बीएचयू: शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही लड़कियों को देर रात योगी-मोदी-त्रिपाठी की पुलिस ने घेर कर पीटा

बनारस से, कलंकित बीएचयू से 

क्या लिखूं? लिखूं कि पत्नी को छोड़कर आया शासक नहीं जानता बेटियों से स्नेह-राग. माँ से ममत्व का नाटक करने वाला, बनारस में गायों को चारा खिलाने वाला ढोंगी शासक बनारस से लौटते ही लड़कियों पर कहर बनकर टूटा. क्या लिखूं कि कथित संन्यास के बाद ‘योगी’ लखनउ की गद्दी पर बैठा है-जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई- बेटियों पर पुलिस के डंडे बरसा रहा है!  क्या लिखूं कि गुजरात के ड्रायकुले हरियाणा में रक्त पिपासा को खुली छूट देते हैं, उपद्रवी भक्तों को तांडव करने देते हैं, पुलिस हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रहती है और शांतिपूर्ण प्रदर्शन  कर रही  बेटियों पर आधी रात को लाठियां बरसवाते हैं. क्या लिखूं कि टिकधारी कुलपति के भीतर बैठा मनु लड़कियों के पढने से चिढ़ता है. क्या लिखूं कि पत्नी को छोड़कर आया ढोंगी से लेकर योगी तक बेटियों के सह्वास में खपत कंडोमों की गिनती कर अट्टहास कर रहा है, दिल्ली से लेकर लखनउ तक, और उनसे
उनकी किताबें छीन रहा है.

 सम्मान से पढने का हक़ मांग रही  जिन निहत्थी लड़कियों पर रात के 10-30 के बाद लाठियां चलवाई गई वे मांग क्या रही थीं, हृदयहीनों, सिर्फ सम्मान से जीने का हक़ ही तो मांग रही थीं, इत्मीनान से पढने का हक़ ही तो मांग रही थीं. मांग रही थीं कि जोड़-जुगाड़ से जो कुलपति बन बैठा है ( कुलपतियों की नियुक्ति यूं ही होती है) वह सचमुच कुल-पति सा आचरण करे. वह कम से कम शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लड़कियों से आकर मिले, सुरक्षा का सार्वजनिक आश्वासन दे. लेकिन उसे कहाँ फुर्सत उसके आका, जो बनारस में थे, उसकी रीढ़ की हड्डी सुरसुरा रही थी, वह क्योंकर मिलने आता लड़कियों से. उसने लाठियां भिजवा दी.

‘टच ही तो किया है न और कुछ नहीं किया न’ : प्रशासन के जवाब से आक्रोशित लडकियां 

और तुम, तुम शहर के पुलिस प्रधान,   जिले के कलक्टर  तुम्हारे यूपीएससी पास होने पर  जनता मगन होती है, बधाइयां देती हैं, लेकिन तुम तुम कब निकलोगे मालिक के आगे अपनी हिलती दम के आतंक से बाहर ! क्यों बेरहमी से पिटा बेटियों को, लड़कियों को जो घरों से बाहर पढने आयी हैं.

बनारस से, बीएचयू से लड़कियों की चीख क्या आपके  कानों तक अभी नहीं पहुँची है, तो सोये रहिये, अच्छे दिन के गुणगान में. अभी भक्तों का व्हाट्स ऐप मेसेज आता ही होगा, जो बनारस में खर्च कंडोमो की गिनती बतायेगा और आप भूतो न भविष्यति ढोंगी जोड़ियों के शासन के रास्ते हिन्दू राष्ट्र के सपने का साकार कर लीजियेगा. यह रपट आपके लिए नहीं है, उनके लिये है, जो सचमुच समझते हैं कि सम्मान  से जीयेंगी तभी तो पढ़ेंगी लड़कियां. लगातार लाइव रिपोटिंग कर रहे सिद्धांत मोहन की रिपोरर्ट, जो उन्होंने फेसबुक पर लिखा है:

मैं बनारस से बोल रहा हूं.
यहां बीएचयू के अंदर महिला महाविद्यालय है. रात बारह के करीब पुलिस ने जिलाधिकारी की मौजूदगी में बीएचयू के मेन गेट पर बैठे छात्रों और छात्राओं पर लाठीचार्ज कर दिया.
लड़के भागे अंदर. तो पुलिस ने भी दौड़ा लिया अंदर तक. लड़कियां भागीं महिला महाविद्यालय के अंदर तो कुछ लोगों ने महिला महाविद्यालय का दरवाजा भी तोड़ दिया. अब पुलिस महिला महाविद्यालय के अंदर भी घुस गयी. लड़कियों को दौड़ाकर पीटा. भागने में जो लड़कियां गिर गयीं, पुलिस ने उनके ऊपर चढ़कर पिटाई की.
पुलिस ने लड़कियों को जहां देखा, वहां पीटा. रोचक बात ये जानिए कि महिला पुलिसकर्मी एक भी नहीं. लड़कियां मुझे फोन कर-करके रोते हुए बदहवासी में जानकारियां दे रही हैं. एक लड़की बोलती हैं, “हमें इस खबर को किसी तरह बाहर पहुंचाना है.”

अब थोड़ा और अंदर चलें तो पुलिस बिड़ला हॉस्टल के अंदर घुस गयी है. बिड़ला चौराहे पर लड़कों पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलायी जा रही हैं. लड़के उधर से पत्थर चलाकर आंदोलन को दूसरी दिशा में मोड़ चुके हैं.
ऐसा दो टके का कुलपति नहीं देखा, जो मिलने का वादा करके मिलता नहीं है, और सीसीटीवी लगवाने की मांग करती लड़कियों पर लाठी चलवा देता है.
लेकिन लाठी चलना अच्छा है. लाठीचार्ज प्रदर्शन का एक पक्ष है, किसी प्रदर्शनकारी के जीवन में यह जितना जल्दी आ जाए, उतना अच्छा. डर उतना जल्दी भागता है. ये मत सोचिए कि मैं लाठीचार्ज को इंडोर्स कर रहा हूं. बल्कि मैं एक पहले से ज्यादा बेख़ौफ़ हुजूम का और खुले दिल से स्वागत कर रहा हूं.:

उन्होंने एक घंटे बाद फिर लिखा: 

अब सुनिये
लड़कियां वापिस गेट पर आ गयीं हैं. एसएसपी की गाड़ी को घेर लिया है और पूछ रही हैं, “हमें मारा क्यों?” और यह भी कि “अब तो जान देकर रहेंगे.”
कहा था न कि लाठी एक बेख़ौफ़ कौम का निर्माण करती है.

सुबह तक बीएचयू में पुलिस बल के तैनात होने की खबरें हैं, लडकियां  अभी भी डटी हैं.

स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
लिंक  पर  जाकर सहयोग करें :  डोनेशन/ सदस्यता 

‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें :  फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं. ई बुक : दलित स्त्रीवाद 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles