महिला पत्रकारों को अपनी सलाहकार समिति में शामिल करेगी बिहार विधानसभा (!)

राजीव सुमन

देश भर से आयी महिला पत्रकारों ने लैंगिक असमानता और घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दे को समवेत स्वर से चिह्नित किया, वहीं बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय नारायण चौधरी को बाध्य किया कि वे घोषित करें कि बिहार विधानसभा में पत्रकारों की सलाहकार समिति में महिलाओं को शामिल किया जायेगा. ऐसा होता है तो बिहार में यह पहली बार होगा. उस राज्य में जहाँ महिलाओं को भागीदारी देने में कई स्तरों पर पहल की गई है. विजय नारायण चौधरी को कहना पड़ा कि समिति की अगली कोई भी बैठक बिना महिलाओं को शामिल किये नहीं होगी. हालांकि तब भी  50% भागीदारी का सवाल बचा ही रह गया. यह सब घटित हुआ साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया (SAWM)और जेंडर समानता पर काम करने वाली संस्था (OXFAM) के संयुक्त तत्वाधान में   पटना के पाटलिपुत्र होटल के कांफेरेंस रूम में  15 जुलाई को आयोजित एक  दिन की  कार्यशाला में.  विषय था घरेलू हिंसा, सामाजिक मूल्य और मीडिया की भूमिका।

कार्यशाला में  खुद मीडिया घरानों में लैंगिक भेदभाव और पुरुष पत्रकारों द्वारा लैंगिक और घरलू हिंसा की रिपोर्टिंग को लेकर उनके पुरुषवादी सोच और असंवेदनशील व्यवहार पर खुलकर चर्चा की गई । सबने माना कि इन मुद्दों पर रिपोर्टिंग के लिए अक्सरहां महिलाओं को ही भेजा जाता है और तबतक इन मुद्दों को तरजीह नहीं दी जाती जबतक कि इसके दायरे में निर्भया काण्ड या एसिड अटैक जैसी कोई भयावह घटना न घटित हो। मीडिया के इस असंवेदनशील पुरुषवादी  चरित्र को चिन्हित कर खुद केलिए स्पेस बनाने और घरेलू हिंसा के विरुद्ध खुद को अधिक ताकत के साथ खड़ा करने की जरुरत को इस कार्यशाला में आए वक्ताओं ने अपने-अपने अनुभवों के माध्यम से साझा किया।  महिला पत्रकारों ने खुद भी इन मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ कैसे देखा जाए और इसकी रिपोर्टिंग किस तरह की हो आदि प्रश्नो पर गंभीरता से विचार किया। मीडिया की भूमिका को समाज में ही नहीं बल्कि खुद मिडिया के भीतर लैंगिक विभेद के प्रति संवेदनशील  होने की जरुरत को भी चिन्हित किया  और  श्रोताओं के मुखर प्रतिसाद ने इस विषय को जन-जन तक  ले जाने की दिशा तय कर दी।

तीन सत्रों में बंटे इस कार्यक्रम की शुरुआत  इप्टा के वरिष्ठ  रंगकर्मी तनवीर अख्तर और उनकी टीम की युवा महिला साथियों  ने एक के बाद एक तीन जनगीत प्रस्तुत कर की.  इसके बाद मंच संचालिका दक्षा वडकर ने माक्सिम  गोर्की की “माँ” से उद्धरण देते हुए हिंसा या पशुता को व्यवस्था की  देन मानते हुए कार्यशाला के विषय “घरेलू हिंसा, सामजिक मूल्य और मीडिया की भूमिका” के मूल बिंदु को चिन्हित किया। प्रथम सत्र का उद्घाटन वक्तव्य ऑक्सफाम की क्षेत्रीय प्रबंधक रंजना दास ने दिया। वरिष्ठ  पत्रकार राजनी शंकर ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि हमारा चौथा स्तम्भ मीडिया एक विवाद क्षेत्र  के भीतर काम कर रहा है। मीडिया पर हुए हमले की भर्त्सना करते हुए और महिला पत्रकारों का प्रतिनिधित्व बिहार विधान सभा में नहीं होने की बात रजनी शंकर ने इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में आए बिहार विधान सभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी के सामने ही उठाई और इसके परिणामस्वरूप विधान सभा अध्यक्ष श्री चौधरी  को मंच से ही यह घोषणा करनी पड़ी क़ि विधान सभा की पत्रकार कमिटी में महिला पत्रकार के प्रतिनिधित्व के लिए स्वाम के आवेदन का वह स्वागत करेंगे और तत्काल एक वचन दिया कि जबतक उनके प्रेस कांफ्रेंस में महिला पत्रकार का प्रतिनिधित्व नहीं होगा तबतक वे प्रेस कांफ्रेंस शुरू नहीं करेंगे। लेकिन जाते-जाते पितृसत्ता के दरवाजे से यह बात बोल गए कि “घरेलू हिंसा में स्त्री ही स्त्री की दुश्मन ज्यादा दिखती है।” उनके इस वक्तव्य को उनके बाद के वक्ताओं ने बेहद गंभीरता से लिया .

