रंजनाशरण की कविताएँ

रंजनाशरण


कवयित्री,नागपुर विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में इंग्लिश पढ़ती है . संपर्क :9371131735

तानतानी के फूल

सूरज निकलने के पहले ही
घुंघलके में वह जागती है
और तेज कदमों से बढ़ती है
उन बंगलो की ओर
जहाँ जूठेबर्तन, झाडू और बासी बिखरा रसोई घर
उसका इन्तजार कर रहे होते है
हाँ! वह जिन्दा है
हल्के बैंगनी और गहरे पीले
तानतानी के फूलों की तरह
जो सूखी पथरीली मिट्टी के फैलाव में
खिलते रहते हैं:
कंटीली झाडियों
और भूरी पत्तियों का
एक बेजान विस्तार
उसकेअन्दर छिपे हुए कुछ रहस्य
जीभ लपलपाते हुए
बाहर निकलना चाहते हैं
उसकी इच्छा के विरूध्द.
परन्तु जल्दी ही
वे मुँह की अलमारी में
कैद हो जाते है.
आदिम प्रजाति की श्यामला
काले संगमरमर की एक मूर्ति
दो सुडौल गोलों ने उसे बना दिया है
एक जिन्दाऔरत !
अन्तःपुर की मद्धिम रोशनी में
न जाने कितनी बार उसे
बनाया और तोडा गया-
अपरिभाषित कमरे
लहसुनऔर तली मछलियों की
गंध से भरा रसोई घर
और विशाल वातानुकूलित बैठक
जहाँ हैसियत
लंबे काँच के गिलासों में
झाग उगलती है.
जीवन की कठिन या़त्रा के दौरान
घण्टे दिन और साल
यायावर पक्षियों की तरह
सुदूर अजनबी प्रदेश  में उड चले
अग्निपथ पर थके पाँवो की
अंतहीन यात्रा
कोई राहत नही
गर्म हवाओं से
जिन्होंने बीस सुहाने वसन्तों को
भट्ठी में झोंक दिया,
गर्मी के दिनोंऔर तूफानी रातों में
वह बन जाती थी
पेड पर अटकी

एक प्लास्टिक की पन्नी
जो हवा के तेज झोंकों से
फूलती और पचकती थी.
परन्तु आज वह स्त्री
आग और शीत के बीच
अपनी दौड को
रोक देना चाहती है;
वह अपनी दुनियां से
ऊपर की और देखती है
और पाती है
एक केसरिया आकाश
वह सुनती है
प्रभात के पद चापों को
जो तारों भरे आकाश  के
झूमरों को रौंदता हुआ
आ पहुँचता है
और बन बैठता है
प्रथम सत्र का अक्ष्यक्ष !

बौना

समय 3.45
सुबह होने से पहले
डूबते चाँद की रोशनी
उसके कमरे में
नदी की बाढ की तरह
फैल जाती है.
आधा सोया और आधा  जगा
वह आदमी सपने में बुदबुदाता है
और दाँत पीसता है-
गंगा घाट पर
एक हरा-भूरा घडियाल
अपने शिकार को पकडकर
चीर डालता है
और मरे हुए जीव को
अपनी मादा के पास
घसीटता हुआ ले जाता है

शेकू मेरे बेटे
कहाँ हो तुम ?
पापा…….पापा…….पापा……..
अपने नौ वर्ष के बेटे को
वह आदमी बचाना चाहता है
परन्तु उसेअपना कद
घटता हुआ महसुस होता है
गली वर प्रदेश  के
एक बौने की तरह

दु:स्वप्न  उसे बुरी तरह
झकझोर देता है;
पसीने से सराबोर
वह चौक कर
उठ बैठता है ;
उसे याद आता है
वह मनहूस दिन
जब उसका बेटा
अगवाकर लिया गया था-
दो नकाबपोश दिनदहाडे
उस मासूम पर
गिध्द की तरह
टूट पडे थे और दबोच कर
काले शीशेवाली गाडी में
ठूंस दिया था.
लोगों ने सुनी उसकी चीख पुकार
और मदद की गुहार,
परन्तु वे देखते रहे मौन
कुछ मजबूर थे
कुछ कौतुहल वश
तमाशा  देख रहे मौन:
गाडी चल पडी थी पूरे वेग से
और जल्दी ही आँखों  से
ओझल हो गई थी
धूल भी नही उडी
उस आदमी ने
हथियार डाल दिये-
तकदीर के आगे?
भय मे मारे ?
शहर में स्वच्छन्द धूमते
भेडिये और सियारों के भय ने
उसे बौना बना दिया
दुःख और पश्चताप से घिरा
वह अपनी खिडकी से बाहर देखता है
उसकी थैली भरआई है
वह अपने शरीर से
पीले पानी को निकालता है
और निश्चित हो
एक नींद की गोली
निगल लेता है.



आदि और अन्त  


जब रूपहली आभा ने
आकाश  का आलिंगन कर
उसे अन्धकार मुक्त किया
वह नींद से जागी ;
उस अलौकिक क्षण में
उसने देखा एक दिव्य शिशु
उसके जीवन का प्रथम और अन्तिम अक्षर !
श्वेत एवं नग्न
वह उसके वक्षस्थल के पास पडा था

शिशु को देख
भावनाएँ उमड पडीं
समुद्र तटपर
उठती लहरों की तरह
भाग्य की डोर से बंधी
उस स्त्री ने अपने अनेक शिशुओं को
उनकी शाप मुक्ति के लिए
जल में प्रवाहित कर दिया था-
भगीरथ की गंगा की तरह
परन्तु अब यह भागीरथी
शिशुओं का विछोह
नही सहन कर सकती
अन्दर की धीमी आवाज
हाहाकार बन जाती है
और वह नन्हे शिशु  को
बाहों  में समेट
अपनी छाती से चिपका लेती है:
तभी आसमान का गुलाबी पर्दा हटाकर
सूरज झाँकता है
और शाप की कालीसाया
दूर हो जाती है-
आदि  और अन्त से परे
वह पल अनन्त हो जाता है

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ISSN 2394-093X
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