरी के माध्यम से पितृसत्ता का अध्ययन है.)

अपराध, यानी मानसिकता की वह तीखी लकीर ,जो चाहत और चीज के मध्य उभर आती है । चाहत और चीज को, अगर व्यक्ति वैयक्तिकता के घेरे में बांधने की मानिसकता पालता है तो वह बडे ही बेतकल्लुफ हो  उस चीज के सामाजिक घेरे को मिटाता है । अपराधी की मानसिकता निस्संदेह संकुचित और अंधी होने के कारण  चीेजो के अस्तित्व के विशाल और प्रकाशमान घेरे को पहचानता नहीं है और तो और इस सच्चाई को स्वीकारता भी नहीं  है , स्वीकारना भी नहीं चाहता । अपराधी अपनी चाहत की चीज को पाने के लिए ,मानव समाज निर्बंधित बाडे को तोडता है, परिणाम में हाथ उसके रंग जाते हैं खून से !! बदले में नसीब होती है दुनिया सलाखों के पीछे की !!

इतिहास गवाह है, दुनिया के हर जंग, हर झगडे हर जिल्लती अपराध के पीछे इन तीन चीजो को पाने की चाहत छिपी है – जमीन को पाने की, जर को पाने की और जोरू को पाने की । जोरू, यानी  स्त्री । तो चलिये हमने अपनी चाहत की चीजों की फेहरिस्त में जोरू को यानी  स्त्री को भी निर्जीव ,जड संपत्ति  की कोटी में डाल दिया। ताकि अपराध की अपराधी मानसिकता की एकरूपता बनी रहे !! ताकि न्यायिक गतिविधियों के लिए कोई  व्यवधान न रहे ! भले ही अपनी न्यायिक व्यवस्था दफा 304 (ठ ), 354(ए ),366, 367, 376 और न जाने कितने ही स्त्री के प्रति के अपराध के लिए दंड विधान मुकर्रर किया क्यूॅं न हो , लेकिन अपराधी कहा मान बैठेगा कि अपनी सरकार स्त्री को वस्तु नहीं व्यक्ति मानती है। अपराधी तो उसे वस्तु ही मानेगा , तभी तो ऐसे हत्याओं को अंजाम मिलता है।  क्यूॅंकि बाप दादाओं से यह रीत चली है ,कि स्त्री ठहरी भोग की वस्तु , पुरूष की संपत्ति. स्त्री के प्रति वस्तुगत चाहत न रखें तो भला खाक मजा आयगा !! और तो और यह तो रीत रूढी ठहरी । खानदानी  मर्यादा और पुरूषत्वता के दर्प का प्रश्न ठहरा। आसानी से मिटाये तो नहीं मिट जाती ?

केन्द्रीय  कारागृह  की स्थायी सलाह मंडली  बैठक की कार्यवाहियॉं चल रही थी। दीर्घावधी शिक्षाबंदियों की शिक्षा संबंधी परिशीलन के लिए फाइलें खोली जा रही थी । अपराधी ,अपराध और शिक्षा के समीकरण का गहन अभ्यास चल रहा था । अपराधी की फाइलों की प्रतियॉं खुली पडी थी । मैं झांक- झांक कर हर फाइल की तल की गहरायी को देख रही थी । लगभग हर अपराध की केस हिस्ट्री इसी गणित को दुहरा रहे थे । अपराधी पुरूष, जिसपर अपराध हुआ है वह स्त्री, जिसके लिए अपराध हुआ है वह स्त्री, जिस कारण से अपराध हुआ है वह स्त्री । अर्थात हर अपराधिक फाइलें, भीगे हुयी थी स्त्री की ऑंसू से, रंगे हुये थे स्त्री के खून से, खार खाये हुये थे स्त्री की आह से, उसांसों से । अपराधी चाहे कोई  हो, अपराध चाहे कैसा भी हो, दंड विधान चाहे कोई  भी क्यूॅं न हो, परिणाम का ठीकरा फूटते जा रहा था स्त्री पर । मॉं, बेटी, बहन, पत्नी, माशुका…. बनकर वह पुरुषसत्तात्मक  मानसिकता के समाज के सलाखों के पीछे बंधी दिखायी पड रही थी । जैसे सलाखों के पीछे बंद पुरूष से कह रही हो,

तू बंधा है भीतर सलाखों में,
जिसकी अपनी सीमा है, रूप है,
मैं बंधी हूॅं बाहर सलाखों में,
जिसकी अपनी न सीमा है न रूप है,
वह तो बस असीम हैं, अरूप हैं.
जैसे ब्रह्म !

