आप मिट्टी की तरह बने थे…

लेखक-आलोचक-प्रत्रकार आज 4 जून को निधन हो गया. उन्हें निगम बोध घाट में आख़िरी विदाई दी गयी. उनके परिनिर्वाण के बाद उनकी स्मृति में यह त्वरित टिप्पणी स्त्रीकाल के संपादन मंडल के सदस्य धर्मवीर ने की है. 

प्रसिद्ध समाजवादी  चिन्तक और लेखक-पत्रकार राजकिशोर नहीं रहे . 71 वर्ष की आयु में फेफड़े के संक्रमण से लड़ते हुए आज उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम साँस ली . लगभग सवा महीने पहले उनके बेटे की भी ब्रेन हेम्रेज से अकाल मृत्यु हो गई थी . राजकिशोर जी के लिए यह गहरा सदमा था जिसे वे सहन नहीं कर सके . जिसका परिणाम उनकी मृत्यु की भयावह खबर के रूप में सामने आया . मैं राजस्थान पत्रिका के साप्ताहिक”इतवारी पत्रिका”में उनके नियमित कॉलम “परत दर परत”को पढ़ते हुए बड़ा हुआ हूँ . बाद में उनके उपन्यास “तुम्हारा सुख”और “सुनंदा की डायरी” तथा कविता संग्रह”पाप के दिन”पढ़ा .”आज के प्रश्न”श्रृंखला के अंतर्गत उनकी सम्पादित पुस्तक”अयोध्या और उससे आगे”पढ़ी . कई अख़बारों और पत्रिकाओं में उनका लिखा पढ़ा . विचारपरक गध्य के लिए जिस प्रांजल भाषा की आवश्यकता होती है वह राजकिशोर जी के गध्य में अपनी पूरी कूवत के साथ मौजूद है . उनको पढने वाले जानते है कि हमने आज कितना बड़ा विचारक और अद्दभुत गद्यकार तथा उससे से भी बड़े एक मनुष्यता के साधक को खो दिया .

दिल्ली में मेरी उनसे एक-दो मुलाकाते हैं,जब विचारक के साथ ही उनकी मनुष्यता वाले पक्ष से भी परीचित हुआ . बड़े बनने और बड़ा दिखने की उनकी अभिलाषा बिलकुल नहीं थी,लेकिन स्वाभिमान के साथ खड़ा रहने की उनकी जिद्द अवश्य थी . उनका ही एक निबंध है-“दीप की अभिलाषा”जिसके अंत में कहते हैं –“दीपक या कहिए प्रकाश का संवाहक होने के नाते मेरी अभिलाषा यही है कि रोशनी चाहे जैसे पैदा करें, वह टिकाऊ होना चाहिए . मैं हजारों वर्षों से जलता आया हूँ और अगले हज़ार वर्षों तक जलते रहने का माद्दा रखता हूँ क्योंकि मैं  मिट्टी से बना हूँ . बार-बार इस मिट्टी में समा जाता हूँ और बार –बार इससे पैदा होता हूँ . बिजली से जलने वाले बल्बों में तभी तक जान है जब तक बिजली के सप्लाई बनी रहती है. कौन जाने बिजली के उम्र क्या है?कौन जाने उस सामग्री की उम्र क्या है जिससे लट्टू और ट्यूब बनाये जाते हैं . इनकी तुलना में मिट्टी अजर-अमर है . आदमी को अमर होना है,तो उसे मिट्टी की तरह बनना होगा . बाकि सभी रास्ते महाविनाश की और ले जाने वाले हैं .”

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सच में आप मिट्टी के बने थे इसलिए आप अमर रहेंगे . नश्वर पार्थिव देह का चला जाना आप का जाना नहीं हो सकता . हालाँकि उम्र तो उसके भी जाने की नहीं थी . मिलने पर सदैव कुछ सीख आप से मिली . साम्प्रदायिक के मसले पर एक बार बात करते हुए आपने कहा था-“साम्प्रदायिकता से लड़ना एक रचनात्मक संघर्ष है . चूँकि रचना का कोई बना-बनाया फार्मूला नहीं होता इसलिए साम्प्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष भी हर समय मौलिक तौर-तरिकों की मांग करता है .”जब सेकुलरिज्म पर बात चली तो आपका कहना था कि-“असाम्प्रदायिक होना कोई अतिरिक्त गुण नहीं है . यह हर नागरिक की सामान्य आदत का हिस्सा होना चाहिए . असाम्प्रदायिक होना कोई अतिरिक्त गुण नहीं है तथा इसे ना ही अतिरिक्त योग्यता के रूप में विज्ञापित करना चाहिए . बेशक कभी-कभी वक़्त आता है जब असाम्प्रदायिक होना ही सबसे बड़ी विशेषता जान पड़े . आज शायद ऐसा ही वक़्त है .”

अलविदा राजकिशोर जी !

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