महिलाओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ यौन हिंसा तक सीमित नहीं है : एनी राजा

( नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इन्डियन वीमेन  ११ -१२ -१३ सितम्बर को अपनी स्थापना का ६०वां वर्ष मना रहा है . इसकी राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा से स्त्रीकाल के लिए बातचीत की पत्रिका के सम्पादक द्वय संजीव चन्दन और धर्मवीर सिंह ने . प्रस्तुति और ध्वन्यांकन : रजनीश कुमार आंबेडकर )


महिला आरक्षण बिल नई सरकार के पहले लम्बे सत्र में भी लोकसभा में पेश नहीं हुआ, बल्कि एजेन्डॆ में था ही नहीं, 20 बिल एजेंडे में थे. आप इसको कैसे देखती है. जबकि कांग्रेस के शासन में बी जे पी ने पूर्ण समर्थन दिया था और आज यह तो पूर्ण बहुमत में है. राज्य सभा में यह बिल पास हो चुका है. और लोक सभा में किया जा सकता था यदि इरादा होता तो.





वर्तमान समय में महिलाओं के समक्ष कई तरह की चुनौतियां है और सरकार की नीति उस चुनौती को एड्रेस करना है भी नहीं.  16 दिसम्बर के बाद साईलेंटली ऐसा प्रयास हो रहा है कि महिला हिंसा को सिर्फ यौन-हिंसा तक सीमित मान लिया जाए . महिलाओं के खिलाफ हिंसा  की अगर बात करेगें तो सिर्फ यौन-हिंसा  , ही नहीं सांस्थानिक हिंसा , स्ट्रक्चरल हिंसा, घरेलू हिंसा ,  साइलेंट हिंसा ,लाउड हिंसा , आदि कई प्रकार की हिंसा की बात होनी चाहिए. तक भारतीय संविधान ने हर नागरिक को जो हक़ दिया है. वह हक़  हर एक महिला के लिए जब तक सुनिश्चित नहीं होगा , तब तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा होती रहेगी . जब तक यह समझदारी राजनीतिक पार्टियों को , खासकर  सत्ता में जो भी राजनीतिक पार्टी है,  उसको नहीं होगा तब तक महिलाओं के प्रति यौन-हिंसा  बढ़ती जाएगी. एक तरफ पुरूष प्रधान समाज है और दूसरी तरफ  नई आर्थिक नीति है, जिसका का मूल मंत्र है कि ‘मनी-मनी-मनी’.  ‘मनी’ के लिए किसी को भी आप एक वस्तु की तरह प्रयोग करना चाहते है. सबसे आसान है, बिना किसी निवेश के महिला को एक वस्तु के रूप में प्रयोग करना , जिससे अच्छी प्रॉफिट मिलती है . इसलिए ट्रैफिकिंग का रिश्ता सिर्फ सेक्स से नहीं है ‘लेबर’ से भी है. बहुत सारी चीजों के लिए है. महिला के खिलाफ हिंसा बंद तो नहीं ही हुई है, उसका नेचर भी बदल गया है . अब उसकी आक्रमकता बढ़ी है . अब सिर्फ बलात्कार ही नहीं होता , पीडिता को मार भी देते हैं .

यह  तो इविडेंस खत्म करने का मामला है. यह  पितृसत्ता का एक रूप है.  अभी जो  नई सरकार बनी है , उसकी महिलाओं के पक्ष में राजनीतिक इच्छा शक्ति के बारे में बताइए.. 


