आरक्षण के भीतर आरक्षण : क्यों नहीं सुनी गई आवाजें : छठी क़िस्त

 महिला आरक्षण को लेकर संसद के दोनो सदनों में कई बार प्रस्ताव
लाये गये. 1996 से 2016 तक, 20 सालों में महिला आरक्षण बिल पास होना संभव
नहीं हो पाया है. एक बार तो यह राज्यसभा में पास भी हो गया, लेकिन लोकसभा
में नहीं हो सका. सदन के पटल पर बिल की प्रतियां फाड़ी गई, इस या उस प्रकार
से बिल रोका गया. संसद के दोनो सदनों में इस बिल को लेकर हुई बहसों को हम
स्त्रीकाल के पाठकों के लिए क्रमशः प्रकाशित करेंगे. पहली क़िस्त  में
संयुक्त  मोर्चा सरकार  के  द्वारा  1996 में   पहली बार प्रस्तुत  विधेयक
के  दौरान  हुई  बहस . पहली ही  बहस  से  संसद  में  विधेयक  की
प्रतियां  छीने  जाने  , फाड़े  जाने  की  शुरुआत  हो  गई थी . इसके  तुरत
बाद  1997 में  शरद  यादव  ने  ‘कोटा  विद  इन  कोटा’  की   सबसे  खराब
पैरवी  की . उन्होंने  कहा  कि ‘ क्या  आपको  लगता  है  कि ये  पर -कटी ,
बाल -कटी  महिलायें  हमारी  महिलाओं  की  बात  कर  सकेंगी ! ‘ हालांकि
पहली   ही  बार  उमा भारती  ने  इस  स्टैंड  की  बेहतरीन  पैरवी  की  थी.
अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद पूजा सिंह और श्रीप्रकाश ने किया है. 

संपादक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सौंवी वर्षगांठ ( 8 मार्च 2010) 

 सतीश चन्द्र मिश्र (उत्तर प्रदेश) : माननीय सभापति महोदय, हम लोग बहुजन समाज पार्टी  की तरफ से आपके समक्ष यह रखना चाहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी  की हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एक महिला हैं और बहुजन समाज पार्टी  महिला आरक्षण के पक्ष में है.बहुजन समाज पार्टी  का यह मत है कि अगर महिलाएं पचास फीसदी हैं, तो 33 फीसदी reservation क्यों  किया जा रहा है? महिलाओं के लिए पचास फीसदी आरक्षण होना
चाहिए. महिलाओं के अनुपात को देखते हुए 33 फीसदी reservation  की बात करके महिलाओं के साथ discrimination करने की बात इस बिल में कही गई है, जो कि बहुत ही अफसोस की बात है.अगर आप बराबरी पर लाना चाहते हैं, तो जो उनका अनुपात है, उसके हिसाब से बराबरी पर लाना चाहिए, पचास प्रतिशत के हिसाब से लाना चाहिए.इसके अलावा इस बिल के संबंध में हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने माननीय प्रधान मंत्री जी को एक पत्र लिखकर यह बात कही कि महिला आरक्षण पर जो बिल आया है, उसमें कुछ कमियां हैं.इसलिए इन कमियों  को पहले दूर करना चाहिए और तब इस बिल को यहां पर पेश करना चाहिए.इस तरीके से बिल को नहीं लाना चाहिए. जो कमियां इंगित की गई हैं, उन कमियों  के बारे में मैं बताना चाहूंगा कि महिला आरक्षण में आप किन महिलाओं के लिए आरक्षण करना चाहते हैं? महिलाओं को आप आरक्षण इसलिए देना चाहते हैं कि जो महिलाएं socially, educationally, economically backward हैं, जिनको आगे आने का मौका नहीं दिया जाता है, उस वर्ग के लोगों  को आगे आने का मौका दिया जाए.ऐसी महिलाओं को opportunity मिले और वह संसद में भी आ करके और विधान सभा में अपने पचास प्रतिशत अनुपात के साथ में अपनी भागीदारी कर सके.ऐसी महिलाएं कहां पर हैं ? ऐसी महिलाएं दलित वर्ग में, Scheduled Castes, Scheduled Tribes, OBC, Backward Class और Minorities में हैं, जिनको कि मौका नहीं मिला है और सवर्ण  जाति में भी जो महिलाएं educationally backward हैं, economically backward हैं, ऐसी महिलाओं को आगे आने की opportunity मिलनी चाहिए.अगर आप reservation कर रहे हैं, तो उनके लिए भी आपको फिक्स करना चाहिए कि आपको भी पूरा मौका मिलेगा और आपके लिए भी हम इंतजाम कर रहे हैं कि आप भी सामने आएं.लेकिन इसकी जगह आपने इसमें जो reservation किया है,

