सारे दल साथ -साथ फिर भी महिला आरक्षण बिल औंधे मुंह : क़िस्त सात

महिला आरक्षण को लेकर संसद के दोनो सदनों में कई बार प्रस्ताव लाये गये. 1996 से 2016 तक, 20 सालों में महिला आरक्षण बिल पास होना संभव नहीं हो पाया है. एक बार तो यह राज्यसभा में पास भी हो गया, लेकिन लोकसभा में नहीं हो सका. सदन के पटल पर बिल की प्रतियां फाड़ी गई, इस या उस प्रकार  से बिल रोका गया. संसद के दोनो सदनों में इस बिल को लेकर हुई बहसों को हम स्त्रीकाल के पाठकों के लिए क्रमशः प्रकाशित करेंगे. पहली क़िस्त  में  संयुक्त  मोर्चा सरकार  के  द्वारा  1996 में   पहली बार प्रस्तुत  विधेयक  के  दौरान  हुई  बहस . पहली ही  बहस  से  संसद  में  विधेयक  की  प्रतियां  छीने  जाने  , फाड़े  जाने  की  शुरुआत  हो  गई थी . इसके  तुरत  बाद  1997 में  शरद  यादव  ने  ‘कोटा  विद  इन  कोटा’  की   सबसे  खराब  पैरवी  की . उन्होंने  कहा  कि ‘ क्या  आपको  लगता  है  कि ये  पर -कटी , बाल -कटी  महिलायें  हमारी  महिलाओं  की  बात  कर  सकेंगी ! ‘ हालांकि  पहली   ही  बार  उमा भारती  ने  इस  स्टैंड  की  बेहतरीन  पैरवी  की  थी.  अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद पूजा सिंह और श्रीप्रकाश ने किया है. 
संपादक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सौंवी वर्षगांठ ( 8 मार्च 2010) 




तारिक अनवर (महाराष्ट्र) : उपसभापति महोदय, मैं अपनी पार्टी  एन0सी0पी0 की ओर से इस ऐतिहासिक संशोधन बिल के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं. उपसभापति महोदय, आजादी के बाद लम्बा समय बीत जाने के बाद, लगभग 63 वर्ष बीत जाने के बाद आज यह संशोधन हम करने जा रहे हैं.

 तारिक अनवर (क्रमागत) : ..लेकिन देर आए, दुरुस्त आए. कहावत है कि जब आंख खुले, तभी सवेरा है. मैं समझता हूं कि महिलाओं को उनका यह राजनीतिक अधिकार मिलना चाहिए था. देर से ही सही, लेकिन आज हम इस फैसले पर, नतीजे पर पहुंचे हैं. जहां तक पंचायती राज की बात कही गई, यह बात सही है कि हमारे पास एक उदाहरण है कि जब पंचायती राज में महिलाओं को आरक्षण दिया गया, तो जो महिलाएं अपने आपको यह महसूस करती थी कि उनको समाज में, देश की राजनीति में, देश की सत्ता में भागीदारी नहीं मिल रही है, उन्होंने  उस आरक्षण का लाभ उठाया. उन्होंने हमारे पंचायती राज में, लोकल बॉडीज में, जिला परिषद में जिस प्रकार से नेतृत्व संभाला और धीरे-धीरे अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, उससे यह सिद्ध होता है कि उनके अंदर वह क्षमता है,  वह सलाहियत मौजूद है. बार-बार यह जो कहा जाता है कि राजनीति औरतों के बस की बात नहीं है, मैं समझता हूं कि वह बात बहुत पुरानी हो चुकी है. यह बात सही है कि हमारी आबादी की लगभग पचास प्रतिशत आबादी महिलाएं हैं. जब तक इन पचास प्रतिशत महिलाओं को देश की राजनीति में और देश की सत्ता में भागीदारी नहीं देंगे, तब तक एक मजबूत भारत का, एक शक्तिशाली भारत का हमारा जो सपना है, वह सपना साकार नहीं हो सकता है. जब तक देश की मुख्यधारा से इस पचास प्रतिशत आबादी को नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक यह संभव नहीं है. मुझे खुशी है कि आज हम यह फैसला ले रहे हैं, यह ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रहे हैं. अच्छा यह होता कि यह बिल आम सहमति से पास किया जाता, लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ राजनीतिक दलों  ने अपना मन बना लिया था कि हम इस बिल का विरोध करेंगे. यहां तर्क दिया गया, बहुत तरह की बातें कही गई, पिछड़े वर्ग और ओ.बी.सी. की बात कही गई, अल्पसंख्यक समुदाय की बात कही गई, लेकिन जहां तक मैं समझता हूं, मुझे लगता है कि इसके पीछे उनकी नीयत साफ नहीं थी. वे उसमें सिर्फ अपना राजनीतिक लाभ देख रहे थे, वे पोलिटिकल कैपिटल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वृंदा जी ने ठीक कहा कि यह महिलाओं का सवाल है. उन्होंने  आंकड़े बताए कि पंचायती राज और लोकल बॉडीज में जो इलेक्शन हुए, उसमें पिछड़े वर्ग, ओ.बी.सी. और अल्पसंख्यक समुदाय की जो महिलाएं हैं, उसमें उनकी भागीदारी आई है और इससे यह सिद्ध होता है कि अगर उनको मौका मिलेगा तो वे यकीनन आगे आएंगी. राजनीतिक दलों  का काम यह है कि उनको प्रोत्साहित करें – अल्पसंख्यक की बात ठीक है, हमारे यहां मुसि्लम समुदाय में पर्दा सिस्टम है, लेकिन उसके बावजूद आज मुस्लिम महिलाएं आगे आ रही हैं.

आज तमाम राजनीतिक दल उनकी तरफदारी की बात कर रहे हैं, अगर सही मायनों में उनको प्रतिनिधित्व दिया जाए, तो मैं समझता हूं कि वे आगे आएंगी. जो ओ.बी.सी. की बात कर रहे हैं, जो अल्पसंख्यक समुदाय की बात कर रहे हैं, ये सभी वे राजनीतिक दल हैं, जो किसी न किसी रूप में सत्ता में रहे हैं, ये दल राज्यों  में सत्ता में रहे हैं. जब उनको सत्ता भोगने का मौका मिला, तब उनको ध्यान नहीं आया कि इस सेक्शन के लोगों को आगे बढ़ाया जाए, उनको मौका दिया जाए. वे परिवारवाद से ग्रस्त हैं. वे उससे ऊपर कभी भी नहीं उठ पाए, लेकिन आज बड़ी-बड़ी बातें और सिद्धांतों की बात कर रहे हैं. मैं यह बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है. उपसभापति महोदय, मैं इतना ही चाहूंगा कि आने वाले समय में यह बिल सही मायनों में हमारे लिए, हमारे समाज के लिए और देश के लिए बहुत ही लाभदायक होगा. एक लंबे समय से महिलाओं का जो शोषण हो रहा था, उनका राजनीतिक शोषण हो रहा था, इसके जरिए उनको उससे निजात मिलेगी और आने वाले समय में भारत की जो तस्वीर है, वह उभरकर सामने आएगी. हम दुनिया को यह बता सकेंगे भारत हिंदुस्तान और हिंदुस्तान की महिलाओं को बराबरी से देखता हैं और उनको वे तमाम अधिकार प्राप्त हैं, जो यहां पर पुरुषों को प्राप्त हैं. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं इस बिल का समर्थन करता हूं.

