शादी का झूठा आश्वासन यौन शोषण

अरविंद जैन

स्त्री पर यौन हिंसा और न्यायालयों एवम समाज की पुरुषवादी दृष्टि पर ऐडवोकेट अरविंद जैन ने मह्त्वपूर्ण काम किये हैं. उनकी किताब ‘औरत होने की सजा’ हिन्दी में स्त्रीवादी न्याय सिद्धांत की पहली और महत्वपूर्ण किताब है. संपर्क : 9810201120
bakeelsab@gmail.com

यौन शोषण (हिंसा) के अधिकांश मामले, अनियंत्रित काम-वासना को संतुष्ट करने के लिए, बेहद सावधानी से रचे होते हैं । कामुक फिल्मी छवियों का एहसास और उद्दाम ‘फैंटेसी’ का एक मात्र उद्देश्य, महिलाओं पर हावी होना है। दरअसल, वास्तविक बलात्कार या ‘डेट रेप’ करने से पहले, बलात्कारी के दिमाग में नशे की तरह, कई बार इसकी ‘रिहर्सल’ की गई होती है। मगर प्राय पीड़िता को ही सदा दोषी ठहराया और अपमानित किया जाता है । परिजनों द्वारा कथित ‘खानदान की इज्ज़त’ के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है।

शादी का झांसा देकर किसी लड़की के साथ शारीरिक रिश्ते बनाना और बाद में शादी से मना करना, बलात्कार के दायरे में आता है । वह भी तब, जब लड़के का लड़की से शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा न हो। हम इसे ‘शादी की आड़ में ‘यौन शोषण’ भी कह सकते हैं। अधिकतर लड़के शादी का झांसा देकर, शारीरिक रिश्ते बनाते हैं और तब तक बनाते रहते हैं, जब तक लड़की गर्भवती नहीं हो जाती। कुछ समय बाद, गर्भपात कराना भी मुश्किल हो जाता है और अंतत मामला परिवार और पड़ोसियों की नजर में आ ही जाता हैं। बाद के अधिकतर मामलों में, ऐसे दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज होते हैं। रोज़ हो रहे हैं।

भारतीय अदालतों ने कई बार सवाल उठाए हैं– “किसी लड़की से शादी का झूठा वायदा करके, शारीरिक रिश्ते बनाना सहमति है या नहीं? यदि वह बलात्कार नहीं है तो यह धोखेबाजी है या नहीं?”

जयंती रानी पांडा बनाम पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य के मामले में कलकता उच्च न्यायालय का मानना था कि अगर कोई बालिग लड़की शादी के वादे के आधार पर, शारीरिक रिश्ते को राजी होती है और तब तक इस गतिविधि में लिप्त रहती है, जब तक कि वह गर्भवती नहीं हो जाती, तो यह उसकी ओर से ‘स्वच्छंद संभोग’ के दायरे में आएगा। ऐसे में, तथ्यों को गलत इरादे से प्रेरित नहीं कहा जा सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा-90 के तहत अदालत द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता, जब तक यह आश्वासन न मिले कि रिश्ते बनाने के दौरान, आरोपी का इरादा आरम्भ से ही शादी करने का नहीं था। (1984 क्रिमिनल लॉ जर्नल 1535) बंबई उच्च न्यायालय ने कहा भारतीय दंड संहिता की धारा-415 में ‘धोखाधड़ी’ के अपराध को परिभाषित किया गया है।  शादी का झूठा वायदा कर, जानबूझकर दिए गए प्रलोभन के बाद शारीरिक रिश्ते बनाना, ‘धोखाधड़ी’ की परिभाषा के तहत ‘शरारत’ के दायरे में आते हैं और दंडनीय अपराध है। (आत्माराम महादू मोरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1998 (5) बीओएम सीआर 201)

पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि यह बलात्कार का अपराध नहीं है। शादी के झूठे वायदे की आड़ में  आरोपी द्वारा वादी को धोखे में रखकर, लगातार शारीरिक रिश्ते बनाना  धारा-415 के तहत ‘धोखाधड़ी’ का प्रथम-दृष्ट्या अपराध सिद्ध होता है। (मीर वाली मोहम्मद उर्फ कालू बनाम बिहार सरकार (1991 (1) बीएलजेआर 247) सर्वोच्च न्यायालय  ने 2004 में एक  फैसला सुनाया- हमें इसमें संदेह नहीं कि आरोपी ने लड़की से शादी का वायदा किया था और इसी प्रभाव में लड़की ने उसके साथ शारीरिक रिश्ते भी बना लिए। आरोपी असल में विवाह का इरादा तो रखता था लेकिन परिवार के बड़े-बुजुर्गों के दबाव में ऐसा नहीं कर पाया। यह विवाह करने के वायदे को लेकर, वायदा खिलाफी का मामला प्रतीत होता है, न कि विवाह के झूठे वायदे का मामला। (दिलीप सिंह उर्फ दिलीप कुमार बनाम बिहार राज्य, 2005 (1) सुप्रीम कोर्ट केसेस 88)। उदय बनाम कर्नाटक सरकार के मामले (2003) में सर्वोच्च न्यायालय  ने दृढ़तापूर्वक कहा कि कोई कड़ा फार्मूला नहीं बनाया जा सकता लेकिन यदि लड़की की उम्र 19 साल है और उनमें इस करतूत के महत्व और नैतिक गुण की पर्याप्त समझ है, तो उसकी सहमति मानी जाएगी। न्यायाधीश एन. संतोष हेगड़े और बी. पी. सिंह ने गंभीर संदेह जताया कि याचिकाकर्ता के बुलाने पर चोरी-छुपे लड़की, रात 12 बजे सुनसान जगह पर चुपचाप गयी। जब दो लोग जवान हों, तो आमतौर पर ये होता ही है कि वे सभी अहम बातों को भुलाकर जुनून में आकर प्यार कर बैठें, खासकर तब जब वे कमजोर क्षणों में अपनी भावनाओं पर काबू न कर पायें। ऐसे में, दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते कायम हो ही जाते हैं। लड़की स्वेच्छा से लड़के के साथ रिश्ते कायम करती है, वह उस लड़के से बेहद प्यार करती है, इसलिए नहीं कि उस लड़के ने उससे शादी के वायदा किया था, बल्कि इसलिए कि लड़की ऐसा चाहती भी थी। (2003 (4) सुप्रीम कोर्ट केसेस 46)

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ए.के माथुर और अल्तमस कबीर ने 2006 में एक और फैसला सुनाया- “हम संतुष्ट हैं कि आरोपी ने उसे राजी करते हुए सबकुछ किया, लेकिन वह ऐच्छिक भी नहीं था क्योंकि उसने शादी करने जैसा वायदा करके उसे फुसलाया। कानून इसकी इजाजत नहीं देता। पीड़ित लड़की और गवाहों की गवाही से पूरी तरह स्पष्ट होता है कि गवाह पंचायत की तरह काम कर रहे थे। आरोपी ने पंचायत के समक्ष स्वीकार किया कि उसने लड़की के साथ शादी करने का वायदा कर उसके साथ शारीरिक रिश्ते बनाये लेकिन पंचायत के समक्ष वायदे करने के बावजूद वह पलट गया। इससे पता चलता है कि आरोपी का शुरू से ही लड़की से विवाह करने का कोई इरादा नहीं था और वह पीड़िता से शादी नहीं करेगा, इसका झांसा देकर उसने शारीरिक रिश्ते बनाये। अतएव, हम संतुष्ट हैं कि प्रतिवादी को सजा देना न्यायसंगत है। हमारे निष्कर्ष के मुताबिक, कोई मामला नहीं बनता। अपील खारिज की जाती है।’ (यादला श्रीनिवास राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य) माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में लड़की की उम्र, उसकी शिक्षा और उसके सामाजिक स्तर और लड़के के मामले में भी इन्हीं सब पर गौर किया जाना जरूरी है। यदि आरोपी कम उम्र की लड़की को फुसलाकर उससे विवाह करने का वायदा कर ले, तो ऐसे में यह उसकी सहमति नहीं होती, बल्कि फुसलाकर किया गया कृत्य होता है। आरोपी शुरू से ही अपने वायदे को पूरा करने का इरादा नहीं रखता। ऐसी कपटपूर्ण सहमति को सहमति नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अपराध के लिए हामी भराना आरोपी का अपराध है।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी.के. जैन ने 1 फरवरी, 2010 को आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए, ऐसे आपराधिक कृत्य की निंदा करते हुए लिखा- ‘इस पर गौर करने पर कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर, लड़की से शारीरिक रिश्ते बनाये, इस आशय से कि उससे विवाह का उसका कोई इरादा नहीं था।  कोई बलात्कार का मामला नहीं बनता। यह न सिर्फ घोर निंदनीय कृत्य है बल्कि प्रकृति से भी आपराधिक है। यदि ऐसा होने रहने की अनुमति दी जाए, तो इससे इनसान अनैतिक और बेईमानी बनेगा। जो भी इस इरादे से इस देश में आएगा, शादी का ढोंग रचाएगा और कमजोर वर्ग की लड़की से शारीरिक रिश्ते बनाने का दबाव डालकर उनका शोषण करेगा। उधर, लड़की को यकीन रहेगा कि वह उसके साथ शादी करेगा। उसे भी यही लगेगा कि जिससे भविष्य में शादी होनी है, वह पति बनेगा ही, कम से कम उससे शादी से रिश्ते रखने में कुछ भी गलत नहीं है। इस वायदे का हवाला देकर उसके साथ दुष्कर्म करके आरोपी आराम से जब चाहे, चलता बनेगा। ऐसे मौकापरस्त लोगों को लड़की की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का लाइसेंस नहीं दे सकती। इस तरह तो शादी के पवित्र रिश्ते में भारतीय लड़की को डाल देना कोई दो दिलों का मेल नहीं है। बेसहारा लड़कियों का शोषण करने वाले ऐसे लोगों को बेखौफ बच निकलना हमारे ऐसे कानून का मकसद कभी नहीं हो सकता, जो इस घिनौने कृत्य के बाद ताउम्र जेल की सजा का हकदार है।’ (निखिल पराशर बनाम राज्य)

