उम्र भर इक मुलाक़ात चली जाती है

असीमा भट्ट 


‘रेमो’  (Remo farnandis: the great singer) के घर गई तो ऐसा लगा ‘अन्ना केरेनिना’ अपना प्यार ढूंढने आई है…

पुराना घर, ढेर सारी पुरानी परम्पराओं  (गोवा  और पुर्तगीज)  को अपने आप मे समेटे हुए. बड़े-बड़े कमरे, ऊँची-ऊँची दीवारें, खुला आँगन….आँगन क्या जैसे एक बड़ा सा बागीचा. जिसमे आम, चीकू, केले और नारियल के पेड़ जिसमे बैठने के लिये लकड़ी की बेंच…..

2004 में पहली बार गोवा जाना हुआ. पहली बार दिल्ली की बजाय गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल शुरू हुआ. गीता (गीताश्री) और मैं गोवा गये. पूरा प्लान गीता का ही था.  (हालांकि राजेंद्र यादव ने तंज किया था – ‘साली तुमदोनों लेस्बियन हो क्या? कोई दो लड़कियाँ साथ में गोवा जाती है????)

रेमो फर्नांडिस और असीमा भट्ट

मुझे समंदर बहुत आकर्षित करता रहा है… गोवा का नाम सुनते ही खुला समुन्द्र, नावें,नाविक, मछुयारे….घने नारियल के झुरमुट….काजू और बादाम के पेड़ कितना कुछ… हालाँकि जैसे ही गीता ने बताया की हम गोवा चलेंगे…. मेरे अंदर से  वो गाना गूंजने लगा- ‘समन्दर , समन्दर! यहाँ से वहां तक, यह मौजो की चादर बीछी आस्मा तक……..’ बच्चे की तरह उत्सुकता थी मेरे भीतर. बहुत सी कल्पनाएं मेरे मन में खेल, खेल रही थी.
दिल्ली निजामुद्दीन से गोवा जाने वाली ‘राजधानी’ में हम जैसे ही बैठे की सामने की सीट पर बहुत प्यारी सी महिला अपने दो बच्चों के साथ सफर कर रही थी. वो  गोवन थी. पूछने पर बताया कि वो  देहरादून अपनी बहन के पास आई थी. उनका नाम था मारिया (गीता आज भी मारिया के लिये गाती है- (ओ मारिया, ओ मारिया..)और बच्चे वरुण और वियोला.  हम एक पल में इतने अच्छे दोस्त बन गए कि लगा हम सब एक परिवार हों और एक ही साथ यात्रा कर रहे हों. मारिया के पहचान के एक और दोस्त हमारे साथ थे-  एडवोकेट प्रसाद. पति-पत्नी दोनों गोवा के जाने माने एडवोकेट हैं.

इतने प्यार से हँसते-खेलते दिल्ली से गोवा तक का लम्बा सफर कब कट गया पता ही नहीं चला. गोवा स्टेशन पंहुचते ही मारिया और उनके बच्चे जिद्द करने लगे कि आपलोग हमारे साथ घर चलो. लेकिन हमारी होटल की बुकिंग दिल्ली से ही हो रखी थी.. इसलिए हम होटल गये… होटल भी हमें मारिया ने हो छोड़ा और रस्ते में एक बड़े खूबसूरत से बीच रेस्टोरेंट पर हमें ‘गोवन सी’ फ़ूड खिलाया. होटल छोडते वक्त तय हुआ कि शाम को हम सब क्रूज (वोट) पर मिलेंगे जहाँ संध्याकालीन संगीत का आयोजन होता है..सेलानियो को क्रूज बेहद पसंद है. हलके-फुल्के स्नेक्स के साथ थोड़ी शराब, नाच-गाना और मस्ती. बीच समन्दर में तैरते जहाज़ पर बड़ा ही मज़ा आता है…

