अर्थशास्त्र में स्नातक ऋतु जयसवाल ने दिल्ली में होममेकर की अपनी सफल जिन्दगी से शिफ्ट लेते हुए 2014 में सीतामढी की सिंहवाहिनी पंचायत में सामाजिक गतिविधियाँ शुरू की, जिसे वे इस इलाके की बदहाल सूरत को देखते हुए लिया गया निर्णय बताती हैं. उनका दावा है कि उनके ही प्रयासों से आजादी के बाद ‘नरकटिया’ गाँव में बिजली आयी. इसके अलावा उन्होंने सामाजिक जागृति कार्यक्रमों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शैक्षणिक सेमिनारों के जरिये इस इलाके के प्रति अपने स्वप्न से लोगों को जोड़ना शुरू किया. जल्द ही 2016 में वे सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया चुनी गयीं. इस तरह दिल्ली में अपेक्षाकृत सुविधाजनक जिन्दगी को छोड़कर अपने बल पर कुछ करने की जिद्द के साथ वे उन्होंने पंचायत में नियमित और जिम्मेदारीपूर्वक अपेक्षाकृत कठिन जीवन का चुनाव किया.
बदल रही हैं पंचायत की सूरत
मुखिया बनने के पूर्व और उसके बाद ऋतु जायसवाल ने इस पंचायात की बुनियादी सुविधाओं परा अपना ध्यान दिया, बिजली, शौचालय सड़क जैसे इंफ्रास्ट्रक्चरल विकास पर पहल लेने के अतिरिकित शिक्षा उनकी प्राथमिकताओं में है. स्त्रीकाल से बात करते हुए वे कहती हैं, ‘ यहाँ के लगभग 85% लोग शौचालय के लिए बाहर जाते रहे हैं. हमने 2100 से ज्यादा शौचालय अपनी पंचायत में अभी तक बनवाये हैं.’ ऋतु कहती हैं कि शिक्षा उनकी बड़ी प्राथमिकताओं में है और वे उसपर विशेष ध्यान देती हैं. वे स्वयं बच्चों को अपने स्तर पर पढवा रही हैं. वे कहती हैं कि ‘यहाँ दलितों की, खासकर मुसहर जाति की आबादी सबसे ज्यादा है. यह समुदाय बमुश्किल अपने लिए दो जून की रोटी जुटा पाता है. मूलतः खेत मजदूर और अन्य रूपों में मजदूर इस समुदाय के बच्चों को स्कूल तक पहुँचना बहुत मुश्किल काम है. इस काम के लिए हमने 12 लड़कियों की एक टीम बनाई है. उन्हें भी प्रशिक्षित किया गया है, सिलाई, बिनाई और ब्यूटीशियन, तथा कम्प्यूटर के कोर्स सीख रही हैं वे. उन्होंने और हमने बड़ी मुश्किल से इन दलित घरों से बच्चों को पढाई के लिए प्रेरित किया है. आज 500 से अधिक बच्चों को हम स्कूल के बाद, स्कूल के बाहर पढ़ा रहे हैं. हालात यह है कि मेरे पंचायत में एक भी ढंग का स्कूल नहीं है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत एक स्कूल ऐसा है, जो कभी खुलता ही नहीं है. मैं कई दिनों से उस स्कूल पर जा रही हूँ, शिक्षक आता ही नहीं है.’ ऋतु कहती हैं, ‘ बिहार में शिक्षा की स्थिति बहुत बुरी है. पिछले कुछ एक दशक से यह और गर्त में ही गयी है. इस बार मैट्रिक की परीक्षा का परिणाम बहुत बुरा रहा. स्कूलों में बच्चे सिर्फ मिड डे मिल के लिए जा रहे हैं. उनके अटेंडेंस रजिस्टर में मेंटेन किये जा रहे हैं. बहुत बुरा हाल है, इस पर काम करने की जरूरत है.’
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आरक्षण जरूरी लेकिन वह आख़िरी उपाय नहीं
खुद ओबीसी से आने वाली ऋतु यह मानती हैं कि समाज में समानता के लिए आरक्षण तबतक जरूरी है, जबतक समानता के दूसरे कारगर उपाय नहीं किये जायें. कहती हैं ‘ स्कूलों में, प्रायमरी स्तर पर जबतक समान शिक्षा लागू नहीं होती समता का रास्ता तबतक नहीं बनेगा. समान शिक्षा, समान स्कूल-जहाँ आम और ख़ास, सभी के बच्चे पढ़ते हों.’ ऋतु कहती हैं कि हमें निरंतर जाति के खिलाफ काम करने की जरूरत है. वे इसके लिए खुद को सजग भी बताती हैं. उनके अनुसार उनकी पंचायत में उनकी जाति से मात्र छः परिवार आते हैं. वे यहाँ जाति से ऊपर स्वीकृत हैं. कहती हैं ‘हालात यह कि जातियों का वर्गीकरण देश में एक समान नहीं है. बिहार में मेरी जाति ओबीसी है उत्तर प्रदेश में जनरल. जरूरत है जातियों में प्रतिभा निर्माण की, जरिया आरक्षण हो यह आख़िरी उपाय नहीं है, इसके लिए ठोस और कारगर कदम की जरूरत है.
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राजनीति में छलांग की जल्दी नहीं
ऋतु अपने काम के प्रति गंभीर हैं. वे राजनीति में आगे बढ़ने को लेकर कहती हैं कि जनता ने उन्हें एक भूमिका के लिए चुना है तो वे उसे ईमानदारी से अपना वक्त और समर्पण देंगी. कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि आप मुखिया बनें, फिर विधायक बनने की हड़बडी में हों और फिर संसद तक पहुँचने की जल्दीबाजी में. जनता आपको विश्वास से चुनती है. यदि आपको मुख्यमंत्री चुन चुकी है तो आप इसपर खुद को सिद्ध करें न कि प्रधानमंत्री बनने की होड़ में लग जायें. ऋतु कहती हैं कि ‘अभी तो हमारे पास सबसे बड़ा लक्ष्य है कि अपनी पंचायत को सुविधा संपन्न करूं. खुद को साबित करने की सबसे बड़ी जरूरत वंचित समूहों को ही होता है. महिला जनप्रतिनिधियों के मामले में, खासकर बिहार में, हालत यह है कि उनके पति निर्णय लेते हैं. वे अपनी गाड़ियों पर शौक से मुखियापति, प्रमुखपति से लेकर विधयाकपति तक लिखवाकर घूमते हैं और अपनी पत्नी की जगह उनके निर्वाचन क्षेत्र के सारे निर्णय खुद लेते हैं. वास्तविक और चुनी हुई जनप्रतिनिधि स्टैम्प बन जाती है. अपने मामले में मैं खुशनसीब हूँ कि मेरे पति दिल्ली में कार्यरत हैं और उनके स्वभाव में मेरे कामों में दखल देना नहीं है.” ऋतु जयसवाल उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच (मुखिया) के तौर पर सम्मानित भी हो चुकी हैं.
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निजी जीवन
ऋतु जयसवाल ( 26 अगस्त 1977) का जन्म एक व्यवसायी परिवार में हाजीपुर, बिहार में हुआ. 1996 में उनका विवाह 1995 बैच के सिविल सर्विस ऑफिसर अरुण कुमार से हुआ. पति इस समय सेन्ट्रल विजिलेंस कमिशन में डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. इनके दो बच्चे, बेटा आर्यन और बेटी अवनी हैं. सेंट पॉल स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा और वैशाली महिला कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक ऋतु भरत नाट्यम और कथक की नृत्यांगना भी हैं.
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