उन्हें लड़ना ही होगा अपने हिस्से के आसमान के लिए

निवेदिता


निवेदिता पेशे से पत्रकार हैं. सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनों में भी सक्रिय रहती हैं. हाल के दिनों में वाणी प्रकाशन से एक कविता संग्रह ‘ जख्म जितने थे’ के साथ इन्होंने अपनी साहित्यिक उपस्थिति भी दर्ज कराई है.निवेदिता से niveditashakeel@gamail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.



( काठमांडू में सात देशों की महिला पत्रकारों के एक सम्मलेन से लौट कर वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता इन  देशों की महिला पत्रकारों के  समान संघर्षों की कहानी  स्त्रीकाल के पाठकों से साझा कर रही हैं. )


पिछले पांच दिनों तक पूरी दुनिया हमारी थी । हमने सरहदों की सीमा पार की। मुल्क की दीवारों को पार किया । हमसब मिले काठमांडू में। अलग-अलग भाषा,संस्कृति  के बावजूद हम मुहब्बत के रंग में डूबे रहे। हमने जाना पूरी दुनिया की पत्रकारिता में क्या कुछ चल रहा है। पाकिस्तान,बंगलादेश ,अफगानिस्तान समेत कुल सात देशों  की महिला पत्रकारों ने पत्रकारिता और उससे जुडे मसलों पर बात की ।इन देशों  से आयी महिला पत्रकारों ने बताया कि दुनिया तक खबरें पहुंचाने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती हैं उन्हें। पिछले दस सालों में सिर्फ पाकिस्तान में 100 से ज्यादा पत्रकार मारे जा चुके हैं। भय और आतंक के बीच महिलाएं काम करती हैं। वे हिंसा का सामना करती हैं। उनकी कलम पर पहरे लगें हैं। जुबा पर मुहर लगी है। बमों और गोलियों के बीच पत्रकारिता करने वाली महिला पत्रकार कहती हैं कि ‘दुनिया में वह गोली कहीं नहीं बनी जो सच को लगे।’
पर वो वहां मात खा जाती हैं जहां महिला होने की वजह से एक खास तरह की मानसिक और शारीरिक हिंसा क्षेलती हैं।  दुनिया की पत्रकारों के लिए पत्रकारिता से बडी चुनौती है लैंगिक विभेद। ये पत्रकार जो खबरों से लड़ती हैं, जो दूर-दराज गांवों,शहरों कस्बों और महानगरों से खबरें ले आती हैं, उन सब को लैंगिक विभेद का समाना करना पड़ता है। पाकिस्तान की सना मिर्जा ने बताया कि कई अखबार महिलाओं को नहीं रखते । यह एक तरह की अघोषित नीति है। पेशावर की महिला पत्रकार आॅफिस से काम नहीं करती। उन्हें हर जगह तालिबान से खतरा रहता है। वे नहीं चाहते औरतें मीडिया में काम करें। इसलिए वे छुपकर अपने घरों से खबरें भेजती हैं। सरकार के पास महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कोई नीति नहीं है। उन्होंने स्वीकार किया कि इस दौर में पत्रकारिता के मूल्य बदले हैं, तेवर बदले हैं।

वैश्वीकरण  मीडिया पहले से ज्यादा आक्रामक  बनाया है। मनोरंजन से लेकर खबर परोसने के तरीके बेहद आक्रमणकारी और विखंडनकारी है। पूंजी के इस खेल में मीडिया के लिए महिला पत्रकार भी बाजार का हिस्सा है। बाजार बनाए रखने के लिए उसे खूबसूरत एंकर व रिपोटर्र चाहिए। खबरों से ज्यादा मीडिया का ध्यान इस बात पर रहता है कि उनके चैनल की एंकर की शक्ल  इस बाजार को लुभा सकती है या नहीं। सना कहती हैं मेरे लिए एंकरिंग बड़ी चुनौती है। हम रोज वैसी खबरों से गुजरते हैं जो दिल दहलाने वाली होती है। उन स्थितियों में एक एंकर के लिए जरुरी होता है कि वह अपनी बात इस तरह से कहे कि किसी की भावना आहत नहीं हो। पाकिस्तान में महिला हिंसा की खबरें काफी बढ़ी है पर उन खबरों को जगह नहीं मिल पाती।  उन खबरों को जगह मिले,खबरे संवेदनशील  तरीके से लिखे जाएँ  और न्याय के पक्ष में आवाज उठाए इसके लिए भी पाकिस्तान की पत्रकारों को  मीडिया के भीतर दबाव बनाना पड़ता है।

