कान फिल्म महोत्सव में मेरी बेटी (बेटी की शिखर-यात्रा माँ की नजर में)

कान फिल्म फेस्टिवल, 2018 में फ़कीर, मंटो, शॉर्ट फिल्म सर और अस्थि सहित भारत से विविध भाषाओं की 63फ़िल्में गयी थीं. अस्थि माँ-बेटी के परस्पर लगाव को अभिव्यक्त करती फिल्म है. इस फिल्म की नायिका, दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक की छात्रा अंतरा राव की माँ और कवयित्री लीना मल्होत्रा राव की नजर में बेटी की उपलब्धि और उसका व्यक्तिव: 


लीना मल्होत्रा राव

हर माता पिता का सपना होता है कि उनकी सन्तान उनसे  भी आगे बढ़े और सफलता के शिखर छुए।अस्थि फिल्म मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मेरी दोनों बेटियों का इसमें योगदान है लावण्या ने इसकी कहानी लिखी और पूरा प्रोडक्शन कण्ट्रोल किया और अंतरा ने इसमें अभिनय किया। अस्थि फ़िल्म को जब कान फिल्म फेस्टिवल 2018  के शार्ट फ़िल्म कार्नर में शामिल किये जाने का समाचार मिला तो यह पूरे परिवार के लिए हर्ष और उल्लास का क्षण था।क्योंकि यह बहुत प्रतिष्ठित महोत्स्व है जिसमे जाने के लिए कोई अभिनेता या निर्देशक कई बार बहुत लम्बा इंतज़ार करता है। विशेष रूप से अंतरा के लिए हम खुश थे क्योंकि यह उसकी अभिनेत्री के रूप में पहली फ़िल्म थी।

यह एक जटिल रोल था क्योंकि फिल्म में बहुत अधिक संवाद  नहीं हैं और बिना बोले बात कहनी है।भावातिरेक में जड़ हो जाने की स्थिति, जो किसी प्रिय के गुज़र जाने पर हम महसूस करते हैं-एक टीनएज लड़की  जो अचानक दुनियां में अकेली रह गई है के लिए यह भावनात्मक रूप से अधिक मारक स्थिति है, भीतर के अंधेरे को और उसकी गूंज को अकेलेपन की तल्लीनता को मन  में चलती उधेड़बुन और चित्त की दशा पूरी तरह से एक्सप्रेशंस या बॉडी लैंग्वेज से दिखाना है। वह फिल्म में माँ की अस्थियां लेकर घूम रही है रिक्शा पर, सड़क पर, गंगा के तट पर लेकिन कहीं जा नहीं रही है उसके लिए वक्त थमा हुआ है, वह शून्य  को ओढ़कर चल रही है। उसे लगता है कि माँ अंतिम रूप में उसके साथ है और यह आखिरी क्षण हैं जिसे वह हज़ारों लोगों की भीड़ में अकेली अपनी माँ के साथ जी रही है। शब्दों मे इस बात को कहने के लिए आप कई पृष्ठ भर सकते हैं।  किन्तु दृश्य में जब यह बात कही जानी है तो कोलाहल के बीच सन्नाटा रचने जैसा है। और उस सन्नाटे, उदासी, अंधेरे के मर्म को एक लुक से सम्प्रेषित करना है। अस्थियों को ऐसे देखना है जैसे माँ को देख रही हो, गंगा के तट की निस्तब्ध सीढ़ियों में लहरों की गतिशीलता के संगीत  में जीवन और मृत्यु के अविच्छिन्न सम्बन्ध का सन्धान करना सिर्फ मौन रहकर इसे कहना। और आखिर में सब सर्द जमे हुए लम्हों को एक ही रुदन में पिघलाकर बहा देना बहुत चुनौतीपूर्ण था, उसने इस रोल को इतने रिअलिस्टिकली और इंटेंसिटी से  निभाया है कि एक तरह से मैं यह कह सकती हूँ कि यह फिल्म उसके कंधों पर ही थी।

