शोधार्थियों ने मनाई सावित्रीबाई फुले जयंती

डेस्क 



किसी भी समाज में क्रांतिकारी बदलाव तब ही आ सकता है जब प्रत्येक स्वाभिमानी व्यक्ति एक ईकाई के रूप में स्वतंत्र एवं व्यापक समाज के हित में चिंतन तथा कार्य करे. यह कार्य निश्चित रूप से शोषण एवं शोषक वर्ग के खिलाफ जाने वाला साबित होगा.  3 जनवरी को भारत की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले की 187वीं जयंती के अवसर पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विश्वनाथ मंदिर परिसर एक संगोष्ठी का आयोजन में किया गया. इस कार्यक्रम में सभी उपस्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ एवं अन्य शैक्षणिक संस्थाओं से सम्बंधित शोध छात्राओं, शोध छात्रों एवं स्नातक, परास्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों ने आपस में एक सामाजिक-शैक्षणिक संवाद किया. इस संवाद का केंद्र माता सावित्री के जीवन संघर्ष एवं उनके समय की सामाजिक-धार्मिक ठेकेदारों की कुटिल नीतियों की चर्चा की गयी. प्रतिभागियों ने अपने निजी अनुभव भी इसमें साझा किये.

इस सघन संवाद का परिणाम निकल कर आया कि आज सावित्री माता के समय जैसी स्थितियां और चुनौतियाँ तो हमारे सम्मुख नहीं हैं किन्तु युवा पीढ़ी में वो चेतना नहीं है जिसकी जरुरत आज भारत के नब्बे फीसदी समाज को है. बंगाल तथा महाराष्ट्र में हुए सामाजिक आंदोलनों की चर्चा करते हुए विकाश सिंह मौर्य ने कहा कि बंगाल के आन्दोलन जहाँ समाज के उच्च तबकों के नेतृत्व में था वहीं महाराष्ट्र का लगभग समूचा आन्दोलन किसान एवं अन्य सहायक जातियों के नेतृत्व में किया गया. भारत की प्रथम मुस्लिम शिक्षिका फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई उस्मान शेख़ के बारे में बताया कि किस तरीके से उन्होंने सर्व समाज विशेषकर महिला शिक्षा के लिए सर्वस्व योगदान किया था. सुनील कश्यप ने इस अवसर पर जयपाल सिंह मुंडा एवं एकलव्य को भी प्रासंगिक बताया. शिवेंद्र कुमार मौर्य ने सावित्री माता का जीवन परिचय बताया. शुभम जायसवाल ने आधुनिक शिक्षा खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा के पुरुष सत्ता के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण पर व्यंग करते हुए कहा कि इसलिए बच्चियों को पढ़ाया जाता है कि बी.ए. कर लेने पर शादी ठीक से हो जाएगी.
निर्मला वर्मा ने अपना अनुभव सुनाते हुए बताया कि ‘समाज में किस तरह से बेटियों के साथ भेदभाव किया जाता है?’ उन्होंने अब तक की अपनी सफलता का श्रेय अपने भाई को दिया. राहुल सिंह राजभर ने देश की वर्तमान राजनीतिक स्थितियों के बारे में बताया कि किस तरह से देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाने की संभावना दिख रही है. सभी अपनी ढपली अपना राग लिए हुए अपने-अपने राष्ट्र की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने इतिहास लेखन पर भी सवाल उठाये एवं इतिहास के पुनर्लेखन की जरुरत पर बल दिया.

अध्यक्षता करते हुए रामायण पटेल ने चेतना निर्माण एवं सम्यक इतिहास बोध पर बल दिया. उन्होंने 1920 के दशक को आधुनिक भारतीय इतिहास का निर्णायक दशक बताया. इस दौरान राजर्षि शाहूजी महाराज की हत्या, गीता प्रेस एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना, साइमन कमीशन का आगमन आदि घटनाएँ घटी, जिसका निर्णायक प्रभाव स्वतंत्रता पश्चात् के भारत पर सर्वाधिक पड़ा है. इस संगोष्ठी में अनीता, विनय पटेल, अनुराग पटेल, योगेश राज, सोनिया कुमारी, उदय भान सिंह, राजू पटेल, चन्दन सागर और राम करन सहित तीन दर्जन से अधिक लोग उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संयोजन विकाश सिंह मौर्य ने किया.

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