निवेदिता के दूसरे आलेखों को  स्त्रीकाल में पढ़ने के लिए क्लिक
करें : ( जब जरा गरदन झुका ली देख ली तस्वीरें यार )
( यह चुप्पी खतरनाक है )

 अफगानिस्तान  के हालात और भी खराब हैं। मैकिया मुनीर ने बताया कि पत्रकारों पर हमले होते हैं। आतंकवादी संगठनों का दवाब रहता है। कई बार ऐसे संगठन पत्रकारों का इस्तेमाल अपने लिए करते हैं। महिला पत्रकारों को पुरुषों के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं। महिला पत्रकारों ने कहा कि उनके सामने इस बात का दवाब रहता है कि न्यूज बुलेटिन को अधिक से अधिक आकर्षक व बिकाउ बनाएं। बाॅडी लैगवेज उत्तेजक हों और पोशाक  पारदर्शी  हों। दरअसल पूंजीवाद के लिए हर चीज कामोडिटी है। वह पुराने मिथकों को तोड़ता है और नए मिथकों को गढ़ता है। दुनिया के सभी देशों  में कमोवेश  महिलाएं लैंगिक विभेद की शिकार हैं। आज भी महिला पत्रकारों की संख्या कम है। सभी देशों में शीर्ष  पर पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या कम है ।  महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कमतर आंका जाता है।

श्रीलंका की पत्रकार दिलरुकशी,आॅस्टेलिया की जेना,बंगालादेश  की नाडिया, हिन्दुस्तान की लक्ष्मी और नेपाल की निर्मला समेत सभी महिला पत्रकारों ने महसूस किया कि कार्यस्थल  पर यौन उत्पीड़न के अधिकांश  मामलों में महिलाओं को न्याय नहीं मिलता। ऐसे कई मामले सामने आए पर न्याय नहीं मिला।
खबरों को लेकर भी विभेद है। महिलाओं को राजनीतिक,अपराध,वाणिज्य,प्रशासन जैसे बीट नहीं दिये जाते हैं। एक पत्रकार ने बताया कि सालों तक उसे धर्मगुरुओं के प्रवचन पर रिपोर्ट बनाना पड़ा।यह माना गया कि मीडिया की कार्य संस्कृर्ति महिला पत्रकारों के विरोध में खड़ी है। उनके उठने, बैठने से लेकर उनकी निजी  जिन्दगी में भी ताक-झांक की कोशिशें  होती रहती हैं। महिला पत्रकारों की स्थायी नियुक्ति एक बड़ा मसला है। अधिकांश  महिलाएं अस्थायी नियुक्ति की वजह से असुरक्षित हैं। उन्होंने पाया कि अखबारों में शहरी,ग्रामीण,गरीब,दलित औरतों के जिन्दगी के संघर्षों  को कम जगह मिलती है पर मीडिया में मनोरंजन के नाम पर विघटन,अविश्वास ,परिवार विभाजन,विवाहेतर संबंध जैसी खबरों को ज्यादा तरजीह मिलती है। दरअसल मीडिया का मूल स्वर स्त्री विरोधी है। मीडिया इसी पितृसत्तात्मक समाज से निकला है। इसलिए मीडिया में महिला पत्रकारों के सामने कई तरह की चुनौतियां है। उन्हें लड़ना ही होगा अपने हिस्से के आसमान के लिए।

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles