बच्चियों से बलात्कार मामले में हाई कोर्ट मॉनिटरिंग को तैयार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उपदेशक प्रेस कांफ्रेंस, लोकसभा में बवाल

सुशील मानव 
मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में बलात्कार के मामले में सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चौतरफा घिरते जा रहे हैं, विपक्ष के भाजपा सांसद भी मंजू वर्मा के इस्तीफे की मांग करने हैं. बैकफुट पर आई सरकार कोर्ट में आगे बढ़कर याचिकाकर्ताओं की मांगें मान रही है. याचिकाकर्ताओं की मांग सुनने के पहले ही महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट से मॉनिटरिंग की बात माँन ली. उधर अपने मंत्री का बचाव करते हुए नीतीश कुमार ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस कर जहाँ मीडिया, समाज और विपक्ष को नसीहतें दीं, हमला बोला वहीं मंत्री के इस्तीफे से सीधे मुकर गये. राजद के महासचिव शिवानन्द तिवारी ने वर्मा को बचाने के प्रयास को नीतीश कुमार द्वारा कुशवाहा वोट को साधने और कुर्मी-कुशवाहा/लव-कुश नैरेटिव को मजबूत करना बताया. इस बीच समाज कल्याण विभाग छोटी-मोटी कारवाई भी कर रही है. सुशील मानव की रिपोर्ट: 




आज सुबह से ही बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका-गृह-रेपकाण्ड को लेकर बिहार से दिल्ली तक काफी हलचल रही. लोकसभा की कार्रवाई शुरू होते ही कांग्रेस की सांसद रंजीता रंजन ने और राजद के संसद जयप्रकाश नारायण यादव ने मामले को उठाते हुए सरकार पर सीबीआई के सबूत मिटाने का आरोप लगाया. वहीं भाजपा के नेताओं ने नीतीश कुमार को मंत्री मंजू वर्मा को बर्खास्त करने की सलाह भी दे डाली.

हाईकोर्ट में 

पटना हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सरकार पहले से ही बैकफुट पर दिखी. सरकार ने आगे बढ़कर हाईकोर्ट से मॉनिटरिंग की बात स्वीकार कर ली. याचिकाकर्ता संतोष कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट ने सीबीआई और बिहार सरकार को नोटिस देकर दो हफ्ते के भीतर अबतक की जाँच पर हलफनामा मांगा है.
हाईकोर्ट ने खुद मॉनिटरिंग करने, पीडिताओं के पुनर्वास और स्पीडी ट्रायल के लिए बेंच की नियुक्ति का आदेश दिया. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन और जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की बेंच ने की. याचिकाकर्ताओं की वकील एडवोकेट अलका वर्मा ने बताया कि उन्होंने कोर्ट को कहा कि चाइल्ड प्रोटेक्शन होम का सञ्चालन एनजीओ से लेकर सरकार को खुद करना चाहिए. कोर्ट की सुनवाई के तुरत बाद नीतीश कुमार ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में यह बात मान ली और इस आशय की घोषणा भी की. वर्मा ने कहा कि हमें अपनी याचिका में 10 और पेयर्स जोड़े हैं, जिसमें सिविल सोसायटी द्वारा मॉनिटरिंग की मांग भी है, जिसमें डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी भागीदारी हो. जांच का दायरा पूरे बिहार तक करने सहित 10 मांगों पर सुनवाई अगले तारीख को होगी.

प्रेस कांफ्रेंस 
न्यायालय में सुनवाई खत्म होते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस किया. कुमार विपक्ष पर हमलावर होने की कोशिश करते रहे लेकिन पत्रकारों ने उन्हें सत्तापक्ष के ही भाजपा सांसदों द्वारा मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे की मांग पर निरुत्तर कर दिया. पूरे कांफ्रेंस में नीतीश कुमार की झुंझलाहट स्पष्ट थी, वे मंत्री मंजू वर्मा का बचाव हरसंभव करते दिखे. हालांकि वहां उपस्थित पत्रकारों के सवालों में राजनीति ज्यादा और केस के कानूनी डिटेल कम थे, कानूनी डिटेल के आधार पर सवाल नहीं किया जा सका. हालाँकि नीतीश कुमार की सरकार कोर्ट में चल रही सुनवाइयों के दवाब में जरूर दिखी, तभी पहली सुनवाई के शुरू होने के पहले ही सीबीआई जाँच करने की अनुशंसा करने वाली सरकार ने आज दूसरी सुनवाई के दौरान आगे बढ़कर हाईकोर्ट मॉनिटरिंग का अनुरोध किया और सुनवाई खत्म होते ही याचिकाकर्ताओं की एक प्रमुख मांग की शेल्टर होम सरकार के अधीन हों, को भी मान लिया.

