‘स्त्री नेतृत्व की खोज’ श्रृंखला के तहत दलित महिला कारोबारी के संघर्ष और उनकी उपलब्धियों से रू-ब-रू करा रहे हैं पत्रकार नितिन राउत.
कमानी ट्यूब्स की चेयरपर्सन और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कल्पना सरोज की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं- सफलता के शिखर तक पहुँचने के पीछे कड़े संघर्ष की कहानी है, उनकी कहानी. एक दौर था जब उन्होने जिंदगी खत्म करने के लिए जहर पी लिया था. लेकिन कहते हैं विश्वास और निरंतरता हो तो स्थितियां बदलते देर नहीं लगतीं, कल्पना सरोज की स्थितियों ने ऐसी करवट बदली कि उन्हे नयी जिंदगी के साथ बेशुमार दौलत की मालिक बना डाला. कभी जहर पीकर आत्महत्या करने की कोशिश वाली कल्पना सरोज आज 500 करोड की कारोबारी हैं.
दलित महिलाओं के संघर्ष की मशाल: मंजुला प्रदीप
किसान आत्महत्या के लिए परिचित महाराष्ट्र में विदर्भ के एक दलित परिवार में कल्पना सरोज का जन्म हुआ. पुलिस कांस्टेबल पिता के घर के हालात काफी खराब थे. खेलने की उम्र में अपनी उम्र से 10 साल बडे एक इन्सान से उनकी शादी हो गई. जिस उम्र में हाथ में कलम और किताबें होनी थी उस उम्र में उनके हाथ घर गृहस्थी की जिम्मेवारी आ गई. पति और ससुराल के लोगो की सेवा करना ही इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद रह गया था. लेकिन उनके लिये यह सफर भी आसान कहाँ था? घरेलू हिंसा और असामाजिक ढंग का घाव झेलना अभी बाकी था. विदर्भ से दूर मुंबई मे उनका ससुराल था. पढाई पूरी तरह से बंद हो गई. घर गृहस्थी के काम-काज समेत घरेलू हिंसा उनके जीवन का हिस्सा बन गई थी. कल्पना की रोज पिटाई होती. कभी पति के हाथों, तो कभी ससुराल वालो के हाथो उनकी खूब पिटाई होती. पिटाई के जख्म जैसे उनके शरीर पर जम से गये थे. रोज पडती मार से उनकी जिंदगी की चाह तो जैसे खत्म हो चुकी थी. कल्पना से मुंबई मिलने पहुंचे उनके पिता उनकी इस हालत को देख उन्हें अपने घर ले आये . लेकिन एक नर्क छोड दूसरे नर्क के दरवाजे उनके स्वागत के लिये तैयार थे. वापस आने पर समाज का उनकी और देखने का रवैया बहुत बुरा था . पति के घर से वापस आयी कल्पना पर और उनके परिवार पर गाँव ने बहिष्कार डाल दिया. शारीरिक मानसिक तौर से परेशान एक दिन कल्पना ने जहर पीकर जान देने की कोशिश की. खुदकुशी के लिए कीटनाशक की तीन बोतल उन्होने पी डाली. समय पर इलाज से उन्हे बचा लिया गया.
