सावित्री बाई फुले की कवितायें

( आज 3 जनवरी को भारत की आदि शिक्षिका सावित्री बाई फुले की जयंती है . उन्होंने 1848 में लडकियों के लिए प्रथम स्कूल खोला था. उनकी जयंती को कुछ लोग शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की बात करते हैं तो एक जमात इस दिन को भारतीय महिला दिवस के रूप में मनाता है . उनकी कविताओं को स्त्रीकाल के लिए प्रस्तुत कर रही हैं  प्रसिद्द लेखिका , आलोचक और दलित स्त्रीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अनिता भारती . उनकी जयंती अवसर पर स्त्रीकाल ने सुप्रसिद्ध स्त्रीवादी चिन्तक शर्मिला रेगे को ‘ सावित्री बाई फुले वैचारिकी सम्मान‘ ( पूरी खबर के लिए लिंक पर क्लिक करें ) देने  की घोषणा की है.  ) 

अनिता भारती के द्वारा प्रस्तुति नोट : 
यह बहुत कम लोग जानते है कि भारत की पहली अध्यापिका तथा सामाजिक क्रांति की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले एक प्रसिद्ध कवयित्री भी थी। इस ब्राह्मणवादी जाति-  समाज ने महान क्रांति सूर्या सावित्रीबाई फुले के अमूल्य योगदान का आंकलन कभी ठीक से किया ही नहीं, पर अब वह दिन दूर नही जब उनके सम्पूर्ण योगदान के पन्नों को एक एक करके खोल लिया जायेगा। उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके,  खासकर स्त्री और दलितों,  के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता। उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोले तथा समाज में व्याप्त सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों के खिलाफ जंग लड़ी. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है,  जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं.
सावित्रीबाई फुले के दो काव्य संग्रह है- काव्यफुले( 1854) और दूसरा बावनकशी सुबोधरत्नाकर.
यहां उनके योगदान का एक पन्ना कविताओं के रुप में आपके सामने प्रस्तुत है:

नोट : कवर पेज साभार एम जी माली की किताब क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले के पेज नंबर 44 से लिया गया है. प्रकाशक- प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय , भारत सरकार

सावित्री बाई फुले की किताब का कवर

1.
जाओ जाकर पढ़ो-लिखो
बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है
ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो
ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो

2,
जो वाणी से उच्चार करे
वैसा ही बर्ताव करे
वे ही नर नारी पूजनीय
सेवा परमार्थ
पालन करे व्रत यथार्थ
और होवे कृतार्थ
वे सब वंदनीय।
सुख हो दुख
कुछ स्वार्थ नही
जो जतन से कर अन्यो का हित
वे ही ऊँचे,
मानवता का रिश्ता जो जानते है वे सब
सावित्री कहे सच्चे संत ।

3.
ज्ञान नही विद्या नही उसे अर्जित करने की जिज्ञासा नही
बुद्धि होकर भी उस पर जो चले नही उसे इंसान कहे क्या ?

दे दो ईश्वर बिना काम किए बैठे बिठाए खाट पर
ढोर ड़गर भी ऐसा कभी करता नही
जिसका कोई विचार – अस्वार नही, उसे इंसान कहे क्या ?

पत्नी बिचारी काम करती रहे और पति फोकट में मौज उड़ाए
पशु पंछी में यह बात होती नही ऐसो को इंसान कहे क्या ?

दूसरों की मदद ना करे सेवा त्याग दया माया ममता आदि
जिसके पास यह सदगुण नही उसे इंसान कहे क्या ?

पशु पंछी, बंदर आदमी जन्म मृत्यु सब को ही
इस बात का ज्ञान जिसे नही उसे इंसान कहे क्या ?
4.
स्वाबलंबन का उद्योग, ज्ञान धन का संचय करो निरंतर
विद्या के बिना व्यर्थ जीवन पशु जैसा,
आलसी बन चुप ना बैठो।

विद्या प्राप्त करे शूद्रों-अतिशूद्रों के दुःख  निवारण हेतु
अंग्रेजी का ज्ञान हासिल करने का शुभ अवसर हाथ आया

अंग्रेजी पढ़ लिखकर जात-पात की दीवारों को ढहा दो।
भट ब्राम्हणों के षडयंत्रों के पिटारों को दूर फेंक दो।

5.
काम करना है जो आज, उसे अब कर तत्काल ।
जो करना है दोपहर में, उसे कर अब आकर ।

कुछ क्षणों के बाद का कार्य, इसी वक्त करो पूरा जोर लगाकर।
हो गया समाप्त कार्य या नहीं, मौत नही पूछती आकर।
( सावित्रीबाई फुले की यह कविताएं मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि शेखर पवार द्वारा मराठी से हिन्दी में अनुदित है)

6.
Rise to learn and Act
Savitribai Phule

Weak and oppressed! Rise my brother
Come out of living in slavery.
Manu-follower Peshwas are dead and gone
Manu’s the one who barred us from education.
Givers of knowledge– the English have come
Learn, you’ve had no chance in a millennium.
We’ll teach our children and ourselves to learn
Receive knowledge, become wise to discern.
An upsurge of jealousy in my soul
Crying out for knowledge to be whole.
This festering wound, mark of caste
I’ll blot out from my life at last.
In Baliraja’s kingdom, let’s beware
Our glorious mast, unfurl and flare.
Let all say, “Misery go and kingdom come!”
Awake, arise and educate
Smash traditions-liberate!
We’ll come together and learn
Policy-righteousness-religion.
Slumber not but blow the trumpet
O Brahman, dare not you upset.
Give a war cry, rise fast
Rise, to learn and act.

(  Sunil Sardar and Victor Paul have translated this poem)

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