बच्चन के पत्रों के बहाने उनकी स्त्रियों की याद

रविता कुमारी

हिंदी विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
हरिद्वार, उत्तराखण्ड
ईमेल: ravita_kumari@yahoo.in

स्त्री की जैविक अवधारणा को उसकी पहचान के साथ जोड़ दिया गया.भौतिक रूप में स्त्री को भले ही कोई ठोस सम्मान न प्राप्त हो पर उसे भारत में देवी बनाकर पूजा जरुर गया. वह परम्परावादी भारतीय समाज में सम्मान के बोझ तले लदी हुई कराहती रही और अप्निमुक्ति कीआकांक्षा से ग्रसित रही. पर जिस पुरुष समाज में सारे भौतिक संसाधन पुरुष के हाथ में हों वहां पर स्त्रियों के लिए समता और स्वतंत्रता की बात करना बेमानी ही होगी.मधुशाला के कवि हरिवंश राय बच्चन ने भी स्त्रियों को ध्यान में रखकर विपुल मात्रामें साहित्यिक रचनायें की हैं. अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपने जीवन में आने वाली स्त्रियों के चित्र बहुत बेबाकी से रगें हैं. स्त्री अस्मिता का गवाह उनका पूरा साहित्य है. कवितायें तो प्रभूत मात्रा में स्त्री चेतना, ममत्व, प्रेम और औदार्य को लेकर लिखी हैं उन्होंने. बच्चन के साहित्य में भी स्त्री आदर्श भारतीय नारी है जो पुरुष के संरक्षण में ढलकर खुद को मुक्त पाती है.हिंदी कविता के आकाश में बच्चन ऐसे समर्थ कवि हैं जिसने बहुत मुखर होकर स्त्रियों के सम्बन्ध में अपनी रचनायें लिखी हैं. अपने जीवन में आने वाली स्त्रियों के बारे में बहुत बेबाकी से लिखा है उन्होंने. उनका जीवन खुली किताब रहा. उन्होंने कुछ छिपाया नहीं अपितु जस का तस लिख दिया है . यहाँ हम उनके पत्रों के माध्यम से उनके जीवन आयामों को देखने का उपक्रम करते हैं.

पत्रों की दुनिया में बच्चन :


पत्रों की दुनिया एकांत और अकेलेपन की दुनिया है. इसलिए पत्र जीवन की नितांत वैक्तिक विधा है.हर व्यक्ति के पास एक धुंधले पत्र की याद है. हर आदमी के मन में एक पीला लिफाफा रखा हुआ होता है.जब तक शब्द लिफाफे में कैद है तब तक उसकी दुनिया बंधी हुई है परन्तु जैसे ही पाठक उससे मुखातिब होता है पत्र मुंह जोड़कर पाठक से बात करने लगते हैं.आज जब अभिव्यक्ति के सैकड़ो माध्यम मौजूद हैं तब शायद पत्रों की वही अहमियत नहीं रह गई है पर पत्रों का अतीत बहुत उज्ज्वल रहा है.पत्रों ने प्रेम को ही परवान नहीं चढ़ाया है उन्होंने दुनिया के बहुत सारे मसलों को भी हल कराया है. दुनिया की रीत नीत को समझने की सफल कोशिश भी की है.

पत्र किसी भी साहित्यकार की समकालीन घटनाओं,उसके विचारों, धारणाओं और मान्यताओं को जानने का प्रत्यक्ष और प्रमाणिक दस्तावेज होते हैं. बच्चन ने अपने जीवन में अपने परिचितों, पाठकों, शुभेच्छुओं,मित्रों आदि को सहस्रों असंख्य पत्र लिखे जिनमें इतना विषय वैविध्य है कि कोई भी विषय उनके पत्रों की चर्चा हुए बिना नही रह सका है. आत्मकथा,डायरी, भूमिका लेखन, लेख,कविता, लोक गीत,संस्मरण, कहानी, देश-विदेश यात्रा, पुरुस्कार,हिन्दी आन्दोलन,दर्शन, सामाजिक, राजनीतिक,पारिवारिक, फिल्म सम्बन्धी आदि ऐसे अनेक विषयों को अपने में समेटे हुए हैं. स्त्री विमर्श भी उनके पत्रों की चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. बच्चन अपने पत्रों में स्त्री सम्बन्धी अपनी मान्यताओं,धारणाओं आदि की चर्चा ही नही करते वरन् स्त्री के प्रति अपने दृष्टिकोण और विचारों को बडे़ ही स्पष्ट ढंग से व्यक्त करते हैं.

