मुबारक हो बिहारवासियों, मर गयी चंचल पासवान

स्त्रीकाल डेस्क 


2012 में चंचल पासवान और उसकी बहन पर तेज़ाब हमला  हुआ था. हमले में उसका चेहरा झुलस गया था और 28% वह जल गई थी. वह 22 जून को दुनिया को अलविदा कह गई. उसकी मौत के बाद अपने फेसबुक पेज पर दो पत्रकारों  ने मार्मिक और सूचनात्मक पोस्ट लिखे. संवेदनशील पत्रकार सरोज की इस विषय पर एक रपट  स्त्रीकाल के 2013 में प्रकाशित दलित स्त्रीवाद अंक में भी छपा था. नवल कुमार ने भी इसके मामले में खबरें लिखी थीं. दोनो ने ही अपने फेसबुक पेज पर उसे अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी. सरोज कुमार की 2013 की रपट और सरोज तथा नवल द्वारा दी गई श्रद्धांजलियों को पढ़ हम समझ सकते हैं कि हम किस तरह  ह्रदयहीन समाज हैं. 

घटना के बाद मिलने आये पत्रकार और नेता





मुबारक हो बिहारवासियों, मर गयी चंचला

दुख या शोक मनाने की जरुरत नहीं है। आपको मनाना भी नहीं चाहिए। न आपको न बिहार सरकार को। उसे मरना ही था। जैसे एक दिन सभी को मरना है। हां वह 23 साल की उम्र में तिल-तिलकर मर गयी। हो सकता है कि आपके दिल के एक कोने में आवाज उठे। वैसे यह आवाज उठनी भी चाहिए। वजह यह कि जो मर गयी वह बिहार की बेटी थी। उसका कसूर यह था कि उसके माता-पिता ने बड़े प्यार से उसका नाम चंचला रखा था। पासवान परिवार में जन्मी चंचला का सबसे बड़ा कसूर यह था कि उसने सपने देखे थे। सपने अपने लिये और अपने परिवार के लिए। तभी तो वह मनेर के छितनावा गांव से रोज दानापुर आती थी।

उसकी उंगलियां कम्प्यूटर पर थिरकना चाहती थीं। उसके मन में आईएएस बनने का अरमान था। उसकी इच्छा थी कि मुस्कराहट के लिए तरसती उसकी मां उसकी सफ़लता देख मुस्कराये। दिहाड़ी मजदूर के रुप में काम करने वाला उसका पिता शैलेन्द्र पासवान गर्व से जीना चाहता था। चंचला उसे यह तोहफ़ा देना चाहती थी। लेकिन दे न सकी। मर गयी। सवाल यह नहीं है कि वह मर गयी। सवाल इसलिए नहीं कि उसके ही गांव के शोहदों ने उसके चेहरे पर एसिड डालकर उसका जीवन बर्बाद कर डाला था।

सवाल इसलिए भी नहीं कि हम सभी एक अच्छा बिहारी और अच्छा इंसान खुद को साबित नहीं कर सके हैं। सवाल तो तब उठेगा जब हम संवेदनशील होंगे और हमारी बेटियां बिना किसी भय के सपने देख सकेंगी। जी सकेंगी। अपने माता-पिता के अरमानों को पूरा करेंगी। हां जबतक ऐसा नहीं होता है। हंसिए, मुस्कराइये। चंचला को मुस्कराहट के साथ विदा करिये। इतना तो कर ही सकते हैं न आप और हम सभी। मैं ठीक कह रहा हूं न?