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आत्महत्या की कोशिश के बाद उनके जीवन में नया मोड़ आया . 16 साल की उम्र में उन्होंने फिर जिंदगी की और रुख किया, और मुंबई चली आई. अब उनके जीवन मे नई सुबह होने वाली थी. घर में कपडे सिलने की हुनर के कारण उनको जॉब मिल गया. एक गारमेंट कंपनी में कपडे सीलने का काम किया करती . दिन में दो रुपये की मजदूरी उनको मिला करती. लेकिन मुंबई में ये कम थी. उन्हें अपनी बहन का इलाज भी कराना था और बहन का इलाज इन पैसो में संभव नहीं था. घर पर ब्लाउज सिलने शुरू किये, आय प्रति ब्लाउज 2 रुपये से प्रति ब्लाउज दस रुपये तक पहुंची. लेकिन पैसे की किल्लत ने कई दिनो से बीमार बहन की सासें छीन ली. आय बढाने के लिये 14 से 16 घंटे काम करती. दिन में तीस से चालीस ब्लाउज सिलती. धीरे धीरे बिजनस को बढावा मिल रहा था, फिर सिलाई और बुटिक का काम शुरू किया . बिजनस बढाने के लिये उन्होने महात्मा फुले महामंडळ से 50,000 रूपये लोन की अपील की . उनको 50,000 लोन मिला. इस लोन के साथ फर्निचर का बिजनस शुरू किया . उल्हास नगर से सस्ते फर्निचर खरीदकर और उन्हें बेचकर बिजनस आगे बढ रहा था. तरक्की उनके कदम चूम रही थी. कच्चा माल कहाँ से लाना और उसे लाकर कहा बेचना, इसका पूरा अभ्यास उन्हें हो गया. लिया कर्जा उन्होंने चुका दिया. पूरे दो साल लगे उनको कर्जा चुकाने मे. लेकिन नये-नये बिजनस की तलाश जारी थी. रोज पेपर में आते स्कीम वे तलाशतीं . अच्छे उद्योग की तलाश उन्हें हमेशा रहती . विवादो में फसी एक जमीन का सौदा उन्होंने किया . पैसों की जरुरत के चलते जमीन मालिक ने उन्हें जमीन बेच दी थी. जमीन को कल्पना ने अपने कब्जे में ले लिया . विवादों में फसी जमीन के लिए उनको कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पडे. कई साल लगे उन्हे उनकी जमीन को हासिल करने में. जमीन हासिल कर उसे विकसित करने का उन्होने फैसला किया. लेकिन रास्ता नहीं मिल राहा था . बिजनस के लिए उन्होने पार्टनर की तलाश शुरू की . 65 फिसदी भागीदारी से उन्होंने बिजनस शुरू किया . ईटों की इमारत खडी हो गई. रियल इस्टेट का बिजनस इसी बिल्डींग से शुरू हुआ .फर्निचर और रियल इस्टेट का बिजनस काफी जोर पकड रहा था- लेकिन गोल्डन दिन अभी बाकी थे. सफलता कल्पना के कदम चूम रही थी .
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मुंबई में उन्हें पहचान मिलने लगी, उन्होंने दूसरी शादी की। इसी जान- पहचान के बल पर कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी कमानी ट्यूब्स को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है। कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की। यह कंपनी कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी थी। कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर अथक मेहनत और हौसले के बल पर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी. आज कमानी ट्यूब्स कंपनी 500 करोड से अधिक मूल्य की कंपनी है.
बुलंद इरादे और युवा सोच के साथ
दलित महिला उद्योगपति कल्पना न सिर्फ आर्थिक उन्नति तक सीमित नाम है, बल्कि डा. आंबेडकर के सपनों का समाज बनाने के लिए इनका समर्पण भी जग-जाहिर है. सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध बहुत कम उद्योगपतियों में उनका नाम शुमार है.
अमेजन पर ऑनलाइन महिषासुर,बहुजन साहित्य,पेरियार के प्रतिनिधि विचार और चिंतन के जनसरोकार सहित अन्य सभी किताबें उपलब्ध हैं.
फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं.
दलित स्त्रीवाद किताब ‘द मार्जिनलाइज्ड’ से खरीदने पर विद्यार्थियों के लिए 200 रूपये में उपलब्ध कराई जायेगी.विद्यार्थियों को अपने शिक्षण संस्थान के आईकार्ड की कॉपी आर्डर के साथ उपलब्ध करानी होगी. अन्य किताबें भी ‘द मार्जिनलाइज्ड’ से संपर्क कर खरीदी जा सकती हैं.
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com