रेमो फर्नांडिस

अगले दिन से फिल्म फेस्टिवल शुरू हो गया. गीता-मै उसी में व्यस्त हो गये.…मेरे लिये यह सब बड़ा ही अनोखा था क्यूंकि मेरा पहला अनुभव था… गीता को आफिस (आउटलुक) के काम से वापस जल्दी दिल्ली लौटना पड़ा और मै जबतक फेस्टिवल था,  तब तक  मारिया के घर पर ठहर गई… इतने कम जान-पहचान में शायाद ही कोई मित्र इतना करीबी होता है. लेकिन मै बता दूं कि मारिया आज भी हमारी मित्र हैं. और उनके प्यार और अपनेपन की वजह से गोवा हमेशा अपना घर  लगता है.. मारिया, खासकर मुझे हसेशा कहती है- ‘Sweetheart, this is your house. you can come any time.  Door will be open for you always.’

एक दिन मारिया से कुछ बातें हो रही थी कि अचानक ना जाने कहाँ से ‘रेमो’ की चर्चा आ गई…(वही रेमो फर्नांडिस जो-  ‘प्यार तो होना ही था और  हम्मा, हम्मा! हम्मा-हम्मा, हम्मा…’  गाने के लिये मशहुर रह चुके हैं) जैसे मेरी  नसें फडक उठी… मैंने उत्साह से  चिल्लाते हुए मारिया से पुछा- ‘ तुम रेमो को जानती हो? क्या रेमो यहाँ रहते हैं ? मुझे लगा था की सारे singer की तरह वो भी मुम्बई रहते होंगे. ‘ वो बोली-  ‘Yes,  He is my neighbour  only.
क्या? मुझे उससे मिलना है.
बात वहीँ खत्म हो गई.  शाम को मारिया अचानक गाड़ी में बिठा कर एक घर में ले आई. मैंने पूछा – किसका घर है. वो बोली -रेमो का.
क्या?
हाँ!
हम अंदर गये. एक बुजुर्ग महिला बाहर निकली. महिला ने बड़े प्यार से अभीवादन किया.
मारिया ने  मुझे बताया कि वो रेमो कि माँ है और उनसे  गोवन में पूछा- ‘रेमो घर में है? यह मेरी फ्रेंड दिल्ली से आयी है, रेमो की फैन है.’
उनकी माँ ने कहा कि – ‘रेमो तो आजकल गाँव (सियोल्म, गोवा से सटे गांव)  में रहता है.’
यह सुन कर मेरा दिल बैठ गया.
वहाँ से बाहर निकले और मारिया की गाड़ी दौड़ पड़ी सियोल्म की तरफ… मैंने पूछा – बहुत दूर होगा…
मारिया बोली – So what? you are my dear friend.
रस्ते भर एक अजीब सा रोमांच था… गोवा की पतली सड़के, दोनों तरफ नारियल के पेड़ और समुन्द्र का किनारा…और ऊपर से शाम का समय…..चिड़ियों का कलरव….
मारिया बार-बार गाडी रोक कर गांव वालों से पूछती- ‘रेमो च घर? यानी रेमो का घर’
लोग बताये बस थोड़ा सा आगे… इस तरह जब हम रेमो के  घर के करीब पंहुचे तो मारिया एकदम से बोली- ‘Asmi (यह नाम उसी का दिया हुआ है), Have some gift for Remo and put some lipstick . you will look beautiful and Remo wil like it.’

घर पंहुचे तो एक नौकरानी ने आकर हमारा स्वागत किया और बड़े से बरामदे से होते हुए वो हमें आंगन में बिठाकर यह कहके चली गई कि सर रिहर्सल कर रहे हैं. दरअसल रेमो को गोवा फिल्म फेस्टिवल के समापन पर एक खास संगीत परफॉर्म  करना था जिसके लिये वो खास धुन तैयार कर रहे थे.

