स्त्री आत्मकथा : आत्माभिव्यक्ति और मुक्ति प्रश्न

(डा बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर विश्वविद्यालय , दिल्ली, के हिन्दी विभाग में शोधरत कुमारी ज्योति गुप्ता के ‘ स्त्री आत्मकथा  :  आत्माभिव्यक्ति और मुक्ति प्रश्न, सन्दर्भ : – ” अन्या से अनन्या ” और एक कहानी यह भी ” विषयक  शोध का एक अंश हम प्रकाशित कर रहे हैं. ‘स्त्रीकाल’ , खासकर स्त्री विमर्श और स्त्री अध्ययन के विद्यार्थियों और शोधार्थियों का अपना मंच है . यहाँ आप न सिर्फ विभिन्न शोध और सामयिक लेखों के लिए जुड़ सकते हैं , बल्कि स्त्री रचनाधर्मिता और स्त्रीवादी रचनाओं का पाठ भी कर सकते हैं . स्त्रीकाल के पिछले अंकों से  शोध -रिफरेन्स के लिए शोधार्थी हमसे संपर्क करते रहते हैं , आप यहाँ पिछले महत्वपूर्ण अंक भी देख सकते हैं , जिन्हें हम धीरे -धीरे अपडेट कर रहे हैं . हम जल्द ही ‘स्त्रीकाल’ के प्रिंट एडिशन की तरह वेब एडिशन के लिए भी ISSN नंबर हासिल कर लेंगे .  स्त्रीविमर्श के  शोधार्थी अपने शोध -आलेख और  शोध -प्रबंध हमें क्रमशः मंगल फॉण्ट और पी डी ऍफ़ फ़ाइल में भेजा करें. )

आत्मकथा के सन्दर्भ में कृष्णानंद गुप्त जी ने लिखा है -“आत्मकथा हमारे लिए नई वस्तु है भारतीय सहित्यकारों ने अपने सम्बन्ध में कभी कुछ कहने की आवश्यकता नहीं समझी ,यहाँ तक कि दूसरों के संबंध में भी वे सदैव चुप रहें हैं । इसी से हमारे यहाँ इतिहास नहीं ,जीवन चारित नहीं और आत्मकथा नाम की चीज तो बिलकुल ही नहीं, हम कह सकते हैं कि यह अंतिम वस्तु हमारे यहाँ पश्चिम से आई है ।”1 अतः इस बात से सहमत होने में कोई आपत्ति नहीं कि आत्मकथा नामक विधा पश्चिम से भारत में आई है । सेंट आग्स्तैन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘confession ‘ लिखकर अपने को व्यक्त का नया तरीका अपनाया। इसके बाद रूसो और गेटे तथा तमाम साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने आत्मकथा के माध्यम से ‘स्व ‘को व्यक्त किया । इससे प्रेरित होकर हिंदी में भी आत्मकथाएं लिखी गयीं ।

रेखांकन /गुलज़ार

सामान्यतः आत्मकथा विधा अन्य गद्य विधाओं की तरह हिंदी साहित्य के लिए आधुनिक काल  की उपज है. यह कई रूपों में लिखी जाती है ,यथा -डायरी ,संस्मरण, जर्नल,पत्र आदि । अज्ञेय ने लिखा है ”आत्मकथा,संस्मरण और जीवनी तीनों   जीवन वृत्त से जुडी होने के कारण साथ राखी जा सकती हैं लेकिन विशेष रूप से ‘ जीवनी ‘ और ‘आत्मजीवनी ‘में भी जो बुनियादी अंतर है उसका बहुत अधिक महत्व है । किसी दूसरे  के जीवन को तटस्थ असंपृक्त अथवा वस्तुपरक भाव से देखना आसन होता है ,स्वयं अपने जीवन और कर्म के प्रति ऐसी तटस्थता निश्चित ही बड़ी कठिन साधना मांगती है । “2 अतः कहा जा सकता है कि अपने को तटस्थ बेबाक प्रकट करने के कारण ही आत्म्काथा जीवनी से अलग हो जाती है क्योंकि जीवनी में व्यक्ति और उसके समय का सच लिखना आसन होता है जबकि आत्मकथा में निजी जीवन का सच लिखना मुश्किल. प्रायः यह देखा जाता है कि जीवन मूल्यों की विशिष्ट व्यवस्था रचनाकार प्रस्तुत तो करता है लेकिन अपनी कमजोरियां व्यक्त करते समय वह ज्यादा सजग हो जाता है जिससे आत्मकथा जटिल हो जाती है । रमणिका गुप्ता ने लिखा है ”आत्मकथा दूसरी विधाओ से भिन्न होती है चूँकि ये सत्य अनुभवों पर आधारित होती है इसमें परिस्थितियाँ बदली  नहीं जाती बल्कि परिस्थितियों का दस्तावेजीकरण होता है …आत्मकथा में जीवन के सत्य को दर्ज किया जाता है । पाठक या समाज उससे अपने निष्कर्ष खुद निकलता है । आत्मकथा सापेक्षित सत्य के इस दौर में बहुजन हिताय सत्य तक पहुँचने की राह दिखाती है ।”3

महिला आत्मकथा लेखन के साथ यही बात है, सम्पूर्ण सत्य यहाँ भी व्यक्त नहीं हो पता .इसका  कारण  ‘स्व’ के प्रति सजगता है लेकिन जब ये सजगता ख़त्म होती है तो स्त्री उन विषयों पर भी खुल के बात करती है जो नितांत निजी या यूँ कहें प्राइवेट है  , जब वह अपने जीवन और लेखन में पारदर्शिता बरतती है तब लोग उसे अश्लील मानने लगते हैं जबकि इस अश्लीलता को जिंदगी में हर व्यक्ति विशेषकर औरतें हर रोज भोगती हैं. आत्मकथा अभिव्यक्ति का माध्यम है जिसमे इच्छा का महत्व  होता है । Laura Marcus ने  आत्मकथा में ‘Intention ‘को महत्त्व देते हुए लिखा “Within critical discussion of autobiography ,’Intention’ has had a necessary and often unquestioned role in providing the critical link between author ,narrator and protagonist. Intention, however, is further defined as a particular kind of writing. Trust the author ,this rather circular argument goes ,if s/he seems to be trustworthy. Autobiography depends on seriousness of the author the seriousness of his personality and his intention of writting.”4 तात्पर्य यह है कि आत्मकथा में ‘इच्छा ‘ लेखक और मुख्य पात्र के बीच एक आवश्यक और अप्रत्याशित भूमिका निभाती है, जो भी हो ,इच्छा रचना  की सत्यता की अनिवार्य शर्त है । इसलिए इसे ईमानदारी से व्यक्त किया जाना चाहिए । लेखक जो सोचता है उसी की अभिव्यक्ति अपनी आत्मकथा में करता है इसलिए आत्मकथा लेखक की गंभीरता ,उसके व्यक्तित्व की गंभीरता और उसके लेखनी की इच्छा  पर निर्भर करता है ।

किसी भी लेखिका को समझने के लिए उसका सृजनात्मक लेखन ,जैसे कहानी,उपन्यास तथा संस्मरण काफी होता है ,फिर उसे आत्मकथा क्यों लिखनी चाहिए,उसके अनुभव का ऐसा कौन सा पक्ष है ,जो अन्य रचनाओं के जरिये पूरा नहीं हुआ। इसपर अपना विचार प्रकट करते हुए डा०जगदीश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है -“स्त्रियाँ लम्बे समय से सार्वजनिक जीवन से बाहर  रही हैं ,पर्दे,में ,घर में कैद रही हैं।उनकी कोई पहचान नहीं रही है।आज भी औरतों का बड़ा तबका घरों में कैद है। चूँकि वह घर में कैद है यही कारण  है कि स्त्री का प्राइवेट संसार और शरीर ये दोनों ही साहित्य से ग़ायब रहा  है स्त्री का  ‘आत्म ‘ दमित,उत्पीडित रहा है। स्त्री का ‘आत्म’ या ‘स्व’ कभी भी आनंद भरा नहीं रहा है .स्त्री के जिस रूप और सौंदर्य का वर्णन हमारे साहित्य की उपलब्धि रहा है उसका स्त्री की यथार्थ जिंदगी से कोई सम्बन्ध नहीं है वहाँ स्त्री का कृत्रिम रूप चित्रित हुआ है।स्त्री आत्मकथा के आने से स्त्री का दमित शोषित ‘आत्म’ प्रकाशित होता है इसमें स्त्री के अदृश्य रूपों और अव्यक्त जिंदगी को पढ़ा जा सकता है ।स्त्री आत्मकथा में स्त्री के जीवन की चुप्पी या साइलेंस के इलाकों को देखा जाना  चाहिए।”5 अतः हम कह सकते हैं कि अतीत की दमित स्मृतियों से मुक्ति के लिए तथा अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए आत्मकथा लिखी जाती है, इसमें कुछ जीवन की उप्लब्धियों को कलात्मक ढ़ंग से अभिव्यक्त करती हैं तो कुछ सिलसिलेवार तरीके से अपनी संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से मूर्त रूप प्रदान करती हैं ,जिसमे उनका संघर्ष विभिन्न रूपों में दीखता है। स्त्री आत्मकथा की गुत्थियों को खोलते हुए डा ०जगदीश्वर चतुर्वेदी ने लिखा है -”औरत इसलिए भी आत्मकथा  लिखती है क्योंकि वह अतीत से मुक्त होना चाहती है। मुक्त होने के लिए बोलना जरुरी है जो लोग सोचते हैं कि वे बिना  बताये मुक्त हो जाएँगे उन्हें ग़लतफहमी है। मुक्ति के लिए गोपन रखना जरुरी नहीं है स्त्री अपने को सुरक्षित करने ,दुबारा जोड़ने और पुनः सृजित करने के लिए आत्मकथा लिखती है।वह अपरिहार्य को बताती है, उद्घाटित करती है। ”6

