मानवाधिकार-प्रहरी सोनी सोरी को मिला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मान

कमल शुक्ल 
वर्ष 2018 का विश्व प्रतिष्ठित मानव अधिकार सम्मान ‘फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क’ पाने वालों में भारत की ओर से सोनी सोरी शामिल हैं। वहीं सोनी सोरी, जिनके गुप्तांग में पत्थर भरे गए, जिन्हें निर्ममता से यातनाएं दी गयी। दो साल के लिए जेल में ठूंस दिया गया। उन्हें बदसूरत बनाने की नीयत से चेहरे पर खतरनाक रसायन पोत दी गई। निस्संदेह जिनके क्रुर हाथों ने यह सब किया, अब यह सुनकर उनके हाथ  जरूर कापेंगे कि उन्होंने ऐसा करके उस महिला को दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री बना दिया है। खनिज के लिए जल-जंगल और जमीन हथियाने की नीयत से बस्तर में लंबे समय से अपनी ही जनता के खिलाफ युद्ध लड़ रहे कॉर्पोरेट परस्त छत्तीसगढ़ सरकार पर पीड़ित-शोषित सोनी सोरी भारी पड़ी है।

सोनी सोरी

इस वर्ष ‘फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क’ का पुरस्कार प्राप्त करने वाले पाँच अंतरराष्ट्रीय प्राप्तकर्ताओं  की सूची में भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी का नाम शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को न्याय दिलाने के लिए जोखिम भरे संघर्ष के लिए उन्हें यह सम्मान दिया जा रहा है। उनके अलावा इस वर्ष यह पुरस्कार पाने वालों में नुर्केंन बेसल (टर्की), लूचा आन्दोलन (कोंगो का लोकत‌ंत्रात्मक गणराज्य), ला रेसिस्तेंचिया पसिफिचा दे ला मिक्रोरेगिओं दे इक्ष्क़ुइसिस (ग्वाटेमाला), और हस्सन बौरास (अल्जीरिया) शामिल हैं।

विजेताओं के नामों की घोषणा करते हुए, फ्रंट लाइन डिफेंडर्स के कार्यकारी निर्देशक एंड्रू एंडरसन ने कहा, “आज जिन मानवाधिकार रक्षकों का सम्मान हम कर रहे है, ये वे लोग हैं जो विश्व के सबसे खतरनाक जगहों पर कार्य करते हैं। अपने-अपने समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से न्याय और मानवाधिकार की मांग करने हेतु स्वयं की परवाह किये बिना इन्होंने कई बलिदान दिये हैं।”

सन 2005 से ‘फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क’ पुरस्कार हर साल उन मानवाधिकार रक्षकों को दिया जाता रहा है, जिन्होंने खुद को जोखिम में डाल कर भी अपने समुदाय के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा और बढ़ावा देने में अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए योगदान दिया है। पहले यह सिर्फ एक रक्षक या किसी एक आन्दोलन को दिया जाता था। लेकिन इस वर्ष यह पहली बार पांच अलग-अलग देशो के पांच मानवाधिकार रक्षकों को दिया जा रहा है। 2018 के इन पांच पुरस्कार विजेताओं व उनके परिवारों को विभिन्न तरीके के हमलों का, मानहानि, कानूनन उत्पीड़न, मृत्यु की धमकी, कारावास और अभित्रास आदि का सामना करना पड़ा है।

सोनी सोरी आदिवासियों के बीच

कौन है सोनी सोरी?


सोनी सोरी एक आदिवासी कार्यकर्ता हैं। साथ ही वह नारी अधिकारों की रक्षक हैं, जो छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर इलाके में काम करती हैं। वह और उनके सहकर्मी, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस द्वारा हिंसा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों के खिलाफ वकालत करते हैं। उन्होंने भारत के सुदूर और दुर्गम क्षेत्रो में राज्य-प्रायोजित दुर्व्यवहार जैसे- घर जलाना, बलात्कार और बिना वजह आदिवासियों को यातनाएं देना व उनका यौन-शोषण करना आदि के विरोध में संलेख पत्र तैयार किये और इन गतिविधियों के खिलाफ संघर्ष किया है। उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थाओं को माओवादी संगठनों से होने वाली हानि से भी बचाया है।  सुरक्षा बलों ने उनके इन कार्यों के प्रतिशोध में, उन्हें हिरासत में बंद कर कई तरह की अमानवीय यातनायें दी और उनके शरीर में पत्थर डाल कर घंटों यातनाएं दी। सोनी सोरी ने दो वर्षों से अधिक कारावास सहा है। कुछ वर्षों बाद कुछ लोगो ने उनके चेहरे पर रसायन डाला जिससे उनके चेहरे की चमड़ी जल गई। इतना ही नहीं, उन्हें धमकी दी गई कि अगर उन्होंने सुरक्षा बलों द्वारा किये गए बलात्कारों के खिलाफ वकालत करनी नहीं छोडी, तो उनकी बेटियों का भी ऐसा ही हश्र होगा। किन्तु बिना डरे उन्होंने अपने कार्य के प्रति अडिगता दिखाते हुए काम बंद करने से इंकार किया और आज भी वह धमकी, अभित्रास और बदनामी के बावजूद उन खतरनाक संघर्ष क्षेत्र में सक्रिय हैं।

हालांकि सोनी, अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को बदनाम करने के उद्देश्य से राज्य सरकार व पुलिस द्वारा बनाये गए ‘अग्नि’ व ‘सामाजिक एकता मंच’ आदि संगठनों के माध्यम से सोनी सोरी को राष्ट्रद्रोही और माओवादी होने का तक आरोप लगा दिया गया।

फ्रंट लाइन डिफेंडर्स के कार्यकारी निर्देशक एंड्रू एंडरसन कहते हैं, “विभिन्न देशों की सरकारें और शोषकवर्ग मानवाधिकार रक्षकों को बदनाम कर उनके हौसले को कुंद करने का प्रयास करते हैं और उनके मानव कल्याण की दिशा में किये गये कार्यों को गैरकानूनी घोषित करते हैं। इसके खिलाफ विश्व भर से सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा एकमत से स्वीकार किया गया कि अंतर्राष्ट्रीय पहचान और सम्मान मानवाधिकारों को लेकर सर्वस्व दांव पर लगा देने वाले बहादुरों के साथ खड़ा होना जरूरी है। यह पुरस्कार इसी भावना पर आधारित है।” वे आगे कहते हैं, “यह पुरस्कार इस बात का साक्षी है कि इन रक्षकों को अन्तराष्ट्रीय समुदायों का पूर्ण समर्थन है और उनका बलिदान नज़रंदाज़ नहीं हुआ है। हम उनके अदम्य साहस की सराहना करते हुए उनके साथ अटल विश्वास के साथ खड़े है।”

सोनी सोरी जेएनयू में

साथियों के संघर्ष को समर्पित यह पुरस्कार – सोनी


सोनी सोरी ने फॉरवर्ड प्रेस से बातचीत में स्वयं को मिले इस विश्व स्तरीय पुरस्कार को बस्तर के आदिवासियों के हक और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे तमाम जमीनी सामाजिक कार्यकर्ताओं को समर्पित किया। उन्होंने बताया कि इस सम्मान से उनके साथ काम कर रहे साथियों का मनोबल बढ़ेगा। सोनी ने बताया कि  मेरे साथ जो भी हुआ, वह बस्तर में रोज घटने वाली घटनाओं में से एक है। वह बस्तर के उन सभी गाँवो में नही पहुँच सकती हैं जहां रोज किसी न किसी आदिवासी की हत्या या बलात्कार हो रही है। सैकड़ों गाँव अपनी ही जनता से युद्ध के नाम जला दिए गए हैं। हजारों आदिवासी मुठभेड़ के नाम पर मार डाले गए। हजारों निर्दोषों को जेल में ठूंसा गया है। सोनी ने बताया कि उसने माओवादियों का भी कहर झेला है, जिन्होंने उनके पिता को मारा। मगर अब अपने जीते जी वह यह लड़ाई बन्द नहीं करेंगी।

‘फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क’ का प्रतीक चिन्ह

पीड़िता बने रहना सोनी सोरी को मंजूर नहीं

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता

जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार कहते हैं कि सोनी सोरी को छत्तीसगढ़ सरकार ने थाने में ऐसी प्रताड़ना दी जो आजादी के बाद किसी भी महिला के साथ हिरासत में किया जाने वाला सबसे भयानक दुर्व्यवहार था। नागरिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली एक आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता के ऊपर यह जुल्म सरकार के द्वारा किया गया था। लेकिन सोनी सोरी ने एक पीड़िता बने रहना स्वीकार नहीं किया। जेल से बाहर आते ही उसने अपने जैसी हजारों आदिवासी महिलाओं और लाखों आदिवासी लोगों के लिए नागरिक अधिकार, समानता और मानवाधिकारों की लड़ाई शुरू की और वह सारी दुनिया में एक महत्वपूर्ण आवाज बन कर उभरीं। आज सारी दुनिया में वह एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं। फ्रंटलाइन डिफेंडर्स ने उन्हें जो सम्मान दिया है, वह सोनी सोरी के काम के अनुरूप ही है। मैं उसका स्वागत करता हूं और सोनी सोरी को बधाई देता हूं।

(कॉपी एडिटिंग – नवल)


छत्तीसगढ से प्रकाशित साप्ताहिक ‘भूमकाल समाचार’ के संपादक कमल शुक्ल फर्जी पुलिस-मुठभेडों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं। वे बस्तर में पत्रकारों की सुरक्षा के कानून की मांग कर रही संस्था ‘पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति’ के मुखिया भी हैं ​

फॉरवर्ड प्रेस से साभार

तस्वीरें गूगल से साभार 
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