बगीचा बहुत ही रूमानी था… किसी प्रेमी जोड़े के लिये तो परफेक्ट. थोड़ी देर बाद रेमो आये… ‘हाथ मिलते हुए कहा– मै किसी से मिलना पसंद नहीं करता इसीलिये शहर और शोर-शराबे से दूर यहाँ गांव में रहता हूँ,… लेकिन माँ का फोन आया कि आप मुझसे मिलना चाहती है इसलिए मना नहीं कर सका….’   अजीब लगा. मै क्या कह्ती समझ नही पा रही थी. अचानक मेरे मुंह से निकल गया – ‘मै जर्नलिस्ट हूँ, और मैंने सुना कि आप गोवा फिल्म फेस्टिवल कोलोसिंग सेरेमनी के लिये खास धुन तैयार कर रहे हैं इसलिए हम आपसे बात करने आ गये.’

असीमा भट्ट

बेरुखी के साथ कहा- ‘मै जर्नलिस्ट से नहीं मिलता. वो कुछ का कुछ छाप देते हैं.  they are edits they do gossip only.”
मै तो डर ही गई… बोलने को कुछ बाकी नहीं रहा.
फिर रेमो मारिया से बातें करने लगे. नौकरानी से चाय लाने को कहा…
बड़े सलीके से नौकरानी एक सुंदर से ट्रे में चाय ले आई.. साथ ही कुछ बिस्किट और नमकीन.
बड़े आदर के साथ रेमो हमारी चाय बनाने लगे.  चाय बनाते हुए पूछा – ‘शूगर या हनी… मै तो हनी लेता हूँ….’
मैंने पूछा – हनी क्यूँ?
मुस्कुराकर बोले- ‘Because its honey… Honey is Honey.

चाय पीते हुए वो थोड़े सहज हो गये या कह सकती हूँ कि मै सहज हो गई… मैंने बताया कि मै कल ही जा रही हूँ क्यूंकि मेरे वापसी का रिजर्वेशन कल का ही है. क्लोसिंग सेरेमनी तक नहीं रुक पाऊँगी.
रेमो बोले- ‘So sad, my bad luck. you are pretty woman, I could sing for you.
जब हम चलने लगे तो रेमो ने कहा – ‘Take my email id and send me your questions, I will answer your question… and please remember do not change in my answer.’
मैंने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा – इत्मीनान रहें.

मै दिल्ली आ गई.  उन दिनों एक ओल्ड ऐज होम के लिये कांसिलिंग का काम करती थी. मिस्टर आर.कुमार (विद्द्वान डॉ धीरेन्द्र वर्मा के बेटे और रिटायार  उच्य लेखा अधिकारी).  और डॉ नरेन की मदद से.  आर . कुमार को मै दादा बुलाती थी.. उनसे मिले काफी दिन हो गये थे, इसलिए गोवा से आते ही उनका फोन आया कि कहाँ हो और तुम्हारा गोवा ट्रिप कैसा रहा, शाम को मिलो तो पूरा डीटेल्स सुनेगे.

नोयडा के जिमखाना (फेमस क्लब) में मिले.. गोवा की एक-एक  बातें  बच्चे की तरह उत्साहित होकर दादा को सुना रही थी कि अचानक मेरा फोन बजा देखा तो मारिया का फोन था… फोन उठाते ही उत्तेजना में डूबी मारिया की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से मुझसे कह रही थी- “Asmi, Asmi,   ‘Dear, can you hear this, I’m so happy and excited for you, Remo is singing for you. He said in front of all crowds – this song is for that lovely girl who came all the way from Delhi to Goa to see me. I’m dedicating this song to that beautiful lady.’

