( कर्नाटक के गुलबर्गा में १० दिनों तक के एक कला शिविर में महात्मा बुद्ध की विभिन्न भंगिमाओं को उकेरा कलाकारों ने , प्रो. परिमळा अंबेकर की रिपोर्ट )
बुद्ध के चरित्र की अनेक भंगिमाओं को पत्थरों में उकेरना , मूर्तिकार की कला के लिए वह कसौटी है जहाॅं उसका हथोडा और छेनी प्रस्थरों के गीत गाने लगते हैं । मूर्तिकार की कलासाधना की मेहक उसके दैहिक परिश्रम के स्वेद से मिलकर कठिन पत्थरों में जीवन और राग भरने लगती है । ऐसी एक प्रायोगिक चुनौती को रक्खा था युवामूर्तिकारों के सम्मुख,कर्नाटक मूर्तिकला अकादमी बेंगलूर ने,गुलबर्गा के सिद्धार्थ ट्रस्ट के साथ मिलकर ।
गुलबर्गा बुद्ध विहार के विशाल प्रांगण में आयोजित ‘‘शिला शिल्पकला शिविर‘‘ (14 मार्च से लेकर 28 मार्च
2015 तक ) में कर्नाटक राज्य के विविध भागों से लगभग दस से भी अधिक शिल्पकारों ने अपनी छेनी और हथोडे की कलात्मक गरिमा को, कला के प्रति के अपनी समर्पणबोध को इन सबसे बढकर , महाबोधी, गौतमबुद्ध के प्रति की अपनी सृजनात्मक अनन्यता को, अमिताभ के अद्वितीय निर्वेद्यबोध के प्रति मूर्तिकार की प्रामाणिक सजगता को दर्शाया । हेग्गडदेवनकोटे, बागलकोट आदि कर्नाटक के प्रस्थरी भागों में उपलब्ध कृष्णशिला ( ब्लैक स्टोन ) में, गौतमबुद्ध की निर्वेद्य बोध की विविध भंगिमा, तपश्चर्या की मुद्रायें और महानिद्रा की भव्य अनुभाव को इन कलाकारों ने उकेरा ।
इन मूर्तिकारों के सम्मुख फैले प्रस्थर के बडेबडे खंड, उनपर बडीही शालीनतासे चलते इनके हथोडे और अत्यंत
ही सधी हुई छेनी की बारीक कटाव ,और… धीरे…धीरे….उन पत्थरों से उभरता हुआ अमिताभ का रूपाकार !! तल्लीनता से झुके कलाकरों की आॅंखें ,मुंडियाॅं, झुके बालों से टपकती श्रमस्वेद की बूॅंदे, छेनी हथोडा धरे हथेली के छालों से रिसते रक्त के थक्के, और… और…. उन कृष्णशिलाओं पर उभरता महाबोधी का मंदहास, एक विलक्षण ही कथा बयान कर रहे थे ।
अज्ञेय की पंक्तियाॅं , बुद्ध विहार के उस पवित्र प्रांगण में जैसे गूॅंजने लगीं-
वहीं-वहीं प्रत्येक भरे प्याला जीवन का,
वहीं-वहीं नैवेद्य चढा
अपने सुन्दर आनन्द-निमिषका,
तेरा हो ,हे विगतागत के वर्तमान के, पद्मकोश!
हे महाबद्ध !
कर्नाटक शिल्पकला अकादमी बेंगलूरू के अध्यक्ष श्री महादेवप्पा.शंभुलिंगप्पा. शिल्पी , गुलबर्गा बुद्ध विहार के
विशाल बाह्य आवरण में आयोजित प्रस्तुत शिल्पकला शिबिर के निर्देशक शिल्पी श्री एस्.पी.जयण्णाचार एवं शिबिर के सदस्य संचालक श्री महेशकुमार.डी. तळवार, पंद्रह दिन के इस क्यांप में प्रस्थरों में गौतम बृद्ध की प्रतिमाओं को खिलाने में ,जो लगन और निष्ठा दिखायी वह विशिष्ठ रही !!
दस से भी अधिक युवा मूर्तिकार अपने सहायक साथियों के साथ अपने हाथों की अद्भुत प्रतिभा, हथोडा और छेनी की तिलिस्मभरी कला से गौतमबृद्ध की अलौकिक साधना को यथा संभव साकार रूप देने में निमग्न रहे । शिल्पि श्री कांतराज.आर ;बेंगलूरूद्ध , शिल्पि श्री शशिधरआचार्य ;दक्षिणकन्नडजिल्लाद्ध , शिल्पि श्री महेशकुमार.एम्.एस् ;मंड्या जिलाद्ध, शिल्पि श्री होन्नेश्वर.बडिगेर ;हावेरीजिलाद्ध, शिल्पि श्री शांतगौडर्.एस्.तिम्मगौडर् ;गदगजिलाद्ध, शिल्पि श्री नागराज.एम्.एस ;चिक्कमंगळूरू जिलाद्ध, शिल्पि श्री लक्षमणराॅव जादव ;मैसूरजिलाद्ध, शिल्पि श्री गोपाल.वी.पांचाळ ;गुलबर्गाजिलाद्ध, शिल्पि श्री मौनेशकम्मार ;रायचूरजिलाद्ध, शिल्पि श्री राजेश.के.बी ;शिवमोग्गाजिलाद्ध आदि युवामूर्तिकारों ने कर्नाटक के विविध जिलों का प्रतिनिधित्व किया ।
सिद्धार्थ की महानिर्वाण की यात्रा महाबोधी के निर्वेद्य ,विकास और शांति का महामंत्र इस भरतभूमि का शाश्वत सत्य है । यह वह इतिहास है जो सार्वकालिक है । बहुजन हिताय है !! बहुजन सुखाय है !! जो हर कला शिबिरों में खिलते आ रहा है और खिलते ही रहेगा ! जैसे प्रस्थरों में खिला हुआ पद्मकोश !! अंत में ‘महादेवी वर्मा‘ को कोट करते हुए
तुमसे ही घोषित हुआ सत्य
हिंसा न कभी हिंसा उपाय !
आये तुम इस धरती पर
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय !
प्रो. परिमळाअंबेकर,अध्यक्ष,हिन्दीविभाग ,गुलबर्गाविश्वविद्यालय,गुलबर्गा-06 कर्नाटक.
सं/ 09480226677. ई-मेल : parimalaambekar@gug.ac.in