नवल कुमार 

चंचल पासवान नहीं रही. 2012 में जब उस पर तेजाबी हमला हुआ था, तो मैं शुरुआती लोगों में था जिसने उस पर लिखा था और मदद करने की कोशिश की थी. कुछ दोस्तों ने थोड़े-बहुत रूपये चंदा जुटाए थे. बाद में पटना की एक एनजीओ कार्यकर्ता ने उसको लेकर प्रेस कॉनफ्रेंस किया, पीटीशन दायर किया और चंदे की अपील की थी. बाद में उस कार्यकर्ता के प्रति चंचल और उसके पापा में नाराजगी मुझे दिखी थी. एनजीओ वालों पर मुझे ऐसे भी भरोसा नहीं रहता. बाद में उस एनजीओ ने चंचल के मामले को छोड़ दिया. फिर चंचल का परिवार दिल्ली के एक एनजीओ के संपर्क में आया. इनके जरिए अभिनता जॉन अब्राहम ने उसके इलाज की जिम्मेदारी ली थी और उसका इलाज दिल्ली में फोर्टिस हॉस्पिटल में चल रहा था. दो साल पहले यहां उसकी सर्जरी हुई थी. लेकिन चंचल के पापा शैलेश पासवान ने बताय कि उसके बाद फोर्टिस वाले उन्हें टरकाते रहे. चंचल को बीच-बीच में परेशानी होती रही, पटना में ही सरकारी अस्पतालों में उसके पापा दौड़ते रहे. कल अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई. उससे और उसके पापा से मेरी लगातार बात होती थी, पर एक साल से कुछ खबर नहीं मिली थी उसकी. आज उसके यहां फोन किया तो समझ नहीं आया क्या कहूं. एक तो गंभीर रूप से एसिड के घायल तिस पर दलित! चंचल बहुत हिम्मती लड़की थी, उसने बहुत संघर्ष किया. लेकिन हमारे और इस समाज, सिस्टम तथा कुछ ‘अच्छे दिख रहे’ संस्थानों के नकारेपन ने उसको यों ही छोड़ दिया और वह हार गई.
सरोज कुमार 

सरोज कुमार द्वारा अस्पताल में ली गई तस्वीर

 

सावधान! राजा राजसूय यज्ञ पर निकले हैं….तेजाब से जलाए जाती रहेंगी महिलाएं और दलित


भय में जी रहा है दबंगों द्वारा तेजाब से जलाई गई छात्राओं का परिवार
समाजसड़ चुका है। विकास झूठ है फरेब है। हाशिए के लोग इसकी सड़ांध झेलने को मजबूर हैं। महिलाएं और वो भी दलित हैं तो और भयानक शोषण और अत्याचार की शिकार हैं।विकास और सुशासन के नारों के बीच हाशिए के लोग लगातार संघर्ष कर रहे हैं। वहीं बिहार का घमंडी राजा नीतीश राजसूय यज्ञ कर रहा है और महिलाएंसामंतवादियों के चंगुल में नरक भोग रही हैं। उनपर लगातार हमले हो रहे हैं।बिहार में अभी हाल के दिनों में लगातार महिलाओं और दलितों के खिलाफ हमले बढ़े हैं। दूरदराज ही नहीं बल्कि राजधानी और इससे सटे इलाकों में लगातार लड़कियों के रेप और हत्या जैसे मामले सामने आए हैं। अभी रोंगटे खड़े कर देने वाला ताजा मामला बिहार में राजधानी पटना से सटे मनेर थाने के छितनावां गांव का है। दबंगों ने क्रूरता की हद पार करते हुए रविवार 21 अक्टूबर की देर रात घर में घुस कर दो दलित बहनों चंचल और सोनम को तेजाब डालकर बुरी तरह जला दिया। कारण वहीं सामंतवादी पुरुष एंठन। वहीं सामंतवादी सोच कि गरीब, दलित और स्त्री होकर ये सामंतवादी पुरुष के शोषण के विरोध कैसे कर सकते हैं?कैसे नहीं तैयार होगी शोषित होने कोस्त्री?ये सामंतवादी ताकतें इतनी प्रभावशाली हो गई हैं कि सरकार इनके इशारों पर चल रहा है। और जैसे-जैसे हाशिए का समाज सशक्त होने की कोशिश कर रहा है सामंतवादी ताकतों का दमन बढ़ता जा रहा है।