 डा० प्रभा खेतान की आत्मकथा भी इसी रूप में हमारे सामने आती है ,जहाँ वे तयशुदा मानदंड के खिलाफ जाकर अपनी अनुभूति की सच्ची अभिव्यक्ति करती हैं।’अन्या  से अनन्या’ में वे मुक्ति की विभिन्न पहलुओं जैसे पित्रिसतात्मक समाज से मुक्ति,आर्थिक मुक्ति,अभिव्यक्ति की आजादी,स्त्री की बाध्यकारी स्थिति से मुक्ति को दर्ज करती हैं ।यह एक ऐसी आत्मकथा है जो अपने को अभिव्यक्त तो करती है साथ ही आत्म के ऊपर सवाल भी खड़े करती है।लेखिका खुद को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा करती है और कहती हैं -” writing autobiography is also like a stripe-tease dance. you start taking of your clothes on the road. There is always a dark corner in the mind of the writer which wishes to express itself and to eulogize while wishing at the same time that people don’t take her words in the wrong manner. Whatever is written should be taken in the right perspective and meaning. It is up to the readers.”7  तात्पर्य यह है कि आत्मकथा लिखना स्ट्रिपटीज डांस की तरह है ,जिसमे आपको एक-एक कर अपने कपडे दर्शकों के सामने उतारने पड़ते हैं लेखक अपनी समस्त साहसिक उपलब्धियों के साथ वैयक्तिक कमजोरियों को पाठक समुदाय के सामने रखते हुए यह निर्णय करने का दायित्व उन्हीं को सौप देता है। अतः यह पाठक समुदाय पर निर्भर करता है कि वह प्रभा खेतान को बदचलन औरत मानना चाहता है या एकाग्र निष्ठा से उस आदमी को प्रेम करने वाली औरत जो इनका पूरी तरह से अपना कभी नहीं हुआ। यहाँ निर्भीक भाव से स्वयं को अभिव्यक्त  करने वाली महिला का रूप सामने आया है जो तमाम तरह के मुक्ति प्रश्नों से जुझते हुए सामाजिक चुनौतियों से स्वीकार करती है।

