बीएचयू में प्रशासन के गुंडे थे सक्रिय: लाठीचार्ज का आँखों देखा हाल

विकाश सिंह मौर्य


23 सितम्बर को दोपहर बाद अखिल विद्यार्थी परिषद् के उपद्रवी लड़कों ने अफवाह उड़ाई कि मुख्य गेट के सामने स्थित मदन मोहन मालवीय के काली रंग की प्रतिमा पर आन्दोलनरत विद्यार्थियों ने कालिख पोत दिया है. इसके बाद ही यहाँ पर पर माहौल में तबदीली आनी शुरू हो गयी. इसी बीच पहले एबीवीपी और अभी समाजवादी छात्र सभा के एक सदस्य ने आन्दोलन स्थल पर जाकर नारेबाजी करके महल को राजनितिक रंग देने का प्रयास किया. आरोप है कि उसे प्लान के तहत भेजा गया था. 23 सितम्बर को ही दोपहर बाद लगभग 3 बजे वीस. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने आन्दोलनकारियों को सन्देश भिजवाया कि ‘वह केवल छात्राओं से बात करेंगे किसी भी छात्र के सामने नहीं, साथ में पांच से अधिक छात्राएं नहीं होंगी. और यह वार्ता धरना स्थल यानि मुख्य गेट पर न होकर महिला महाविद्यालय (एम.एम.वी.) में होगी.’ पांच की संख्या को लेकर सभी आन्दोलनकारियों ने विरोध किया. बाद में यह तय हुआ कि ठीक है चाहे जितनी संख्या में आयें पर केवल छात्राएं ही आयेंगी. मुख्य गेट से सभी धरनारत छात्राओं को एम.एम.वी. में बुलाकर एक घंटे से अधिक समय तक बैठाये रखा गया और उनसे कोई मुलाकात करने नहीं आया. इस दौरान एमएमवी के सामने सीआरपीएफ और पीएस. छावनी बनाकर खड़ी रहीं. फिर लगभग चार बजे कहा गया कि वीसी त्रिवेणी संकुल में मुलाकात करेंगे. कुछ छात्राएं वहां भी गयीं. पर मुलाकात नहीं हो पाई. कुछ छात्राएं वीसी आवास के सामने भी उनसे मिलने को लेकर धरने पर बैठ गयीं.

इस बीच चार की संख्या में लोग आये और मुख्य गेट से ‘वीसी जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए जबरदस्ती अर्धसैनिक बलों और वाराणसी पुलिस को अन्दर घुसाने का प्रयास करने लगे. जब इधर इन्बका प्रयास विफल हो गया तो ठीक बगल में कैंपस में ही स्थित सर सुन्दर लाल चिकित्सालय के दरवाजे से उनको एंट्री दिलवाई. तब इस टुकड़ी ने एमएमवी पर जाकर छात्राओं पर लाठी चार्ज किया. आन्दोलनकारी छात्राओं अवगन छात्रों पर भाजपा और एबीवीपी के नेताओं और कुछ पा जाने के लालचियों ने वामपंथी और देशद्रोही होने का आरोप भी लगाया है. छात्राओं को इतना बुरे तरीके से पीटा जा रहा था कि उनके हाथ, मुंह, सिर कहीं भी लाठियां भांज दी जा रही थीं. कुल मिलाकर खौफनाक मंजर की शुरुआत यहीं से होती है. मेरे एक सीनियर, विजेंद्र मीना जो देर रात तक मुख्य गेट पर थे, रात में लगभग 10.30 पर मेरे पास उनका फोन आया कि मामला बहुत बिगड़ रहा है और वहां पर कुछ लोग हंगामा कर रहे हैं. हम लोग मुख्य गेट की तरफ जा ही रहे थे कि सूचना मिली कि लगभग 15 मिनट के बाद रात में वीसी आवास के पास छात्राओं पर भयंकर लाठीचार्ज किया जा रहा है. छात्राओं की सुरक्षा में उतरे और महिला पुलिस की मांग कर रहे छात्रों पर भी निर्मम तरीके से लाठीचार्ज किया गया. इस बीच ऐसे उपद्रवियों ने आगजनी कर दिया और एक बाइक को आग के हवाले कर दिया जिन्हें सुरक्षाकर्मी देखते रहे और उनको रोका-टोका नहीं. जबकि इसी समय ट्रामा सेन्टर से एक मरीज को दिखाकर आ रहे लाल बहादुर शास्त्री छात्रावास के लड़के को इन लोगों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. 23-24 सितम्बर की रात 12 बजे से 12.30 बजे तक अर्धसैनिक बल, पीएसी और बीएचयू का प्रक्टोरिअल बोर्ड बिड़ला हॉस्टल में घुस आया और कमरों की तलाशी लेने लगा. इसी समय मुख्य गेट के पास धरने पर बैठी छात्राओं पर भी जिलाधिकारी की उपस्थिति में लाठीचार्ज किया गया. तब बीएचयू प्रशासन के अनुसार किसी छात्र ने पेट्रोल बम फोड़ दिया, जबकि छात्रों का कहना है कि बम भी प्रशासन ने फोड़े थे.


