कर्मानंद आर्य की कवितायें : वसंत सेना और अन्य

कर्मानन्द आर्य

कर्मानन्द आर्य मह्त्वपूर्ण युवा कवि हैं. बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय में हिन्दी पढाते हैं. संपर्क : 8092330929

( कर्मानंद आर्य की इन कविताओं में इतिहास और वर्तमान के बीच एक सुन्दर सेतु बना है ,जिससे आवाजाही करते हुए दोनो ही एक दूसरे के काल को अतिक्रमित करते हुए गलबाहियां डाले हैं . स्त्री की अनंत यात्रा जारी है , जाति-वर्ग से सज्ज , जाति-वर्ग से परे भी – जाति -वर्ग दंश से  युक्त भी . )

वसंतसेना

नायकों की एक विशाल पंक्ति
बाहर खड़ी है
आज के दिन भी तुम उदास हो वसंतसेना

कितने बिस्मिल्लाह खड़े हैं
अपनी शहनाइयों के साथ
कितने तानसेन गा रहे हैं
सधे सुरों का गीत

अपने सधे क़दमों से
नृत्य की मुद्रा में आज है
‘दाखनिता कुल’

उल्लास का मद अहा
चोर, गणिका, गरीब, ब्राह्मण, दासी, नाई
हर आदमी आज है नायक

चारुदत्त आये हैं वसंतसेना
फिर भी हो तुम उदास

वसंतसेना निर्व्याज नही जायेगा तुम्हारा प्रेम
प्रकृति उत्तम है

उदास क्यों होती हो ?
क्या गणिकाओं का विवाह नहीं होता वसंतसेना

मत्स्यगंधा

एक:

जातियों का बंधन टूटता है
तुम्हारे प्रणय के स्पर्श से
जिसे तोड़ नहीं पायी
पवित्र माने जाने वाली ऋचायें
उसे तोड़ दिया
रूप की आकांक्षा ने

तृषा जागती है
देव, गंधर्व, कोल, किरात
सब लोटते हैं तुम्हारे चरणों में

अरे यह क्या ?
तुम समय की भाषा पढ़ने लगी हो
तुममें भी आ गए हैं
उच्च वर्णस्थ स्त्री के भाव

अच्छा है तुम्हारा यह निर्णय भी
तुम उसी से विवाह करोगी
जो देव, गन्धर्व, कोल, किरात नहीं
तुम्हारे आँखों के वर्ण का होकर रहेगा

दो:

तुम्हारा पति आज
मछलियाँ पकड़ने नहीं गया
उसे सता रही थी अद्भुत प्यास
वह तुम्हारे आसपास मंडराता रहा

यह बसंत की दोपहरी नहीं है
जब गाती है कोयल
कि… कि… कि….
करके दौड़ती है गिलहरी

वह आज तुम्हें
गिलहरी की तरह दौड़ाना चाहता है
रेंगती रहो जल, थल, आकाश

आज जाल के साथ नहीं
तुम्हारे साथ फसेंगा
उसका प्रथम प्रणय गीत

हर दिन काम का
हर दिन प्रेम का होना चाहिए!

‘होना चाहिए न मत्स्यगंधा’ !!!!!!

इस बार नहीं बेटी

मैं तुम्हें प्रेम की इजाजत देता हूँ
और काँपता हूँ अपने व्यक्तिगत अनुभवों से
अपने जीवन की सबसे अमूल्य निधि तुम्हें भी मिलनी चाहिए

देखता हूँ तुम तल्लीनता में खोई रहती हो
निश्चित तौर पर प्रेम बढ़ाएगा तुम्हारा अनुभव
तुम चाहो तो जी भरकर प्रेम करो

प्रेम करो इसलिए नहीं कि प्रेम पूजा है
प्रेम पर टिकी हुई है दुनिया
इसलिए क्योंकि सबसे बुरा अनुभव मिल सकता है प्रेम से
मिल सकता है रूठने मनाने का हुनर

जिसने सीखा है अपने अनुभवों से
वह जिन्दगी में कभी असफल नहीं हो सकता
कभी टूट नहीं सकता रूठने मनाने वाले का घर

प्रेम केवल कहने के लिए बुरा है
जबकि अच्छाई का स्श्रोत वहीँ से फूटता है

प्रेम प्रयोग की वस्तु है
प्रेम करो और बताओ अपनी सहेलियों को
अपनी माँ को बताओ अपनी मूर्खताएं

वह सब करो जो किया है मैंने
जो मैंने जिया तुम भी जी सकती हो
पर सीखना अपनी माँ से भी

वह प्रेम में हारकर सब हार गई

कादम्बरी
.