विवाह करने संबंधी वायदे के साथ सेक्स करना और गर्भवती होने पर पुलिस रिपोर्ट वर्ग, धर्म, क्षेत्र, आयु या सामाजिक स्तर संबंधी ज्यादातर मामले एक जैसे होने पर आदमी लड़की पर सेक्स के लिए दबाव बनाता है, विवाह करने का भरोसा देकर गर्भवती करता है, परिवार और पुलिस का रिपोर्ट के संदर्भ में बरी होने, संदेह का लाभ पाने या उच्च अदालत में सजा..अपील और इस तरह अंतिम न्याय मिलने में पांच से बीस साल लगना। ये वे मामले हैं, जो समूचे मामलों की नजीर भर हैं।

इस खास संदर्भ में कानूनी राय और फैसले सीधे-सीधे बंटे हुए हैं। सहमति और तथ्यों के उलझाव में उलझे हुए हैं, क्योंकि कानून पूरी तरह पारदर्शी नहीं है और फैसले हर मामले के तथ्यों और हालातों के आधार पर होते हैं। न्यायिक राय को लेकर आमराय यही है कि विवाह का वायदा कर पीड़िता से शारीरिक रिश्ते की सहमति लेना कि भविष्य में वह विवाह करेगा, गलत तथ्यों के तहत ली गयी सहमति नहीं कही जा सकती। कुछ अदालतों का विचार है कि विवाह करने का झूठा वायदा करने को लेकर दी गयी कथित सहमति विवाह का राजीनामा नहीं है। इसके मुताबिक, विवाह के झूठे वायदे को लेकर पति-पत्नी जैसा शारीरिक रिश्ता बनाने संबंधी सहमति हासिल करना कानूनी नजरिये से सहमति ही नहीं है। ऐसे मामलों में सबसे कठिन काम यह साबित करना होता है कि आरोपी का शुरू से ही पीड़ित लड़की से विवाह करने का कोई इरादा नहीं था। वह कह सकता है कि मैं विवाह करना तो चाहता हूं लेकिन मेरा माता-पिता, धर्म, जाति, ‘खाप’ आदि इसके लिए अनुमति नहीं देते। औरत के खिलाफ अपराध संबंधी किंतु-परंतु को लेकर जब तक कानून में संशोधन नहीं होता, न्याय से जुड़े ऐसे कानूनी पेंच यूं ही कायम रहेंगे।

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles