महिलाओं को संसद में होना ही चाहिए : वेंकैया नायडू

नवल कुमार

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने  को कहा कि महिलाओं को अवसर दीजिये और देखिये कि वे किस तरह खुद को साबित करती हैं. वे जहां भी चुनी गई हैं, जहाँ भी उन्हें आरक्षण मिला है उन सदनों में उन्होंने साबित किया है कि  वे महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं. उन्हें उच्च सदनों में भी आरक्षण मिलना चाहिए। ये बातें नायडू ने 3 जनवरी को द  मार्जिनलाइज्ड  प्रकाशन द्वारा प्रकाशित भारत के राजनेता सीरीज की किताब ‘रामदास आठवले’ का स्पीकर हॉल, कांस्टीट्यूशन क्लब में विमोचन करते हुए कही. उन्होंने समाजिक न्याय मंत्री ‘रामदास  आठवले’ की राजनीति को समाज में समता और शान्ति स्थापित करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि इस सीरीज में यह दूसरी किताब है और अन्य राजनेताओं पर भी किताब आ रही है, यह महत्वपूर्ण है कि जनता तक राजनेताओं की बात जाये।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि दुनिया में शान्ति और समन्वय से ही समता स्थापित हो सकती है संघर्ष जरूरी है लेकिन अहिंसक रास्ते से. पैनल डिस्कसन में बोलते हुए सीपीआई के सांसद डी  राजा ने रामदास आठवले द्वारा क्रिकेट में भी आरक्षण की मांग किये जाने को याद दिलाया। राजा ने कहा कि समता का सन्देश देने वाले नेताओं में डा.  अम्बेकडर के योगदान को कम करके देखा जाता है अभी उनका अर्थशास्त्री के रूप में मूल्यांकन होना बाकी है. प्रकाशक संजीव चंदन ने कहा कि  किताब की श्रृंखला जारी रहेगी। यह इस सीरीज की दूसरी किताब है, पहली किताब ‘अली अनवर’ थी.  कार्यक्रम में पूर्व सांसद अली अनवर भी उपस्थित थे तथा बड़ी संख्या में रामदास आठवले के समर्थक भी शामिल हुए. सञ्चालन सामाजिक कार्यकर्ता मनीष गवई ने किया। स्वागत भाषण सर्व समाज संघर्ष समिति के अध्यक्ष वेदपाल तंवर ने किया।
 इस श्रृंखला  के तहत देश 30 प्रमुख समाज-राजनीति कर्मियों पर किताबें प्रकाशित की जानी हैं। इसमें ऐसे  सामाजिक-राजनीतिक नेताओं को जगह दी गई है, जिनका न सिर्फ समाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान रहा हो, बल्कि जिनकी वैचारिकी मौलिक और भारतीय समाज और  राजनीति की गतिकी की दिशा मोड़ने वाली रही हो।

किताब से कुछ कोट : 
1. मैंने अटल जी की बीजेपी सरकार गिरायी थी. 1999 में 13 महीनों के बाद अटल जी सरकार एक वोट से गिर गयी थी. तब हमारे पीछे प्रमोद महाजन और दूसरे भाजपा नेता लगे थे कि सरकार को समर्थन दीजिये. वे हम चारो को मंत्री बनने के लिए तैयार थे, प्रकाश अम्बेडकर उनसे सहमत भी थे, लेकिन हम तीन- गवई साहेब, योगेन्द्र कबाड़े और मैं तैयार नहीं थे. (पृष्ठ 25)
2. मुझे लगता है कि यदि सिर्फ राम मंदिर की बात करती रहेगी तो मुझे लगता है कि सत्ता में रहना या बाद में आना मुश्किल है. लेकिन नरेंद्र मोदी आरएसएस को बदल देंगे. मुझे लगता है कि अभी तक वे अपना लाइन नहीं छोड़ रहे हैं ‘ सबका साथ-सबका विकास .’ पृष्ठ 29
3. नानकचंद रत्तू और सोहनलाल शास्त्री ने माई साहब ( बाबा साहेब की दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर)को बदनाम करने की कोशिश की. ( पृष्ठ 36-3
4. शिक्षा और जमीन का सराकारीकरन जरूरी
किताब के बारे में
किताब का नाम : ‘रामदास आठवले’
पुस्तक श्रृंखला : भारत के राजनेता
संपादक : राजीव सुमन
श्रृंखला संपादक : प्रमोद रंजन
प्रकाशन : द मार्जिनलाइज्ड, दिल्ली
पृष्ठ : 122
मूल्य : 200 रूपए (पेपर बैक), 400 रूपए (हार्डबाऊंड)
संपर्क : 8130284314,9968527911 (प्रकाशक)