‘टच ही तो किया है न और कुछ नहीं किया न’ : प्रशासन के जवाब से आक्रोशित लडकियां

24 सितम्बर को एमएमवी के सभी महिला छात्रावास, त्रिवेणी संकुल के सभी महिला छात्रावास, बिड़ला ‘ए’, ‘बी’ तथा ‘सी’ छात्रावास, लाल बहादुर शास्त्री छात्रावास एवं विज्ञान संकाय का ब्रोचा छात्रावास (यह संभवतः एशिया का सबसे बड़ा रिहायसी छात्रावास भी है) जबरदस्ती करके खाली करवा लिए गये. लड़कियों से दबाव डलवाकर छुट्टी का प्रार्थना पत्र लिखवा लिया गया. इन सभी को इस तरीके से बाहर भगाया गया कि जैसे ये सभी छात्राएं और छात्र जबरदस्ती कब्ज़ा करके पहले से यहाँ पर रह रहे थे और प्रशासन ने अतिक्रमण हटवाया हो. 25 सितम्बर की शाम तक भी मुझे त्रिवेणी संकुल और एम.एम.वी. की कुछ लड़कियां परेशान हालत में मिली हैं जो कहीं रुकने का ठिकाना ढूढ़ रही थीं. बीएचयूमुख्य गेट से हॉस्टल रूट पर ब्रोचा छात्रावास तक सी.आर.पी.एफ. के जवानों को ऐसे तैनात किया गया है की जैसे आतंकवादियों को ढूढ़ने का कोई अभियान चलाया गया हो. बीच में चिकित्सालय के सामने महिला पुलिस के भी लगभग चालीस की संख्या में सिपाही लगे हुए हैं. यह स्थिति 25 सितम्बर की है. जवानों को भी सही सूचना उनके अधिकारीयों ने नहीं दिया है. सी.आर.पी.एफ. के एक जवान ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें बताया गया है कि कुछ उग्रवादी और नक्सल समूहों ने विद्यार्थियों को भड़काया है.

इस आन्दोलन को जहाँ देशभर के विश्वविद्यालयों और देश का भला चाहने वाले लोगों का समर्थन मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ यहीं के कुछ तुलसीदासी परंपरा के बजबजाते हुए मस्तिष्क वाले प्रोफ़ेसर, विद्यार्थी एवं महिला अध्यापक भी लड़कियों को ही भला-बुरा कह रहे हैं. किन्तु ये लोग सहज ही दया के पात्र बनते नजर आ जा रहे हैं. पुलिस और पी.ए.सी. की पिटाई में एम.एम.वी. के समाजशास्त्र विभाग की अध्यापिका डॉ. प्रतिमा गोंड को भी चोटें आयी हैं. डॉ. प्रतिमा बीएचयू शिक्षक और कर्मचारियों में एकमात्र सदस्य हैं जो छात्राओं के समर्थन में खुलके आगे आई हैं. बहुत सारे सनातनी और खुद को प्रगतिशील कहने वाले अध्यापकों ने वीसी के पक्ष में बयान जारी किया है. ये बुद्धिजीवियों की उस प्रजाति से सम्बंधित हैं जिनका धर्म सत्ता की सेवा है. 25 सितम्बर की शाम को वीसी बनारस छोड़कर दिल्ली जा चुके हैं. यहाँ भी दोतरफा पेंच है. एक तो जो सबको दिख रहा है कि आन्दोलन से घबराकर भागा है. दूसरा मामला नियुक्तियों में भयानक भ्रष्टाचार और अनियमितता से सम्बंधित है. कुलपति ने कुछ महत्वपूर्ण पदों के लिए आज ही साक्षात्कार लिया है. जिसमे चिकित्सालय अधीक्षक सहित तमाम महत्वपूर्ण पदों का मामला शामिल है.  खबर है कि इनकी नियुक्तियों का लिफाफा दिल्ली में ही खुलेगा.

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमिश्नर से इस मामले की रिपोर्ट देने को कहा है. और इधर कमिश्नर ने फरमान जारी किया है कि जिसके पास भी इस मामले से सम्बंधित कोई तथ्य हो, उनसे उनके ऑफिस में मिल सकता है. इसका दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि कमिश्नर और उनकी टीम खुद बीएचयूकैंपस में नहीं आयेगी, जो अपने रिस्क पर सूचना देना चाहता हो जाए और बताये. एक मामला अहम मुद्दा यह है कि जब लगभग सभी पीड़ितों को यहाँ से भगा दिया गया है, तब ऐसे में पूछताछ किससे और कैसे होगी? रिपोर्ट में क्या दिखाया जाना है? लगता है यह भी फिक्स हो चुका है. क्या यह वीसी को बचाने और कोई जबरदस्त गेम खेलने की सरकार की कोई परियोजना तो नहीं बन रही है?