समाज कल्याण विभाग की कार्रवाई 



मुज़फ्फ़रपुर केस में अपनी भूमिका को कठघरे में खड़ा होता देख डैमेज कंट्रोल के फेर में कड़ी में कारर्वाई करते हुए बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने 4 अगस्त 2018 को एक लिखित आदेश देकर 8 बाल कल्याण समितियों की अवधि विस्तार की अवधि को निरस्त करते हुए नजदीकी जिले के बाल कल्याण समिति से संबद्ध करने का आदेश दिया है।

कल्याण विभाग ने अपने आदेश में लिखा है- ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (कोशिश) से प्राप्त प्रतिवेदन की समीक्षा की गई। समीक्षोपरान्त बाल कल्याण समिति के द्वारा किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 28(2), 30 (VII, XVI,XVII)  में निहित प्रावधानों के निर्वाहन समिति द्वारा नहीं किए जाने के कारण ऐसे जिलों जहाँ जाँच प्रतिवेदन में गृहों के संबंध में प्रतिकूल टिप्पणी पाये गये हैं। वैसे जिलों में कार्यरत बाल कल्याण समिति को बालहित एवं कार्यहित में अवधि विस्तार की अवधि को समाप्त करते हुए नजदीकी जिले के बाल कल्याण समिति सें संबद्ध करने का निर्णय लिया गया है। वे बाल कल्याण समिति हैं:


1- बाल कल्याण समिति पटना के अवधि विस्तार को निरस्त करके नजदीकी जिले जहानाबाद के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
2- बाल कल्याण समिति पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के अवधि विस्तार को निरस्त करके नजदीकी जिले गोपालगंज के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
3- बाल कल्याण समिति कैमूर को निरस्त करके नजदीकी जिले रोहतास के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
4- बाल कल्याण समिति गया को निरस्त करके नजदीकी जिले अरवल के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
5- बाल कल्याण समिति भागलपुर को निरस्त करके नजदीकी जिले बाँका के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
6- बाल कल्याण समिति नवादा को निरस्त करके नजदीकी जिले नालंदा के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
7- बाल कल्याण समिति सीतामढ़ी को निरस्त करके नजदीकी जिले शिवहर के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।
8- बाल कल्याण समिति कटिहार को निरस्त करके नजदीकी जिले खगड़िया के बाल कल्याण समिति से संबद्ध कर दिया गया है।

स्त्रीकाल और अन्य संगठनों द्वारा बिहार भवन पर प्रदर्शन


आदेश में ये भी कहा गया है कि यह आदेश अगले छः माह या नई समिति के गठन तक जो भी पहले हो के लिए किया गया है। बता दें कि प्रस्ताव पर समाज कल्याण विभाग की मंत्री के अनुमोदन प्रप्त होने का भी जिक्र किया गया है । आदेश पर समाज कल्याण के निदेशक राजकुमार के हस्ताक्षर हैं।

वहीं दूसरी ओर समाज कल्याण विभाग ने मुजफ्फरपुर समेत छह जिलों के सहायक निदेशक बाल संरक्षण इकाई (एडीसीपीयू) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। शनिवार 4 अगस्त को विभाग के निदेशक राज कुमार ने निलंबन का आदेश जारी किया। निलंबित किए गए पदाधिकारियों में मुजफ्फरपुर के एडीसीपी दिवेश कुमार शर्मा, मुंगेर की सीमा कुमारी, अररिया के घनश्याम रविदास, मधुबनी के सहायक निदेशक जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग एवं अतिरिक्त प्रभार सहायक निदेशक, बाल संरक्षण इकाई कुमार सत्यकाम, भागलपुर की एडीसीसी गीतांजलि प्रसाद, एवं भोजपुर के तत्कालीन एडीसीसी आलोक रंजन के नाम शामिल हैं।
बता दें कि विभाग द्वारा जारी निलंबन आदेश के मुताबिक सभी निलंबित सहायक निदेशक बाल संरक्षण इकाई पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस मुंबई की कोशिश टीम द्वारा सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट में संस्थान के संवासिनों के साथ मारपीट, अभद्र व्यवहार एवं अन्य अवांछित कार्य किए जाने की रिपोर्ट दिए जाने के बावजूद संस्थानों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेने का आरोप है। साथ ही इन पदाधिकारियों पर अपने निरीक्षण रिपोर्ट में कभी भी उक्त संस्थानो की वस्तुस्थिति से उच्चाधिकारियों को अवगत नहीं कराने जैसे बेहद गंभीर आरोप भी विभाग की ओर से लगाए गए हैं।विभाग के अनुसार 26 मई 2018 की राज्य स्तरीय बैठक में भी आवश्यक कार्रवाई का निर्देशदिया गया था।