 आर्थिक मुक्ति या यूँ  कहें  अस्मिता की तलाश इस आत्मकथा का एक महत्वपूर्ण अंश है ।डा0 प्रभा खेतान ने कहा भी है ” औरत समाज में दोयम स्तर पर है , मैं  तो खुद दोयम दर्जे की जिन्दगी जी रही थी,जिससे निकलने को छटपटा रही थी और सिमोन के इस कथन को आत्मसात कर लिया – फ्रीडम स्टार्टस फ्रॉम पर्स ( freedom starts from purse ) मुक्ति की पहली शर्त है कि स्त्री आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो। यदि इस एक शर्त को कोई औरत पूरा कर ले तो वह अपनी जिन्दगी कि आधी से अधिक ल जीत लेती है। ”8  ‘अन्या से अनन्या’ में इस लड़ाई से जद्दोजहद करती स्त्री दिखाती है। महिला उद्योगपति प्रभा खेतान का दुस्साहस इस रूप में सामने आता है कि वह मारवाड़ी पुरुषों की दुनियां में घुसपैठ करती है। कलकत्ता चेम्बर्स ऑफ़ कोमर्स की अध्यक्ष बनती है अपनी आत्मकथा में इस मुक्ति संघर्ष को व्यक्त करती हैं अतः यह आत्मकथा सिर्फ स्त्री- पुरुष सम्बन्ध तथा पति -पत्नी के बीच ‘वह ‘ की  भूमिका निभाने वाली स्त्री की नहीं बल्कि अस्मिता की तलाश में निकली ऐसी स्त्री की है जिसने तयशुदा और प्रचलित मानदंडों के खिलाफ स्वयं को खड़ा किया।

  आत्मकथा विशेषतः महिला आत्मकथा के सम्बन्ध में चन्द्र तलपडे मोहंती ने अपनी पुस्तक ‘ feminism ‘ में लिखा है -”autobiography is a  genre in which a person unties the  complex  knots of   society at the cost of his/her privacy . autobiography in any language  written by women have raised issued which are pertinent to their liberation from patriarchy and over all change in gender equations.”9  तात्पर्य यह है कि आत्मकथा अपने को अभिव्यक्त करने का वह माध्यम है, जिसके जरिये व्यक्ति समाज की जटिलताओं और अपने निजी संबंधों की गुत्थियों को खोलता है। आत्मकथा ,चाहे वह किसी भी भाषा में लिखी  गई  हो ,वह स्त्री मुक्ति का मार्ग है, जिसके जरिये लेखिकाऍ पितृसत्ता और लिंग दोनों ही स्तर पर अपने को मुक्त करना चाहती हैं। महिला लेखिकाऍ विशेषतः डा० प्रभा  खेतान तथा मन्नू भंडारी की आत्मकथा पर ये बातें लागू होती हैं क्योंकि इन्होने ‘स्व ‘ की अभिव्यक्ति के माध्यम से पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती दी जिसमें आत्माभिव्यक्ति की आकांक्षा और मुक्ति संघर्ष साफ तौर पर दिखता .

प्रख्यात लेखिका प्रभा खेतान

 आत्मकथा में ‘ आत्मगोपन ‘ का महत्व होता है ‘ आत्मगोपन ‘ और ‘ गोपन ‘ से सारा समाज घिरा है इस गोपन को खोलने के लिए सदियों से दमित कुंठा से मुक्त होने के लिए आत्मकथा लिखी जाती है ।’ एक कहानी यह भी’ इसका प्रमाण है जहाँ मन्नू भंडारी नितांत निजी प्रसंग का खुलासा करते हुए कहती हैं -” इतना तो समझ में आ गया कि राजेंद्र के दिमाग में एकाएक सामानांतर जिन्दगी कि यह जो अवधारणा पैदा हुई है ,निश्चित ही उसके सूत्र कहीं और ही हैं .पर असलियत को ईमानदारी से स्वीकार करने का साहस तो राजेंद्र में कभी रहा ही नहीं( (कम से कम मेरे सन्दर्भ में )इसलिए अपने हर झूठ ,अपनी हर जिद ,बल्कि यूँ कहूँ कि अपनी हर नाजायज  हरकत को ढंकने के लिए आदत से मजबूर राजेंद्र हमेशा कोई न कोई ऐसा सूत्र भी ढूंढ़ ही लेते है -कभी आधुनिकता के नाम पर तो कभी लेखन के नाम पर तो कभी कोई फलसफा गढ़कर जो उन्हें सही सिद्ध कर दे .” 1 0