बर्फीली सर्दी की पहली रात
एक ही विस्तर पर लेटे हैं
अतीत और वर्तमान

कभी अतीत करवट बदलता है
कभी वर्तमान

नदियों में पानी आता है
डूब जाते हैं गाँव के गाँव
फिर धरती हरियाती है

नर्म विस्तर
जब ठंडा हो जाता है
तुम इसे सुखा लेती हो

सुख-दुःख
बरसों की कथा है
आज ही
क्यों पूछ रही हो कादंबरी?

अवंतिसुंदरी

वर्षा जाने को है
इस अर्धरात्रि में कोई तेज सुर में गा रहा है

मैं अप्रतिहत
सुन रहा हूँ तुम्हारा मादल
अविधावक्र, सूची, उत्तानवंचित, हंसपक्ष
कितना अदभुत है
हजार हजार पुष्पों से सजा तुम्हारा
जोगी नृत्य

अचानक बदल रहे हैं सुर
आवाज भारी हो रही है तुम्हारी
आज कोई बनावट भी नहीं तुम्हारी मुद्रा में

अदभुत है
यह कैसा मिलन है अवन्ति
कविता तुम्हारे अंग अंग पर
अठखेलियाँ कर रही है
शनैः-शनैः द्राक्षारस टपक रहा है
इस अर्धनिमीलित रात्रि में भी

कपाट बंद हैं
खुले हुए सीने पर लोट रहे हैं
जाने कितने प्रहरी

अब हम सो नहीं सकेंगे
अवन्ति
प्रेम ने आज ही तो मुझे जगाया है.

प्रेमी पहरुआ

रूप लुभाता है
रूप की दीप्ति ह्रदय से आँख में आती है

मेरा प्रेमी रूप का लोभी है
यही मुझे कभी कभी गुण लगता है
कभी कभी अवगुण

गुण तब लगता है
जब वह मुझे देखता है
अवगुण तब जब उसे मेरे सिवा
कुछ और भी दिखाई देने लगता है

जहन्नुम में जाए मेरा प्रेमी
अब मैं ऐसा नहीं सोचती
बस उसे करती हूँ प्रेम
उसपर दुनिया की हर ख़ुशी वारती हूँ

कभी कभी उसके कंधे पर मेरे कई सिर होते हैं
मेरे कई कई रूप होते हैं
वह जानता है मेरे सारे दुर्गुण

जानती हूँ
उसकी कई प्रेमिकाएं और हैं
उसके कई ठिकाने और हैं
जिन्हें वह सिर्फ दुःख में याद करता है

उसके पास कई प्रयोगशालायें हैं
मेरी आग को जलाने बुझाने के लिए
सुलगाने के लिए भी हैं उसके पास
हजारो टन बारूद

वह मेरी मनोग्रंथियों को पढ़ लेता है
फिर वह आता है मेरे पास
गोद, प्रेम, गर्माहट और देखभाल के लिए
जाने कितनी कमजोरियां साथ

वह मेरा प्रेमी है
वह मेरा पति
मैं उसके खिलाफ कुछ भी नहीं सोच सकती

सिवाय इसके कि मुझे वह ऐसे ही पसंद है

तुम्हारी उदासी मेरी कविता की पराजय है

सच कह रहा हूँ
नहीं लिख सकूंगा इस जंगल का इतिहास
इस जंगल से गुजरने वाली नदियों का आत्मवृत्त
मछलियों और केकड़ों की जीवंत कहानी
सच कहूँ यहाँ इतिहास है ही नहीं

यहाँ कुछ टटोलेंगे
तो मिलेगा कुछ और

राजाओं के नाख़ून हैं यहाँ इतिहास की जगह
रानियों का क्रीड़ालाप और फंसी हुई कंचुकी है
सीताओं का मृगचर्म पड़ा हुआ है
सच कह रहा हूँ
नहीं लिख सकूंगा इस जंगल का इतिहास

यह आदिमानवों की नगरी है
जंगली और असभ्य
अपनी अनोखी दुनिया और प्रतिमानों से भरे हुए
फूलों की नाजुक कहानी है यहाँ

देवता, जाख, केंदु और पलास
भालू और मनुष्य का सामूहिक नृत्य
यहाँ पशु हैं लेकिन पशुता आयी नहीं आजतक

जोंक, घोंघे, केकड़े, शैवाल और नदियाँ
उन्होने सोचा नहीं अपने पुरुखों के बारे में
बस खाया पिया और खोये रहे अपनी दुनिया में
नदियों के किनारे रखे कुछ सूत्र
पाणिनी के व्याकरण से पहले लिखे हुए

हाँ एक इतिहास है उनके पास
उनके औजार और गीत कहते हैं कोई कहानी
पर वाह कहानी राजाओं की नहीं है
वह केवल प्रजा और प्रजा की कहानी है

जानता हूँ दोस्त तुम बेचैन हो
तुम्हारी उदासी मेरी कविता की पराजय है

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ISSN 2394-093X
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