जैसा कि श्रीमती जयन्ती नटराजन जी कह रही थी और श्री अरुण जेटली जी कह रहे थे कि इसमें Scheduled Castes, Scheduled Tribes के reservation को लेकर विरोध हो रहा है.यह गलत है.मैं आप लोगों  को बताना चाहता हूँ कि इस बिल में जो reservation किया गया है, आपने इसमें कोई extra चीज नहीं दे दी है कि जो आप बताना चाहते हैं कि Scheduled Castes, Scheduled Tribes को दे दिए हैं.उनके
लिए जो reservation है, वह reservation तो जो पूरी सीटें हैं, उनके हिसाब से आपने पहले से कर रखा है.अब आप क्या करने जा रहे हैं ? उन्हीं में से काट कर इस बिल के तहत Scheduled Castes, Scheduled Tribes वर्ग को reservation यहां पर देंगे, तो जो इस category के लोगों  का main reservation है, उसको कम करके यहां पर देने जा रहे हैं, जिसका कि हम विरोध कर रहे हैं.हमारा यह कहना है और हमारी पार्टी  की यह मांग है, हमारी पार्टी  ने माननीय प्रधान मंत्री जी को एक पत्र भी लिखा है, उसमें भी इस बात को लिखा है कि उनको जो reservation दिया जाए, इस वर्ग की जो महिलाएंहैं, Scheduled Castes, Scheduled Tribes, economically और socially backward class की जो महिलाएं हैं और Upper castes तथा Minorities में भी जो इस category में आते हैं, उनके लिए आप reservation अलग से, जो category 33 percent आप अगर दे रहे हैं, हमारी मांग है कि आप पचास प्रतिशत दीजिए, लेकिन इसके तहत आप इनके लिए जो reservation करें, तो जो मुख्य reservation
पहले से है, उसमें से काट कर के reservation नहीं दें.आपको वह reservation बरकरार रखना चाहिए.अगर आप उसमें से काट कर दे रहे हैं, तो कोई खैरात नहीं दे रहे हैं, बल्कि इस वर्ग के लोगों  को पीछे ढकेलने का काम कर रहे हैं.डा. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, जो कि संविधान के जन्मदाता हैं और जिन्होंने संविधान को बनाने में बहुत योगदान दिया, उन्होंने  right of equality का अधिकार संविधान में दिया है, आपने अच्छा व्यवहार उनके साथ नहीं किया है.ठीक है, आप दलितों के उत्थान के लिए नहीं चाहते हैं.आपने इतने वर्षों में दलितों का उत्थान नहीं किया है, उनको पीछे ढकेलने का काम किया है.Backward Class के लोगों  को पीछे ढकेलने का काम किया है.डा. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जैसे व्यक्ति को भी “भारत रत्न” पाने के लिए कितने वर्ष लग गए.1990 में जब कांग्रेस पार्टी  सरकार में नहीं थी, तब जाकर उनको “भारत रत्न” मिल पाया.इस बात का सबको ळान है कि दलितों के लिए कितना प्रेम है.लेकिन इस बिल के साथ में लाकर आपने अपना यह व्यवहार और उजागर कर दिया है.