बच्चन आरम्भ से ही स्त्री के रूप-सौन्दर्य के उपासक रहे हैं. किसी भी स्त्री में बाहरी रूप से सुन्दर होने को वे सबसे अधिक महत्व देते हैं. स्त्री का शारीरिक रुप से सुन्दर होना उन्हें इस कदर भाता है कि स्त्री के अन्दर छुपी भावना ,योग्यता, क्षमता भी उसके शारीरिक रुप-सौन्दर्य से कही पीछे छूट जाती है. इन्दु जैन को 27-12-1979को लिखे पत्र में उन्होंने स्त्री  सम्बन्धी अपने दृष्टिकोण को व्याख्यायित करते हुए लिखा है-
“मैं नारी में सबसे पहली चीज सुन्दरता देखता हूँ फिर भावना-फिर योग्यता वगैरह-यानी पहले शरीर,फिर हृदय, फिर मस्तिष्क.”3

आकर्षण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. अपने से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो उसके विषय में सब कुछ जान लेने की जिज्ञासा मनुष्य में परस्पर बनी रहती है. आकर्षण के केन्द्र में रहकर काम अपनी मुख्य भूमिका निभाता है जो मनोविज्ञान का विषय होने के साथ फ्रायड और युंग के मनोविश्लेषणवादीसिद्धान्त से सम्बन्ध रखता है.

प्राचीनकाल से ही पुरूष स्त्रियों के रूप-सौन्दर्य से आकर्षित होते रहे हैं. स्त्री रूप के साधक होने के कारण बच्चन भी अपने यौवनकाल में ही कई स्त्रियों ( चम्पा ,श्यामा,प्रकाशो,तेजी) के सम्पर्क में आ गये थे. जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें उनकी आत्मकथा में मिलता है. स्त्रियों द्वारा स्वयं बच्चन को नचाये जाने के सम्बन्ध में डॉ. कमलकिशोर गोयनका की जिज्ञासा को शांत करते हुए उन्हें प्रेषित पत्र में वे अपने विचारों को वाणी देते हुए लिखते हैं-” स्त्रियों ने केवल मुझे ही नहीं नचाया गोयनका जी बहुत से लोगों को बचाया है,आपको भी नचाया होगा या नचाती होगी. सूर भी नचाया है-‘ अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल ‘- और नचाने वालों में पहला स्थान ‘काम’ को दिया. तुलसीदास कहते हैं-‘ उमा दारू योषित की नाई,  सबहिं नचाबत राम गोसाई.’ राम गोसाई खुद नचाने कहां आते हैं,वे पुरुषों को नचाने के लिए स्त्रियों को भेज देते हैं. पुराण भरे पडे़ हैं इन्द्र की भेजी स्त्रियों से जिन्होंने ऋषि- मुनियों को नचा दिया है,राजाओं, देवताओं को भी-
‘ हम लघु मानव को क्या लाज
गए मुनि – देवों के मन डोल.'”4