राजनीतिक इच्छा शक्ति की ही बात कर रही हूँ . बहुत ही मजबूती के साथ पैट्रीयार्की और न्यू लिबरल इकॉनोमी  (नव उदारवादी आर्थिक नीति),  दोनों ही महिला के ऊपर हिंसा कर रहे है. महिला के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है. जब से नई सरकार आयी है तब से देश के अन्दर एक नया कम्यूनल वातावरण पैदा हो गया. किसी भी  भी वायलेंस में खासकर कम्यूनल वायलेंस  में महिला सबसे ज्यादा पीड़ित होती है. पिछले कुछ सालों के अन्दर हम देख रहे है कि महिला के शरीर को तो  एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे ही रहे हैं महिलाओं  को फ़ोर्स भी कर रहे है. महिला के खिलाफ  हिंसा में शामिल होने के लिए. पहले सिर्फ पुरुष  शामिल होते थे. अभी हमने यह  देखा है  चाहे वह  मध्यप्रदेश हो या उड़ीसा हो या फिर गुजरात ,हम देख रहे है कि महिला को फ़ोर्स किया जा रहा है. महिला के खिलाफ  हिंसा में शामिल होने के लिए.  नई सरकार मनुवाद को लेकर चलने वाली सरकार है. वह मानती है कि महिला को एक सीमित दायरे  में रखना है, उनकी स्वतंत्रता एक सीमा तक हो , उससे आगे नहीं जाना है. इसलिए हर सरकार, हर पार्टी महिला की ड्रेस पर फोकस कर रही है . सोचने वाली बात  यह है कि महिला सुरक्षा के नाम के पर महिला के लिए अलग पार्क बना रहे है. महिला के लिए अलग बस सुविधा दे रहे हैं . ये सारे प्रयास महिलाओं  को पीछे हटाने का काम कर रहे है. ऐसी सोच रखने वाली सरकार केंद्र में है, जिससे महिलाओं के लिए चुनौती बढ़ना स्वाभाविक है.

सीधा सवाल है कि आरक्षण को लेकर बी.जे.पी. की एक पालिसी रही है, उसने राज्यसभा में बिल को पास होने दिया/ या समर्थन किया. लोकसभा में भी पालिसी वाइज ये कहते रहे है, वीमेन रिजर्वेशन के पक्ष में स्टैंड लेते रहे हैं,  फिर यहां कहां समस्या आ रही है.


हमारे  संविधान संशोधन  के लिए क्या होना चाहिए?  दो तिहाई बहुमत . यह बहुमत बहुत दिनों से है. मगर महिला आरक्षण बिल पास नहीं हो सका. कांग्रेस की सरकार बार-बार बोल रही थी सर्व सहमति चाहिए. संविधान के अनुसार दो तिहाई बहुमत की बातो को सर्व सहमति में बदल देना संविधान के उल्लंघन की बात हो गई .  अभी की सरकार यह बोल रही है किसी की जरुरत नहीं है, पूर्ण बहुमत में सरकार है, तो फिर  हमने  उनको यह बोला सबसे पहले  महिला रिजर्वेशन बिल पारित होना चाहिए. हम डेलिगेशन लेकर गए सुमित्रा महाजन के पास, एन एफ आई डवल्यु की तरफ से डेलिगेशन लेकर गए थे.  वह भी महिला के खिलाफ यौन हिंसा पर ज्यादा बात कर रही थी . हमने कहा कि महिलाओं पर दूसरी अन्य प्रकार की गंभीर हिंसा भी हैं. सबसे निपटने के लिए एक बड़ा कदम होगा महिला आरक्षण बिल . वह बोलती रही , हम देखते हैं . जब विपक्ष में थी तो सुषमा स्वराज भी इस पर गंभीर थी . अभी बोल रहे थे कि सेशन को बढ़ाने के लिए भी वे  तैयार हैं   आबादी की लगभग 50% महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में बी.जे.पी.यदि वास्तविक विश्वास रखती है तो प्रथम बिल होना महिला आरक्षण बिल होना चाहिए था. लेकिन मुद्दा क्या  है ? मुद्दा यह है कि दोनो ही , बी जे पी , पितृसत्ता  और मनुवाद को बहुत मजबूत करने वाली पार्टी है. इनके  लिए महिला को  कुर्सी देना कोइ प्राथमिकता नहीं है . यह  सरकार तो बिल्कुल नहीं चाहती है.