 सतीश चन्द्र मिश्र (क्रमागत) : आपने यह दिखाया है कि जब इन महिलाओं को आप अलग से रिजर्वेशन नहीं देंगे, तो इस तरह से इनको आप आगे नहीं बढ़ने देंगे.बिल में आप कह रहे हैं कि हम रोटेशन करेंगे, पांच साल में आप रोटेट कर देंगे.आप एक महिला को जिस constituency में पांच वर्ष के लिए काम करने का मौका देंगे, उसको पहले ही दिन बता देंगे कि आप पांच साल के बाद इस constituency में काम नहीं कर सकती हैं और आप सिर्फ  पांच साल के लिए यहां पर हैं.इससे यह होगा कि वे पहले ही दिन अपनी क्षमता से कमज़ोर हो जाएंगी.इस तरह से इस बिल में एक नहीं, अनेकों खामियां हैं, लेकिन जल्दी में आप बिल ला रहे हैं. आप बिल ला सकते थे, बिल लाने से पहले इन चीजों  को देख सकते थे.पिछली बार भी जब बिल लाने की बात हुई थी, ऐसा नहीं है कि हम लोग यह बात कोई आज ही कह रहे हैं या बहुजन समाज पार्टी  पहली बार ऐसी बात कह रही है, इसके पहले भी जब आप  यह बिल लाए थे, तब बहुजन समाज पार्टी  ने आपके सामने यह बात रखी थी कि आप इनको 33 प्रतिशत आरक्षण दीजिए.अगर आप 33 प्रतिशत ही आरक्षण लाना चाहते हैं, 50 प्रतिशत देने की मंशा अगर आपकी नहीं है, तो 33 प्रतिशत में आप Scheduled Castes, Scheduled Tribes, Backward classes, minorities और upper castes की महिलाएं, जो educationally backward हैं, economically backward हैं, उनके लिए आरक्षण घोषित कीजिए और जब आरक्षण घोषित कीजिए, तो हमारा जो main आरक्षण Scheduled Castes and Scheduled Tribes का है, उसको disturb नहीं कीजिए, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया.इसके बावजूद भी आपने ऐसे बिल को यहां पर पेश करने का काम किया, जिस बिल में इस तरह का प्रावधान किया गया है कि आकर्षित  category की जो महिलाएं हैं, उनको आगे बढ़ने का मौका देने की जगह आप लिमिटेड लोगों  को, ऐसे लोगों को, जो इस category में नहीं आते हैं, उनको आगे बढ़ाने के लिए आप इस बिल को पेश कर रहे हैं.

अत: हमारी यह मांग है कि इस बिल पर वोटिंग कराने से पहले या इसे पास कराने से पहले आप इसको दोबारा देखें.दोबारा देखकर इसमें संशोधन लाएं और संशोधन लाने के बाद आप इस बिल को दोबारा पेश करें, तब हम आपको पूरा समर्थन देंगे, लेकिन अगर आप इसको यहां पर इस तरीके से नहीं लाते हैं या आप ये अमेंडमेंट्स नहीं लाते हैं और रिजर्वेशन के नाम पर यह जो दलित विरोधी बिल आप लाए हैं, अगर आप इसको वोटिंग के लिए भी पेश करते हैं, तो बहुजन समाज पार्टी  इसका विरोध करेगी, क्यों कि इसमें आपने आरक्षण में minorities का विरोध किया है, आपने उनका ध्यान नहीं रखा है, आपने Scheduled Castes and Scheduled
Tribes का ध्यान नहीं रखा है, आपने Backward Class का ध्यान नहीं रखा है.जिन लोगों  को आगे बढ़ना चाहिए, उनको आगे बढ़ने का मौका न मिले और जहां पर वे हैं, उससे और पीछे उनको धकेल दें, इस तरह की आपकी मंशा है, इसलिए मैं माननीय प्रधान मंत्री जी से आग्रह करूंगा…. जैसे कि हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भी पत्र लिखकर आपसे मांग की थी, मैं दोबारा मांग करूंगा कि आप इस बिल को दोबारा देखें और देखने के बाद इन चीजों  पर गौर करके, इस बिल को संशोधित करके, दोबारा से House में रखें, तब बहुजन समाज पार्टी  आपका पूरा समर्थन करेगी, वरना बहुजन समाज पार्टी  इस बिल का इस condition में समर्थन नहीं करेगी.