स्वाम- बिहार  चैप्टर की अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार निवेदिता ने  अपने तेज और बुलंद लहजे में इस कार्यशाला के एजेंडे को पवन करण की कविता की पंक्तियों से शुरू किया–
“किसी रोज इस पृथ्वी के किसी एक हिस्से पर
इक्कट्ठा हो जाएं वे सारी चार करोड़
और उनके साथ- साथ वे भी जो छूट गई इस आंकड़े से
और वे वहां शुरू कर दें एकसाथ विलाप
और कहें यही हमारा सविनय अवज्ञा आंदोलन
‌यही हमारा विरोध मार्च—-

निवेदिता ने कहा कि महामारी, भूकंप या युद्ध में इतने लोगों की मौत नहीं होती, जितनी घरेलू हिंसा के कारण हर साल महिलाओं की मृत्यु हो रही है। उन्होंने कहा कि स्त्री को अपनी दुनिया खुद बनानी होगी, उसके लिए लड़ना होगा। निवेदिता द्वारा स्त्री हिंसा के स्याह पक्ष को बड़े  ठोस, तार्किक और मार्मिक तरीके से उठाया गया जिसे अन्य वक्ताओं ने गंभीरता से लेते हुए पितृसत्ता की जड़ें कितनी गहरी हैं, कीओर इशारा करते हुए अपनी बातें कहीं।

पितृसत्ता पर चोट करते हुए वरिष्ट पत्रकार और लेखिका गीताश्री ने विवाह को अंतिम ठिकाना मानने से साफ़ इनकार करते हुए सवाल दागा कि ” कोख भी, किचेन भी और सेक्स गुलामी भी हमहिं संभालें..!”
चमेली देवी सम्मान से सम्मानित पत्रकार नेहा दीक्षित ने मिडिया के भीतर भेदभावपूर्ण नजरिये को रेखांकित करते हुए कहा कि सेक्सुअल हिंसा और मैटर्निटी यही दो विकल्प होते हैं महिला पत्रकारों के समाचार के लिए। लैंगिक मुद्दोंसे सम्बंधित न्यूज  पुरुष पत्रकार करना नहीं चाहते।

जनसत्ता के संपादक मुकेश भारद्वाज ने घरेलू हिंसा के उन पहलुओं की ओर सबका ध्यान खींचा जिसमें उन्होंने बड़े ही  संवेदनशील दृष्टान्तों द्वारा दिखाया कि पुरुष अब भी कितने  शातिर तरीके से अपने पार्टनर पर मानसिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा करने से बाज़ नहीं आता, अपने अंतरंग भावनात्मक पलों में भी। SAWM की राष्ट्रीय महासचिव स्वाति भट्टाचार्य ने SAWM के कार्यों और प्रयासों का उल्लेख करते हुए बताया कि स्वाम घरेलू हिंसा और लैंगिक भेदभाव के प्रति कितना संवेदनशील है और संयुक्त राष्ट्र संघ और राष्ट्रीय आंकड़ो द्वारा देश के भीतर इसकी चिंताजनक तस्वीर उपस्थित की। कट्टरपंथी ताकतों द्वारा मीडिया पर होते हमले को लोकतंत्र पर हमला बताया और स्त्री पत्रकारों की मीडिया घरानो के भीतर इतने कम प्रतिनिधित्व को देश के लोकतांत्रिक स्पेस में कमी के रूप में रेखांकित किया। बी. बी. सी. की भारतीय भाषा प्रमुख रूपा झा ने तीन ऑडियो क्लिप के माध्यम से यह दिखाया कि लैंगिक असमानता के आधार पर होनेवाली घरेलू हिंसा की जड़ें हमारे समाज-संस्कृति और जीवन में इतनी गहरी पैठीं हैं कि वह हमें परेशान नहीं करती, विचलित नहीं करती, सांस्कृतिक अनुकूलन इतना जबरदस्त है कि पिटने वाली स्त्री इसे अपनी नियति और पति का कर्त्तव्य मानती है, इससे भी आगे जाकर वह उसी पति का आगे के जन्म में भी वरण करना चाहती है।

