वे तीन दलित बेटियां :कर्मशील भारती की कविता

कर्मशील भारती

अध्यक्ष दलित लेखक संघ.दो कविता संग्रह प्रकाशित. 1.कलम को दर्द कहने दो 2.दलित मंजरी संपर्क :9968297866
bhartikaramsheel355@gmail.com

एक दलित मोहल्ले से
मात्र तीन दलित बेटियां ही पाठशाला जाती थी
मोहल्ले के और बच्चे/बच्चियों में से
कुछ बच्चे कूड़ा बीनने
कुछ मौहला कमाने
कुछ बच्चे, छोटे बच्चों की देखभाल
घर पर रहकर ही करते थे.
इन बेटियों को
प्रतिदिन पाठशाला जाते देख
इनके मां-बाप को
इतना तो संतोष हो ही गया था कि
उनके बच्चे पढ़ लिख रहे हैं
हमारी तरह से
झाड़ू तो नहीं लगायेंगे
किसी के घर/सडकों पर
मैला तो नहीं उठायेंगे
गांव में/शहरों में
उन्हे इतना विशवास तो
हो चला था कि
एक दिन उनके बच्चे
अवश्य ही बड़े आदमी बनेंगे
तब जा कर ही शायद हमें
इस नरक से मुक्ति मिल पायेगी?

मयूनिस्पल्टी के उस पाठशाला में
सफाई कर्मचारी
जो टी.वी. का मरीज था
पाठशाला कभी आता था
कभी नहीं…

श्रीमती निर्मला जैन
उस पाठशाला की प्रधान अध्यापिका हैं
अपने कार्यालय में
आकर बैठी ही थी कि
‘मैडम पाठशाला के शौचालय
आज भी गन्दे पड़े हैं
कब तक चलेगा ऐसे?
आखिर कुछ तो करो?
मैडम, कुछ तो ख्याल करो
हम ब्राहमणों की पवित्रता का’
सुश्री शान्ति शर्मा ने
अपना ब्राह्मणत्व दिखाते हुए
श्रीमती निर्मला जैन के सामने
कुर्सी पर बैठते हुए
ये शब्द कहे!
बात को आगे बढ़ाते हुए
एक सुझाव भी दे डाला
वे जो तीन दलित लड़कियां हैं
हमारे पाठशाला में
जिनका पैतृक काम ही है

मैला उठाना और शौचालय
साफ करना?
बस उन्हें बुलाकर
डराओ-धमकाओ और
किसी तरह से
इस काम को करवाओ?!!
सुनते ही श्रीमती निर्मला जैन के
लालपीले चेहरे का रंग
एकदम साफ़ हो गया था
उसके चेहरे पर खुशी फिर से लौट आई
उसे इस पहाड़ जैसी समस्या का
एक निश्चित उपचार मिल गया था
उसने तुरंत कॉल बेल दबाई
चपरासी भागा-भागा कमरे में आया
उसने आदेश दिया कि
सुश्री शान्ति मैडम की क्लास से
कमला, विमला और पायल को
तुरंत मेरे पास बुलाओ
फिर दोनों बातो में लग गई….

थोड़ी देर बाद
वो तीनों दलित बच्चियां
श्रीमती निर्मला जैन के कार्यालय में पहुंची
तीनों सहमी-सहमी थी,
देखते ही श्रीमती जैन
एकदम बरस पड़ी उनपर
तुम पढ़ लिख कर क्या करोगी??
निकम्मी कहीं की!
मेरी पाठशाला पर कलंक हो तुम!
इस बदनामी से अच्छा है
तुम्हारा नाम ही काट दूं!
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!
उन तीनों दलित बच्चियों को
जैसे बिजली का करंट लगा हो
वो सदमें में पड़ गई!
एकदम से डर गई
वे  समझ ही नहीं पाई
इस षडयंत्र को
निर्दोष होकर भी वे
जातिवादी साजिश में
एक अपराधी की तरह कांप रही थी
तीनों  रोने और गिड़गिड़ाने लगी
श्रीमती निर्मला जैन के पैरों पर
गिरकर, कहने लगी

मैम…. हमारा नाम मत काटो
हमें मत निकालों अपनी पाठशाला से
श्रीमती जैन और सुश्री शर्मा का
शौचालय का समाधान मिल गया था
दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था
आंखो में खुशी की चमक थी
इनके द्वारा बिछाये जाल में
फंस गई थीं  तीनों दलित बच्चियां.
श्रीमती जैन ने तुरंत आदेश दे डाला
तुम तीनों बारी-बारी से
हमारे पाठशाला के शौचालय
साफ़ करोगी.
इस धमकी भरे आदेश के साथ ही
एक हिदायत भी दे डाली
“कान खोल कर सुन लो”
ये बात तुमने किसी को भी बताई
चाहे वो तुम्हारे मां-बाप
रिश्तेदार ही क्यों न हो
तो उसी दिन ‘तुम्हारा नाम’
‘मैं’ अपनी पाठशाला से काट दूंगी!!!
फिर तुम कहीं भी नहीं
पढ़ पाओगी
यह बात ध्यान रहे!
चलो अब दफा हो जाओ
यहां से….
मेरा मुंह क्या देख रही हो?

वे  तीनों दलित बेटियां
दिन-दहाड़े राह में लुटे हुए
राहगीर की तरह
लुटी-पिटी-आंखों में आंसू लिए हुए
चल पड़ी..
उस गंदगी से गिजबिजाते
शौचालयों की ओर….
हिचकियां लेती….

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ISSN 2394-093X
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