जो दिखता है, उसके अनुसार  मुलायम या लालू की पार्टी महिला आरक्षण का विरोध करती रही हैं . लेकिन उनका जो मुद्दा है उससे हम सहमत हैं.  रिजेर्वेशन बिल को लेकर अब मजेदार बात यह है इस बार के चुनाव में प्रतिशत के आधार पर यदि देखें तो त्रिणमूल कांग्रेस के बाद दूसरे नम्बर पर समाजवादी पार्टी ने महिलाओं को रखा. पार्टी के स्तर पर आपकी पार्टी की तरफ से यह  होना चाहिए था. आपकी पार्टी की तरफ से भी ऐसा नहीं हुआ ! 


पार्टी की तरफ से होना चाहिए था ,इसमें कोई दो राय नहीं है. ऐसा होता तो अभी 50% महिला संसद के अन्दर होती. मगर यह  देश एक पुरूष प्रधान समाज है. इसमें हर एक पार्टी इसके  प्रभाव में है, वामपंथी पार्टियां भी हैं . इसमें कोई दो राय नहीं है. उसमें सिर्फ डिग्री में थोड़ा फर्क होगा. वामपंथी पार्टियां  हमेशा हम महिलाओं  की सशक्तिकरण के साथ हैं , महिला की आर्थिक सशक्तिकरण के साथ है. जब भी मौका मिलाता है ये लोग महिला के साथ खड़ी होती है. मगर अपने आप एक पहल कदमी करके महिला के साथ नहीं खड़ी होतीं . वामपंथी पार्टियों  के अन्दर भी लीडरशिप पुरूषों के हाथ में है. ये पार्टियां भी  पुरूष प्रधान सोच से मुक्त नहीं हैं . इसलिए चुनाव के समय सीटें  देते समय महिला सक्षम है कि नहीं यह  देखा जाता है. मगर जब पुरूष को सीट देते हैं , उस समय ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं है. तो ऐसा है कि पार्टियां ,  वामपंथी पार्टियां भी ,यदि महिलाओं पर विश्वास रखतीं  तो आज संसद के अन्दर बहुत ज्यादा महिलाएं होती. मगर ऐसा नहीं हुआ.  पहले हमारा  संगठन ‘भारतीय महिला फेडरेशन ’ महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं था. हम भी यही सोच रही थी कि आजादी मिली देश को अभी शिक्षा मिलेगी देश को एक समान शिक्षा मिलेगी. जिसमें महिलाएं भी आगे आ सकेंगी . इसलिए हमारी मगर  1975 में  ‘ टुवर्ड्स द इक्वालिटी रिपोर्ट’  , फुलरेणु गुहा की रिपोर्ट, ने हमारी आंखे खोली.

यह रिपोर्ट तो वीणा मजुमदार की थी न ?

बीना मजुमदार ने रिपोर्ट लिखा फूलरेणु गुहा की अध्यक्षता में  कमिटी गठित हुई थी. NFIW, AIWC और महिला कांग्रेस, तीनों संगठनों ने मिलकर सर्वे किया था.

आप लोग आरक्षण बिल में आरक्षण के भीतर आरक्षण से सहमत क्यों नहीं हैं ? 


हम इसके खिलाफ नहीं हैं  यदि संसद इसको लेकर आए तो हम लोग कौन होते हैं, जो इसका विरोध करें. पहले हमारा ऐसा सोचना था सबसे पहले महिला आरक्षण बिल आए, इसके बाद तो अपने आप भी ये महिलाएं इसमें शामिल हो जायेंगी . फिर हमारे ऊपर आरोप आने लगा कि इन महिला संगठनों की वजह से महिला आरक्षण बिल पास नहीं हो रहा है क्योंकि आरक्षण के भीतर आरक्षण से हम ये सहमत नहीं हो रही हैं . फिर हमने एन एफ आई डवल्यु की ओर से एक मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में एन एफ आई डवल्यु ने साफ़ स्टैंड लिया कि हम इसके खिलाफ नहीं है यदि संसद उसी प्रकार का एक बिल लेकर आती है तो हम उसके साथ हैं . लिखित में यह बात सरकार को बताया और लिखित में यह बात सभी पार्टियों को भी बताया.

यह कहना कि संसद लेकर आती है तब हम सहयोग करेगें कि जगह यह कहा गया होता कि आरक्षण के भीतर आरक्षण ही हमारी मांग है, तो क्या बेहतर नहीं होता ? 