डॉ. वी. मैत्रेयन (तमिलनाडु): श्रीमान सभापति महोदय, मेरी पार्टी, अन्नाद्रमुक, और मेरी पार्टी की महासचिव, डॉ. पुरात्ची थलैवी की ओर से, हमारा महिला आरक्षण बिल के लिए पूरा समर्थन है.कल एक ऐतिहासिक दिन था.लेकिन कम से कम, आज इतिहास बन रहा है.पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था, “इतिहास को घटते हुए देखना अच्छां है, लेकिन इतिहास का एक हिस्सा भी होना बेहतर है।” और,  जब आज इस ऐतिहासिक विधेयक को पारित होने के दौरान जो इतिहास बन रहा है, उस इतिहास का एक हिस्सा होने पर हमें गर्व है.महोदय, कल और आज हुई विभिन्न घटनाओं का साक्षी होने का हमें खेद है, और मैं, मेरी पार्टी की ओर से,  ईमानदारी से जो कुछ भी हुआ है, उसके लिए सभापति से माफी माँगता हूँ.मुझे याद करते हुए प्रसन्नकता हो रही है कि जब 1998-99 में एनडीए शासन के दौरान अन्नाद्रमुक केन्द्र सरकार का एक हिस्सा थी,  मेरे पार्टी सहयोगी, डॉ थाम्बी दुरई को, जो तब केंद्रीय कानून मंत्री थे, महिला आरक्षण विधेयक का मार्ग प्रशस्त  करने का एक अवसर मिला था.सभापति महोदय, जब भारत को आजादी मिली थी, पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में लोग एक अकेले और विलक्षण मुद्दे पर दंग रह गए थे, वह सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मुद्दा था.कई लोगों का मानना था कि जब लोकतंत्र वहाँ iपैदा हो रहा था, तब पश्चिमी देशों ने भी महिलाओं को सार्वभौम वयस्क मताधिकार नहीं दिया था.वहाँ महिलाओं को वोट देने और अपनी पसंद की स्वतंत्रता को व्यक्त करने पर पर प्रतिबंध था.ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और यहां तक कि अमेरिका में भी केवल 20वीं सदी की दूसरी छमाही में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर अपने फैसले को नरम करने और उलटने में सफल हुए.

डॉ. वी. मैत्रेयन (जारी): तो,  कोई आश्चर्य नहीं है कि महिलाओं के प्रति भेदभाव के लगभग किसी भी चर्चा के बिना भारतीय संविधान के संस्थापकों द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार लागू करने से विश्व  अचंभित रह गया था.भारत वह प्राचीन देश है जिसने स्त्री-संबंधी देवत्व और स्त्रियों में देवत्व को स्वीकार किया है.जाहिर तौर पर अलग-अलग मुद्दे होने के बावजूद ये दोनों अवधारणाएं जटिल रूप से आपस में गुंथी हुई हैं और एक-दूसरे से ‘सिम्बियॉटिकली’ जुड़ी हैं.जहां तक इन अवधारणाओं का संबंध है, पश्चिमी सभ्यता अब भी अपने निर्माण के प्रारंभिक वर्षों में है.इसलिए एक भारतीय पुरुष के लिए मातृ-शक्ति की ताकत को स्वीकारना सहज बात है, जबकि पश्चिमी देशों के पुरुष इसे स्वीकारने में शर्म महसूस करते हैं.इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि we celebrate Indian women and they celebrate and worship women. और यह विचार जातियों और समुदायों से परे सारे भारत में मौजूद है, जो आधुनिक भारत में सबसे धर्मनिरपेक्ष विचार है.साठ के दशक के बीच में, जब पंडित जी और लाल बहादुर शास्त्रीजी का काफी जल्दी एक के बाद एक निधन हो गया, देश के नेतृत्व का भार इंदिरा गांधी पर पड़ा था.शायद कुछ एशियाई देशों के अपवाद को छोड़कर, पश्चिम देशों सहित दुनिया का बाकी हिस्सा हैरान था.कारण था कि कैसे एक औरत को एक देश का नेतृत्व कर सकती है, वह भी तब जब वह देश भारत जैसा विशाल और जटिल और घुमावदार हो.लेकिन, इंदिरा गांधी ने न केवल भारत को सोलह वर्षों तक नेतृत्वि दिया,  बल्कि कई बार वैश्विैक ताकत के सामने डटी रहीं जो केवल एक भारतीय महिला ही कर सकती थी.