डा. नजमा ए. हेपतुल्ला: जिसमें अलग-अलग वर्गों  और मजहबों के लोग आते हैं, रिप्रेजेंटेटिव आते हैं, जो इस अज़ीम हिन्दुस्तान की democracy को represent करते हैं, उसमें मुझे भी हक़ है कि मैं जिस जगह चाहूँ, रहूँ. चाहे मैं लोक सभा में जीत कर आना चाहूँ, चाहे राज्य सभा में रहूँ. सर, यह तो सरकार को पता है कि भारतीय जनता पार्टी  की यह commitment है कि हम इस बिल का समर्थन करने जा रहे थे, मगर हमारी यह एक मांग थी कि जब हम बिल का समर्थन करें तो मुल्क को यह मालूम होना चाहिए कि जो एक तब्दीली  न सिर्फ लोक सभा में आ रही है, एक silent revolution, जो पंचायत बिल से हमारे देश में आया, उससे एक मिलियन महिलाएँ इस सत्ता में भागीदार हुई. हम यह क्यों चाहते हैं? इसकी क्या वजह है? चूँकि मैं उस कमेटी की मैम्बर थी और नाच्चीयप्पन साहब उसके चेयरमैन थे, वहाँ इस पर बड़े विस्तार से चर्चा हुई कि कोई और तरीका क्यों  इस्तेमाल नहीं किया गया, 33 परसेंट रिजर्वेशन की बात क्यों हुई, क्यों कि हमें थोड़ी सी जगह देने में तकलीफ हो रही थी. आप तो दे देते हैं.


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महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस :पहली   क़िस्त

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महिला संगठनों, आंदोलनों ने महिला आरक्षण बिल को ज़िंदा रखा है : वृंदा कारत: पांचवी  क़िस्त



 उपसभापति: मैं दे देता हूँ ?

डा. नजमा ए. हेपतुल्ला: आप दे देते हैं. आपसे शिकायत नहीं है. शिकायत तो किन्हीं और लोगों से है. सर, तीन बार सुषमा स्वराज जी ने कोशिश की, मगर उस वक्त किसी ने सपोर्ट करने के लिए वहाँ से हाथ नहीं बढ़ाया. प्रधान मंत्री जी आप यहाँ बैठे हैं. आप यहाँ भी बैठते थे. आपको मालूम है कि उस वक्त भी अगर आप सपोर्ट करते तो यह बिल पास हो जाता… अटल बिहारी वाजपेयी जी ने यह बात कही थी और जो कल मैंने प्रेस में दोहरायी कि यहाँ सवाल नम्बरों का नहीं है, नम्बर तो लेफ्ट के भी थे और हमारे भी थे, सवाल नीति और नियम
का था. आज हमारी नीयत भी साफ है और हमारी नीति भी साफ है.  सर, मैं बाहर सुन रही थी. प्रेस के बहुत से लोग बात कर रहे थे. हो सकता है कि यह बिल पास होने के बाद महिलाओं की वह importance प्रेस के लिए कल यकीनन खत्म हो जाए, मगर हमारी पार्टी  के लिए खत्म नहीं होगी. सर, ये बड़ी-बड़ी बातें कही जा रही थीं कि बीजेपी इसके खिलाफ है, बीजेपी इसको लाना नहीं चाहती, क्यों कि बीजेपी ने इसमें अब discussion का अड़ंगा लगा दिया है. सर, यह बात सही है. हमारी जो चीफ व्हीप हैं, जब वह गुरुवार को गयी थीं , उसी वक्त यह तय हो गया था कि आपने इसके लिए चार घंटे तय किए हैं. इस पर discussion की मांग तो हमारी शुरू से ही थी. हम चाहते थे कि लोगों को, इस मुल्क को, इस मुल्क के बाहर के लोगों को मालूम हो कि हम क्यों  इसे सपोर्ट करना चाहते हैं. हम चाहते थे कि महिलाओं को आप खुद ही दिल बड़ा करके दे देते. जब आपने नहीं दिया, तब हमने यह किया.

डा0 नजमा ए0 हेपतुल्ला (क्रमागत) : मैं एक और बात यहां कहूंगी. हिस्ट्री है, सर.1996 में यह रेज़ोल्यूशन यहां हाऊस में पास हुआ, फिर इलेक्शन हुए तो सबने अपने मेनिफेस्टो में बड़े जोर-शोर से लिख दिया कि महिलाओं को सत्ता में भागीदारी देंगे. उस वक्त देवेगौड़ा जी जीतकर आ गए. 1997 में इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की कांफ्रेंस हुई, towards partnership between men and women, वहां संगमा जी ने और मैंने यह बात रखी, देवेगौड़ा जी सत्ता में थे, देवेगौड़ा जी से कहा, तो देवेगौड़ा जी ने हां भर ली, मगर बिल लाने की हिम्मत नहीं हुई. बिल आया और गीता मुखर्जी कमिटी में गया फिर, हिस्ट्री है. सर, आज हम पंचायत की बात करते हैं, जो हमने बिल पास किया, मुझे याद है कि वह बिल रात के 12:00 बजे इसी हाऊस में तीन वोटों से डिफीट हुआ था. फिर दोबारा वह बिल लाया गया, दो-तीन साल के गैप के बाद, तब वह बिल पास हुआ. तो महिलाओं को देते वक्त थोड़ा दुख होता है. मैं समझती हूं. वह बिल यूनेनिमस यूं पास हो गया कि कहीं हिन्दुस्तान के किसी और इलाके में एक मिलियन महिलाएं एक मिलियन पुरुषों की सीटों पर कब्ज़ा करने वाली थीं , मगर यहां लोकसभा में जो उंगली बटन दबा रही है, उसे यह नहीं मालूम कि कल यहां मेरी यह उंगली रहेगी या कहीं बाहर चली जाएगी. सिर्फ यही बात है और कोई बात नहीं है. सर, दुनिया में सब जगह महिलाओं का मूवमेंट है, वहां Women’s movement will be led by women, लेकिन हिन्दुस्तान में, इस मुल्क की हिस्ट्री है कि हमारे जितने बड़े लोग हुए हैं, चाहे वे राजा राम मोहन राय हुए हों , चाहे ज्योतिबा फूले हों , चाहे महर्षि करवे हों , चाहे बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर हों, जिन्होंने कांसि्टटयूशन बनाया, उन लोगों  ने यह काम किया. कांसि्टटयूशन की कापी मेरे पास रखी है, चाहे आप इसके पि्रएम्बल में कहें, चाहे उसके डायरेक्टिव प्रिंसिपल में कहें, चाहे फंडामेंटल राइट्स में कहें, महिला को सबसे पहले वोट देने का हक जिस दिन हिन्दुस्तान के संविधान ने दिया, उसी दिन महिला को शक्ति मिल गई थी कि वह अपने प्रतिनिधि चुन सकती है और प्रतिनिधि बन सकती है.