हमारी बेसिक मांग महिला आरक्षण ही है . आरक्षण में तो एस सी एस टी स्वतः आ जायेंगे, लेकिन ओ बी सी और धार्मिक मायनारिटी नहीं आ पायेंगे , संविधान में इसका प्रावधान नहीं है.  सबसे पहले संविधान संशोधन होना चाहिए इन्हें चुनाव में आरक्षण देने के लिए. हमारा कहना है कि पहले संविधान संशोधन बिल संसद में पेश होना चाहिए.   इसलिए हमारा कहना है कि पहले उसको लाना चाहिए.हमने सभी राजनीतिक पार्टियों से कहा कि पहले संविधान संशोधन बिल लाओ हम आरक्षण के भीतर आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं . बिल का पास न होना राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी और सामाजिक प्रतिबद्धता की कमी को बताता है .

आप  मैरिटल रेप को लेकर भी शायद कोई  कदम उठाना चाह रही थीं ? 


मैं चाहती हूँ कि मैरिटल रेप को लेकर क्रिमिनल एक्ट बने ,उसका दंड निर्धारित हो .

दिक्कत है कि बाल विवाह स्वीकार नहीं है उसके लिए 18 साल होना चाहिए. लेकिन अगर किसी की शादी हो गई और वह 16 साल से नीचे भी है,  तो उसके साथ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाता है . 


यही तो  एक कानून दूसरे कानून के काफी विपरीत हैं .  चाइल्ड की परिभाषा क्या है, लेबर के लिए 14 साल, शादी के लिए 18 साल और फांसी के लिए 16 साल होने वाला  है. सबसे पहले चाइल्ड की उम्र क्या है उसको अभी तक परिभाषित नहीं किया गया है.

उस दिशा आप में आप लोगों ने सरकार से बात की है क्या ? 


इस दिशा में अभी इस सरकार से हमने कुछ बात नहीं की है .

पिछली सरकार से आपने बात की थी ? 


हाँ , लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मैं यह देख रही हूँ कि अभी भारत की महिला एक  वार लाइक सिचुएशन से गुजर रही है. यहाँ तक कि न्यायपालिका बार-बार  कहती है कि मैरिटल रेप अपराध नहीं है , अगले सप्ताह वह बोलती है  कि पति-पत्नी अकेले रह सकते हैं . लेकिन पत्नी ने अगर बच्चे का नामकरण किया और उस समय पति को नहीं सूचित किया क्योंकि दोनों अलग रह रहे है तो पति के केस पर वही कोर्ट बोल रहा है  कि इस केश में पति को न बुलाना बहुत बड़ा गुनाह है. पत्नी को बोला जा रहा है कि नामकरण में पति को नहीं बुलाया इसलिए उसको मानसिक क्षति पहुंची है. तो बहुत बड़ा गुनाह किया है. वही मैरिटल रेप उसे गुनाह नहीं लगता . न्यायपालिका भी महिला विरोधी है .

आपका संगठन  महिलाओं के राजनीतिकरण के लिए क्या कर रहा है ?  


जितनी हमारे  संगठन की क्षमता है, उतना हम प्रयास कर रहे है. इसलिए हमने 11,12,13 सितम्बर 2014 को राष्ट्रीय सम्मलेन बुलाया है.नए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के अन्दर हमारे  संगठन का रोल कैसा हो , हम इस पर  बात कर रहे हैं ?

आम तौर पर देखा जा रहा है कि राजनीतिकरण के अभाव में महिलायें यह नहीं समझ पा रही हैं कि उनका हित कहाँ है . बी.जे.पी. की सभाओं में मोदी को सुनने के लिए  महिलाएं पहुंच रही हैं…. 


मुझे नहीं लगता कि मोदी की सभाओं में अपने आप लोग पहुँच रहे हैं . उस भीड़ को देखकर हमारे संगठन पर आप सवाल नहीं कर सकते

मेरा खुद का शोध रहा महिलाओं के वोट बैंक को लेकर, मैंने कई जगह यह भी देखा कि मोदी फैक्टर कोइ फैक्टर नहीं था . यह सही है. लेकिन जब आप कोई मास स्तर पर आयोजन करें तो आप के साथ क्यों नहीं जुड़ पाती है ! 


