ऐ साधारण लड़की ! क्यों चुनी तुमने मौत !!

संजीव चंदन

सोचता हूँ , क्यों जरूरी हैं तुम्हारे इस मृत्यु के चुनाव पर लिखना, तब –जबकि भारत में 19 से 49 की उम्र तक की महिलाओं की आत्महत्या का दर पिछले वर्षों में बेतहाशा बढ़ा है- 1990 से 2010 तक के उपलब्ध आंकड़े में 126% इजाफ़ा हुआ है, महिलाओं की आत्महत्या के मामले में. कभी महिलाओं की मौत के कारणों में सबसे बड़ा कारण मातृत्व के दौरान मौत हुआ करती थी, जो इन आंकड़ों के साथ आत्महत्या में तब्दिल हो गई है . महिलाओं की आत्महत्याओं में से 56% आत्महत्याएं 15 से 29 के आयु वर्ग के बीच है – तुम भी उनमें से एक हो प्रत्युषा ! अभी दो –चार दिन पहले ही तो एक दलित लडकी की संदेहास्पद मौत को आत्महत्या बताया गया है – कितने कारणों से मरती हैं लडकियां !

प्रत्युषा बनर्जी बिग बॉस में

ये आंकड़े जिन वर्षों के हैं, उन्हीं वर्षों में तो तुम्हारी इंडस्ट्री भी खडी हुई है. 90 का शुरुआती दौर ही तो था, जब टी वी के पर्दे पर मजबूत मध्यवर्गीय लड़की उभरी थी –शान्ति धारावाहिक से – मंदिरा बेदी ने निभाया था तब यह चरित्र. इसी दौर में दीपिका चेखालिया को लोग घर –घर में पूजने लगे थे. स्क्रीन का ग्लैमर चरित्रों को निभाने वाली अभिनेत्रियों को ग्लैमर देने लगा था, ये अभिनेत्रियाँ तीन घंटे में दस्तक देती सिनेमाई अभिनेत्रियों से ज्यादा समय तक प्रभाव छोड़ने लगी थीं –क्योंकि ये नियमित प्रसारित धारवाहिकों के साथ घर के दैनंदिन में शामिल होने लगी थीं. तुम भी ऐसी ही एक लोकप्रिय चरित्र के उत्तर प्रसंग की तरह आई . तुम्हारे ‘ बालिका वधु’ के लीड रोल में आने के पहले अविका गौड़ इस धारावाहिक को देखने वालों के ज़ेहन में राज कर रही थी, जिसे और उसकी ‘दादी- सास’ की भूमिका निभाने वाली सुरेखा सिकरी को लोग नायिका –प्रतिनायिका की भूमिका में प्यार करने लगे थे. तुम अविका गौड़ की लोकप्रियता के उत्तर –प्रसंग के तौर पर आई और उसी लोकप्रियता पर सवार हुई.

प्रत्युषा तुम्हारा मरना किसी आत्महत्या ग्रस्त किसान के विधवा या उसकी बेटी का मरना नहीं है, न तुम्हारा मरना किसी स्टोव के फटने या पंखे पर झूलने से मरी उस वधु के मरने जैसा है , जिसकी ह्त्या और आत्महत्या के बीच महीन सी भी रेखा नहीं होती , न तुम्हारा मरना किसी खाप के डर से मरी उस लडकी की तरह है, जो पहली बार प्यार करने का साहस कर बैठती है. तुम मरी प्रसिद्धि और ग्लैमर की शिखर पर पहुँच कर. यह प्रसिद्धि और ग्लैमर तुम पर ‘ देवत्व’ आरोपित करता है -जिससे तुम और तुम्हारे प्रशंसक दोनो ही आक्रांत होते हैं , शायद इसीलिए लिख रहा हूँ तुम्हारी आत्महत्या के बाद.