दूसरे सत्र में  मुंबई से आईं श्रुति गणपतये, गुवाहाटी से  दुर्बा घोष और मानवाधिकारों के लिए काम करनेवाली संस्था ब्रेक थ्रू की पूर्वा क्षेत्रपाल ने सामाजिक मान्यताओं और घरेलू हिंसा पर अपने-अपने   क्षेत्र में कर रहे कार्यों व अनुभवों को साझा किया। सत्र की अध्यक्षता स्त्रीवादी मुद्दों के प्रति संवेदनशील माने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार नसीरुद्दीन हैदर खान ने की। नसीरुद्दीन हैदर ने वर्तमान पत्रकारिता पर गंभीर सवाल उठाए।  इसी सत्र में ” न्यूज बनाती महिलाएं” थीम पर पांच महिला पत्रकारों के ऊपर, चार देशों की छह महिला निर्देशकों द्वारा पांच देशों के अलग अलग हिस्सों में निर्देशितऔर आई ए डब्ल्यू आर टी द्वारा निर्मित अनूठी फ़िल्म “वेलवेट रिवोल्यूशन”  ने दर्शकों को तनाव में डाल दिया। कश्मीर विश्व फ़िल्म महोत्सव में फ़ीचर लेंथ की सबसे अच्छी  डाक्यूमेंटरी फ़िल्म का पुरस्कार जितने वाली इस फ़िल्म में विपरीत परिस्थितियों और युद्ध जैसे माहौल में काम करने वाली महिला पत्राकारों के संघर्षों और चुनौतियों को जीवंत तरीके से दिखाया गया है। इस फ़िल्म की कार्यकारी निर्माता और निर्देशक नुपुर बासु कहती हैं कि इस फ़िल्म का उद्देश्य यह भी दिखाना है कि महिलाएं भी खतरे और जोखिम भरी रिपोर्टिंग पुरुषों की ही तरह कर सकती हैं और इसलिए इस विभेदक  रेखा को ख़त्म होते देर नहीं लगेगी कि यह महिला पत्रकार है, बल्कि पुरुषवादी और यौनकुंठित समाज में उनपर दोहरे हमले और आक्रमण का जोखिम है। इस फिल्म के एक हिस्से में सीरियन महिला पत्रकार जेना एरहेम कहती है कि- “मैं युद्ध संवाददाता नहीं होना चाहती थी पर युद्ध मेरे घर के दरवाजे पर था”। जरुरी है दुनिया को यह जानना कि दुनिया के इस हिस्से में क्या हो रहा है। इसी फ़िल्म के एक अन्य हिस्से में कट्टरपंथियों द्वारा बांग्लादेशी ब्लॉगर अभिजीत रॉय की हत्या और उनकी पत्नी बोन्या अहमद को फिल्माया गया है। इस फ़िल्म ने इस विषय को और जीवंत बना दिया।यह सत्र अपने निर्धारित समय से लगभग  दो घंटे ज्यादा देर तक चलता रहा।

तीसरे सत्र की अध्यक्षता जेंडर  रिसोर्स सेंटर के मुख्य परामर्शी आनंद माधव ने की। इस सत्र  में सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री सुधा वर्गीज ने अपने ही  सरल, सीधे किंतु दृढ अंदाज़ में घरलू हिंसा को चिन्हित किया और साथ में महिलाओं को खुद ही अपने तरीके से इसका प्रतिकार करने का उपाय भी सुझाया। इसके अलावा , भुवनेश्वर से वरिष्ठ पत्रकार शारदा लहांगीर  ने आदिवासी स्त्रियों पर हो रहे घरेलू हिंसा के कई जीवंत दस्तावेज प्रस्तुत किये और कोलकाता से सीनियर फोटो जर्नलिस्ट देबोस्मिता भट्टाचार्या ने अपने मोहक अंदाज़ से फ़ोटो जर्नलिस्म की महत्ता को रेखांकित किया और अपने कैमरे को यौनिक हिंसा के खिलाफ मज़बूत हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का नायाब तरीका भी महिला पत्रकारों के सामने रखा, पटना महिला महाविद्यालय की पत्रकारिता विभाग की  प्रोफेसर एवं हेड मिनती चकलानविस ने घरेलू हिंसा को बड़े ही सरल किन्तु आकर्षक तरीके से   समझाया, सामाजिक कार्यकर्ता शैलेंन्द्र ने बड़े ज़ोरदार तरीके सैद्धांतिक रूप से सामाजिक मूल्य और घरेलू हिंसा के सम्बन्ध पर अपनी बात कही।सामाजिक कार्यकर्ता  और स्त्रीकाल के संपादकीय सदस्य राजीव सुमन ने भी  अपने विचार और अनुभव साझा किये। इस सत्र का संचालन आभा रानी ने किया. स्वागत भाषण सुमिता जायसवाल ने किया। कार्यक्रम का संचालन सीटू तिवारी ने किया।

सवाल- जवाब के सेशन का संचालन इति शरण और प्रिया ने किया। झारखण्ड से आई सुमेधा चौधरी ने नुपुर बासु से फ़िल्म बनाने के क्रम में आई मुश्किलों के बारे में सवाल किये। इसके अलावा कई अन्य लोगो ने भी महत्वपूर्ण सवाल पूछे।

राजीव सुमन स्त्रीकाल के सम्पादन मंडल के सदस्य है.
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