बांग्लादेश के सृजन की कठिन घड़ी में अमेरिका को करारा जवाब देना कौन भूल सकता है ?  कोई आश्चर्य नहीं कि श्री वाजपेयी जी ने इंदिरा जी की बराबरी माता दुर्गा से की थी.भारतीय महिलाओं द्वारा राजनीतिक नेतृत्व संभालने की समृद्ध परंपरा तब से जारी है.मेरी नेता, डॉ. पुरात्ची थलैवी दक्षिण की सबसे कद्दावर महिला नेता हैं.इसी तरह, कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख राजनीतिक दल हैं जिनका नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं.केवल यही नहीं है कि महिलाएं राजनीतिक परिदृश्य पर हावी हैं.कई महिलाएं हैं जो साहित्य, कला, फिल्म, विज्ञान, खेल में भी हावी हैं और वे क्या नहीं कर रही हैं.इस महान अवसर पर, मेरी पार्टी, और मेरी पार्टी की महासचिव डॉ पुरात्ची थलैवी की ओर से, मैं सभी महिलाओं को सलाम करता हूं जिन्होंरने भारत को गौरवान्वित किया है.जहां हम भारतीय महिलाओं की कीर्ति का जश्न मनाते हैं, वहीं भारतीय महिलाओं का एक वर्ग ऐसा है जो अप्रशंसित, अस्वीतकृत और अचर्चित है.यह भारतीय गृहिणी है.यह इस औरत की ताकत है कि भारत में हर घर को संचालित करती है.घर के वित्त को संभालने में उसकी निपुणता भारत सरकार के सभी वित्त मंत्रियों की क्षमता से अधिक है.सभी बाधाओं को झेलते हुए, उसने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय परिवारों की व्यवहारिकता एवं जीवनशक्ति भारत की सरकार से कहीं अधिक है. आज भारतीय घरेलू बचत जीडीपी की लगभग 37 प्रतिशत है.आज भारतीय घरेलू बचत भारतीय निवेश की आवश्यकता का लगभग 90 प्रतिशत उपलब्ध  कराता है, जिससे दरअसल भारत की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर निर्भरता अपने सभी अन्य समकक्ष देशों की तुलना में कम है.यह भारतीय परिवारों के प्रबंधन के प्रति भारतीय गृहिणी के जन्मजात अनुशासन की वजह से संभव हुआ है.


पश्चिमी देश गहरे आर्थिक संकट में हैं और वित्तीय संकट में भी है.और इसका कारण है कि जहां पश्चिमी देशों ने ने अपनी महिलाओं को मुक्त किया है,  वहीं महिलाओं ने खुद को परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त किया है.कुल परिणाम यह हुआ है कि खर्च बहुत है, जबकि बचत बहुत ही कम या नहीं के बराबर  है.इसके विपरीत,  हो सकता है कि भारतीय महिलाएं शब्द  के असल अर्थ के अनुसार आजाद नहीं हों, पर उन्हों ने अपने पश्चिमी समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक जिम्मेदारी, गरिमा और अनुशासन बनाये रखा है.संक्षेप में, अधिकार के बजाय उसे सम्मान प्रदान कर समाज में महिलाओं के लिए स्थान संरक्षण का भारतीय मॉडल ही हमारे समाज और पश्चिमी समाज के बीच एकमात्र अंतर है.यह इसलिए अवलंबी है कि हम इनका संरक्षण महिलाओं के अधिकार के रूप में नहीं, बल्कि  पिछले पांच हजार वर्ष के दर्ज इतिहास में भारतीय महिलाओं द्वारा हमारे देश के विकास में  योगदान करने के लिए समाज द्वारा सम्मान के चिह्न के रूप में जारी रखें.राजनीति में जेंडर समानता की जरूरत को महसूस करते हुए डॉ. पुरात्ची थलैवी के नेतृत्वम में अन्नाद्रमुक ने 1990 के दशक में ही महिलाओं के लिए पार्टी के सभी पदों का 33% आरक्षित करके एक अग्रणी भूमिका निभाई.जब मैडम तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थी तब कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए पहली बार क्रेडल बेबी स्कीम 1990 के दशक में शुरू की गई थी, जिसके तहत राज्य ने परित्यक्त  शिशु कन्याओं  को अपनाया था.डॉ. पुरात्ची थलैवी  के नेतृत्वन में ही 1992 में तमिलनाडु में विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ होने वाले हमलों, खासतौर घरेलू हिंसा, से संबंधित मामलों को संभालने के लिए सभी महिला पुलिस थाने बनाये गए थे।