फोन पे शोर के अलावा मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे पा रहा था लेकिन मारिया की चहकती खुशी बहुत कुछ बयान कर रही थी…उसी रात को लौट कर मैंने रेमो को अपने प्रश्न इमेल किये… अगले ही दिन उनका जवाब आ गया…मेरी मुश्किल और बढ़ गई. क्यूंकि मैंने तो झूठ बोला था कि मै प्रेस से हूँ और आपका इंटरभिउ छापूंगी… क्योंकि  मै तब किसी भी पेपर या मैगजिन से नहीं जुडी थी…खैर! मेरे मित्र अभिजीत सिन्हा तब “सहारा टाइम्स” में काम करते थे. उन्हें बाताया तो   उन्होंने फ़ौरन मुझे वह इंटरव्यू ईमेल करने को कहा. मैंने  ईमेल कर दिया और एक जनवरी 2005 को  वो छपी… ऐसा नहीं कि इससे पहले मेरे आर्टिकल नहीं छपे लेकिन ‘रेमो’ के आर्टिकल  से जो खुशी मुझे मिली … उसके लिये शब्द नहीं हैं..वो आर्टिकल मैंने मारिया और रेमो दोनों को भेजा….

गोविंदा के साथ असीमा

एक शाम अचानक मेरे पास फोन आया कि “तुम कहाँ हो, मै दिल्ली में हूँ.”  मैंने पूछा- कौन? वो बोले – ‘रेमो’.
मुझे यकीन नहीं हुआ. वो बोले- ‘दिल्ली में कोई जिमखाना क्लब (वही जगह , जहाँ मै दादा के साथ बैठी थी और मारिया ने मुझे रेमो के गीत सुनाने की कोशिश की थी) है,,, वहाँ मेरा ‘शो’ है… तुम आओगी.?
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.

उस शाम मै उनकी खास मेहमान थी... रेमो गा रहे थे… नाच रहे थे… और वो सब जैसे मेरे लिये….मै उस रात दुनिया की सबसे खूबसूरत और खुबनसीब औरत थी… खुले आसमान के नीचे,,, तारों  भरी रातों में हवा में एक मदहोशी भरी महक  थी… उस रात जैसे मुझे और कुछ नहीं चाहिए था..

रात के दो बजे तक शो चला. शो के बाद हमने साथ डिनर किया … एक बहुत अच्छे मेजवान की तरह रेमो ने  मेरा का ख्याल रखा… कितनी-कितनी बातें…. उनकी बातों से लग रहा रहा था कि  वो अपनी माँ से सबसे ज्यादा करीब हैं, बात-बात पर माँ का ज़िक्र ले आते, अचानक मैंने उनसे पूछा being a singer which is your favourite song?   He smiled and said- ” I always like romantic song, my favourite song is – ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… ‘  बातों -बातों में  कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला.. सुबह ८ बजे की उनकी flight थी. उन्हें एअरपोर्ट छोड़ा और घर आ गई. कुछ ही देर में उनका मैसेज आया- ‘I’m about to fly. take care.’
मेरे लिये सबकुछ एक सुंदर सपने जैसा था. इनता बड़ा कलाकार और इतना सहज…

कुछ दिनों बाद जो आर्टिकल छपा था उसका एक हज़ार का चेक आया… उन्ही दिनों ‘वेलेंटाईन डे 14 फेब” आने वाला था… मै उन पैसों से अपने लिये कुछ ऐसा खरीदना चाहती थी,  जो मेरे लिये हमेशा के लिये यादगार रहे. मेरी तमन्ना थी की मेरा ‘बॉय फ्रेंड’ मुझे साडी गिफ्ट करे,  क्यूंकि कभी किसी ने नहीं किया… तो मैंने नल्ली (साडी की मशहूर दुकान) वहाँ से लाल बाडर की साडी खरीदी…..
आज भी वो साडी मेरे पास है और जब मै वो साडी पहनती हूँ तो लगता है- लाल, लाल, लाल, जग दिखे है मोहे लाल, लाल….

‘कुछ हवादिस पे निस्बते इश्क की नहीं मौकूफ, उम्र भर इक मुलाक़ात  चली जाती है’. – मीर*

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ISSN 2394-093X
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