आम निर्णय लेने के लिए सलाह समीति में उपस्थित हर सदस्य से पूछा जा रहा था, क्या आप चौदह वर्ष की शिक्षा काटे इन अपराधियों की बाकी शिक्षा को माफ करने के पक्ष में है या नहीं ? सलाह दीजिये । एक एक करके सजाबंदी की संख्या, नाम, जाति-धर्म, शिक्षा का कलम, शिक्षा अवधी का विवरण, पेरोल की अवधी ,जेल में उस कैदी का व्यवहार चरित्र और अपराध प्रकरण का ब्यौरा , विस्तृत केस हिस्ट्री बतायी जा रही थी । हर सजा बंदी कैदी के केस से संबंधित अपराध का स्वरूप और अपराधी की मानसिकता पर रह रहकर मेरी दृष्टि अड जाती। केस हिस्ट्री पढते पढते ,ऑंख के परदे पर घटना का चलचित्र ही घूमने लगता । उन कुछ एक  चलचित्रों के शब्दचित्र यहॉं प्रस्तुत है , जो इन्हीं सलाखों के पीछे की सच्चाई बताते है । अविश्वसनीय सच्चे झूठ की कहानी बयॉं करते हैं।

केस नं: 1  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म (गोपनीय )
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता की धारा 302  

घटना व अपराधः

लगभग बीस वर्ष का युवक, व्यवसाय से अपना जीवन यापन कर रहा था । पडोसी सुंदर,सुघढ, सुशील ब्याहता औरत पर इसकी नजर पडती है । आते- जाते उसे छेडता है । इसे देखकर, उस सुंदर सुघढ औरत का पति अपराधी युवक के परिवार से भिड पडता  है । युवक यही घाघ लगाकर बैठा हुआ है कि कब वह औरत अकेली हाथ लगे।खेत में काम करते पति को , खाना देने के लिए निकली अकेली औरत , मौके के ताक में बैठा लडका !! अपने साथियों के सहारे, उसे नजदीक के खेत में खींच ले जाता है और बलात्कार  की कोशिश करता है। लेकिन इसका घोर विरोध करती जालसाजों के पंजे में फॅंसी स्त्री। विरोध करती छटपटाती औरत के सर पर वे पत्थर दे मारते हैं । हाथ न आने के आवेश में, क्रोध से , विवाहित स्त्री की मर्यादा और मंगल सूचक उसके गले में बंधे मंगलसूत्र के धागे से ही उसका गला फांसकर उसे मौत की नींद सुला देता है युवक । अपनी इच्छित चीज का हाथ न लगने के क्रोध से भुनभुनाया कामुक युवक !

यह रहा, ढंग से मूॅंछे तक न फूटनेवालेे युवक की, पडोसी स्त्री को अपनी संपत्ति  मानने की मानसिकता । आस पास रहने वाले स्त्रियों को जिसे वे चाहते हैं, जिसे वे भोगना चाहते हैं, उसपर अधिकार जमाने की, उसे किसी भी प्रकार से हथिया लेने की पुरूष की वर्चस्वी बर्बर मानसिकता । साली मेरे सामने तू नखरे दिखाती है – हिन्दी सिनेमायी विलेन का अंदाज !







केस नंः  2  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  (गोपनीय )
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302  
घटना व अपराध .