डॉ. वी. मैत्रेयन (जारी): उन्होंने ही केवल महिलाओं वाले एक विशेष कमांडर बटालियन का गठन किया था.उन्होने महिला की मातृ भूमिका को यथोचित कानूनी मान्यता प्रदान की, जिसके लिए उन्होंने पिता के नाम के बजाय या उसके साथ में किसी के मां के नाम के आद्याक्षर को वैध बनाने के लिए नियम बनाया.फिर, पुरात्ची थलैवी ने महिलाओं को आर्थिक रूप से मुक्त बनाने के लिए महिला स्वयं-सहायता समूहों के विकास को प्रोत्साहन प्रदान किया गया.

सभापति: कृपया समाप्त करे.

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महिला संगठनों, आंदोलनों ने महिला आरक्षण बिल को ज़िंदा रखा है : वृंदा कारत: पांचवी  क़िस्त

डॉ. वी. मैत्रेयन (जारी): पुरात्ची थलैवी के नेतृत्व  में हमारी पार्टी ने 2009 में संसदीय चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में,  लोकसभा चुनावों में 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए एक  प्रावधान रखा.हम दोहराते हैं कि यह भारत की महिलाओं को प्रदत्त कोई अधिकार नहीं है;  बल्कि दरअसल यह इस तथ्य स्वीहकार्यता है कि भारत स्त्रीवाची है, उसकी अर्थव्यवस्था स्त्रीवाची है, और उसकी आत्मा स्त्रीवाची है.यह भारत की महिलाओं इस महान देश के लोगों द्वारा दी गई एक छोटा-सी श्रद्धांजलि है.इस हद तक, अन्नाद्रमुक पूरे दिल से इस विधेयक का समर्थन करती है.


शिवानन्द तिवारी (बिहार) : सभापति महोदय, मैं जनता दल यूनाइटेड की ओर से इस वूमेन रिजर्वेशन बिल के समर्थन में खड़ा हुआ हूं.सभापति महोदय, हमको इस बात का फख्र  है कि बिहार में नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में हमारी जो सरकार है, वह सरकार चल रही है.वह पहली ऐसी सरकार है जिसने औरतों को 50 परसेंट आरक्षण देने का काम किया है.मुझको इस बात की भी खुशी है कि उसका अनुकरण न सिर्फ कई राज्य सरकारें कर रही हैं, बल्कि केन्द्र सरकार ने भी पंचायती राज में 33 परसेंट आरक्षण को 50 परसेंट करने का निर्णय लिया है.हम लोगों  को इस बात की खुशी है. उपसभापति महोदय, हम लोग आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग काफी दिनों से करते आए हैं और उसके पीछे हमारा एक तर्क रहा है.आप जानते हैं कि हमारे देश में जाति व्यवस्था वाला समाज है और पैदाइश के आधार पर गैर-बराबरी को हमारे समाज में लम्बे समय से मान्यता रही है.उसी का परिणाम है कि 1952 में जो पहला चुनाव हुआ, आपने देखा होगा लोक सभा में जो ओ0बी0सी0 है, जो पिछड़ी जातियां हैं, उनका प्रतिनिधित्व मात्र 12 प्रतिशत था, ऐसे हिन्दू बैल्ट से 64 प्रतिशत ऊंची जाति के लोग लोक सभा में जीतकर आते थे, यह स्तिथि  थी.लेकिन वोट की राजनीति ने इस स्तिथि  को बदला और धीरे-धीरे जो अति पिछड़ी जातियां जिनकी तादाद ज्यादा थी, जिनकी संख्या ज्यादा थी, उनका प्रतिनिधित्व लोक सभा में बढ़ने लगा.आपको जानकर खुशी होगी कि 1977 में जब पहली दफे कांग्रेस की सरकार दिल्ली से हटी उसके बाद ऊंची जातियों का प्रतिनिधित्व घटा और पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व लोक सभा में बढ़ा.आज यह हालत है कि लोकसभा में 30 प्रतिशत से ज्यादा ओ0बी0सी0 के सदस्य उपसि्थत हैं.यह वहां सि्थति है.ऊंची जाति के लोग जो वहां 64 परसेंट से ऊपर सिर्फ हिन्दी बैल्ट से आते थे,