संसार की प्रत्येक स्त्री अपने जीवन में जन्म से ही रिश्तों में बन्ध एक साथ अनेक रूपों का निर्वाह करती है जो उसके द्वारा जिये प्रत्येक रिश्ते को एक नई पहचान एक नई परिभाषा देकर उसके व्यक्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करता है. बच्चन किसी भी स्त्री में माँ, प्रेयसी, स्वामिनी और साथ ही सेविका इन चारों रूपों के विद्यमान होने पर ही उसे पूर्ण नारी होना मानते हैं. किसी भी स्त्री के व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करने वाले इन चारों रूपों के सम्बन्ध में डॉ. कमलकिशोर गोयनका को प्रेषित पत्र में अपने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए लिखते हैं-“जीवन में परिपूर्ण नारी अपने चारों रूपों के प्रति सचेत और सन्तुलित रहेगी.मेरी दृष्टि में वे चार रूप हैं-p-10माँ के/प्रेयसी के(प्रमदा के)/स्वामिनी के/सेविका के/, पुरुष इन चारों रूपों में नारी को पाकर ही धन्य होता है,चौथाई रूप में कभी नहीं.”5 आगे वे लिखते हैं :स्त्री और पुरूष एक दूसरे के सहयोग के बिना अधूरे होते है. दोनों के परस्पर सहयोग से ही सृष्टि का निर्माण होता है. शायद अर्द्धनारीश्वर  की कल्पना भी स्त्री और पुरूष में विद्यमान इसी बराबर शक्ति,सार्मथ्य के आधर पर ही की गई है. हिन्दू धर्म के इसी अर्द्धनारीश्व्र के समान जोडे़ं की कल्पना बच्चन दाम्पत्य जीवन में करते हैं. इस सन्दर्भ में डॉ. कमलकिशोर गोयनका को प्रेषित पत्र में p-11. आदर्श जोड़ें की कल्पना करते हुए लिखते हैं-“पराशक्ति ठीक आधा पुरूष हैं,/ठीक आधा नारी है-/’त्वमेव माता च पिता त्वमेव’/समत्व का मिलन पराशक्ति में न होगा तो कहां होगा?दाम्पत्य में अगर नर-नारी ऐसे मिल सकें तो वैसा आदर्श जोड़ा कहां मिलेगा.”6

पुरूष जीवन को सन्तुलन और संतुष्टि प्रदान करने में स्त्री की मुख्य भूमिका होने को कोई नकार नही सकता. जीवन की दु:ख,वेदना, ईर्ष्या तथा विषमताओं आदि की अग्नि से त्रस्त पुरूष के लिए स्त्री एक शीतल छाया के समान होती है जहां उसे विश्राम मिलता है. स्त्री के सम्मुख सम्पूर्ण समर्पित होने से पुरूष की बडे़ से p-12  वे लिखते हैं-“उन्होंने कभी अपने अहं को मेरे अहं के समक्ष बड़ा या ऊँचा सिद्ध करने की कोशिश नहीं की. ऐसे अवसर कम नहीं है जब गलती या भूल मेरी तरफ से हुई है और कसूर उन्होंने अपना मान लिया है. वे मेरी नजर में उठ गई है और मैं स्वयं अपनी नजर में गिर गया हूँ.”9

प्रत्येक स्त्री में उसके स्वभाव, गुण, रुचियाँ,योग्यता, क्षमता आदि सभी कुछ एक दूसरे से भिन्न होती हैं. यही भिन्नता उसके व्यक्तित्व को एक अलग दिशा और पहचान देती है. बच्चन के जीवनकाल में कई स्त्रियाँ आई जो प्रत्येक अपने व्यक्तिक गुणों के कारण एक दूसरे से भिन्न थी. अपने जीवनकाल में आई बडे़ अभावों की पूर्ति भी आसानी से हो जाती है. उमाकांत मालवीय को 30-8-1960को प्रेषितपत्र में बच्चन इस तथ्य का समर्थन करते हुए लिखते हैं-“नारी के आगे सम्पूर्ण समर्पित होने से मनुष्य के किस अभाव की पूर्ति नही होती?”7बच्चन का मानना है कि-“नारी का सबसे बड़ा आकर्षण है समर्पण-और समर्पण का सबसे बड़ा गुण है कि वह समर्पित करा लेता है.”8स्त्री के इसी समर्पण भाव के आगे वे स्वयं को असहाय पाते हैं. बच्चन अपनी दूसरी पत्नी तेजी के सम्पूर्ण समर्पण भाव से अविभूत दिखाई पडते हैं. डॉ.  कमलकिशोर गोयनका को प्रेषित पत्र में तेजी के इस गुण के सन्दर्भ मेंp-13