अपने दोस्त के साथ

तुम बहादुर थी, साहसी भी तभी तुम मुम्बई पुलिस जैसी ताकतवर संस्था के चार अफसरों के खिलाफ बोलने की हिम्मत कर सकी कि वे तुम्हारे घर पर तुमसे बदतमीजी कर रहे थे . लेकिन क्या तुम यह सोच सकती थी कि एक और ताकतवर संस्थान, जो तुम्हारे होने को अर्थ दे रहा है , तुम्हारे साथ या तुम जैसी लड़कियों के साथ क्या सुलूक कर रहा है. वह तुम्हारे अलावा उन लाखों लड़कियों के आगे क्या स्टीरियो टाइप बना रहा है. क्या तुमने गौर किया कि 30-32 की उम्र में दादी –सास –नानी की भूमिका निभाने के लिए मजबूर की गई तुम्हारी साथी हों या 15-16 की उम्र में विवाह –ससुराल और घरेलू समीकरणों को जीते चरित्रों को जीवंत करने को मजबूर की गई तुम जैसी लडकियां स्त्रियों के लिए कौन सा आदर्श रच रही हैं. तुम यह समझ भी नहीं सकती थी कि षड्यंत्रों का घर बने वर्चुअल घरों के सदस्यों का अभिनय करने वाली तुम अभिनेत्रियाँ भी कब इन चरित्रों के मनोविज्ञान में फंसती जाती हो. मैं समझता हूँ कि 7-8 साल से लीड भूमिका करती हुई तुम भी अब सास –मां या बड़ी बहू की भूमिकाओं के लिए विवश हो जाने वाली थी, क्योंकि 15-16 की नई लड़कियों की आमद जारी है तुम्हारी इंडस्ट्री में, जो प्रेमिका और पहली मां बनने के अनुकूल उम्र की नायिकाएं होती हैं तुम्हारी इंडस्ट्री के लिए – कौमार्य का पुरुषवादी स्टीरियो टाइप बाजार और भारतीय समाज के मानस के अनुकूल जो बैठता है .

मनोविज्ञान की शिक्षिका मनीषा ठीक ही कहती हैं , दिन में 12-15 घंटे काम करते हुए ‘अच्छे –बुरे’ चरित्रों को निभाते हुए तुम लडकियां भी यथार्थ और चरित्र के अंतर में फंसती जाती हो, जो धीमे अवसाद की ओर धकेलता है तुम्हें. खोने –पाने ,रिश्तों के बनने और उसके छूटने के खौफ में जीना ही तुम लड़कियों का रूटीन बन जाता है – न समाज की सुरक्षा और न कोई आधुनिक मूल्य- शेष रह जाता है खोने –पाने की जद्दोजहद. तुम न पहली लडकी हो इस इंडस्ट्री में , जिसने यह कदम उठाया और दुखद है कि अंतिम भी नहीं होओगी. ज्यादा दिन नहीं हुए, जब जिया खान की आत्महत्या ने झकझोरा था लोगों को, सवाल छोड़े थे, लेकिन जल्द ही जिया खान भी भूला दी गई और भूला दिये गये वे सवाल !

शांति धारवाहिक में मंदिरा बेदी

ऐ साधारण लड़की ! क्यों चुनी तुमने मौत !! मौत का तुम्हारा असामयिक चयन तुम्हारी इंडस्ट्री को थोड़ी देर ठहरकर तुम्हारे बारे में या तुम जैसे दूसरी कलाकारों के बारे में सोचने के लिए विवश करेगा क्या- जिसके लिए हर चरित्र ‘ माल’ है, बाजार की टी आर पी के लिए ! क्या यह इंडस्ट्री यह सोचने के लिए दो पल रुकेगी कि तुम जैसी किशोर लड़कियों ( जब तुम आई थी बालिकावधु के लिए पहली बार ,तब तुम्हारी उम्र बमुश्किल 17 साल थी ) को कैसे ग्लैमर और अवसाद एक साथ देती है यह इंडस्ट्री – जिन्हें ड्रग्स, नाईट क्लब और बनते-बिगड़ते रिश्तों का रूटीन ही जीवन की हकीकत से दिखते हैं. सोच और व्यक्तिव दोनो को स्टीरियो टाइप करती है यह इंडस्ट्री !

प्रत्युषा मैंने भी बहुत देखा  है ‘बालिका वधु’- सास – बहु के ड्रामे में तब्दील होने के पहले तक और देखा है तुम्हें बिग बॉस में अति साधारण लडकी की तरह- हालांकि सचेत थी तुम कैमरों से, लेकिन बहन तुम जैसी कितनी प्रत्युषायें देखते हैं हम, अपने छोटे शहरों में , जो देख रही हैं सपने, तुम्हारी इंस्ट्री के ग्लैमर से आकर्षित और फरेब, झूठ तथा उन्माद से अनजान !

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