 स्त्री आत्मकथा की असली जंग अनखुली सार्वजनिक जिन्दगी के उद्घाटन में छिपी होती है। सामान्यतः स्त्री आत्मकथा में घरेलू जीवन और उसके आख्यान हावी रहते है , किन्तु ऐसी आत्मकथा भी आ रही है ,जहाँ स्त्री घरेलू जीवन अथवा पारिवारिक जीवन के बाहर के सत्य को बता रही हैं। मन्नू भंडारी ने लिखा है -”मुझे इनके खिलाफ शिकायतों का कोई खर्रा नहीं खोलना ,मुझे तो इनकी ‘ विशिष्ट ‘ जीवन-पद्धति का एक उदहारण भर पेश करना है। पर जब -जब इस तरह की कोई घटना घटती ,मै सोचती क्या सभी रचनाकार अपने परिवार के प्रति ऐसी ही गैर -जिम्मेदाराना ,क्रूर हरकतें करते हैं? जहाँ तक मै जानती हूँ ऐसा नहीं है। यह तो राजेंद्र के मन में मुझे लेकर जितनी कुंठाएं जमी हुई थी उसी का परिणाम था  ….मै तो भोगने के लिए अभिशप्त थी ही और अपने इसी तरह के कुकर्मों को राजेंद्र ‘ विशिष्ट ‘जीवन-पद्धति की आड़ ….में, रचनात्मकता की आड़ में तर्क सांगत ही नहीं जायज भी ठहराते थे।” 11.ऐसे कितने ही प्रसंग हैं जो लेखिका के अनकही को बयां करते हैं उन्होंने लिखा भी है ”सन ९२मे अपना आत्मकथ्य लिखने का जो अनुबंध किया था वह आज तक (सन2006)घिसटता रहता ?कभी दो पन्ने लिख दिए तो कभी चार …..”12

अतः हम कह सकते हैं कि यह विधा आत्माभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम है, जिसमें  स्त्रियाँ तमाम तरह के मुक्ति प्रश्न और चुनौतियों से जूझते हुए अपनी अतृप्त आकांक्षा को व्यक्त करती हैं।

  सन्दर्भ -ग्रन्थ सूची
1 . गुप्त ,कृष्णानंद :हंस -वाणी ,आत्मकथा ,प्रेमचंद (संपादक ),आत्मकथा अंक ,प्रथम संस्करण -1932 ,प्रथम आवृति -2008 ,विश्वविद्यालय प्रकाशन ,वाराणसी -2211001 ,पृ ० सं ० -167
2 . अज्ञेय ,सच्चिदनंद हीरानंद वत्सयायन :आत्मकथा जीवनी और संस्मरण ,समकालीन भारतीय साहित्य ,सितम्बर-अक्टूबर ,2004साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली -110001 पृ ० सं ० -26
3 . गुप्ता , रमणिका :शर्म की परतें खुलती हैं आत्मकथाओं में ,हंस ,सितम्बर 2005 ,अक्षर  प्रकाशन  प्रा ० लि ० ,पृ ० सं ०-50
4 .Anderson, Linda: Autobiography, First Indian Reprint-2007,First published by Routledge 2 Park Square ,Milton Park, Abindon OX on OX14 4RN ,pg no-3
5.  चतुर्वेदी ,जगदीश्वर :स्त्री आत्मकथा :आलोचना पद्धति के मानदंड ,प्रगतिशील वसुधा -73 ,अप्रैल -जून 2 0 0 7 ,भोपाल -462003 पृ ० सं ० 259
6 . चतुर्वेदी ,जगदीश्वर :स्त्री आत्मकथा :आलोचना पद्धति के मानदंड ,प्रगतिशील वसुधा -73 ,अप्रैल -जून 2 0 0 7 ,भोपाल -462003 पृ ० सं ० 26 2
7http;//www.google.co.in/search?/=en&q=relatedeconomictimes.indiatimes.com/articleshow/msid-3504762,flstny-1cm
8 . खेतान ,प्रभा :प्रभा खेतान से साधना अग्रवाल की बातचीत ,वागर्थ ,सितम्बर -2 0 0 3 ,भरतीय भाषा परिषद् ,कोलकाता -700017 ,पृ ० सं ० -37
9http;//www.google.co.in/search?/=en&q=relatedeconomictimes.indiatimes.com/articleshow/msid-3504762,flstny-1cm
10 . भंडारी ,मन्नू :एक कहानी यह भी ,पहला संस्करण -2008, (पेपरबैक्स ),राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा ० ली ० ,नई दिल्ली -1100 02 ,पृ ० सं ० -205
11 . वही ,पृ ० सं ० – 57
12 . वही ,पृ ० सं ० – 99

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ISSN 2394-093X
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