स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन ने बताया कि ‘नागपुर सम्मलेन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि महिलाओं ने तब राजनीतिक आरक्षण की मांग की थी, और इसलिए भी कि उनके प्रस्ताव काफी क्रांतिकारी और स्पष्ट थे, जबकि 1975 में जारी ‘ टुवर्ड्स इक्वलिटी रिपोर्ट’, जो सातवें-आठवें दशक में महिला आन्दोलन का संदर्भ बना, राजनीतिक अधिकारों को लेकर उतना स्पष्ट नहीं था. इसलिए आज हमने महिला आरक्षण पर भी बातचीत रखी है.’ महिला आरक्षण पर सत्र में दलित अधिकार आन्दोलन की संयोजकों में से एक और लेखिका रजनीतिलक ने कहा कि ‘महिलाओं के लिए सारे अधिकार समानुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ होने चाहिए.’ राष्ट्रीय महिला महिला आयोग की सदस्य सुषमा साहू ने कहा कि ‘महिला आरक्षण के लिए हम बाहर की महिलाओं से ज्यादा संसद में बैठी महिलाओं को पहल लेनी चाहिए. उन्होंने महिलाओं को महिलाओं के शोषण में न शामिल होने का भी आह्वान किया.’ स्त्रीवादी न्यायविद और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद जैन ने कहा कि ‘जबतक 25 लाख महिलायें संसद को घेरकर बैठ नहीं जायेंगी, तब तक महिला आरक्षण संभव नहीं है. जो हालात है उससे लगता है कि महिला आरक्षण और समान आचार संहिता पास होने में 100 साल लग जायेंगे.’ दलित और महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली लेखिका कौशल पंवार ने कहा कि ‘हमें स्वाती सिंह जैसी महिलाओं से भी समस्या है, जो बेटी की सम्मान में अभियान चलाती है और अपनी ही भाभी, जो किसी की बेटी है की प्रताड़ना में शामिल पाई जाती है.’ दलित एवं महिला अधिकार के लिए काम करने वाली लेखिका विमल थोराट ने कहा कि ऐसे महिला आयोग को बंद हो जाना चाहिए, जो महिला आरक्षण को अपना विषय नहीं मानता और दलित महिलाओं के उत्पीड़न पर एक नोटिस तक जारी नहीं करता – महिला आयोग को ताला लगा देना चाहिए. सत्र की अध्यक्षता करते हुए नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इन्डियन वीमेन की महासचिव एनी राजा ने कहा कि ‘ महिला आयोग जैसी संस्थाओं को यह स्पष्ट करना चाहिए कि महिला आरक्षण पर उनकी क्या पोजीशन है. उन्होने कहा कि महिला आरक्षण के पिछले दो दशकों से संसद में पेंडिंग होने की वजह संसद का पितृसत्ताक नियन्त्रण में होना है.’