सोलह सत्रह साल का  निम्न वर्ग का लडका । ढंग से अपनी रोजी कमाता भी न होगा ।  जिस लॉरी का यह क्लिनर था उस लॉरी का डा्रइवर इस युवक का बचपन का मित्र रहा था । मित्र ने खूबसूरत सी लडकी से ब्याह रचा लिया । लेकिन इस आशिक युवक का दिल दोस्त की ब्याहता पर आ गया। दोस्त से बार बार यह कहता भी था कि, अगर ब्याह करना है तो तेरी पत्नी जैसी खूबसूरत बला से ही मैं शादी करूॅंगा । बेचारे ड्राइवर  दोस्त को क्या पता, उसके बचपन के साथी के मन में कैसे शैतानी प्लान आकार ले रहे हैं ।
एक दिन पति- पत्नी दरगाह  जाते हैं । अपने प्लान के मुताबिक ,कातिल मित्र भी उनके साथ हो लेता है । उन दोनों को फोटो खिंचवाने के बहाने नदी की ओर ले जाता है । बस क्या था, देखते ही देखते, नदी के उफनते लहरों में मित्र को धकेलकर मार देता है ।

युवा मन की अस्थिर बुद्धि ही कह ले या , जो चाहा उसे पाने की शैतानी जिद्द ही कह ले ,या स्त्री को केवल भोग और काम की तृप्ति के लिए पाने की बर्बर चाह ही कह ले ।  युवक जो अभी कानूनी तौर पर नाबालिग है , आजीवन  शिक्षा का शिकार बनता है ।

केस नंः  3  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  (गोपनीय) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302
घटना व अपराध  

लगभग चौबीस की आयु  का शादीशुदा बेटा हर महीने मॉं के सामने हाथ फैलाता था । अपने जेब खेर्चे के लिये बार बार मॉं को तंग करता था । न काम न धाम । न ब्याहता पत्नी को पाल सकता है और न घर की आर्थिक जिम्मेदारी निभा सकता है । सोने पे सुहागा !! अपनी दूसरी शादी करवाने के लिए मॉं पर दबाव डालने लगा । घर की बेहाली जान मॉं, घर पर बहू के रहते भला बेटे के सर पर दूसरा सेहरा कैसे बांध सकती है । मॉं मना करती गयी , करती गयी । और क्या था अपनी हवशी इच्छा पूरा न होते देख, युवक ने कुल्हाडी उठायी और मॉं के सर पर दे मारा । अपने जिस बेटे की परवरिश , गरीबी में भी जी जान लगाकर करते आयी थी, जिस बेटे का परिवार बसाकर चैन का बुढापा काटना चाहती थी , वही मॉं उसी बेटे के स्वार्थ और बर्बरता का शिकार हो गयी ।
यह रही , भारतीय निम्न परिवार के अपढ, विलासी और स्त्री को ;चाहे वह मॉं हो, बेटी हो, बहन हो या पत्नी हो, अपनी जूती समझनेवाले युवक की पुरूषवर्चस्वी मानसिकता की कहानी। घर परिवार, दीन दुनिया भाड में जाय, मेरी  चलनी चाहिए । घर में चाहे फाके पडे या , छप्पर फटे, मैं पुरूष, घर का मालिक, मेरी मन मर्जी चलनी चाहिए । इसी पुरूष मानसिकता ने मॉं को ही मौत के घाट उतार दिया ।

केस नंः  4  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  (गोपनीय ) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302, 201.
घटना व अपराध 

बीस बाइस  वर्ष का निम्न मध्यवर्गीय परिवार का लडका, खेतीबाडी करता था। मॉं से घर चलाने के खर्चे के पैसे को लेकर लड पडा । बात से बात बढती गयी । बेटे का क्रोध का पारा चढता गया । पैसा बोलता है !! पैसा बोलने लगा, मॉं से पैसा न निकलता देख बेटे ने अपने ही हथेली से मॉं का गला दबादिया । मरी पडी मॉं को देखकर, क्या कोई  बेटा अपने बचाव में सोच सकता है। लेकिन इस बेटे की आगे की हैवानी हरकते देखिये । बोरी में मॉं के शरीर को बांधकर, पास के नहर में फेंक देता है।