आज उनकी तादाद 33 परसेंट और उससे भी कम हो  गई है.यही हाल सारे राज्यों  में हुआ है.हमको लगता है कि शायद हिन्दुस्तान में एकमात्र पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है, जो उल्टी दिशा में चल रहा है.1972 से 1996 के बीच में अगर आप वेस्ट बंगाल असेंबली के सोशल कम्पोजिशन को देखेंगे तो वहां 38 परसेंट से 50 परसेंट तक ऊंची जाति के लोगों का रिजर्वेशन हो गया है.बाकी राज्यों में ऊंची जाति का रिप्रजेंटेशन घट रहा है लेकिन पश्चिम बंगाल में जहां 30 वर्ष  तक क्रांतिकारी सरकार रही है, वहां पिछड़ी जातियों  की तादाद घटी है और 50 फीसदी ऊंची जातियों  का वहां प्रतिनिधित्व हो गया है.यही नहीं, उपसभापति महोदय, जो वहां का मंत्रीमंडल है, उस मंत्रीमंडल में भी देखिएगा कि 50 परसेंट से अधिक लोग वे सिर्फ एक ही बिरादरी, वैध बिरादरी, ब्राह्मण बिरादरी, कायस्थ बिरादरी इन दो-तीन बिरादरियों में से हैं.यह फेक्च्युअल स्तिथि  है.आरक्षण के भीतर आरक्षण हम अब भी चाहते हैं, लेकिन किस का? ओ0बी0सी0 एक बहुत बड़ा तबका है और ओ0बी0सी0 में ऐसी-ऐसी जातियां हैं, एक तो जिनका संख्याबल ज्यादा है, जिनको हम मिडिल कॉस्ट कहते हैं और ऐसी भी जातियां हैं जो छोटी-छोटी संख्याओं में, अनेकों जातियों में बंटी हुई हैं, वे चुनाव लड़ नहीं पाती हैं.हमको इस बात का फख्र है कि बिहार में हमारी सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था में नगर निकायों में जिनको एक्सट्रीमली बैकवॉर्ड कहा जाता है, अति पिछड़ी जातियों  में कहा जाता है, उनको हम लोगों ने आरक्षण दिया.

