महिलाओं के गाड़ी चलाने से सऊदी अरब का कस्टोडियन लॉ संकट में

तारा शंकर

 कमला नेहरु कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर अध्यापन . संपर्क :tarashanker11@gmail.com

पिछले दिनों सऊदी अरब में महिलाओं के गाड़ी चलाने पर लगी रोक हटायी गयी तो पूरी दुनिया में ख़बर फ़ैल गयी! महिलाओं की व्यक्तिगत, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आज़ादी के बारे में सऊदी अरब की आलोचना दुनियाभर में होती रहती है! ताराशंकर का यह लेख पाबंदी की वजहों, उससे मुक्त होने के उदारवादियों के संघर्ष, इस संघर्ष का  कट्टरपंथियों और महिला विरोधियों द्वारा विरोध, जिनमें खुद महिलायें भी शामिल थीं, आदि कई मसलों को समेटता है.

अब तक सऊदी अरब पूरी दुनिया का एकमात्र देश था जहाँ औरतों को ड्राइविंग करने से मनाही थी! वहाँ वर्ष 1957 से ही क़ानूनी तौर औरतों के गाड़ी चलाने पर पाबंदी थी! ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ़ मर्दों को जारी किये जाते थे! इसलिए कई लड़कियाँ विदेशों से लाइसेंस बनवाती थीं! हालांकि शरिया अथवा किसी भी इस्लामिक क़ानून पाबंदी के बाबत कोई बात नहीं लिखी गयी है! लेकिन सरकारी तौर पर मनाही थी! तो सवाल उठता है कि फिर क्यों थी ऐसी पाबंदी? असल में सऊदी वहाबी इस्लाम (सुन्नी परंपरा) औरत-मर्द में कई विभेद करता है (Male Gaurdianship Law) और चूंकि औरतों द्वारा ड्राइविंग इस विभेद से कई जगह टकराता है इसलिए अब तक ड्राइविंग पर बैन था!


क़रीब 30 सालों से वहाँ महिलायें इस पाबंदी के ख़िलाफ़ बोल रही थीं! और धीरे-धीरे आज सऊदी में बहुसंख्यक जनता भी इस पाबंदी को हटाने के पक्ष में आ चुकी थी! हाल-फ़िलहाल में वहाँ हुए लगभग सभी सर्वेक्षणों में अधिकतर लोगों ने औरतों को ड्राइविंग की आज़ादी के पक्ष में बोला! पिछले साल सऊदी के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक प्रिंस अल वलीद बिन तलाल  ने सीधे ट्वीट किया कि “बहस बंद करो. अब औरतों के ड्राइव करने का वक़्त आ गया है” और पिछले साल शूरा काउंसिल (शूरा काउंसिल सऊदी सरकार की मजहबी मसलों पर सलाहकारी परिषद् है) के हेड अब्दुल रहमान अल रशीद ने भी औरतों के गाड़ी चलाने की तरफ़दारी करते हुए कहा सऊदी के यातायात विभाग के पास भी ऐसा कोई नियम नहीं जो औरतों को गाड़ी चलाने से रोकता हो!
साल 1990 में सऊदी महिलाओं ने तमाम समाज सुधारों की माँग शुरू की जिसमें राइट टू ड्राइव भी एक था! काउंसिल ऑफ़ सीनियर इस्लामिक स्कॉलर्स के साल 2010 में आये एक फ़तवे के ख़िलाफ़ कैंपेन ने फिर ज़ोर पकड़ा जिसमें कहा गया था कि “औरतों के गाड़ी चलाने से ग़ैरक़ानूनी खुल्वाह (किसी ग़ैरमर्द के साथ अकेले होना) के मौके देगा, चेहरा ढँका नहीं रहेगा, औरत और मर्दों में बेपरवाह और बेख़ौफ़ इंटरमिक्सिंग होगा, और व्यभिचार को भी बढ़ावा मिलेगा! और इस तरह सामाजिक बढ़ेगा!”

