मेधा का आंदोलन अभी भी जारी है, सरकार ने उन्हें नजरबंद कर रखा है

कामायनी स्वामी/आशीष रंजन 


7 अगस्त की शाम को जब देश के अलग-अलग इलाकों में लोग राखी की खुशियाँ मना रहे थे और भाई बहन एक दुसरे का मुंह मीठा कर रहे थे, मध्य प्रदेश के सुदूरचिखल्दा गाँव में पिछले 12 दिनों से अनशन पर बैठे नर्मदा बचाओ आन्दोलन के 12  साथियों को करीब 2000 की संख्या में पहुंचे पुलिस बल ने घेर लिया | हजारों समर्थकों के बीच से उनके विरोध के बावजूद पुलिस मेधा पाटकर और अन्य साथियों को जबरन उठा कर ले गयी | धरनास्थल को तोड़ा गया और स्थल पर मौजूद दर्जनों लोग घायल हुए | मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथी 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे थे | वह सरकार से मांग कर रहे थे कि हजारों परिवार जिनका पुनर्वास नहीं हुआ है उनका सुप्रीम कोर्ट के आदेशनुसार सम्पूर्ण पुनर्वास किया जाए और सरदार सरोवर बाँध के फाटक को खोल दिया जाए – फाटक बंद होने से बाँध की लम्बाई 138 मीटरहै, जिसके चलते मध्य प्रदेश में दर्जनों गाँव डूब जायेंगेऔरडूब क्षेत्र में बसे हजारों लोगों की जल ह्त्या होगी |

सुप्रीम कोर्ट ने 08.02.2017 केअपने आदेश में सरकार को निर्देश दिया था कि विस्थापित हो रहे लोगों का पुनर्वास किया जाय| कोर्ट ने यह भी कहा था कि सभी विस्थापित 31.07.2017 तक गाँव खाली कर दें नहीं तो उन्हें जबरन हटाया जाएगा | कोर्ट के इस निर्णय की आड़ में प्रशासन गाँव- गाँव जाकर बिना पुनर्वास की व्यवस्था किये गाँव खाली करने का नोटिस दे रहा है और जबरन गाँव खाली करने की पूरी तैयारी चल रही है | सरकार की नीति को देखते हुए मेधा पाटकर और अन्य साथी आमरण अनशन पर बैठे | उनका कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने गेट बंद करके पूरे क्षेत्र को डुबोने के लिए नहीं कहा तो सरकारनेगेट बंद क्यूँ कर दिया ? वह भी ऐसे समय में जब गुजरात में बाढ़ आयी है वहगुजरात में पानी पहुंचाने के नाम पर मध्य प्रदेश के लाखों लोगों को क्यूँ डुबोना चाहती है ?

नर्मदा बचाओ आन्दोलन का तीन दशक से अधिक का संघर्षशील इतिहास रहा है | पूरी तरह शांतिपूर्ण और अहिंसक आन्लोदन ने पूरी दुनिया में विकास केमॉडल पर बहस छेड़ दी| यहप्रश्न कि विकास किसके लिए और किसके कंधे पर हो एक बड़ा सवाल बन कर लोगों के बीच उभरा | बड़े बांधों द्वारा हो रहे विस्थापन और पर्यावरण कीअपूरणीय क्षति पर पूरे विश्व के लोगों का ध्यान आकृष्ट किया गया | पूरे विश्व में बड़े बांधों के खिलाफ एक वातावरण बना और तमाम सरकारों ने अपनी नीति में परिवर्तन किया | आन्दोलन के चलते 90 के दशक में विश्व बैंक, जिसके पैसे से सरदार सरोवर बाँध बनाना था, ने पैसा देने से मना कर दिया था | इस आन्दोलन ने भारत सरकार को पुनर्वास को लेकर कानून बनाने पर बाध्य किया और जमीन अधिग्रहण में लोगों की सहमति एवंअन्य जनपक्षी  प्रावधानों (जैसे सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट का प्रावधान)को कानून में लाने में सफल रही| करीब 15 हजार विस्थापित परिवारों को जमीन के बदले जमीन मिली |

तीस साल से भी अधिक से चल रहे इस आन्दोलन ने कई विपरीत परिस्थिति को भी झेला है | सुप्रीम कोर्ट का बाँध को मंजूरी देना, और उसके बाद बाँध के गेट बनने की स्वीकृति ने इस आन्दोलन के लिए बहुत मुश्किल हालात पैदा किये हैं | हालांकि आन्दोलन की सफलता रही है कि दोनों हाई कोर्ट और सुप्रीमकोर्ट ने बार-बार पुनर्वास पूरा करने का निर्देश दिया है और अभी भी मध्य प्रदेश की हाई कोर्ट प्रदेश में पुनर्वास को मॉनिटर कर रही है |मध्य प्रदेश सरकार झूठे आंकड़े दिखाकर कोर्ट को अपने पक्ष में कामयाब करने में बहुत हद तक सफल रही है | न्याय की इस लड़ाई ने पूरे तंत्र, जिसमे कोर्ट भी शामिल है, की सीमा को बखूबी उजागर कर दिया है | हमारे गाँव में किसका राज होगा ? ग्राम सभा का या किसी और का ? लोगों की बात सही है या सरकारी आंकड़ों की? असलियत की जांच कैसे होगी जैसे सवालों ने सभी को परेशान किया है | अगर पुनर्वास हो गया है तो हजारों लोगों के पास पुनर्वास की जमीन क्यूँ नहीं ?

सरकार ने मेधा पाटकर को इंदौर  के अस्पताल में कैद कर रखा है | उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है | सरकार का कहना है कि मेधा पाटकर के बिगड़ते स्वास्थ को देखते हुए यह कदम उठाया गया और उनका इलाज किया जा रहा है | सरकार संवाद करने में रूचि नहीं दिखा रही | 12 अगस्त को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी भाजपा के 12 मुख्यमंत्रियों एवं 2000 पुजारियों के समक्ष सरदार सरोवर बाँध का उद्घाटन करने वाले हैं | वहीँ देश-विदेश के नामी गिरामी बुद्धिजीवी जिसमें नोम चोमस्की शामिल हैं ने मेधा पाटकर और आन्दोलन के समर्थन में वक्तव्य जारी किया है | देश भर के बीस से भी अधिक शहरों में आन्दोलन के समर्थकों ने अलग अलग तरीके से अपना समर्थन जाहिर किया है | उधरचिखल्दा में अनशन टूटा नहीं नहीं, दस साथी अनशन पर बैठ गए हैं|

लेखकद्वय जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम )से जुड़े हैं . सम्पर्क: ashish.ranjanjha@gmail.com

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ISSN 2394-093X
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