सामूहिक नसबंदी के कारण भारतीय स्त्रियों की मौतें: लुटे हुए विकल्प व स्त्री गरिमा

 ( बिलासपुर में नसबंदी के कारण महिलाओं की मौत के कारणों की पड़ताल के लिए चार महिला -स्वास्थ्य संगठनों ने संयुक्त रूप से एक जांच दल बनाया . जाँच दल ने अपने बिलासपुर दौरे के बाद एक रिपोर्ट सौपी . रिपोर्ट की संक्षिप्त प्रस्तुति .)

सामुदायिक स्वास्थ्य  के क्षेत्र में कार्यरत चार संगठनों द्वारा निर्मित तथ्य अन्वेषी दल ने एक स्वतंत्र जांच समिति बनाने की पहल की ,जिससे बिलासपुर नसबंदी शिविर हादसे तथा १६ स्त्रियों की मृत्यु से जुड़े सवालों के जवाब मिल सकें! जाँच दल ने पाया कि इन स्त्रियों  में से अपोलो अस्पताल में भरती हुए कुछ गंभीर रोगियों में प्रो-केलिस्टोनिन का स्तर बढ़ा हुआ मिला जो सेप्टिसीमिया (रक्त-संक्रमण )की ओर इंगित करता है! पहली सात मौतों के बाद हुए शव विच्छेदन में पेरीटोनाइटिस (उदर झिल्ली में संक्रमण )तथा फेफड़ों व गुर्दों में भी संक्रमण के चिन्ह पाए गये! इनसे संकेत मिलता है कि शल्यक्रिया के दौरान या उसके पश्चात संक्रमण के कारण ये मौतें हुई ;न कि उन जाली दवाओं के कारण, जिनके बारे में काफी कुछ लिखा गया !

विष तथा न्याय –वैधक विशेषज्ञों के अनुसार किसी स्त्री के लिए जिंक फास्फाइड की प्राण घातक मात्रा ४-५ ग्राम होती है ,जो कि सिप्रोफ्लोक्सेसिंन की  ५०० मिली ग्राम की एक खुराक से कहीं ज्यादा है यह जानकारी भी इसी तर्क की पुष्टि करती है कि सिर्फ दवायें इन मौतों का कारण नहीं थी!   ‘ पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’, ‘फैमिली प्लानिंग असोसिएसन  ऑफ इंडिया’ ,  ‘परिवार सेवा संस्थान’  और ‘ कॉमन हेल्थ’  इन चार संगठनों ने बिलासपुर शिविर स्थल का सर्वेक्षण किया,  सेवारत चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों  ,नसबंदी कराने वाली स्त्रियों तथा मृतकों के परिजनों के साक्षात्कार लिये !  जाँच दल ने छतीसगढ़ तथा समूचे भारत के लिए कुछ अनुशनासायें भी की हैं , जो हाल ही में दिल्ली में जारी की गई उनकी रिपोर्ट में शामिल है!    इसके बाद राज्य सरकार को भी शव विच्छेदन तथा दवाओं की प्रयोगशाला जांच की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को मजबूर होना पडा तथा मामले की जांच के लिए तुरंत राज्य समिति का गठन करना पडा!

जांच दल ने यह भी पाया की मृतकों के परिवार जनों को अस्पताल के केस –रिकार्ड तथा मृत्यु के संभावित कारणों की कोई जानकारी नहीं दी गई !  परिवार नियोजन पर सरकार दुवारा किये गये  खर्च का विश्लेषण करने से यह पता चला की वर्ष २०१३-१४ के लिए देश ने ३९६.९७ करोड़ रूपये महिला-नसबंदी पर खर्च किये, जो परिवार नियोजन पर कुल  खर्च का ८५% है! कुल ३९,२३९४५ स्त्रियों की नसबंदी की गई !इसका भी एक बड़ा हिस्सा यानि  ३२४.४९ करोड़ ,नसबंदी कराने वाली स्त्रियों को प्रोत्साहन राशि तथा हर्जाना देने में खर्च हो गया जबकि मात्र १४.४२ करोड़ शिविरों की व्यवस्था पर! हर्जाने में दी जाने वाली यह राशि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए दी जाने वाली राशि  की ढाई गुना है!अब लगभग निष्क्रिय पडी,स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरी निम्न श्रेणी की अस्पताल /शिविर सुविधा तक स्त्रियों को लुभा कर ले आने के लिए इतनी बड़ी धनराशि खर्च करना कहाँ की बुद्धिमत्ता है? यह गलत है और अस्वीकार्य भी!   वहीँ बच्चों के बीच अंतर रखने के तरीकों पर कुल वार्षिक बजट का १५%से भी कम खर्च किया गया !१.३%उपकरणों ,आवागमन ,IFC प्रक्रिया तथा कर्मचारियों के दैनिक भत्तों आदि पर खर्च हुआ! ठीक इसी प्रकार छतीसगढ़ राज्य के आंकड़े बताते है की परिवार नियोजन के मद के लिए निश्चित १५.५९ करोड़ का ८५% स्त्रियों के (१,१९,१०४  स्त्रियाँ ) नसबंदी मामलों के लिए खर्चा गया !१२,७६करोड क्षतिपूर्ति व प्रोत्साहन राशि पर तथा मात्र १% गर्भ निरोधक पर खर्च किया गया !