बीएचयू सहित बनारस के अन्य विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों का एक समूह जंतर-मंतर पर धरने के लिए रवाना हो चुका है और शायद रिपोर्ट पब्लिश किये जाने तक प्रदर्शन में शामिल भी हो जाये. छुट्टियों के बाद आन्दोलन की स्थिति क्या होगी? अभी से इस पर कुछ भी कहा जाना मुश्किल है. इसका कारण यह है कि संभवतः तब तक आन्दोलन का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो जायेगा. और यही विश्वविद्यालय प्रशासन, राज्य एवं केंद्र सरकारें चाहती भी हैं. देखना यह है कि यह उत्तेजना, विश्वाश और प्रतिबद्धता कब तक कायम रहती है? क्या अगली बार कभी भी छेड़खानी होने पर कोई लड़की कुछ ऐसा कदम उठाएगी, जो बाकियों के लिए एक नजीर हो.

क्यों कर रही हैं लडकियां पीएम मोदी का विरोध (!)

बीएचयू के मामले को देखकर बीएचयू प्रशासन एवं वाराणसी प्रशासन सहित केन्द्रीय बलों के रवैये को देखते हुए और इन पर कुछ बड़े मीडिया घराने (जिनकी पहुँच व्यापक है) और प्रिंट मीडिया के रणनीतिक स्टैंड को देखकर तो लगता है कि कश्मीर घाटी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को किस विकृत और अधकचरे ढंग से देश के सामने परोसा जाता होगा? वैसे इस मामले में मेरा अनुभव कोई पहली बार नहीं है. किन्तु इस बार तो यह पक्के तौर पर प्रतीत होता है कि आम कश्मीरी (जिसमें से एक नाम नजीब भी थे) जिन्हें सेना और सरकार द्वारा सताया जाता है. निर्दोष और भोले लोग होंगे. वैसे यही खेल बुंदेलखंड के तथाकथित दस्यु प्रभावित क्षेत्र के बारे में भी सही है. अब बनारस और अन्य जगहों के सरकारी बयानबाजी को सच मानने वालों को भी हैदराबाद, जेएनयू.और अन्य विश्वविद्यालयों की घटनाओं वहां के बयान और तोड़-मरोड़कर सच की ऐसी-तैसी करने वालों के बारे में अपनी सही समझ विकसित कर लें.

बनारस के आस-पास के गाँव जहाँ अभी भी दुर्गा पूजा जैसे धूर्तों के जाल में फंसे हुए हैं. और इधर लड़कियों पर सरकारी और सरकार प्रायोजित शोहदों की आफत बरस रही है. अब भी ये चेत जाएँ तो समय है. यह समय नींद से उठकर सुबह की तेज दौड़ करने का है. अब भी जो नहीं जागेगा, वह सोता ही रह जायेगा. तुलसीदास की ‘सकल ताड़ना के अधिकारी’ चरितार्थ हो ही रही है. यहाँ एक मामला यह भी है कि आन्दोलन में शामिल यही लड़कियां सावन में विश्वनाथ मंदिर में बगैर कुछ खाए-पिए सोमवार को दूध बरबाद करने भी बड़ी संख्या में जाती हैं. लगभग प्रत्येक दकियानूसी व्रत-त्यौहार को बिना अपने बुद्धि-विवेक का प्रयोग किये मानती हैं. इनके रक्षाबंधन का कौन सा सकारात्मक प्रभाव होता है हमें तो कहीं दिखाई नहीं देता.

आन्दोलन में शामिल इन सभी छात्राओं एवं छात्रों को कम से कम जोतिबा फुले और सावित्री बाई फुले जी के संघर्ष को, उनके साहित्य को, सत्य शोधक समाज के कार्यों को पढ़ना-समझना चाहिए. तभी आगे का रास्ता प्रशस्त होगा. यह इसलिए भी आवश्यक है कि आज शिक्षा प्राप्त करने वाली प्रत्येक महिला एवं लड़की इस दंपत्ति की कर्जदार है. और वाह भी ऐसा कर्ज जो कभी भी उतार पाना शायद संभव नहीं हो पाए. अन्यथा की स्थिति में तो छेड़खानी और बलात्कार होते रहेंगे. इनके खिलाफ आवाजें दबाई जाती रहेंगी और…और कभी-कभी ऐसे आन्दोलन भी हो जाया करेंगे जिन्हें बाद में राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित कर दिया जाता रहेगा. हाँ, ऐसे आंदोलनों और प्रदर्शनों से उम्मीद तो जगती है और इस बार भी उम्मीद बड़े पैमाने पर है. पर इसका भविष्य इसके रणनीतिकारों एवं भुक्तभोगियों की जागरूकता का स्तर ही तय करेगा. उम्मीद है कि छात्राओं की एक संवेदनशील, जिम्मेदार और समाज में स्थायी बदलाव के लिए प्रतिबद्ध पीढ़ी इस आन्दोलन के माध्यम से दक्षिण एशिया को प्राप्त होगी. क्योंकि,
औरों का घर जले तो होली फाग समझ में आती है.
अपने घर में चिंगारी भी आग समझ में आती है.

विकाश  इतिहास विभाग, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज,  बीएचयू, वाराणसी में शोधार्थी हैं.  इमेल: vikashasaeem@gmail.com

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