यह सिर्फ मनचली और दबंगई का मामला नहीं है
मीडिया में भी खबरें आई हैं कि प्रेम और शादी से इंकार करने पर दोनों दलित बहनों पर मनचलों ने तेजाब डाला है। बात साफ है कि यह वहीं पुरानी सामंतवादी सोच काम कर रही है कि स्त्री और वो भी गरीब और दलित कैसे पुरुष को अस्वीकार करने की हिम्मत जुटा रही है। तेजाब की शिकार चंचल को दबंग लगातार छेड़खानी करते रहते थे। बाजार या पढ़ने आते-जाते वे लगातार उसे परेशान कर रहे थे। दबंगों के डर से वह चुप रह परिजनों को बताने से बचती रही लेकिन दबंगों के सामने घुटने भी नहीं टेके। वे लगातार उसे बुरे परिणाम भुगतने की धमकी भी देते रहे। पर चंचल झुकी नहीं। हाल ये हुआ कि इन सामंतवादी पुरुषों के अहम को ठेस लगी और इन्होंने चंचल को अपने क्रूरता का शिकार बना डाला। देर रात घर में घुस कर छत पर सो रही चंचल और उसकी छोटी बहन सोनम पर तेजाब डाल कर जला दिया। दलितों और महिलाओं के विरोध को कुचलने के लिए ही सामंतवादी ताकतें इतनी ही क्रूरता पर उतर आई हैं। बिहार में आए दिन दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा इसी सामंतवादी सोच को जाहिर कर रहे हैं। इससे पहले भी वैशाली में एक दलित छात्रा को दबंग परेशान करते रहे और विरोध करने पर उन्होंने उसके साथ बालात्कार कर के उसे कुएं में मार कर फेंक दिया था।

बैंक में नौकरी करने का सपना रखने वाली आंखें झुलस गईं
दबंगों की क्रूरता का शिकार हुई इंटर में पढ़ी रही चंचल बैंक में नौकरी करना चाहती थी। उसका यहीं सपना था ताकि गरीब मां-बाप को बेहतर जिंदगी दे सके। इसके लिए वह खूब मन लगा कर पढ़ाई भी कर रही थी। अपने सपनों के उड़ान देने के लिए उसने मनेर से दूर दानापुर में एक निजी संस्थान से कंप्यूटर के डीसीए कोर्स में भी दाखिला ले लिया था। वह रोज ऑटो से पढ़ने आया जाया करती थी।वहीं इसकी छोटी बहन सोनम सातवीं में पढ़ रही थी। सोनम की एक आंख पहले से ही खराब थी, इस हमले के बाद वह और सकते में है।  वह भी पढ़-लिख कर मां-बाप की गरीबी दूर सरकना चाहती थी। लेकिन दबंगों ने तेजाब से न केवल इनके शरीर और आंखों को जलाया है बल्कि इनके सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है।

चंचल का चेहरा पूरी तरह से झुलस चुका है। छाती,गला, पीठ और पैर भी तेजाब से जले हुए हैं। शरीर का कुल 28% भाग जल चुका है। वहीं छोटी बहन सोनम का 20 %  भाग, हाथ और पीठ-पैर झुलसा है। चंचल की दशा इतनी बूरी है कि वह बोल भी नहीं पा रही है। बड़ी मुश्किल से कराहते हुए वह कहती है “बैंक में नौकरी पा कर मां-बात की गरीबी दूर करना चाहती थी। अब क्या होगा समझ में नहीं आ रहा। जिंदगी बर्बाद हो गई हैं”।ये बताते हुए उसको रोते हुए साफ महसूस किया जा सकता है लेकिन हालत ऐसी है कि उसके आंसू भी पता नहीं चलते। बस सुनाई पड़ती है तो सिसकियां और दर्द भरी कराह।

वहीं चंचल के पिता शैलेश पासवान के लिए बेटियां ही सबकुछ थीं। ऐसे वक्त में जब बेटियों की चाह कोई नहीं रखता, इन्हें हमेशा बेटियों की ही चाह थी। दो बेटियां होने के बाद इन्होंने और कोई औलाद नहीं चाही। वे फफकते हुए कह पड़ते हैं, “चाहते थे कि बेटियां अपने पैरों पर खड़ा होकर नाम रौशन करेगी। हमारी गरीबी भी दूर होगी। इसलिए बेटियों को पढ़ा भी रहे थे। लेकिन अब बेटियों के इस हाल के बाद भविष्य अंधकारमय हो गया है”।