कान में अंतरा

फिल्म में उसने कई सीन्स इम्प्रोवाइज किये और जब तक खुद अपने अभिनय से संतुष्ट नहीं हुई उसने और टेक्स लेने का आग्रह किया। इससे उसकी डेडिकेशन और कमिटमेंट का पता लगता है। और उसने बहुत हार्ड वर्क किया, न केवल शूटिंग के दौरान बल्कि एडिटिंग के समय भी। वह सेल्फ ट्रेंड एडिटर है और एडिटिंग में भी अपने बेस्ट एक्सप्रेशंस के शॉट्स चुने। मैं यह कहूँगी कि उसने बहुत परिश्रम किया न केवल शूटिंग के दौरान जबकि उसे 4 या पांच डिग्री पर गंगा में खड़े होकर शॉट्स देने पड़े या ठिठुरती रात में और पोस्ट प्रोडक्शन में बल्कि फेस्टिवल में भी। वह तमाम प्रसिद्ध भारतीय और इंटरनेशनल डायरेक्टर्स से मिली और उनके साथ उसने अपने अनुभव शेयर किये। इतनी उम्र में काम के प्रति इतनी गंभीरता उसकी परिपक्वता को दर्शाता है। वह फिल्म में कितनी इन्वॉल्व थी इसका पता मुझे तब लगा वह शूटिंग के बाद जब घर लौटी तो मुझसे गले मिलकर रोने लगी और उसने कहा कि यह काफी ‘ट्रॉमेटिक एक्सपीरियंस’ था । क्योंकि सब्जेक्ट ऐसा था तो माँ का अभाव उसने आत्मा से महसूस किया।

फिल्म ‘शॉपलिफ्टर्स’ और ‘सोलो द स्टार वार्स‘ के प्रीमियर के समय रेड कारपेट पर दो बार उसे चलने का मौका मिला इतने बड़े स्टार्स के साथ रेड कारपेट पर चलना शायद उसके लिए आल्हादित करने वाला अनुभव था। किन्तु उसकी विनम्रता का आभास मुझे इस बात से हुआ कि उसने अपनी फेसबुक वाल पर एक बार भी कान फेस्टिवल की कोई खबर या मीडिया में हुई पब्लिसिटी को शेयर नहीं किया। मेरे ख्याल से यह एक बड़ी बात है कि वह अपना प्रयास के स्तर पर अपना 100 प्रतिशत देकर भी क्रेडिट लेने में अकुलाहट नहीं दिखाई,  वह इसे पूरी टीम की सफलता मानती है।

बेटी अंतरा के साथ लीना मल्होत्रा

अंतरा की रुचि  डिबेट्स में रही है, उसने लगभग 200 डिबेट्स अन्तरमहाविद्यालय स्तर पर किये हैं वह कविताएं लिखती है और रंगमंच से भी जुडी हुई हैं , उसके मन में दूसरों की मदद करने का जज़्बा है वह गरीब बच्चों को पढाने के लिए एनजीओ में भी जाती रहीं हैं। उसकी यह संवेदनशीलता ही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। वह एक छात्र के तौर पर भी ऐसी लड़की है जो खुद को एजुकेट करती है इसलिए उसके बौद्धिक विकास को लेकर मैं निश्चिंत रही और कभी पढ़ाई में  उसके कम नम्बर आने पर भी विचलित नहीं है। मुझे लगता है कि हर व्यक्ति को जीवन में कई तरह के अनुभव लेने चाहियें। मैं उसकी फिल्म में अभिनय को, उसकी डिबेट्स, रंगमंच और उसके लेखन को इसी रूप में लेती हूँ। घर में हम सबका व्यवहार मित्रवत ही है और हम एक दूसरे से अपनी क्रिएटिविटी शेयर करते हैं। कई बार जब मैं उसे अपनी कविता सुनाती हूँ तो वह तुरंत उस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती लेकिन कई दिन बाद कोई संदर्भ जब उसे मिलता है तो वह उसका उल्लेख करती है और उस पर बात करती है। हम पारिवारिक रूप में एक दूसरे को वयस्क की तरह आदर देते हैं मिलकर साथ में काम करते हैं अपनी समस्याएं और उपलब्धियां बांटते हैं कुछ अच्छा पढ़ा हो या अच्छी फिल्म देखी हो तो उस पर बातचीत करते हैं। और खूब झगड़ते भी हैं किन्तु एक बांड है जो अटूट है, जिसमे हम सब बंधे हुए हैं।

लीना मल्होत्रा राव कवयित्री हैं, हिन्दी साहित्य में एक पहचाना नाम हैं. 

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