सवाल हमारा सिर्फ यह था कि किस हद तक वह महिला प्रतिनिधि बन सकती है. क्या हमारी भागीदारी नहीं है? वृंदा जी बड़ा अच्छा बोलीं, अरुण जेटली जी ने बड़े विस्तार से इसके कांसि्टटयूशनल और रोटेशन के बारे में जो बात बताई, मैं उसके ऊपर कोई चर्चा नहीं करुंगी, मेरी पार्टी  के पास समय बहुत कम है. मैं केवल दो चीजें बाकी कहना चाहती हूं कि आपने पॉलिटिकल इम्पावरमेंट दिया है, अभी देने की बात कर रहे हैं, दिया नहीं है. यहां से तो हम पास करके भेज देंगे. सर, आपको याद होगा, प्राइम मिनिस्टर साहब, मैं बार-बार कहती थी चेयरमैन साहब के चैम्बर में, गुलाम नबी जी आप भी उस समय पार्लियामेंट्री आपरेटर  मिनिस्टर थे, प्रमोद महाजन से भी मैं कहती थी कि राज्य सभा में बिल लाओ, बिल पास कर देंगे, क्योंकि राज्य सभा में कोई समस्या अगर होगी भी तो थोड़ी-बहुत होगी. आज, सर, मुझे थोड़ा दुख हुआ. हमने इस हाऊस में पहली बार ऐसा सीन देखा. पिछले तीस सालों से, जब से मैं इस हाऊस की मैम्बर हूं, जिसमें से 17 साल मैंने उस कुर्सी पर गुजारे हैं, मुझे दुख हुआ चेयर के साथ जो बदतमीज़ी की गई, चेयर की शान में जो कुछ हरकतें हुईं, मुझे अच्छा नहीं लगा. मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ. चेयर के साथ जो हुआ उसके लिए सारा हाऊस मेरे साथ शामिल होगा माफी मांगने के लिए, हम सब माफी मांगते हैं. मगर, सर, चेयर का दिल बड़ा होना चाहिए, चेयर का दिल छोटा नहीं होना चाहिए. आप बड़ी ऊंची कुर्सी पर बैठे हैं, कोई छोटे दिल के नहीं हैं. आज जिन लोगों को पकड़-पकड़ कर, उठाकर ले जाया गया, मैंने आज तक इस हाऊस में 100-150 लोगों को इस तरह हमला करते हुए नहीं देखा. मुझे खराब लगा. मैं आपसे यह बात अपनी पूरी जिम्मेदारी से कह रही हूं कि हमारे पूरे इंडिया के लोग जो देख रहे हैं, वे भी देखते हैं कि आज जो कुछ हुआ, वह डेमोक्रेसी नहीं है.


 तारिक अनवर : उपाय क्या है?

डा0 नजमा ए0 हेपतुल्ला : उपाय निकलते हैं, तारिक अनवर साहब, उपाय निकलते हैं.

एक माननीय सदस्य : उनको बुलाकर बात करनी चाहिए थी.

डा0  नजमा ए0 हेपतुल्ला : हां, मैंने बताया था, बात करनी चाहिए थी, सरकार को डिस्कस करना चाहिए था, सरकार को फ्लोर मैनेजमेंट करना चाहिए था. ऐसा नहीं है कि किसी चीज का हल नहीं निकलता. उनका भी हक है बोलने का. मुझे मालूम है, सर, आपके चेहरे पर खुशी नहीं थी. मैंने डिप्टी चेयरमैन साहब का चेहरा देखा है, वे बहुत दुखी थे, वे मना करना चाह रहे थे.

 डा.  नजमा ए. हेपतुल्ला (क्रमागत) : वे मना करना चाह रहे थे, अगर उनका हुक्म चलता, तो वे कभी भी ऐसा नहीं करने देते … सर, आप अपनी सीट पर बैठे थे, देखिए, प्रधान मंत्री जी भी नहीं चाह रहे थे  मुझे यकीन है कि प्रधान मंत्री जी, आपको भी अच्छा नहीं लगा, क्यों कि आप डेमोक्रेसी को मानते हैं, हम भी जनतंत्र को मानते हैं, हम यह नहीं चाहते कि बिल सिर्फ आपको सत्ता में भागीदारी मिल रही है, झगड़ा करने से कोई फायदा नहीं है … यह अच्छा नहीं हुआ, कोई भी तारीफ नहीं करेगा, जो हुआ, अच्छा नहीं हुआ. आप खुश हैं, कल आपके साथ भी यह हो सकता है …. उपसभापति जी, हम Institution को बरबाद नहीं कर सकते, Institution को कायम रखना हमारा फर्ज है. सबसे पहले उन्हें भी ध्यान रखना चाहिए था, उन्हें एक हद तक ही बोलना चाहिए था. उन्हें अपनी बात बोलने का हक है, चिल्लाने-चीखने और तोड़-फोड़ करने का अधिकार उन्हें नहीं है. मैं उनके बर्ताव को कंडम करती हूं, लेकिन हमें भी दिल बड़ा रखना चाहिए. आज अगर वे भी यहां आकर बोलते, वे आकर अपना dissent बताते कि क्या problem है, तो इससे क्या फर्क पड़ जाता

उपसभापति : नजमा जी, अब आप समाप्त कीजिए.

