आत्म कथ्य
मैंने मानव आकृतियों को आधार मानकर अनेक प्रकार के संयोजन किये है ! जिसमें सामूहिक व एकल आकृतियों के संयोजन सम्मिलित रहे है ! लेकिन पोर्ट्रेट में मेरी खास अभिरुचि रही है ! पोर्ट्रेट मायने ऐसे जैसे कि किसी की आत्मकथा लिख रहें हों । यही आभास जगता है पोर्ट्रेट बनाते समय ।!
मैंने मनुष्य की भावनाओं , विचारों , तकलीफों और कल्पनाओं को ‘पोर्ट्रेट’ के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की है ! सदियों से दबे – कुचले मनुष्यों के उत्पीडन और शोषण को पोर्ट्रेट में जुबान देने की कोशिश करता रहा हूँ ! इस दोरान मुझे लगता रहा जैसे ये मूक चेहरे सांकेतिक भाषा में मुझसे संवाद करने की कोशिश कर रहे हों ! इसके अलावा मेरे काम में मानवता की खोज निरंतर सक्रिय है !
अपने कलाकर्म में मैंने तकनीकी रूप से वाटर-कलर की भांति ताज़ा टेक्सचर देने का प्रयास किया है !
‘हीरालाल राजस्थानी