‘रामदास आठवले’ शीर्षक श्रृंखला की इस दूसरी किताब में केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले का एक लंबा साक्षात्कार व उनके भाषणों को संकलित किया गया है, ताकि राजनीति विज्ञान के अध्येता उनके मूल विचारों को समझ सकें। श्रृंखला के तहत आठवले का चयन मुख्य रूप से दलित पैंथर से उनके आरंभिक जुड़ाव तथा दलित राजनीति के लिए शहरी जमीन में उगाने की रचनात्मक कोशिशों के कारण किया गया है। उन्होंने अपने आंदोलनों से मुम्बई जैसे महानगर में दलित राजनीति के लिए ठोस संभावनाएँ पैदा कीं।

इस किताब में निम्नांकित मामलों की जानकारी पाठकों को मिलती है : 
सविता आंबेडकर को दिलाया सम्मान
रामदास आठवले के लिए आंबेडकर महत्वपूर्ण रहे हैं। इसी किताब में संकलित एक साक्षात्कार में वे बताते हैं कि ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं सविता आंबेडकर(जिन्हें वे सम्मान से माई साहब कहते हैं) लंबे समय तक दलित कार्यकर्ताओं द्वारा बहिष्कृत रहीं। कुछ नेताओं ने  उन्हें बाबा साहब का हत्यारा बता दिया। वे महाराष्ट्र नहीं जाती थीं, दिल्ली के महरौली में रहती थीं। आठवले जी बताते हैं कि उन्होंने एक अभियान चलाकर उन्हें दलित समाज में स्थापित किया।

                                                               
दलित पैंथर कार्यकर्ता से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
रामदास आठवले ने अपनी राजनीतिक यात्रा कैसे शुरू की, यह उनके लिए समझना और जानना रूचिकर होगा जो दलित आंदोलन से सरोकार रखते हैं। नामदेव ढसाल, जे बी पवार,राजा ढाले आदि द्वारा शुरू किया गया दलित पैंथर आंदोलन दलित युवाओं के बीच जंगल में लगी आग की तरह फैला। आठवले भी इस आंदोलन में सक्रिय हुए। लेकिन बाद के दिनों में अनेक कारणों से यह आंदोलन अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं कर सका और राजनीतिक मोर्चे पर बिखर गया। आठवले सक्रिय रहे। उन्होंने पहल करते हुए पैंथर्स पार्टी आफ इंडिया का गठन किया।

महाराष्ट्र में दलित आंदोलन के चेहरा बने आठवले
बाबा साहब के निधन के बाद महाराष्ट्र में दलित आंदोलन की गति धीमी पड़ गई थी। दलित पैंथर्स के कारण आग तो लगी लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर बिखराव के बाद संकट गहराने लगा था। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जिसकी स्थापना बाबा साहब ने की थी वह नेतृत्वहीनता का शिकार थी। रामदास आठवले ने महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को शिवसेना और कांग्रेस के समानांतर खड़ा करने की कोशिश की। वह सफल भी रहे। यह किताब उस कालखंड के बारे में बकौल रामदास अठावले राजनीतिक संघर्ष की गाथा कहती है जिसकी बुनियाद बाबा साहब ने डाली थी।
यह किताब रामदास आठवले की राजनीतिक यात्रा के बारे में बताती है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से उनका जुड़ाव का प्रसंग इसकी बानगी है। लेकिन स्वयं आठवले कहते हैं कि शिवसेना के साथ चुनाव में जाने से पहले उन्होंने अपने दल के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ करीब 6 महीने तक बैठकें की। सबके विचार जान तब उन्होंने यह फैसला लिया था। यह किसी एक व्यक्ति का फैसला नहीं था। हालांकि आठवले स्वीकार करते हैं कि यह एक राजनैतिक जुड़ाव था। वैचारिक मतभेद बने रहे।
आरपीआई की राजनीति का इतिहास 
आठवले ने इस किताब में संकलित अपने साक्षात्कार में महाराष्ट्र में आरपीआई की भूमिका, उसके अपने इतिहास और अंदरुनी राजनीति की चर्चा की है. उन्होंने कई अवसरों पर आरपीआई के सभी धड़ों के साथ आने और बिखरने के अंदरखाने की दिलचस्प बातें इस किताब में बतायी हैं
नवल कुमार फॉरवर्ड प्रेस के हिन्दी संपादक हैं.


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