चंचल की बहन सोनम

कैसे हो इलाज, क्या होगा भविष्य
पीड़ित दलित परिवार बेहद गरीब है। परिवार इंदिरा आवास से उपलब्ध घर में ही रहता है।कमरों का अभाव होने के कारण ही ठंड शुरु हो जाने के बावजूद भी बहनों को छत पर सोना पड़ रहा था। मां-बाप मेहनत मजदूरी करके गुजारा करते हैं। बड़ी मुश्किल से बेटियों की पढ़ाई हो रही थी। सोनम गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर पा रही थी। चंचल जैसे-तैसे कंप्यूटर कोर्स कर रही थी। वहीं अब इस घटना के बाद परिवार को कुछ सूझ नहीं रहा है। चंचल और सोनम के इलाज में भी पैसे लगेंगे। फिलहाल तो पटना के पीएमसीएच में मुफ्त में इलाज चल रहा है लेकिन दवाएं बाहर से भी खरीदनी पड़ रही हैं। चंचल की हालत इतनी नाजुक है कि इलाज लंबा चलेगा। पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक्त लगेगा। चेहरा इतना झुलसा है कि कैसे ठीक होगी कहना मुश्किल है। बेहतर सर्जरी के लिए अच्छे अस्पताल और इलाज खर्च की जरुरत है। जबकि परिजन इसमें सक्षम नहीं हैं। फिलहाल पीएमसीएच में इलाज चल रहा है लेकिन ऐसे हाल में जब बिना काम किए परिजनों का गुजारा मुश्किल है इलाज कैसे चलता रहेगा कहना मुश्किल है। बार-बार पत्रकारों और संगठनों की पूछताछ से खीज चुकी चचंल की मां सुनैना देवी गुस्से में कहती हैं, “कुछो तो नहीं हो रहा है खबर छपे के। कउनो फायदा नहीं हो रहा। रोजे अखबार में छपइत है लेकिन अभी तक कोई मुआवजे न मिलल”।

बिल्कुल सामंतवादी रिपोर्टिंग कर रहा है दैनिक जागरण
पटना में दैनिक जागरण महिलाओं के मामले में जिस तरह रिपोर्टिंग कर रहा है उससे इसकी सामंतवादी सोच का पता चलता है। पिछले दिनों पटना में गैंग रेप की शिकार लड़की को जहां बेबुनियादी तर्कों के आधार पर वह कटघरे में खड़ा कर रहा था, वहीं इस मामले में भी कुछ ऐसे ही सवाल खड़े कर रहा है। 26 अक्टूबर अखबार लिखता है कि चंचल के फर्द बयान पर उसका अंगूठा क्यों लगा जबकि वह इंटर की छात्रा है, हस्ताक्षर होना चाहिए था। इससे काफी कुछ पता चलता है कि गड़बड़ है। अब इस पत्रकार को केवल इस बात से दबंगों पर आरोप को संदिग्ध बता रहा है। जबकि चंचल की हालत बिल्कुल नाजुक थी। वह निश्चेत पड़ी रहती थी। बोल पाने में असक्षम थी। ऐसी नाजुक हाल में  हस्ताक्षर की बजाय अंगूठा ले लिया गया होगा। दैनिक जागरण आगे लिखता है कि अपराधियों को घर में किसी ने नहीं देखा। देर रात सारे लोग सोए थे। सोई अवस्था में तेजाब डाल अपराधी भाग खड़े हुए। ऐसे हाल में अपराधियों को कैसे पहचाना जा सकता था। साफ है कि दैनिक जागरण कैसी रिपोर्टिंग कर रहा है। वह पीड़ित परिवार को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहा है।

