रंगभेदी और स्त्री-विरोधी सोच

नवीन रमण 


(फेसबुक पर सक्रिय नवीन रमण लागातार अपनी संवेदनशील टिपण्णी से  एक  हस्तक्षेप करते हैं . हरियाणा की खाप पंचायती मनोवृत्ति पर इनके असरकारी पोस्ट ध्यान खींचते रहते हैं . खाप-मानसिकता  को बेचैन करने वाले इनके प्रेम -विषयक पोस्ट भी उल्लेखनीय होते हैं . फेसबुक पर वायरल एक जोड़े की तस्वीर के बहाने नवीन बहुत जरूरी सवाल उठा रहे हैं . )


फोटो ने आपको भी डंस लिया क्या ? इस शीर्षक से मैंने यह पोस्ट फेसबुक पर लिखी और खूब सारे लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं शेयर की ।

आग की तरह फैला देने वाले गिरोह की तर्ज पर यह फोटो अजीबो-गरीब कैप्सन के साथ फेसबुक पर वायरल हो रही है । पता नहीं फोटो असली फोटो है या फोटोशॉप ।अलग-अलग कैप्सन पर वायरल होती हुई फोटो को देखकर मन में कईं सवाल सिर उठाने लगें। एक-से-एक स्त्री पक्षधर को लाइक करते देखा तो सवाल के साथ चिंता भी गहराने लगी। जिस पुरुष-मानसिकता और पितृसत्तावादी ब्राह्मणवाद से हम लगातार जूझ रहे हैं। वह अथक प्रयासों के बावजूद किसी न किसी रास्ते से बाहर निकल ही जाता है। इस पर लगातार संवाद की जरूरत है,इस संवाद के तहत ही यह पोस्ट लिखी गई है । ताकि एक बराबरी के समाज के सपने की तरफ कदम बढ़ाया जा सके:

इस फोटो को देखकर क्या आपके शरीर पर सांप लोट-पोट होने लगे है ? किसी को क्यों और क्या दिक्कत हो सकती है इस फोटो से ?यह मेरी जिज्ञासा का कारण है ।कारण कुंठा तो है ही । दूसरा रंगभेद भी है । तीसरा कारण क्या हो सकता है ?यह अरेंज मैरिज है या लव मैरिज ? यह जोड़ा दक्षिण भारतीय भी तो हो सकता है ?अगर लड़की को अपना हमसफ़र पसन्द है तो हम सब कौन होते है बकवास करने वाले ? दूसरा लड़की ने मजबूरी में यह शादी की है, तो उसकी क्या मजबूरियां रही होंगी ? इस पर कोई बात क्यों नहीं कर रहा है ?अपनी कुंठाओं को यूँ सरेआम पब्लिक मत कीजिये । क्या पता कौन आपको अच्छा समझता हो ?आपकी हरकत किसी को बुरी भी लग सकती है ।ज्यादातर ने इस फोटो के साथ वाह रे किस्मत लगाया है । आपकी हरकत आपकी स्त्री के प्रति उपभोग की नजर को उजागर करती है । बचना चाहिए इस तरह की स्त्री-विरोधी और रंगभेदी  टिप्पणियों से । ( इस पोस्ट पर यह फोटो लगाने के लिए माफ़ी । बगैर फोटो के न तो संवाद संभव था और न ही बात को समझाया जा सकता था।)


मेरे अंदर के पुरुष और रंगभेद ने भी पहली नज़र में सिर उठाया था। फोटो को देखते ही जो पहला विचार हमारे मन में कौंधता है,जिसे हम सहज और स्वाभाविक मानते हैं, दरअसल वही है असल बीमारी की जड़। हम सब का पालन-पोषण जिस परिवेश में हुआ है, उसने हमारी इतनी बेहतरीन कंडीशनिंग की है कि हमें स्त्री और रंगभेदी विचार सच जैसा लगने लगता है। और हम उस से टकराने के बजाय आगे बढ़ते चले जाते है।फेसबुक पर जब यह पोस्ट लिखी गई तो अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आईं । जिन्होंने इस विषय को विमर्श का हिस्सा बना दिया । इस तरह की रंगभेदी और स्त्री-विरोधी मानसिकता का विरोध होने के साथ-साथ संवाद भी अपना महत्व रखता है ।
अरविंद शेष के अनुसार-“ सामंती मर्दाना कुंठा और ग़लीज़ रंगभेद के सिवा कोई और बात नहीं है..!”
रीना कोसर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा- “रंगभेद है…मुझे भी(किसी को भी) निसंदेह किसी ‘डार्क स्किन’ वाले से प्रेम हो सकता है  । ‘स्किन’ काली होना सोच और दिल काला होने से बेहतर है  । क्योंकि स्किन का रंग आप ने खुद नहीं तय किया, लेकिन दिल-दिमाग का रंग आप खुद तय करते हैं  ।”
जसवंत ने तंज कसते हुए लिखा- “गर्व करने वाली बात है कि देखो ‘सोसाइटी’ के ‘सोकाल्ड’ उलटे नोर्म तोड़कर, जो सही है वो किया । इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा-“ आपकी बातों से सहमती, पर घुमा फिरा कर वो फोटो तो शेयर हो ही गयी………” उनकी बात का जवाब देते हुए मैंने लिखा-“ फोटो शेयर से ज्यादा दिक्कत उस मंशा से है, जिसके तहत की जाती है और जिस तरह के कैप्सन के साथ की जाती है ।”
विजय कुमार के अनुसार-“ बिलकुल फोटोशॉप है भाई. तथाकथित ‘दूल्हे’ के चेहरे से नहीं लगता की उसकी शादी हो रही है । जिसने फोटोशॉप किया उसकी कुंठा कितनी बड़ी रही होगी..??” पर यहां बात दूसरी हो रही है । लोगों के विचार तो फोटो शॉप नहीं है। बात उनके उन विचारों की हो रही है।

प्रीति सिंह-“ मैं कहती हूँ असली नहीं हो फ़ोटोशोपड हो फिर भी ना जाने कितने लोग असल जीवन में इसे जी रहे होंगे और ख़ुश होंगे! इसका visa – versa भी होता है,ये अपनी choice है ! मैंने भी इसे Fb पे घूमते टहलते देखा और बड़ी हैरानी हुई लोगों के कामेंट्स देखकर, कितने कुंठित समाज में जी रहें हैं हम!”
जितेंद्र पुनिया-“जो भी हो पर मुझे ये दिन में 2 -3 देखनी पड़ रही है आजकल । बोलते है ” अब तो मानता है ना किस्मत को “”
मिनाक्षी शर्मा-“मेरी एक मित्र है जो डॉ है और पति उसका इंजिनियर सेम यही जोड़ी जेसी है मतलब रंग से है मगर लव मेरिज है उनकी और बहुत खुश है वो ।”
मिर्जा फैसल बेग- यार, इन्सान की फितरत में जलन होती है। और इस मामले में तो……peak point।
विक्रम गोहर राणा–COMPLEXION के नज़रिये से बेमेल जोडा हो सकता है पर , सफल वैवाहिक जीवन के लिये किसी शंका का कारण नहीं बनता |
मनीषा सिंह जादौन’निर्गुण’ -इस तरह के टुच्चे मजाक सिर्फ और सिर्फ आपका कमजोर दिमाग दिखाते हैं !
प्योली स्वातिजा- यहाँ हुए कमेंट्स से भी यही लग रहा है कि लोग उपनिवेशवादी सौंदर्यशास्त्र से पीड़ित हैं। “तन काला हो तो चलेगा, मन काला नहीं होना चाहिए”। ‘चलेगा’ का क्या मतलब है भाई! हम भारतीय उपमहाद्वीप के निवासी मूलतः साँवले ही होते हैं और उसी में हमारी सुंदरता है। ब्लैक इस ब्यूटीफुल! ये मन काला होना, काले कानून, काला दिन आदि नकारात्मकता दर्शाने के लिए कब तक इस्तेमाल करते रहेंगे?
कुमार निर्वेश- काला मन शायद सिर्फ एक नेगेटिविटी दर्शाने मात्र इस्तेमाल किया गया शब्द है
ना की काले रंग को ही प्रकृति से बाहर बताने की कोशिश है…
विक्रम दहिया- मेरे पास भी आया था ये फोटो। नीचे लिखा था कि
‘घोड़े को नही मिल रही घास और गधा खाये चयवनप्राश’
गौरव वर्मा- माफ़ करना दोस्त इस रोग से हम भी ग्रस्त हैं।
लक्ष्य रोहिला-रंग से कुछ पता नहीं चलता की कौन क्या है ?
निर्भय अतुल-प्यार करने के लिए सुरत नहीं मुहरत अच्छी होनी चाहिए ।
संदीप तोमर -सामान्य बात है। इसमें क्या अजूबा है?
निष्ठा -मैंने भी देखा इसे। हमारे देश में रंग को लेकर एकदम पागलपन है। बहुत बुरा लगता है फ़ोटो पर घटिया कैप्शन। लेकिन अधिकतर लोगों के लिए रंग को लेकर घटिया कमेंट करना मजाक उड़ाना बेहद सामान्य है।
सुनील पागल- जब कोई सामान्य रंग भारतीय का व्यक्ति किसी गोरी मेम से विवाह करता है तो क्या विदेशों में भी इसी तरह के घटिया कमेंट होते हैं क्या । ओह! हमारी मानसिकता ।
जगमोहन नेगी- ठीक “तारक मेहता का उलटा चश्मा,” बबीता और अय्यर जैसे।
दिनेशराय द्विवेदी -बरसों पहले की बात है। जयपुर रेलवे स्टेशन पर मैं एक मित्र के साथ था। मित्र का रंग ऐसा ही था जैसा कि इस दूल्हे का है। तभी एक जोड़ा निकला। लड़की नीग्रो थी, बला की सुंदर और सुगठित बदन वाली, बस चमड़ी का रंग एक दम कोयले की माफिक। उस का साथी बिलकुल जर्मन गोरे…
जगमोहन नेगी- इंसान की पहिचान सूरत से नहीं सीरत से होनी चाहिए।

जैसा कैप्सन,वैसा कमेंट्स यह हर तरह की पोस्टों के साथ होने वाला आमचलन है।मैं इस संवाद को विमर्श के केंद्र में ले जाकर छोड़ रहा हूं,ताकि इसके विभिन्न पहलुओं पर बेहतर तरीके संवाद संभव हो सकें।मंजिल पर पहुंचने से पहले रास्तों पर भी आपसी मुलाकात और मुठभेड़ जरूरी है।

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ISSN 2394-093X
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