इस सन्दर्भ में थोड़ी गहराई से देखा जाना चाहिए . देश में बढ़ती हुई मंहगाई से जनता बहुत परेशान है. कहीं स्वास्थय सेवाओं तक पहुँच नहीं है तो कोई शिक्षा नहीं दिला पा रहा है, तो कहीं रोजगार की  दिक्कत है. परिवार एक बहुत संकट के दौर से गुजर रहा है. इसको एड्रेस करने का काम पिछले 10 सालों से सरकार ने किया नहीं है. एन आर जी ए ( नरेगा ) लेकर आई जरूर  लेकिन ठीक से चला नहीं पाई . कम से कम इसको ठीक से चलाये तो बहुत कुछ ठीक हो सकता था . बाजार में काम नहीं, खाने के लिए पैसा नहीं है, लोग बहुत संकट के दौर से गुजर रहे है. परिवार संकट में है . जब मैं खुद संकट से गुजर रही हूँ और  मुझे आके कोई बोले,  हर वक्त टी.वी. में दिखा के बोले कि हमने बहुत सहा है अब बदलाव जरूरी है , तो असर पड़ता है. इधर क्या हो गया वामपंथी पार्टियों  ने एक राष्ट्रीय कन्वेंशन किया. उसमे पारित  प्रस्ताव को कूड़ेदान में डाल के वामपंथी पार्टियों ने बड़ी गलती की. उन्होंने जनता को कोइ भरोसा नहीं दिलाया . कोइ विकल्प सामने नहीं रखा . सरकार किसके साथ बनायेंगे यह भी विकल्प नहीं दिया. इसलिए वामपंथी पार्टियां फेल हो गयीं . कांग्रेस चुनाव से पहले ही भाग गई. फिर जनता को ये पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग तो जितने वाले नहीं. इसलिए  वामपंथी पार्टीयां और लोकतांत्रिक पार्टियां असफल हो गयीं . हमारा  संगठन सीधे चुनाव में शामिल नहीं होता  है. हम  मुद्दे  उठाते हैं  राशन का मुद्दा, काम का मुद्दा, समानता का मुद्दा , हम संघर्ष करते हैं  मगर हम सीधे तौर  पर चुनाव में नहीं जाते है.

एक आम महिला की क्या समस्या है ?  हेल्थ है,  बच्चों की शिक्षा है, रोटी कपड़ा मकान है . आप लोग ट्रेड यूनियन की तरह  काम तो कर लेती हैं , आंगनवाडी की महिला को एड्रेस कर लेती है, लेकिन आंगनवाडी की महिलाएं जिनके लिए काम करती है उनको आप एड्रेस नहीं कर पाती हैं . मेरा सिर्फ इतना  कहना है कि रोज-रोज  की जिन समस्याओं से जो महिलाएं जूझ रही है. उनको नहीं एड्रेस करने के कारण  आप उनका  राजनीतिकरण नहीं कर पा रही हैं . 


NIFW एड्रेस कर रहा  है, लेकिन उन तक ये बात पहुंच नहीं पा रही है. गाँव की महिला को  एक मुत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए पंचायत में 10 बार जाना पड़ता है. उसको क्यों जाना पड़ रहा है ?  पंचायतमें ये  मुद्दे  हम लोग उठा रहे है. इधर एन जी ओ ने भी काफी नुकसां किया है . एन जी ओ का भी अराजनीतिकरण करने में बहुत बड़ा हाथ रहता है. बहुत सारे एन जी ओ हैं , उनको ले जाके 100 रुपये हाथ में देंगी . हमारे साथ 100 रूपये खर्च करके आना पड़ेगा.  एन जी ओ में जाने पर 100 रूपये उनको मिलेगा.  उन्हें पता है कि राजनीतिक संगठन उनके लिए काम कर रहे हैं . लेकिन यह भी नहीं हो सकता कि भूख से रोते हुए बच्चों को छोड़कर वे हमारे बुलाने पर आ
जाएँ .