डा. नजमा ए. हेपतुल्ला : सर, आप फिक्र मत कीजिए, मेरी पार्टी  का समय अभी बाकी है. आप क्यों दिल छोटा कर रहे हैं, मैं दिल बड़ा करने की बात कर रही हूं. मेरा तो चिल्ला-चिल्लाकर गला दुख गया. मैं इस दु:ख के साथ इस बिल का पूरा समर्थन करती हूं. मुझे इस बात की खुशी है कि यह बिल आया और हमारी पूरी पार्टी  इस बिल के ऊपर आपके साथ है, महिलाओं के साथ है, क्योंकि अगर आप एक अच्छा काम कर रहे हैं, जो हम भी करना चाहते थे, ये कह रहे हैं कि आपने उस समय हमारा साथ नहीं दिया …. लेकिन आज हम आपका साथ दे रहे हैं, आपके पास मैजोरिटी नहीं है, फिर भी हम आपको सपोर्ट कर रहे हैं. उपसभापति जी, आपने मुझे इस बिल पर बोलने का मौका दिया, इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

डा. प्रभा ठाकुर (राजस्थान) : उपसभापति जी, मैं इस महिला आरक्षण विधेयक के समर्थन में बहुत खुशी से अपनी ओर से, सदन की सभी महिलाओं की ओर से, हमारे तमाम उन भाइयों की ओर से जो इस बिल को समर्थन दे रहे हैं, पूरे देश की जनता की ओर से, जिसमें सि्त्रयां और पुरुष दोनों शामिल हैं, अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए इस ऐतिहासिक बिल के संबंध में अपने कुछ विचार आज यहां रख रही हूं. उपसभापति जी, आज जब यह विधेयक यहां पारित होने जा रहा है, तब इस अवसर पर मैं स्वर्गीय प्रधान मंत्री, श्री राजीव गांधी जी का स्मरण किए बिना नहीं रह सकती. यह उनकी परिकल्पना थी. वे स्वयं पुरुष थे, लेकिन उनके मन में महिलाओं के प्रति करुणा थी और उन्होंने महसूस किया कि इस देश की सि्त्रयों  को राजनीतिक हक और राजनीतिक अधिकार तब तक नहीं मिल सकता, जब तक कि आरक्षण जैसी कोई व्यवस्था नहीं हो जाती. उनकी इसी सोच के तहत कांग्रेस सरकार के समय में पंचायतों में हमारी बहनों को 33 फीसदी आरक्षण मिला, नगर निगमों और निकायों में भी हमारी बहनों को 33 प्रतिशत आरक्षण मिला. मेरी बहन नजमा जी अभी कह रही थी कि राजीव जी की सरकार के समय में यह विधेयक प्रस्तुत हुआ था और केवल 2 वोटों से गिर गया था, मैं उनसे सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि उस समय कौन लोग थे, जो इसका विरोध कर रहे थे और वे किस तरफ थीं , किन लोगों के विरोध के कारण उस समय यह विधेयक गिरा था? आज खुशी की बात है कि देर आयद दुरुस्त आयद, आप लोगों  ने यह महसूस किया कि महिलाओं के सशक्तीकरण के बिना, महिलाओं को समर्थन दिए बिना, आपका आपके घर में भी गुज़ारा नहीं होने वाला है. इसलिए मैं श्रीमती सोनिया गांधी जी, उनकी इच्छा शक्ति को, UPA सरकार को और हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी को बधाई देती हूं कि  उन्होंने परमाणु करार जैसी दृढ़ता दिखाई. अगर वे इतनी दृढ़ता नहीं दिखाते, इतनी प्रतिबद्धता नहीं दिखाते, तो मैं नहीं समझाती कि किसी भी सरकार के समय में यह ऐतिहासिक आरक्षण विधेयक इस संसद का मुंह तक देख पाता और पारित हो पाता.

डा. प्रभा ठाकुर (क्रमागत) : लोग तो दिखा नहीं पाते हैं, बहुत कुछ करते हैं, जनता सब जानती है और मीडिया भी सब समझता है. असलियत सब जानते हैं और जो लोग कह रहे हैं कि मुस्लिम  समाज और ओबीसी समाज की महिलाओं को नहीं मिलेगा. मैं भी ओबीसी समाज से आती हूँ. राज्य सभा में मेरी पार्टी ने मुझे लिया, किसी पूंजीपति को नहीं लिया. जो उधर बैठ कर बातें करते हैं, उनमें से कितने लोगों को राज्य सभा में लेकर आए, कितनी मुस्लिम समाज की हमारी बहनों को, कितनी ओबीसी समाज की हमारी बहनों को लेकर आए? उस समय उन्हें बड़े नामी-गिरामी लोग, बड़ी हसि्तयां या बड़े पूंजीपति लोग याद आते हैं. जो इस तरह की बात करते हैं, मैं उनसे हाथ जोड़ कर कहना चाहती हूँ कि देश की बहनों और इस समाज को गुमराह मत कीजिए. आप चाहें तो 33 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी की बहनों को टिकट दे सकते हैं, Minorities की मुस्लिम समाज की बहनों को टिकट दे सकते हैं. जब यह विधेयक पारित होगा, तब देश की बहनें देखेंगी कि आखिर आपकी कितनी इच्छा शक्ति है. कितनेमुस्लिम समाज की बहनों को और कितनी ओबीसी समाज की बहनों को आप उस समय टिकट देते हैं. उस समय यह मत कीजिएगा कि उन समाजों  के नाम पर अपने ही घर की बहन, बेटियां, बहू और बीवी नजर आए. उस समय यह जरूर देख लीजिएगा. इस पर भी देश की नजर रहेगी. मैं इस सरकार को बधाई देते हुए अंत में यही कहना चाहती हूँ कि जिन सबने ने समर्थन दिया है ..(व्यवधान).. कल जो यहां पर हंगामा हुआ, जिस तरह से सभापति जी के आसन का अपमान किया गया, हम उसका तहे दिल से निंदा करते हैं.राज्य सभा जैसे सदन में इस तरह के उत्पात होते रहेंगे. आगे भविष्य के लिए अनुशासन बनाए रखने के लिए

यह कार्रवाई जरूरी था. हमारे साथियों  द्वारा यह कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया गया, तब यह कार्रवाई की गई. हम निंदा करते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में कोई अपना विरोध प्रकट करने के लिए इस हद तक अनुशासनहीनता नहीं करेगा और हम सदन की गरिमा को बनाए रखेंगे. मैं महिला शक्ति को नमन करते हुए, पूरी देश की महिलाओं को नमन करते हुए, श्रीमती सोनिया जी को नमन करते हुए कहना चाहती हूँ कि “हम उबलते हैं, तो भूचाल उबल जाते हैं, हम मचलते हैं, तूफान मचल जाते हैं.
हमको कोशिश न रोकने की करे अब कोई,
हम जो चलते हैं, तो इतिहास बदल जाते हैं.”
अब नया इतिहास इस देश में यह यूपीए सरकार ने बनाया है. यह प्रधान मंत्री जी की देन है, यह कांग्रेस सरकार की देन है. यह बात पूरा देश जानता है और आप भी जानते हैं. जो पचास फीसदी की बात कह रहे थे, उनसे कहना है कि साथियो, हम इस सरकार में पंचायतों और नगर निगमों  में आरक्षण को 33 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी तक ले गए हैं और एक बार प्रक्रिया शुरू हुई है, अब
देखिए, आगे, आगे होता है क्या. धन्यवाद.
क्रमशः

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ISSN 2394-093X
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