रिपोर्ट में विशेषत: इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत सरकार  १९९४ में हुए ICPDकरार में एक हिस्सेदार है,जिसका मतलब है कि देश में परिवार नियोजन कार्यक्रम के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए  दम्पति को सभी विकल्पों की पूरी जानकारी देने के बाद परिवार नियोजन का अपना तरीका चुनने की आजादी होगी! हाल ही में सम्पन्न ‘लोकतांत्रिक लाभाशों में निवेश’ पर अंतररास्ट्रीय अंतर –मंत्रालयीन सम्मलेन के बाद हुई दिल्ली घोषणा में भारत सरकार ने ICPD-POA के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एक बार फिर जाहिर की है!   तथ्य –अन्वेषी अभियान के परिणामों के बाद जांच दल ने निम्न सिफारिशें की है!

१.    स्वास्थ्य कर्मियों को दिए `जाने वाली प्रोत्साहन राशि पर रोक लगाई  जाए, जिनके लाभान्वितों में  चिकित्सक, नर्सो व अन्य सेवा कर्मी शामिल हैं ) . ये प्रोत्साहन राशियाँ चिकित्सकों को प्रेरित करती हैं कि  वे अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं की सीमा से आगे जाकर अधिक संख्या में नसबंदी करें !चाहे इसके लिए नियम  प्रक्रियाओं व गुणवत्ता नियमों को ताक पर ही क्यों न रख देना पड़ें !दल ने यह भी प्रस्ताव रखा की सिर्फ नसबंदी करवाने वाले व्यक्ति को दैनिक मजदूरी, क्षतिपूर्ति राशि व आवागमन के लिए पैसे दिए जाएँ !प्रोत्साहन राशि को स्वास्थ्य सुविधायें  सुदृढ़ करने व उपकरण खरीदने में उपयोग किया जाये!

२.    बच्चों के जन्म में अंतराल बढाने  के तरीकों जैसे ओरल पिल्स ,कंडोम व कॉपर टी को बढ़ावा दिया जाए और गर्भ निरोधन के नये साधन भी इनमें शामिल किये जाये . इनके अखंड व नियमित उपलब्धता पर जोर दिया जाये तथा इच्छुक दम्पतियों को उचित परामर्श देने का प्रशिक्षण भी स्वास्थ्य कर्मियों को मिले ,जिससे पूरी जानकारी के साथ स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित किया जा सकें !शल्य –क्रिया रहित पुरुष नसबंदी जैसे आसान व सुरक्षित तरीके को अधिकाधिक बढ़ावा देने पर जोर दिया जाय !

३.    बिलासपुर शिविर में शल्य –चिकित्सक ने ८३ शल्य क्रियाओं में से प्रत्येक में मात्र एक से डेढ़ मिनट का समय लगा. ऐसा उसने अपर्याप्त मूल सुविधाओं , कर्मचारियों की कम संख्या तथा एक बेकार पड़े गंदे अस्पताल परिसर के बावजूद किया .  जाँच दल ने पाया कि शिविर में भर्ती स्त्रियों की सहज गरिमा का भी कतई ख्याल नहीं रखा गया !शल्य क्रिया किसी फैक्ट्री की एसेम्बली लाइन की तरह हो रही थी, यहाँ तक की शल्यक्रिया के लिए इन स्त्रियों को नियत स्थिति में लाने का काम पुरुष कर्मियों दुवारा किया जा रहा था और शल्यक्रिया के पश्चात वे ही उन्हें पकड़ कर कक्ष से बाहर ले जा रहे थे ! शल्यक्रिया से पहले परिवार नियोजन के अन्य विकल्पों के बारे में बताने के लिए कोई परामर्श -सत्र आयोजित नहीं किया गया था ,न ही शल्यक्रिया के संभावित दुष्परिणामों की कोई जानकारी उन्हें दी गई थी !अर्थात इन स्त्रियों को चयन की स्वतंत्रता नहीं थी

४.    परिवार नियोजन सेवायें पूर्व निश्चित दिनों पर ,सरकारी अस्पताल में ही तथा पर्याप्त प्रशिक्षित चिकित्सकों एवं सेवाकर्मियों दुवारा दी जायें.  साथ ही मानक प्रक्रियाओं व गुणवत्ता को सुनिश्चित करने वाले निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाए.  सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को सुदृढ़ बनाया जाये, मांग के अनुसार नियमित सेवा प्रदान करने के लिए जरुरी उपकरण व कर्मचारी उपलब्ध कराये जायें!