स्त्रियों को वे उनके व्यक्तित्व में विद्यमान गुणों के कारण अलग-अलग रूप में देखते हैं. डॉ. कमलकिशोर गोयनका को प्रेषित पत्र में वे चम्पा,श्यामा और तेजी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन इस प्रकार करते हैं-“चम्पा परी थी,/श्यामा देवी थी,/तेजी आदर्श पत्नी-सेविका,स्वामिनी,संगनी हैं (‘सेवक, स्वामी, सखा, प्रियसी के’).”10बच्चन के शोध कवि रहे डब्लू बी ईट्स का त्याग एक स्त्री का पुरूष को उसके जीवन में सफल बनाने व उसकी उन्नति-प्रगति में सहायक होने की धारणा को और अधिक दृढ़ता से विश्वास करने को बाध्य करता है. p-15माडगान ईट्स की प्रेमिका थी. ईट्स उनसे विवाह करना चाहते थे. परन्तु माडगान ने ईट्स से विवाह करने से मना कर दिया था क्योंकि वह जानती थी कि ईट्स एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व है और उससे विवाह करना उसके हित में नही होगा. ईट्स माडगान को कभी भुला नही पाए. माडगान की स्मृति की प्रतिक्रिया बराबर ईट्स की कविताओं में प्रतिबिम्बित होती रही.

रामनिरंजन परिमलेन्दु को 18-3-1958को प्रेषित पत्र में बच्चन इस सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट करते हैं-“माडगान का विचार यह था कि ईट्स से विवाह न करके उसने ईट्स के हित में अच्छा किया. बच्चन लिखते हैं’देखकर पाया न कोई/स्वप्न वे सुकुमार सुन्दर/जो पलक पर कर बिछाकर/थी वही मधुयामिनी वह ‘”11बच्चन को वह स्त्री अपनी और आकर्षित करती है जो किसी न किसी रूप में स्वयं में सक्षम हो. चम्पा की और वे उसकी सुन्दरता के कारण आकर्षित होते हैं,श्यामा का भोलापन उन्हें उसकी और आकर्षित करता है, वही तेजी का सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो जाने पर उनका हृदय तेजी के लिए श्रद्धा व सम्मान से भर जाता है. इसी प्रकार देश की प्रथम प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की कार्य कुशलता के वे प्रशंसक हैं. डॉ.  कमलकिशोर गोयनका को प्रेषित पत्र में वे श्रीमती इन्दिरा गांधी का एक कुशल राजनीतिज्ञ होने की प्रशंसा करते हुए अपने विचारों को इस प्रकार अभिव्यक्ति देते हुए लिखते हैं-“उनसे कम योग्यता, क्षमता, राजनैतिक सूझ-बूझ, चरित्र बल, इच्छा शक्ति वाला इस देश को शायद ही सम्भाल सकता.”12अतः बच्चन के पत्र आइने की तरह साफ है. जिनमें वे अपनी स्त्री सम्बन्धी मान्यताओं,विचारों,स्त्री के प्रति आकर्षण आदि को बड़ी ही निशचलता व स्पष्टता के साथ प्रकट होते हैं. वे स्त्री के श्रृंगार को उसकी स्थूलता में लाकर रख देते हैं और उनके विचारों को प्रकट करने के साधन होते हैं उनके पत्र.

सन्दर्भ ग्रन्थ –
1.  कामायनी -जयशंकर प्रसाद, पृ.-34
2.  नारी विमर्श के अर्थ का निहितार्थ-2-नेट.प्रज्ञान- विज्ञान, अप्रैल-7-2013
3.  बच्चन रचनावली भाग-9-अजित कुमार, पृ.-388
4. जिज्ञासाएं मेरीःसमाधान बच्चन के-डॉ. कमलकिशोर गोयनका, पृ.-34
5.-वही,-पृ.-42
6.-वही, पृ.-43   p-19: 7.- बच्चन के चुने हुए पत्र-अजित कुमार,पृ.-39
8.-जिज्ञासाएं मेरीः समाधान बच्चन के-डॉ. कमलकिशोर गोयनका पृ.-39
9.-वही, पृ.-36-37
10.-वही, पृ.-38
11.-बच्चनः पत्रों के दर्पण में-रामनिरंजन परिमलेन्दु ,पृ.-46
12.-जिज्ञासाएं मेरीःसमाधान बच्चन के-डॉ.कमलकिशोर गोयनका, पृ.-144  p-20

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ISSN 2394-093X
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