भय के साए में जी रहे हैं परिजन
इस सुशासन में अपराधियों के मनोबल का अंदाजा इसी बाते से लगाया जा सकता है कि मीडिया में इसकी खबर प्रकाशित होने और तीन गिरफ्तारियों होने के बावजूद दबंगों का हौसला कम नहीं हुआ है। दबंग लगातार परिजनों को धमकी देते फिर रहे हैं। चंचल के चाचा मिथिलेश पासवान बताते हैं “26 अक्टूबर की रात को दबंगों ने दुबारा घर पर हमला बोला। रात में दरवाजे पर धक्का देते रहे, जंजीर खटखटाते रहे और दरवाजा न खोलने पर घर उड़ा देने की धमकी दी। वहीं 27 अक्टूबर को कुछ संदिग्ध युवक पीएमसीएच तक पहुंच कर छात्राओं के बारे में पूछते पाए गए”। ऊपर से पुलिस का वहीं पुरानी रटा-रटाया जवाब मिल रहा है कि धड़-पकड़ जारी है। ऐसे हाल में परिजन भय में जी रहे हैं और सुशासन कान में तेल डाल कर सो रही है।

नहीं बढ़े हैं मदद को हाथ
पीड़ित परिवार जहां बेहद गरीब है वहीं इनकी मदद को कोई सामने नहीं आ रहा है। ऐपवा और एक-दो दलित संगठनों ने पीड़ितों से मुलाकात के बाद सरकार से मुआवजे और अपराधियों की गिरफ्तारी की मांग जरुर की है। भाकपा माले ने भी विरोध प्रदर्शन भी किया है। लेकिन इनका दायरा केवल सरकार से मांग तक सीमित होने के कारण कोई तात्कालिक सहायता नहीं पहुंची है। बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने मुआवजे की बात कही है लेकिन अभी तक कोई सहायता राशि परिजनों को नहीं मिली है। कोई सामाजिक संगठन या एनजीओ ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ली है जबकि पीड़ित परिवार बेहद गरीब है। बहरहाल चंचल और सोनम के सपने टूट चुके हैं और इनको मदद की जरुरत है।

और राजा राजसूय यज्ञ में व्यस्त हैं
ऐसे हाल में जब महिलाओं के खिलाफ लगातार हिंसा सामने आ रही है। राजधानी में पटना में पिछले दिनों कई गैंग रेप के मामले सामने आए हैं। दलित छात्राओं के रेप और हत्या के मामले सामने आए हैं। कुछ ही किलोमीटर दूर मनेर में दबंग इतने हौसले में हैं कि तेजाब से जलाने और गिरफ्तारी के बाद भी दबंगई से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकार यात्रा के आयोजन में व्यस्त हैं। अपराधियों का हौसला यों ही नहीं बढ़ा हुआ है। बल्कि इस सुशासन में इन्हीं लोगों की सहभागिता है। 4 नवंबबर को होने वाले अधिकार सम्मेलन को लेकर बाहुबली अनंत सिंह से लेकर सुनील पांडेय और हुलास पांडेय जैसों के विशालकाय होर्डिंग से पटना की सड़कें पटी पड़ी हैं। और तो और अधिकार सम्मेलन के लिए भारी रंगदारी वसूली जा रही हैं। 28 अक्टूबर को जदयू के पूर्व सासंद पर अधिकार रैली के लिए 7 करोड़ रुपए रंगदारी मांगने का आरोप लगा है। हाजीपुर के एक निजी शैक्षणिक ग्रुप डायरेक्टर ने यह आरोप लगाया है। साफ है कि सरकार में कौन लोग हैं। ऐसे लोग ही सत्ता में शामिल हैं और अधिकार की मांग कर रहे हैं। जहां हाशिए के लोगों के अधिकार छीने जा रहे हैं, शोषण किया जा रहा है। आखिर सुशासन बाबू किनके अधिकारों की बात कर रहे हैं अपराधियों की ही ना। हाशिए के लोगों के अधिकारों की तो न सुशासन बाबू को फिक्र है ना प्रशासन को, फिर सत्ता में सामंतवादी और अपराधी ही तो शामिल हैं। तो क्यों ना अपराधियों और सामंतवादियों का मनोबल बढ़े?

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ISSN 2394-093X
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