बेटियों का नाम अनचाही, फालतू…. (बदलाव के दौर में रूढ़िवादी मानसिकता की शिकार होती बेटियाँ)!

मुजतबा मन्नान

हाल ही में एक खबर अखबारों की सुर्खियां बनी।दरअसल, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिला मुख्यालय से करीब पैंतीस किलोमीटर दूर बिल्लौद गाँव में मन्नत मांगने पर जब दो परिवारों की बेटे की चाह पूरी नहीं हुई तो उन्होंने अपनी आखिरी बेटियोंका नाम ‘अनचाही’ रख दिया। इन दोनों बेटियों का नाम जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल व आधार कार्ड में भी ‘अनचाही’ लिखा गया।इन दोनों ‘अनचाही’ नाम की लड़कियों में से एक मंदसौर कॉलेज में बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा है।

खबर के अनुसार लड़की की माता से जब ‘अनचाही’ नाम रखने का कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ‘मेरे पति वर्तमान में लकवे से पीड़ित हैं। हमने बेटे के लिए मन्नत मांगी थी, लेकिन पाँचवी संतान भी लड़की पैदा हुई। जब पाँचवी संतान भी लड़की पैदा हुई तो हमने बेटे की चाह पूरी नहीं होने पर उसका नाम ‘अनचाही’ रखा ताकि, अगली संतान लड़का पैदा हो।’ इसी गाँव में एक और परिवार है जिसके यहां बेटे की मन्नत मांगने के बाद भी तीन लड़कियां पैदा हो गई तो उन्होंने भी बेटे की चाह पूरी न होने पर अपनी आखिरी बेटी का नाम ‘अनचाही’ रख दिया इत्यादि।

कुछ दिन पहले,प्राथमिक शिक्षा से जुड़े एक सर्वेक्षण के दौरान मुझे राजस्थान के टोंक जिले के एक राजकीय विद्यालय में पाँचवीं कक्षा के बच्चों से बातचीत करने का मौका मिला। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि कक्षा में पढ़ने वाले कुल तैंतीस विद्यार्थियों में अट्ठाइस लड़कियां हैंतथा स्कूल में पढ़ने वाले कुल एक सौ इकसठ विद्यार्थियों में से एक सौ तीन लड़कियां हैं। उस समय मैंने सोचा किगाँव के लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हैं, इसलिए सभी लोग लड़कियों को पढ़ा रहे हैं।

कक्षा में पहुंचने पर मैं असमंजस में पड़ गया कि बच्चों से बातचीत की शुरुआत कहां से करूँ-पाठ्यपुस्तक से या किसी और विषय से!आखिरमैंने पहल की और सभी बच्चों से उनका नाम और उनके मनपसंद विषय के बारें में पूछा। सभी बच्चे उत्साह के साथ अपना नाम और पसंद का विषय बताने लगे। जैसे ‘मेरा नाम सुनीता है और मुझे हिन्दी विषय पढ़ना अच्छा लगता है, मेरा नाम रमेश है और मुझे गणित विषय पढ़ना अच्छा लगता है, आदि। लेकिन परिचय के दौरान दो छात्राओं का नाम सुन कर मैं सोचने पर मजबूर हो गया। छात्राओं के नाम थे ‘फालतू’ और ‘अंतिमा’।

जब मैंने छात्राओं से उनके नाम का मतलब पूछा तो मेरा प्रश्न सुनते ही उनका सारा उत्साह एकदम खत्म हो गया और वह शांत होकर इधर-उधर देखने लगी और कक्षा के अन्य बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। मैंने स्थिति को भांपते हुए अपना प्रश्न बदला और बच्चों से उनके मनपसंद विषय पर बातचीत की। कक्षा के बाद मैंने विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों से इन लड़कियों के नामों को लेकर चर्चा की। शिक्षकों ने बताया कि जिन परिवारों में लड़कियां अधिक जन्म लेती हैं, लेकिन परिवार के लोगों को लड़के की कामना होती है तो उन परिवारों में माता-पिता इस प्रकार के नाम रख देते हैं। उनकी धारणा होती है कि ऐसा नाम रखने से जन्म लेने वाली अगली संतान लड़का पैदा होगी।

सर्वेक्षण के दौरान मुझे दस विद्यालयों में जाने का मौका मिला। इन विद्यालयों में मुझे अपने परिवार  द्वारा अनपेक्षित लड़कियों के इस प्रकार के नाम सुनने को मिले जैसे ‘फालतू’, ‘अंतिमा’, ‘आचुकी’, ‘रामभतेरी’, ‘रामघणी’ और ‘इतिश्री’आदि।इनका मतलब होता है- ‘यह अंतिम है,लड़की आ चुकी है,राम लड़कियां बहुत हो चुकी है और यह आखिरी है’।