बाल कल्याण विभाग की इस कारर्वाई पर सवाल उठाते हुए मुजफ्फरपुर मामले में जनहित याचिका दायर करके हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की सीबीआई जाँच की माँग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार जी आश्चर्य जताते हुए कहते हैं- ‘हैरत वाली बात ये है कि कई जिलों में निदेशालय को पहले ही रिपोर्ट भेजा गया था कि उक्त बालगृह नहीं चल रहा है, तो निदेशालय ने उनके रिकमेंडेशन को नहीं माना। जो कार्रवाई निदेशालय को अपने आप पर करना चाहिए था अपने वरीय पदाधिकारियों पर करना चाहिए था उसको वो न करके खुद को बचाते हुए छोटे पदाधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर निलंबित कर दिया है।समाज कल्याण विभाग अपने उच्च अधिकारियों के खिलाफ जाँच क्यों नहीं बैठाता है। आखिर उनके निगरानी करते रहने के बावजूद एक साथ इतने सारे शेल्टर होमों में अनियमितता बलात्कार जैसी बर्बरता क्यों अब तक छुपी रही थी। आखिर ऐसी कौन सी मशीन उनके हाथ लगी है कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइसेंज की टीम महज कुछ घंटों के लिए शेल्टर होमों में जाती है और उनका सारा कच्चा-चिट्ठा निकालकर चली आती है फिर कल्याण विभाग के अधिकारी कैसे इतने दिन कुछ नहीं जान पाए? ‘

संतोष पूछते हैं, ‘आखिर समाज कल्याण के अधिकारी क्या करने जाते थे शेल्टर होम में। जिला लेवल के पदाधिकारी से लेकर प्रधान सचिव तक रुटीन में गए हैं और यहां तक की मंत्री भी गए हैं बाल आयोग संरक्षण की अध्यक्षा भी गई हैं निदेशक और दूसरे पदाधिकारी तो गए ही हैं लेकिन किसी को कुछ नहीं पता चलता है। ये ऊँचे स्तर पर संलिप्तता का विषय हो सकता है। ये भ्रष्टाचार से शुरू होता है और अपराध तक पहुँच जाता है। ये संगठित अपराध तक पहुँचता है। सीबीआई जाँच कर रही है हमें उस पर भरोसा है कि वो इस संभावित सिंडिकेट को तोड़ने में कामयाब हो जाएगी। जो इन सबके पीछे एक सिंडिकेट के तौर पर काम कर रहे हो सकते हैं। इसमें एनजीओ अपराधी छवि नेता नौकरशाह और सफेदपोश ये तीनों संलिप्त हैं। और इसमें कई पत्रकार भी शामिल हैं क्योंकि वो मुख्य अपराधी पत्रकार भी था। हो सकता है चारो कोण मिलकर एक कॉकटेल तैयार करते रहे हों जो वर्षों से फल फूल रहा होकि इन्हें कौन रोकेगा सभी तो मिले हुए थे। टैक्सपेयर के पैसे परभ्रष्टाचार से शुरू हुआ ये सिलसिला बच्चियों के साथ ऐसा घिनौना अपराध तक जा पहुँचताहै। इन्होंने बिहार के चेहरों को इस कदर कलंकित कर दिया है कि बिहार के लोग अब शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं। और ये सब कुछ लोगो की वजह से हुआ है। हमें हाईकोर्ट मॉनीटरिंग में सीबीआई जाँच पर भरोसा है। स्वतःसंज्ञान लेने के बाद और सुप्रीमकोर्ट भी मॉनीटरिंग करे तो और अच्छा है। निःसंदेह बच्चियों को न्याय मिलेगा।लेकिन मेरी चिंता उन 34 बच्चियों के भविष्य को लेकर है कि अब इन बच्चियों के लिए सरकार के पास कौन सा एक्शन प्लान है इसको लेकर सरकार की ओर से कोई भी बात करने को तैयार नहीं है।’


(नोट- पोस्ट में दिए गए समाज कल्याण विभाग से जुड़े सारे तथ्य और विवरण समाजसेवी याचिकाकर्ता संतोष कुमार द्वारा उपलब्ध कराये गये हैं।)



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