५.   ब्लॉक जिला व राज्य पर सभी अधिकारियों को नसबंदी प्रक्रियाओं व उनके गुणवत्ता मानकों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए ! सर्वोच्य न्यायालय के दिशा निर्देशों के अनुसार जिला गुणवत्ता  सुनिश्चयीकरण समितियों को सक्रिय बनाया जाये और परिवार नियोजन सेवाओं में गुणवत्ता सुनिश्चत करने में ख़ास भूमिका रहे! रोगी कल्याण समिति तथा ग्रामीण स्वास्थ्य ,स्वच्छता  व पोषण समितियों को समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी द्वारा  सुदृढ़ किया जाये, जिससे स्वास्थ्य मामलों पर हमेशा नजर रखी जा सके !जांच दल ने पाया कि इस शिविर में स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय दुवारा जारी सेवा गुणवत्ता निर्देशों का प्रत्येक कदम पर उल्लंघन किया  गया! दरअसल समूचा कर्मचारी वर्ग सुरक्षा तथा गुणवत्ता मानकों से अनजान था.

६.    राज्य में चिकित्सकों के सभी रिक्त पदों को भरा जाये तथा ज्यादा से ज्यादा राज्यीय चिकित्सकों को नसबंदी शाल्यक्रिया का प्रशिक्षण दिया जाये! बिलासपुर जिले में मात्र तीन लेपेरोस्कोपिक (दूरबीन द्वारा शल्यक्रिया करने वाले)शल्य चिकित्सक हैं , जिनमें से एक अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं . जरुरत है कि जिला अस्पताल तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कार्यरत स्त्रीरोग विशेषज्ञों  व शल्य चिकित्सकों को दूरबीन द्वारा  शल्यचिकित्सा का प्रशिक्षण दिया जाये,जिससे मिनीलेप (लघु दूरबीन शल्य क्रिया) तथा शल्यक्रिया रहित पुरुष नसबंदी जैसे अधिक आसान व कम जोखिम वाले तरीकों को प्रचलन में लाया जा सके!

७.    औषधी  खरीद नीतियों में सुधार लाया जाए ताकि दवाओं की प्रभाव क्षमता विषाक्तता ,प्राणघातक  व उनके संघटकों के आधार पर उनकी गुणवत्ता पर नियमित रूप से दृष्टि  रखी जा सके. इस शिविर में जिन युवा माँओं की  मृत्यु हुई वे अपने पीछे नवजात शिशु और छोटे बच्चे छोड़ गई हैं .  इनमें से सबसे छोटा बच्चा मुश्किल से एक माह का है.  हालांकि राज्य सरकार  ने इन मातृ -विहीन बच्चों के लिए आर्थिक सहायता मुहैया  कराई है, फिर भी उनके समुचित पोषण व पालन के लिए उनके परिवारों को प्रशिक्षण की तत्काल आवश्यकता है. कई बच्चे अपने दादा- दादी या नाना –नानी की देखरेख में हैं, जिन्हें भी बोतल से दूध पिलाने में आवश्यक स्वच्छता व विसंक्रमण प्रक्रियाओं में मार्गदर्शन चाहिये .   दल ने प्रस्ताव रखा कि आंगनबाड़ी कर्मियों को इन बच्चों की नियमित देखरेख का जिम्मा व प्रशिक्षण दिया जाये !  चारों संगठनों का मानना है कि स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि बिलासपुर में हुआ दुखद हादसा पूरे देश में परिवार नियोजन कार्यक्रम को पटरी से उतार सकने की क्षमता रखता है(. राज्य में मीतानिं के नाम से जानी  जाने वाली ‘आशा’ कर्मियों में से एक के शब्दों में कहें तो “अब किस मुँह से लोगों को नसबंदी के लिए बोलेंगे ?अब तो वे सामने चल कर भी आयें तो भी हम हिचकिचायेंगे !
अनुवाद : डा अनुपमा गुप्ता

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