यह घटना है भारतीय युवक की परावलंबी मानसिकता की । अपने विरूद्ध के हर आवाज को दबा देने की , अहंकारी, क्रोधी युवा मानसिकता की। अपने चाहतों के विरूद्ध उठी आवाज , भले ही अपनी जननी की ही क्यूॅं न हो, उसे गले में ही फांस देने की हैवानी स्वभाव की।

केस नंः  5  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  ( गोपनीय ) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302, 201.
घटना व अपराध 

भारतीय समाज में स्त्री पुरूष की संपत्ति भी है और उसकी मर्यादा भी। अपने बहू बेटियों पर हुये हुये अन्याय अत्याचार का बदला , तभी पूर्ण होगा जब अत्याचारी के बहू बेटियॉं दॉंव पर चढेंगी । लेकिन इस केस में स्त्री पर हुए अत्याचार, मानहानि के बदले , बलि चढा है अपराधी का बेटा ।

अपनी बहन का बलात्कार  करनेवाले अपराधी को भला भारतीय समाज का युवक जिंदा चलता फिरता कैसे देख सकता था । उस रेपिस्ट के साथ झगडा करता है , उसे मारना  युवक के बस की बात नहीं थी । बहन के साथ हुये अन्याय का बदला लेने के लिए एक दर्दनाक प्लान उसके दिमाग में आकार लेते जाती है । इसी ताक में बैठा युवक, आरोपी के बेटे की बलि चढा देता है । उसे मारकर, लाश को बोरी में बाँधकर, पास के नहर में उसने फेंक दिया ।

यहॉं स्त्री के प्रति  भारतीय समाज की उभय मानसिकता स्पष्ट उभरते हैं । पहली,  अपराधी पुरूष का, जो गॉंव गली की बेटियों को अपने हवश का शिकार बनाने की गंदी कामुक  मानसिकता । दूसरी, सजाबंदी युवक की,किसी भी कीमत पर, अपने परिवार की मर्यादा रहे बहन के चरित्र को भंग करनेवाले व्यक्ति को अपने ही हाथों सजा देकर बदले की आग को ठंडा करने की मानसिकता।

केस नंः  6  सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  ( गोपनीय ) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302 . 
घटना व अपराध 

कन्नड में एक कहावत प्रचलित है ‘‘ पति-पत्नी के बीच का झगडा, भोजन करके सोने तलक मात्र ‘‘ लेकिन इस मुलजिम ने तो इस कहावत को सिरे से ही झुठला दिया है । पत्नी के साथ आपसी वैमनस्य, झगडा पति  को नागवार गुजरती है । झगडालू पत्नी को जान से मारने की साजिश रचता है । रात में गहरी नींद में सोयी  पत्नी के सर पर भारी भरकम पत्थर पटक देता है और आपसी झगडे को अंत कर देता है ।

अपनी बात को काटने वाली, विरोध  में उॅूंची आवाज में बोलने वाली औरत को भला भारतीय समाज का पति हजम कर पायेगा !  हॉं में हॉं मिलाना, नीची आवाज में बोलना ही तो औरत का गहना है !! इन संस्कारों में पला बढा युवक अपनी पुरूषत्वी वर्चस्व को बट्टा चढता कैसे देख पायेगा । आश्चर्य है, कि इस पुरूष अहंकारी मानसिकता के पति को , पत्नी की मौत ही, झगडे का पर्याय दिखायी पडा , तलाक नहीं !!





विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302 . 
घटना व अपराध 

लगभग सारे भारतीय विवाहित पुरूष की मानसिकता है, पत्नी को अपना अधिनस्थ गुलाम मानना।बांदी अगर अपना हुक्म बजाती है तो, उसे हार उपहारों से नवाजेंगे। नहीं  तो ? नहीं  का तो पर्याय निर्दिष्ट है । उस बांदी के नसीब में अपने आका के ही हाथों मिलने वाली प्रत्यक्ष मौत की सजा !!मारना पीटना तो पुरूषों का जन्म सिद्ध अधिकार ठहरा । पूछा जाय तो कहेंगे, जो कहता हूॅं नहीं करती , साली उल्टा जुबान लडाती है !! कहीं यह संभव है । अपने जीवन में मांस को हाथ से तक न छूने वाली औरत, पति के कहने पर मांस पकाये । शराब की बू से मितली खानेवाली औरत, पति के गिलास भरे । ऐसा करने से पत्नी ने मना किया।

दौडधूप कर , रॉशन की पाली में घंटोंभर ठहरकर, मिट्टी के तेल के डब्बे घर में सजाकर रखी  थी पत्नी ने । घर में मांस मछली पकाने, शराब के गिलास भरने को लेकर शुरू हुआ पति पत्नी  के बीच झगडा। तैश खाया पति  ! सारे जलावन तो घर में ही मौजूद   थे !! उलीच देता है सारा डब्बा घासलेट का पत्नी  पर और उसे कर देता है चिनगारी के हवाले !! घर का चूल्हा जलाने के लिए , परिश्रम से जिस मिट्टी के तेल को संजोकर रखा  था, उसी से दाह संस्कार हो जाता है औरत का !!

केस न 8,9,10,11,12. सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  (गोपनीय) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302,147,148,341,
घटना व अपराध 

दिल दहला देनेवाला हत्याकांड । पॉंच मित्रों का मिलकर, तीन भाईयों की एक ही घटना स्थलपर हत्या । पॉंच मित्रों में किसी एक की पत्नी का, मृतक भाइयो में किसी एक के साथ के अनैतिक संबंध को लेकर संघर्ष । बात से बात बढती हुई , हाथापायी पर उतर आयी । अगले ही क्षण कुल्हाडी से तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार देते हैं पांच मित्र

दूसरे की पत्नी मेरी बांह  में ! लेकिन मेरी पत्नी दूसरे की बांह  में ? असंभव !! भारतीय स्त्री के चरित्र की शुद्धता और पत्नी के देह की पावित्रता का प्रश्न भारतीय पतियों के सम्मुख रामराज्य के धोबी की मानसिकता का उत्तर लिया हुआ है । धोबी साधारण आम गरीब हो तो क्या हुआ , पुरूष तो है । भारतीय समाज में स्त्री के शील की शुद्धता के पीछे जाति धर्म और जनांगीय मर्यादा का तमगा भी लगा हुआ है । विवाहेतर संबंधों के लिए भारतीय संविधान में बने कानूनी प्रावधान अपने कदम उठाने से पहले ही समाज की, वर्जित अनैतिक मान्यताओं की, व्यवस्था की कुल्हाडी उन कदमों को काट डालती है ।

केस न 13.    सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  ( गोपनीय ) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302, 201.
घटना व अपराध

अपराध के पीछे केवल और केवल पुरूष का ही हाथ होता है । ऐसी बात  नहीं । स्वार्थ और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओ के लिए, पुरूष संबंधों को भुनाने के स्त्री के प्रयत्नो का कच्चा चिट्ठा भी अपराधिकों के फाइलों में बंद मिलता है। अनैतिक संबंध को अंजाम देने  के लिए, रास्ते का रोडा बने पति को खुरपी  से मारकर खत्म कर देने की साजिश में साथी प्रेमी  का साथ देनेवाली पत्नी की मानसिकता की कहानी बर्बर है। विवाहेतर संबंध को अनैतिक मानकर, अपनी मर्यादा को आंच आता देखकर, विरोध करनेवाले पति के हाथ लगती है उसकी ही मौत ।

केस न 1४ .     सजाबंदी संख्या, नाम, स्थान ,जाति धर्म  (गोपनीय ) 
विधित दंड   : भारतीय दंड संहिता का धारा 302, 203.
घटना व अपराध 