जब मैंने शिक्षकों से विद्यालय में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों के अधिक नामांकन के बारें में पूछा तब शिक्षकों ने मुझे बतायाकि अधिकतर माता-पिता लड़कों को निजीविद्यालयों में तथा लड़कियों को राजकीयविद्यालयों में पढ़ने के लिए भेजते हैं। शिक्षक ने पड़ोस के एक निजी विद्यालय का उदाहरण दिया। उस विद्यालय में पढ़ने वाले कुल तीन सौ पचास विद्यार्थियों में लड़कियों की कुल संख्या तिहत्तर है। सर्वेक्षण के दौरान मैंने भी देखा कि राजकीय विद्यालयों में प्राथमिक स्तर पर लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का नामांकन अधिक हैजबकि आसपास के निजी विद्यालयों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का नामांकन ज्यादा है।

दरअसल,वर्तमान समय में बच्चे की शिक्षा में खर्च होने वाले रुपये को निवेश के तौर पर देखा जाता है इसलिए सभी लोग सुरक्षित निवेश करना चाहते हैं। समाज में आम धारणा प्रचलित है कि लड़का हमेशा माता-पिता के साथ रहता है और लड़की पराये घर की अमानत होती है। इसलिए लड़के को लड़की के मुक़ाबले अधिक तवज्जो दी जाती है हालांकि शिक्षित एवं आर्थिक रूप से मजबूत परिवारों में लड़की को भी लड़के के बराबर पढ़ने के मौके दिए जाते हैं। लेकिन उन परिवारों में भी उच्च शिक्षा में लड़कियों को लड़कों के मुक़ाबले कम अवसर दिए जाते हैं।

समाज में लड़कियों को लेकर कई प्रकार की धारणाएँ प्रचलित हैं, जैसे लड़कियां पराये घर की अमानत होती हैं, लड़कियों को पढ़-लिख कर नौकरी नहीं करनी हैं, लड़कियों को सभी घरेलू काम आने चाहिए और लड़कियां परिवार की इज्ज़त होती हैं आदि। इस प्रकार की धारणाओं के चलते अनेक लड़कियां शिक्षा हासिल करने से वंचित रह जाती है क्योंकि घर-परिवार में लड़कियों से अधिक कार्य करवाए जाते हैं और उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है।इसका प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ता है। ग्रामीण भारत के इलाकों में अक्सर देखने को मिलता है कि घरेलू कार्यों व खेतीबाड़ी की वजह से लड़कियों को उनके माता-पिताविद्यालय जाने से रोक लेते हैं।इसकी वजह से उनके सीखने का स्तर प्रभावित होता है। अधिकतर लड़कियाँ प्राथमिक स्तर के बाद स्कूल छोड़ देती हैं।पूरे भारतवर्ष में लड़कियों का विद्यालय छोड़ने कि दर लड़कों की अपेक्षा अधिक है।

यह सच है कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ लोगों में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है और सरकार द्वारा भी लड़कियों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए अलग-अलग राज्यों में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लाड़ली बेटी, बेटी है अनमोल, लाड़ली लक्ष्मी योजना, भाग्यश्री योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, धनलक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री सुभलक्ष्मी योजना, कन्या विवाह योजना, बालड़ी रक्षक योजना और गर्ल चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम आदि योजनाएं चलाई जा रही हैं।लेकिन लोगों की सोच में लड़कियों के प्रति बहुत ज्यादा बदलाव नहीं दिखाई देता है। इस स्थिति का समाधान समाज की मानसिकता में व्यापक सकारात्मक बदलाव लाने पर ही संभव है। इसलिए ग्रामीण भारत के इलाकों में स्कूली स्तर पर समुदाय के साथ मिलकर अधिक प्रयास करने की जरूरत  हैताकि लोगों में लड़कियों और उनकी शिक्षा के प्रति जागरूकता फैल सके।

संदर्भ,
1. मध्य प्रदेश: बेटे की चाह पूरी न होने पर दो बेटियों का नाम ही रख दिया ‘अनचाही’, अब उड़ता है मज़ाक
https://khabar.ndtv.com/news/mp-chhattisgarh/not-fulfilled-the-wish-of-son-named-anchahi-of-his-daughter-in-madhya-pradesh-mandsaur-1828483

2. MP: बेटे की चाह पूरी नहीं हुई तो बेटियों का नाम ‘अनचाही’ रखा
https://navbharattimes.indiatimes.com/state/madhya-pradesh/other-cities/wish-for-son-didnt-complete-so-they-named-daughter-as-unwanted/articleshow/63454394.cms

3. बेटे की चाहत में एक ही गाँव में जन्मी ‘अनचाही’, पढे पूरी स्टोरी
https://www.bhaskarhindi.com/news/the-daughters-born-in-the-love-of-the-son-the-daughters-named-were-anchahi-32152

लेखक शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं और दिल्ली में रहते हैं। संपर्क; 9891022472, 7073777713


सभी तस्वीरें गूगल से साभार 
स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
लिंक  पर  जाकर सहयोग करें    :  डोनेशन/ सदस्यता 

‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें :  फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें  उपलब्ध हैं. ई बुक : दलित स्त्रीवाद 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles