रिया मिश्रा की कविताएं

रिया मिश्रा

कक्षा बारहवीं में अध्ययनरत
संपर्क :द्वारा पुष्पेन्द्र फाल्गुन, ३१ कल्पतरु कॉलोनी, कामठी कैंटोनमेंट, कामठी, जिला नागपुर 441001.

( किशोर रिया मिश्रा की ये कविताएं उसकी काव्य -प्रतिभा और उसकी साहित्यिक सम्भावनाओं की गवाह हैं. ) 


माँ,  तेरे नहीं होने से

एक दिन अचानक कहा सबने
कि तुम बड़ी हो गई हो
क्यों और कैसे
यह सवाल मैंने खुद से ही पूछा
लेकिन न जवाब मेरे पास है
न किसी और के पास
माँ, तेरे नहीं होने से
सबने मुझे अचानक
बड़ा बनाना शुरू कर दिया
किसी ने कहा
तुम्हें अपनी छोटी बहनों की
दीदी ही नहीं माँ भी बनना है
किसी ने कहा
तुम्हें ख्याल बड़ी समझदारी से रखना होगा
लेकिन किसी ने नहीं बताया कि
समझदारी का ख्याल
मैं अपने भीतर कैसे पैदा करूँ
अब तक तो मैं बिना काँधे के
रोना भी नहीं सीख पाई
(माँ थी तो उसकी बाँह मैंने
कई बार भिगोई थी अपने आंसुओं से
माँ को भी पसंद था
अपनी बांह पर मेरे आंसुओं को सूखने देना)
माँ, तेरे नहीं होने से
अब लोग कहते हैं
मुझे सबके आंसुओं को पोछना सीखना होगा
लेकिन कैसे यह कोई नहीं बताता
आजकल मैंने महसूस किया है
कि तेरे जाने के बाद आंसू
आँखों में आने से पहले ही सूख जाते हैं
और बहनों के आँखों में तैरते आंसू
मुझे अजीब गुस्से से भर देते हैं
मैं बात-बात पर भड़क उठती हूँ
लेकिन फिर जल्दी ही समझ जाती हूँ
अपनी गलती
माँ, तेरे नहीं होने से
मैं अपने होने को समझना चाहती हूँ
और समझने को होना

बे-आवाज़

व्यस्त तेज भागते समय ने
रिश्तों से सारे रस ही निकाल लिए
तस्वीरों की मुस्कराहट बेचैन करती है
रास्ते नाम लेकर पुकारते हैं
रेशमी रिश्तों के टूटने का दर्द
सब सहते हैं
आँसुओं से भीगी हुई है वह जगह
जहां हम आखिरी बार मिले थे
एक भरे घर में
अलग-सलग पड़ी जिंदगी में
अब कोई कुछ नहीं बोलता
तुम चले गए एकदम से अचानक
जैसे चली जाती है बत्ती
टूट जाती है डोर
उखड जाता है पेड़
शोक मनाते रिश्तों को पता था
कि मैं एकदम से चुप हो जाऊंगी
उदास भी दिखने लगूंगी
पर माफ़ करने के लिए भी कोई चाहिए
कि बस बे-आवाज़ करने के लिए ही होते हैं रिश्ते

तलाश

जाना क्यों जरूरी था
जाने के लिए
खुशियों को छोड़ना क्यों जरूरी था
खुशियों के लिए
कुछ हसीन पलों को भूलना था
तुम्हें भुलाने के लिए
लगातार बदलते इस मौसम में
वजह तलाशती हूँ जीने के लिए

आजादी

भीड़ में काफी हैं
केवल दो आँखें
मुझे यह अहसास कराने के लिए
कि मैं लड़की हूँ

अब लड़कियां निकली हैं
अपने लिए नई परिभाषा गढ़ने
छूने अपना आकाश
अपनी जमीन पर
खड़ी हो गई हैं लड़कियां

हर चिड़िया लड़ाकू नहीं होती
और सारी चिड़िया सुन्दर भी नहीं होती
पर हर चिड़िया आजाद होना चाहती है
सभी उड़ भी नहीं पाती आसमान तक

मैं तुम्हारे ख्याल को इस तरह छूना चाहती हूँ
कि वह अपना रूप धरने लगे
चिड़िया तुम्हें देखना ही होगा ख्वाब खुले पंखों का
मैं तुम्हारे साथ आजाद होना चाहती हूँ

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ISSN 2394-093X
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