चिंता तो चिंतित को चिता की ओर ले जाती है लेकिन शंका और गुमान में यह बात उलटी पडती है । शंका और गुमान तो शंकालु को नहीं अपितु  जो शंकित है उसे चिता की ओर ले जाते हैं । यह पुरूष की आम शंकालु मानसिकता है, कि उसकी पत्नी अनैतिक संबंध को पाल रही है । इस केस में, लगभग पैंतीस वर्ष के पति को यह गुमान हो गया है कि उसकी पत्नी अपने ही संबंधी के साथ दैहिक संबंध रखी हुई  है । गुमान गहराते जाता है । पत्नी के हरेक व्यवहार पर नजर रखे शंकित पति का खून पिलिया रोगी की हर नजर पीली कथन की तरह पत्नी की हर बात, हर हरकत से खौलने लगता है । सोचना क्या था ? सुबह छः बजे किसी बहाने खेत की ओर पत्नी को लेजाता है, कुल्हाडी से टुकडे कर देता है।
जो अपनी नहीं हुई , भला वह किसी और की कैसी ? पुरूष, आजीवन सजा के तहत बंदीखाने का सजा भुगत रहा है ।

चलिए, सलाखों के पीछे की और बाहर की कहानी की सच्चाई तो हमने देख ली। इन सजाबंदियों की सजा के बाकी सालों को माफ करने या न करने का निर्णय तो खैर सरकारी कार्यवाही की रही है, इसलिए  गोपनीय है । लेकिन क्या इन सारे अपराधों के पीछे अपना पंजा कसे बैठी पुरूष की दंभी अहंकारी मानसिकता गोपनीय है । लगभग इन सारे अपराधों के मूल में, स्त्री को अपना इच्छित चीज माननेवाली, अपनी बांदी  या गुलाम की तरह स्त्री के व्यक्तित्व को वस्तु बनाकर सरे आम समाज के बाजार में व्यवहार में लायी जाने वाली पुरूष की वर्चस्वी उपभोक्तावादी स्वछंदता की भावना क्या जाहिर नहीं ? समाज की यह रूग्ण मनोभावना क्या              लाइलाज है ?

लाइलाज को क्या इलाज ? वाला अंदाज तो समस्या का परिहार नहीं ठहरा। हाथ कंगन को आरसी क्या ? इस सत्य से मुॅंह मोड नहीं सकते कि, समाज में जड जमायी पारंपरिक पुरूषवर्चस्वी मानसिकता के पलने बढने में स्त्री भी उतनी ही जिम्मेदार है जितना कि पुरूष। और तो और इन संस्कारों के अरूप अनाम असीम जडों को खाद पानी देते आया है हमारे देश की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक व्यवस्था । अपने देसी जमीन में गहरे में उतरे इन जडों को काटने की आवश्यकता है । इसके लिए, स्त्री और पुरूष दोनों को ही कुल्हाडी उठानी है । उठी कुल्हाडी की धार को तरतीब देनी है । शिक्षा का प्रचार प्रसार, आर्थिक  विकास की योजनाएॅं, महिला उत्पीडन विरूद्धी कानून आदि सरकारी मुहिमों से भी बढकर समाज के उभय हिस्सों को अपनी अपनी भागीदारी एवं हिस्सेदारी  निभानी है । आरोप प्रत्यारोपों के कानूनी दांव पेंच से ऊपर  उठकर, स्त्री और पुरूष को सौहार्द , संयम, सहयोग ,सहजीवन के प्रगति के मंत्र को आत्मसात करनी है । आइए, सलाखों के पीछे के अपने ही समाज के दूसरे हिस्से से हम कहें ,
देख बढरही हैं तेरी ओर,
सहेज लेने के लिए
जमीन पर पडने से पहले
पश्चाताप के ऑंसू तेरे ,
हथेली पर अपने ।
सलाखों के पीछे की उष्मा  ,उसॉंसें तेरी,
उगा देंगी दाने विश्वास के,
हथेली पर मेरे लहलहायेगी,
हरीघास, बिछलती, डोलती, बंधनहीन,
सलाखें हीन ।
क्यूॅं कि शोभते हैं पीछे सलाखों के,
केवल और केवल,
अपने अपने भगवान !!

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ISSN 2394-093X
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