सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का बजरंगी पैटर्न: नालंदा से लौटकर निवेदिता

निवेदिता
एक शहर को हमसब दरकते और टूटते हुए देख रहे हैं। मुहब्बत और भाईचारा को हिन्दू और मुसलमान में बदलते हुए देख रहे हैं। जहर को नसों में फैलते हुए देख रहे हैं। मैंने उनके तमामदुःख,डर और गुस्से को अपनी डायरी में दर्ज कर लिया है, जिनके बीच से वे गुजरे हैं। जो कुछ घटा उसकी आंशका उन्हें पहले से थी। ये घटनाएं उन गंभीर और दुःखदायी घटनाओं की पूर्व सूचनाएं थी, जिसका विवरण हम यहां पेश कर रहे हैं:

नालंदा में साम्प्रदायिक तनाव को हुए अब लगभग एक माह होने को है। जब हमलोग नालंदा जिला के सिलाव प्रखंड पहुंचे तो दोपहर हो चुकी है। गर्मी काफी है। सूरज तप रहा है। दीवारों पर सलेटी रंग के धूल जमे हुए हैं। सड़क के दोनों किनारे कतार से दुकानें हैं। छोटी-छोटी दुकानें जहां रोजमर्रे का सारा सामान मिलता है।
कड़़ा बाजार में चहल-पहल है। वर्षो से हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ रोजगार करते हैं। ये ऐसा प्रखंड है जहां कभी साम्प्रदायिक तनाव नहीं हुए। धनी आबादी वाला ये शहर अपने आप में अनोखा है। जहां मुसलमानों की बड़ी आबादी है। लगभग दो हजार मुसलमान परिवार के बीच 200 परिवार हिंन्दुओं का है। यहां के लोग खूब मेहनती हैं। उनकी मुख्य दिलचस्पी व्यापार में है। गरीबों की संख्या काफी है। बीड़ी इनके रोजगार का मुख्य साघन है। यहां घर-घर में बीड़ी बनाने का काम होता है। पूरा का पूरा परिवार बीड़ी बनने से होने वाली आमदनी पर जिंदा है। 1 हजार बड़ी बनाने पर सिर्फ 125 रुपए मिलते हैं।

ऊपर से देखने में शांत शहर के भीतर-भीतर बहुत कुछ उबल रहा है।  मुहब्बत से रहने वाले लोगों के बीच नफरत के बीच बोये जा चुके हैं। नफरत की प्रयोगशाला नयी नहीं है पर ईलाका नया है। तुच्छता और नग्नता के सभी प्रयोग बिहार में सफल रहे। साम्प्रदायिकता का किटाणु न मरता है, ना हमेशा  के लिए लुप्त होता है। वह सालों तक लोगों के दिलों में छिपकर सोया रहता है। और उपयुक्त अवसर की ताक में रहता है। यह अवसर बजरंग दल के लिए सही अवसर था। जिसकी तैयारी वे पिछले एक साल से कर रहे थे। वे जानते हैं धर्म एक ऐसा हथियार है जिसके जरिये वे समाज को विभाजित कर सकते हैं।

बजरंग दल से जुड़े कुछ लोगों ने तय किया कि इस बार की रामनवी का जुलूस वे नुरानी मुहल्ला से निकालेंगे। उन्होंने इसके लिए प्रशासन पर दवाब बनाना शुरु किया। कड़ा बाजार से नुरानी मुहल्ला का रास्ता काफी संकरा है। इस मुहल्ले की खास बात रही है कि आजतक यहां कभी कोई साम्प्रदायिक तनाव नही हुए। लेकिन पिछले रमजान के महीने से लगातार तनाव करने की कोशिश  जारी थी। रमजान के महीने में बजरंग दलों के लोगों ने जुलूस निकाले थे और भडकाउ नारे लगाए गये थे। ’मुल्ला जाओ पाकिस्तान’ और ’हिन्दुस्तान में रहना है तो बंदे मातरम कहना होगा’ जैसे नारे लगे।

26 मार्च को नालंदा के डी.एम ने शान्ति समिति की बैठक बुलाई जिसमें दोनों समुदाय के लोग शामिल हुए थे। प्रशासन ने कहा कि किसी कीमत पर वे उन इलाकों से जुलूस निकालने नहीं देंगे। पर बजरंग दल के लोग अड़े रहे। काफी मशक्कत के बाद तय हुआ कि पांच-हिन्दू और पांच मुसलमान मिलकर राम के रथ को गली से बाहर ले जायेंगे-दस लोगों में बीजेपी के वार्ड पार्षद सुधीर सिंह,विजय सिंह, बबलू महतो , लखपति साव, संदीप पासवान और मुसलमानों की तरफ से मोहम्द इस्राफिल, गजनी, निसार अहमद,अरमान, सफदर इमाम शामिल हुए। 28 मार्च को राम के रथ को कड़ा डीह से सिलाव ब्लॉक तक सभी दस लोगों ने शान्तिपूर्ण तरीके से गली के बाहर पहुंचा दिया।

दरअसल बजरंग दल की मंशा राम के रथ को शन्तिपूर्ण निकालना नहीं था । इसलिए बिना प्रशासन की सूचना के अचानक रेलवे होल्ड के पास चार से पांच हजार लोग जमा हो गये जिसमें महिलाओं की काफी संख्या थी। इनलोगों ने प्रशासन पर उसी रास्ते से निकलने का दवाब बनाना शुरु किया। दवाब में आकर प्रशासन ने महिलाओं को उस रास्ते से जाने की अनुमति दी पर जब मर्दो का हुजूम भी उसी रास्ते से जाने का दवाब बनाने लगा तो मुसलमानों ने विरोध किया। प्रशासन का कहना है जो लोग जमा हुए थे वे उस इलाके के नहीं थे उनके पास बड़ी संख्या में तलवार और दूसरे हथियार थे। वे भडकाउ नारे लगाने लगे। फिर पत्थरबाजी शुरू हुई । प्रशा सन को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाने पड़े। जमकर लाठीचार्ज किया। जिसमें बच्चे और महिलाएं भी धायल हुए।

ये हिंसा स्थानीय स्तर पर की गयी । यहां के लोगों ने बताया कि जुलूस में शामिल होने के लिए बाहर से लोगों को बुलाया गया था। इस बात की पुष्टि प्रशासन ने भी की। हिंसा के लिए रामनवमी का दिन चुना गया । कुछ जगह रामनवमी गुजर जाने के बाद जुलूस निकाला गया। ज्यातर नौजवानों को शामिल किया गया। सिलाव के दंगे में दिलीप पासवान और संदीप पासवान का नाम आ रहा है। संदीप बजरंग दल का नेता है और दिलीप पासवान का छोटा भाई है। दिलीप वार्ड 13 के पार्षद रहे हैं। पहले राजद से जुड़े हुए थे। इन दिनों भाजपा के नजदीक हैं। इसबार चुनाव हार गए। मोहम्मद इस्राफिल ने उन्हें हराया है। इस मामले में अबतक 38 लोग गिरफ्तार हैं। 72 लोग नामजद अभियुक्त हैं। नालंदा के डीएम ने स्वीकार किया कि यहां हुए साम्प्रदायिक तनाव के लिए बजरंग दल जिम्मेदार है।  सिलाव में अभी भी दहशत है। साम्प्रदायिक तनाव के दौरान 8 दिन दुकानें बंद रही। जिसका गहरा असर रोजगार पर पड़ा। इस तरह के तनाव से दोनों समुदाय के लोग प्रभावित हुए हैं। पत्थरबाजी में कई लोगों के घर को नुकसान पहुंचा है।

नकाद खानम वार्ड पार्षद हैं। उनके पति दिल्ली में काम करते हैं। उनका घर कड़ा बाजार में है। जब हम उनके घर पहुंचे वे बेहद परेशान थी। उनके चेहरे पर गहरी थकान थी।  उन्हें मालूम है एक लड़ाई जीत ली गयी है, दंगाई पीछे हट गए हैं। लेकिन इसे जीत नहीं कहा जा सकता। दंगाई अपना काम पूरा कर गए। उन्होंने लोगों के दिलों में दरार पैदा कर दिया।  उन्होंने कहा कि पिछले 20 सालों से रह रही हूं । कभी कोई तनाव हिन्दू -मुसलमानों के बीच नहीं हुआ। पहली बार ये दहश त महसूस हुआ। ये मुस्लिम बहुल इलाका है फिर भी हम डरे हुए हैं। बगेर हिंदूओं के हम जी नहीं सकते और हमारे बिना वे रह नहीं सकते। हम एक -दूसरे के जीवन में रचे-बसे हैं। हम शादी,विवाह में शामिल होते हैं। रोजमर्रे की जिन्दगी के सुख-दुख में शामिल होते हैं,पर अब मन में गांठ पड़ गयी है।

दहशत इतनी  है कि नुरानी मुहल्ले में छोटी सी परचून की दुकान चलाने वाली 75 साल की उम्रदराज महिला ने अपना नाम नहीं बताया। उनके पति रामधनी महतो अब बीमार रहते हैं इसलिए पत्नी ही दुकान देखती हैं। पहले कुछ भी बताने को तैयार नहीं थीं। काफी देर बात-चीत के बाद उनकी आँखें भर आयी। उन्होंने कहा की इससे बुरा क्या होगा कि उम्र के इस पड़ाव पर एक-दूसरे के लिए नफरत देख रही हूं। हमारे बीच ऐसा कभी नहीं था। यहां मुसलमानों की तादाद ज्यादा है फिर भी कभी ये बात जेहन में नहीं आयी। हम एक दूसरे की जिन्दगी में शा मिल हैं। उन्होंने कहा कि कुछ पार्टी वाले नेता ये सब करा रहे हैं।

सरीफन खातून और सईदा खतून की उम्र 70 से 75 के आस पास होगी। हम जब नुरानी मुहल्ले में पहुंचे मकानों के दरवाजे बंद थे। घरों में मातम छाया हुआ है। हर आदमी कहने से बच रहा है। उनकी आंखें भावशून्य हो गयी थीं। बूढ़ी आवाज में कपंकंपी है। अपने को जप्त करते हुए कहा ’मैं रुखसत होकर आयी तो ममता चाची ने मुझे सबकुछ सिखाया था। मैं बच्ची थी। घर का काम- काज नहीं जानती थी। मेरे लिए मेरी मां की तरह थी। हमलोग किस तरह एक दूसरे के बिना रह सकते हैं। दूधवाली, सब्जी वाली, धोबिन ये सब हमारे जीवन का हिस्सा हैं ये हिन्दू हैं। इस तनाव के बाद भी हमारे घरों में आना-जाना नहीं बंद किया।

सिलाव में अब जिन्दगी फिर से पटरी पर लौटी है। पर बहुत कुछ है जिसे सबने खो दिया है। जो सबकी सांझी चीजें थीं -प्यार, भरोसा, साझेदारी। उन्हें उम्मीद है कि वे मुहब्ब्त से जीत लेंगे अपने लोगों का दिल। हमलोग अब निकल आएं हैं। क्षितिज दूर तक फैला नजर आ रहा है। धूल से सनी सड़कों पर हम अब दूसरे श हर को देखने जा रहे हैं। गर्मी के सुखद मौसम का सुनहरा जादू नहीं रहा। आम के मंजर की खूश बू भरी हुई है पर दंगों ने सारे रंग और खश बू तबाह कर दिए हैं।  मैली सड़कें और मैली सफेद दीवारें जिस पर कहीं किसी पेड़ की परछाई नहीं है। हम सुन रहे हैं धीमी पदचापों और असंख्य दिल की आवाजें जो कह रही हैं कि हमें चैन से जीने दो।

साहित्यकार और सोशल एक्टिविस्ट निवेदिता स्त्रीकाल के संपादन मंडल से जुड़ी हैं. सम्पर्क: niveditashakeel@gmail.com 

तस्वीरें गूगल से साभार
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