साल 2013 में क़रीब 60 औरतों ने सऊदी की सड़कों पर पाबंदी के बावजूद कार चलाकर इसका विरोध किया! कुछ औरतें जेल भी गयीं! कैम्पेनर मनाल अल-शरीफ़ कहती हैं कि औरतों को गाड़ी चलाने से इसलिए रोका गया है क्योंकि इससे मर्दों का गार्जियन सिस्टम को ख़तरा होगा! साल 2016-17 में #StopEnslavingSaudiWomen और #Women2Drive जैसे बड़े कैम्पेन चल रहे हैं! साल 2017 में राइट टू ड्राइव कैंपेन की वेबसाइट को सऊदी सरकार ने बंद कर दिया!
हालांकि कुछ एक महिलाओं ने ही इस तरह के कैंपेन के ख़िलाफ़ “My Guardian Knows What’s Best for Me” कैम्पेन चलाया! इसी तरह शेख़ सालेह बिन साद अल-लोहायदन जो कि गल्फ़ साइकोलोजिस्ट असोसिएशन के न्यायिक सलाहकार हैं, ने एकदम वाहियात तर्क दिया कि “अगर औरत कार चलाती है तो उसका पेल्विस ऊपर ख़िसक सकता है और पैदा होने वाले बच्चे में क्लिनिकल प्रॉब्लम हो सकती है..” कुछ इसी तरह  डिप्टी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि औरतें को गाड़ी चलाने की इज़ाजत मिले और कब मिले, इस बात का निर्णय सरकार नहीं, सऊदी समाज करेगा और समाज अभी इसके लिए तैयार नहीं है!
महिला अधिकारों के संगठनों ने कई छोटे छोटे प्रदर्शन किये हाल के सालों में. कुल मिलाकर इस पूरे मसले को दो हिस्सों में बाँटकर देखा जा सकता है:

पहला, वो कारण जिनकी वजह से अब तक औरतों पर ड्राइविंग की पाबंदी थी और दूसरा, वो जिनके कारण ये पाबंदी हटाई गयी! कुरान अथवा शरिया में ऐसा कोई क़ानून नहीं जो औरतों को गाड़ी चलाने पर सीधा पाबंदी लगाता हो! लेकिन वहाबियत (सुन्नी इस्लाम) के हिसाब से चलने वाले सऊदी में औरतों का गाड़ी चलाना कई तरह से उनकी मर्द-औरत में फ़र्क करने वाली परंपराओं के ख़िलाफ़ जाता था! इन परंपराओं में सबसे उल्लेखनीय है कस्टोडियन लॉ. जिसके अनुसार एक औरत को पति अथवा किसी मेहराम के गार्जियनशिप (अथवा इजाज़त से) में ही कहीं आने-जाने, नौकरी करने, पढ़ने, शादी करने, यात्रा करने, वीसा-पासपोर्ट बनवाने, खाता खोलने इत्यादि की छूट है! मेहराम का मतलब होता है जिससे पर्दा करने की ज़रुरत नहीं, जिनसे शादी अथवा सेक्स करना हराम हो, एक क़ानूनी सहायक जो औरतों को 24 घंटे से अधिक की यात्रा में मदद करे जैसे: माँ-बाप, भाई, बेटा और खून के रिश्ते वाले लोग!

अब ज़ाहिर है कि अगर औरत ड्राइव करेगी तो सड़क पे उसकी ग़ैर-मर्दों से बात होगी, एक्सीडेंट की स्थिति में किसी ग़ैर-मर्द से मदद भी लेनी पड़ सकती है, गाड़ी चलते समय ज़ाहिर है चेहरा ढँका नहीं रहेगा, अगर महिला टैक्सी ड्राइवर है तो वो किसी ग़ैर-मर्द से साथ अकेली होगी वो भी किसी मेहराम के बगैर. अर्थात पूरे कस्टोडियन लॉ की धज्जी उड़ जायेगी! यही वजह थी सरकार की तरफ इस पाबंदी की! लेकिन और गहराई में जायें तो असल में ये बेकार का कस्टोडियन लॉ कट्टरपंथियों के मर्दवाद, मैस्क्युलिनिटी, औरतों पर उनकी बादशाहत को कायम करता था! सिर्फ़ ड्राइविंग की आज़ादी देना मसला ही नहीं था और न ही मसला कुरान या शरिया से जुड़ा था, बल्कि ड्राइविंग की आज़ादी इन कट्टरपंथियों की उस सोच को तमाचा मारती है जिसमें वो बीवी, बहन, माँ, बेटी को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं. और इसीलिए इस पाबंदी से उन्हें औरतों की सुरक्षा की ठेकेदारी स्वाभाविक रूप से मिल जाती थी. और औरतों को घरों की चहारदीवारी तक सीमित करके उनपर वर्चस्व जताना भी आसान रहता था! और अंदरूनी बात कि वो इससे औरतों की ‘सेक्सुअलिटी’ पर ज़बरन कण्ट्रोल कर सकते थे! ऐसी न औरतों पर भरोसा रखती है और न ही मर्दों पर! ड्राइविंग पर पाबंदी इसी औरत-मर्द विभेद का मजहबी विस्तार था! ये उस सोच का भी विस्तार था जिसमें मर्दों को औरतों की सुरक्षा का ठेका मिला हुआ होता था! अब औरत ड्राइव करेगी तो घर में न रहकर पब्लिक में रहेगी तो इस ठेके और स्वामित्व को धक्का तो लगेगा ही! इसी कस्टोडियन लॉ की वजह से वजह से सऊदी में औरतों के लिए सार्वजनिक जीवन बहुत सीमित रहा है!

लेकिन हाल के वर्षों आये तमाम सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक बदलावों ने इस पाबंदी के ख़िलाफ़ माहौल तैयार कर दिया! सऊदी की महिला अधिकार एक्टिविस्ट हाला-अल-दोसारी कहती हैं कि औरतों की ड्राइविंग पे पाबंदी का मतलब है कि सरकार औरतों को  पूरी तरह वैध एडल्ट नहीं मानता! पूर्व शूरा काउंसिल मेम्बर मोहम्मद अल-ज़ुल्फा ड्राइविंग को मजहबी नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक मसला मानते हैं और कहते हैं कि तमाम विधवा और तलाक़शुदा औरतें बहुत अच्छी तरह घर संभालती हैं! हमें उनपर भरोसा करना चाहिए! इसी तरह सोशल सर्विस के प्रोफेसर नासेर अल-औद का मानना है कि महिलाओं के गाड़ी चलाने से मर्दों की सत्ता को क्या ख़तरा भला? वैसे भी आज बहुतेरे घर ग़ैरमर्द टैक्सी ड्राइवर की वजह से चल रहा है!

सऊदी में औरतें आर्थिक तौर से मजबूत हो रही हैं, उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं! औरतों में पढ़ी-लिखी बेरोज़गारी बढ़ी है, नौकरी की माँग तेज़ी से बढ़ी है! और ये पाबंदी उससे मेल नहीं खा रही थी! तमाम विधवा, तलाक़शुदा महिलायें जिनके कोई मर्द गार्जियन नहीं, उनका हिसाब कौन करेगा! टैक्सी से आना-जाना तमाम ग़रीब घरों के लिए ख़र्चे का मसला बनता जा रहा था! जैसे विदेशी टैक्सी ड्राइवर रखने का महीने का औसत ख़र्च क़रीब 3800 रियाल है और इस हिसाब से अगर महिलाओं को ख़ुद की कार चलाने की इज़ाजत मिल जाये तो देश का 30 अरब रियाल बच जायेगा (सरकार द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट से)! ऊबर जैसे विदेशी कंपनी का सरकार द्वारा प्रमोशन जिसमें ड्राइवर अक्सर विदेशी होता है, देश का काफ़ी पैसा बाहर जा रहा है! इसलिए पाबंदी हटाने से न सिर्फ़ घरेलू पैसा बचेगा बल्कि महिलाओं को रोज़गार भी मिलेगा!

लेकिन ये पाबंदी भी अभी तमाम शर्तों के साथ हटाई गयी है! फिर भी इस छोटे से सकारात्मक बदलाव का स्वागत करना चाहिए और इसके लिए सऊदी महिलाओं, सोशल एक्टिविस्ट और मौजूदा सुल्तान जो ऐसे बदलावों के हिमायती हैं, को बधाई! हालांकि असली जीत तब होगी जब कस्टोडियन लॉ (जो वहाँ औरतों की आज़ादी में सबसे बड़ा रोड़ा है) में आमूलचूल बदलाव आयेगा!

कुछ संदर्भ:
http://www.alwaleed.com.sa/news-and-media/news/driving/
https://www.theguardian.com/commentisfree/2016/oct/07/saudi-arabia-women-rights-activists-petition-king
https://www.independent.co.uk/news/world/middle-east/saudi-arabia-is-not-ready-for-women-drivers-says-deputy-crown-prince-mohammed-bin-salman-a7004611.html
http://www.loc.gov/law/foreign-news/article/saudi-arabia-shura-council-denies-social-media-reports-on-resolution-to-allow-women-to-drive/

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