 शिवानन्द तिवारी (क्रमागत) : इस आरक्षण का यह नतीजा निकला कि हमारे यहां समाज का लोकतान्त्रिकरण हुआ और जो हमारा उग्रवाद है, वह इसकी वजह से कमजोर हुआ.हमारे यहां जो उग्रवाद था, हम लोगों ने उसकी रीढ़ को भी कमजोर किया.जो उग्रवाद का सामाजिक आधार था, जहां से उनको ताकत मिलती थी, उस ताकत को हम लोगों  ने कमजोर किया.हमारे यहां ऐसी-ऐसी जातियों  के लोग प्रमुख बने हैं, जिला परिषद् के अध्यक्ष बने हैं, जो वार्ड का चुनाव लड़ने के लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. हम यह चाहते थे कि ऐसी जातियों  को चिन्हित  किया जाता और उनको इस आरक्षण में जगह दी जाती. मैं एक गंभीर और महत्वपूर्ण  बात और कहना चाहता हूं, यहां पर प्रधान मंत्री जी मौजूद हैं, उनके सामने कहना चाहता हूं.मैंने कई मुसलमान साथियों से बात की है और मैं आपको ईमानदारी के साथ कहना चाहता हूं कि उनके मन में इस बात की आशंका है कि आज का जो लोकतंत्र है, इस लोकतंत्र में, आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है.लोक सभा में मुसि्लम समाज के 27 या 28 लोग हैं और 2001 की जनगणना के अनुसार उनकी आबादी 13.4 है. उनके 60 या 62 प्रतिनिधि होने चाहिए थे, जबकि वे कुल 27 या 28 हैं.उनको इस बात की आशंका है कि यह जो महिलाओं का आरक्षण होगा, तो उसमें करीब 279 या 280 जनरल सीट लड़ने के लिए होंगे.उनका यह कहना है कि हमारे मर्द तो जीत नहीं पाते हैं.हमारे यहां मुस्लिम  महिलाएं कितनी हैं, तो इससे हमारी तादाद और घट जाएगी.उनमें एक प्रकार से अलगाव की भावना पैदा हो रही है.आपको याद होगा pre independence era में जब यह सवाल उठा था कि इस तरह का लोकतंत्र आएगा, वोट का राज होगा तो बहुमत में हिन्दू हैं, हम मुसलमान माइनोरिटी में हैं, हमको हमारा हिस्सा नहीं मिल पाएगा.यह जो उनके मन में आशंका थी, उस समय उस आशंका को देश का नेतृत्व निर्मूल नहीं कर पाया, उसका नतीजा हुआ कि देश का विभाजन हुआ.देश के विभाजन के बाद भी संविधान सभा बैठी हुई थी, उस संविधान सभा में कुछ मुस्लिम  प्रतिनिधियों  ने इसको उठाया था कि जिस तरह से अंग्रेजों के समय में एक मुसलमानों का सेप्रेट इलेक्ट्रोरल था, वह आजादी के बाद भी उनको मिले.आप उस Constituent Assembly की डिबेट को पढ़िए प्रधान मंत्री जी, आप तो बड़े विद्वान आदमी
हैं.आपने पढ़ा होगा कि किस तरह से धमकी देकर मुसलमानों को चुप करा दिया गया.उनके मन में जो आशंका है, उस आशंका को निकालने का इंतजाम भी आपको करना पड़ेगा, नहीं तो देश का जो वातावरण है, इतनी ज्यादा आबादी, 13.6 प्रतिशत आबादी, इस आबादी की मन में आशंका हो कि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है, हमको इन्साफ नहीं मिल रहा है, तो यह देश के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होगा…(समय की घंटी).. इसलिए मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप इस बात को भी ध्यान में रखेंगे.रंगनाथ मिश्र कमेटी ने, जो मुसलमानों में दलित जातियां हैं, उनको भी हिन्दू दलित जातियों के समान आरक्षण देने की बात कही है.आज जो शैड्यूल्ड कास्ट का रिजर्वेशन  असेम्बली और पार्लियामेंट में है, उसका लाभ मुस्लिम  तबके के कुछ समाज को मिल सकता था..(समय की घंटी).. ये जो आशंकाएं हैं, इन आशंकाओं को आपने दूर किया होता, इन आशंकाओं को आपने इस बिल में दूर किया होता, तो यह बिल ज्यादा बेहतर बनता.मैं एक अंतिम बात कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा.हमारे साथी विरोधी दल के नेता,  अरुण जेटली जी ने कहा कि बेहतर है, सबसे बेहतर है कि आप जो आरक्षण देने जा रहे हैं, इस आरक्षण के बारे में ऐसा कानून बनाइए कि पॉलिटिकल पार्टियों  के लिए कम्पलसरी हो जाए कि 33 परसेंट उम्मीदवार वे महिलाओं को बनाएं. ये जो आप रोटेशनवाइज सीटें रिजर्व करने जा रहे हैं, पंचायतों में हमने इसको रोटेशनवाइज किया था, उसका परिणाम बहुत अच्छा नहीं आया, उसको हम लोगों  को बदलना होगा.



उपसभापति  : तिवारी जी, आप समाप्त कीजिए.श्री तारिक अनवर .

श्री शिवानन्द तिवारी : इसलिए बेहतर होगा, ज्यादा उम्मीदवार महिलाएं बन पाएंगी, अगर आप इलेक्शन लॉ में परिवर्तन करके पार्टियों  के ऊपर बंदिश लगा दें कि हर पार्टी  को 33 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाओं को बनाना होगा.मैं उम्मीद करता हूं कि यह जो सुझाव आया है, उस सुझाव को आप इस बिल में इनकारपोरेट करेंगे, ताकि सब लोग उत्साह के साथ इस बिल का समर्थन कर सकें.इसी के साथ इस बिल का समर्थन करते हुए, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं.
क्रमशः

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