आगे आने 5 सालों में आप क्या मुद्दें तय कर रही है?


इस देश की आम महिला के जो मुद्दें हैं, हम  उनको उठाते आ रहे है. महिला के स्वास्थ्य का एजेंडा है, महंगाई का मुद्दा है, फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट को लेकर काम कर रहे है. रोजगार गारंटी को लेकर, भ्रष्टाचार को लेकर, RTI के  सेक्शन 4 का ,जो सबसे बड़ा हथियार है, उसको कैसे ज्यादा प्रयोग करके निचले स्तर पर जो भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जाए , इसके लिए हम काम कर रहे हैं.

आरक्षण को लेकर अगले संसद सत्र तक क्या योजना है ..  

संसद के अन्दर बैठने वाला खुद बोल दे कि मैं रेप करूंगा विपक्ष की महिला का तो स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है . हमलोग फिर भी इस विपरीत परिस्थिति में महिला आरक्षण के लिए दवाब बानाएंगे कि अगले सत्र में इसे जरुर लाना है.

लित महिलाओं के साथ  यौन-हिंसा में  जाति भी शामिल है कोई भी पार्टी इसे एड्रेस नहीं करती , वामपंथी पार्टियां  भी.  अभी भी वे क्लास तक सीमित हैं . अभी भगाणा कांड के लोग बैठे थे.


भगाणा कांड के खिलाफ  जो लोग बैठे हैं ,  उनके साथ हम ज्यादा सक्रिय तो नहीं हो पाए लेकिन उनके  मुद्दे  को जरुर उठाया है. चाहे वो महिला आयोग के स्टार पर हो या अनुसूचित जाति –जनजाती आयोग के स्तर पर. क्योंकि यह  सिर्फ एक रेप का मामला नहीं है. बलात्कार  तो इसलिए हो गया क्योंकि दलितों को  उधर से भगाना है. उसमें  भूमि का भी मामला है. जिन दलितों  के हाथ में भूमि है,  वे  पढ़ रहे हैं , आगे आ रहे है. यह उच्च जाति के लोगों को अच्छा नहीं लगा. निस्संदेह यह ‘जाति-हमला’ था.

संगठन के स्तर पर आपके यहां दलित महिलाएं है ! 
क्यों नहीं हमारे  संगठन में हर  ग्रुप की महिलाएं है. सिर्फ दलित  ही नहीं, मैं भी हूँ .

आप तो दलित नहीं कहलाएंगी ! 
मेरे  दोस्त दलित हैं . मैं क्रिश्चन हूँ.  ऐसा नहीं है कि मैंने जन्म से दलित नहीं हूँ तो मुझे कुछ पता नहीं है.

पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर महिला राजनीतिज्ञों की एक एकता बनी , अब लगता है टूट जाएगी. 


आरक्षण के मुद्दे को लेकर अभी भी एक जुट है.

लेकिन परिणाम कहां है ?


देखो एक दिन में ये परिणाम नहीं आयेगें. आजादी एक दिन में लड़कर मिलने वाली नहीं थी. ड्रेस कोड का जब मामला उठा तो सभी पार्टियों की महिलायें एक साथ आ गयीं . पितृसत्ता को चुनौती देना इतना आसान नहीं है. नहीं तो महिला आरक्षण बिल कब के  पास नहीं हो गया होता !  इस देश की पैट्रीयार्की इतना आसानी से कुर्सी नहीं देना चाहती है. हमारे देश में पूंजीवाद एक बहुत ही आधुनिक रूप में पहुंच गया है  मगर रूढ़िवादिता आज भी आधुनिकता के साथ बहुत मजबूती के साथ बढ़ रही है . लड़ना इतना आसान नहीं है , हम भी अब और अनुभव ले रहे हैं . हम 11 सितम्बर को ‘यंग वीमेन डे’  मना रहे हैं .  उसमे हमारी प्राथमिकता दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग की युवा महिला रहेगी.

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ISSN 2394-093X
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