कुछ अच्छे शेल्टर होम भी हैं बिहार में, जाने TISS की रिपोर्ट के अच्छे शेल्टर होम के बारे में

स्त्रीकाल डेस्क 


टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल सायंसेज के सोशल ऑडिट रिपोर्ट में मुजफ्फरपुर सहित 14 शेल्टर होम में बड़ी अनियमिततायें तथा रहने वालों का शोषण बताया गया है. मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में बच्चियों से बलात्कार के बाद बिहार और देश उद्द्वेलित है. सीबीआई जांच में कई सफेदपोशों तक जांच की आंच पहुँचने की अटकलें तेज है. बिहार के समाज कल्याण मंत्री के बाद अब सूबे के मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग तेज हो गयी है. इनसब के बीच टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल सायंसेज की रिपोर्ट में ही कुछ अच्छी खबरें भी हैं, समाज और मानवता के लिए-सुखद. TISS की रिपोर्ट में 6 शेल्टर होम के बारे में अच्छी बातें कही गयी हैं, जाने वे कौन से 6 शेल्टर होम हैं और रिपोर्ट में क्या कहा गया है उनके बारे में:

दरभंगा के ऑबजर्बेशन होम का दौरा करने का हमारा अनुभव सुखद था. वहां रहने वालों के साथ कोई हिंसा नहीं हुई थी, नहीं होती है. कर्मचारी और वहां रहने वाले लोग बागवानी करते हैं. संस्थान में खूबसूरत उद्यान और शानदार रसोई है. वहां रहने वाले लोग संस्थान के अधीक्षक से प्यार करते हैं, जो उन्हें पढ़ाते भी रहे हैं. यह पढाई नियमिति होने वाले क्लास से अलग होती थी. आउटडोर की व्यवस्था थी जैसे कि वॉलीबॉल, बैडमिंटन इत्यादि और अधीक्षक अक्सर उनके साथ भी खेला करते थे. इसी प्रकार, बाकी के कर्मचारी भी समान रूप से उत्साहित थे सीखने और अनुकूलन से मुक्त होने के लिए उत्सुक.

इसी प्रकार, बक्सर में बाल गृह एक सकारात्मक वातावरण बनाने में कामयाब रहा है, खासकर कर्मचारियों के नियमित कार्य और उनकी जिम्मेवारियों से परे बच्चों के साथ सहज रिश्ते बनाकर.  लगभग सभी कर्मचारी बच्चों के साथ समय बिताते हैं. संस्थान में कोई नियमित शिक्षक या ट्रेनर नहीं है, लेकिन अन्य स्टाफ सदस्य इन जिम्मेदारियों को निभाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे न सिर्फ पढ़ें बल्कि  ड्राइंग, पेंटिंग आदि की हॉबी भी पूरी करें. अपने प्रयासों से उन्होंने एक पुस्तकालय बनाया है, जहाँ से बच्चों को किताबें लेने की अनुमति है . यह एक छोटी सी चीज की तरह जरूर दिख सकता है, लेकिन बच्चों के कस्टडी के दौरान के अनुभव से उन्हें मुक्त करने में इसकी अहम् भूमिका होती है.

सारण का स्पेसलाइज्ड अडॉप्शन सेंटर बुनियादी ढांचे और समर्पित कर्मचारियों की एक टीम के साथ सुव्यस्थित दिखा. सेंटर की समन्वयक एक संवेदनशील महिला हैं, जो टीम को इस तरह प्रेरित करने में सक्षम रही हैं, कि यह सेंटर ‘मॉडल अडॉप्शन सेंटर’ कहा जा सके. वहां बच्चे स्वस्थ और खुश दिखते थे और जब पूछा गया कि वे कैसे यह सब कम बजट में कर लेती हैं तो बताया गया कि संगठन के सचिव अपनी दूसरी परियोजनाओं से इसकी भारपाई करते हैं. सचिव के साथ बातचीत में, उन्होंने कहा कि उन्होंने केंद्र को एक मंदिर के रूप में माना है और खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें अनाथ बच्चों की देखभाल का अवसर मिला. यह देखना सुखद था कि एक संगठन ने धर्म को  कर्मकांडों से मुक्त उसे एक सेवा के अवसर के रूप में देखा है.

चिल्ड्रेन होम, कटिहार में, प्रबंधन ने कुछ वैसे बड़े बच्चों को चिह्न्ति किया था, जिन्होंने कभी न कभी स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी, उन्हें छोटे बच्चों को पढ़ाने से जोड़ दिया गया.  एक स्तर पर, यह समर्पित शिक्षकों की कमी को पूरा करता है, वहीं दूसरी तरफ, इसका उनके मनोविज्ञान पर सकारात्मक प्रभाव पैदा करता है इस अहसास के साथ कि वे सकारात्मक कार्य में लगे हुए हैं। स्टाफ भी सतर्क और जागरूक थे. इस प्रक्रिया में कुछ बच्चों के भीतर नेतृत्व का गुण भी विकसित होता है.

भागलपुर में लड़कियों के लिए चिल्ड्रेन होम एक बंद इमारत और सीमित स्थान में होने के बावजूद एक सकारात्मक वातावरण बनाने में सफल है. कर्मचारी संस्थान में अपने बच्चों के जन्मदिन मनाते है. इस अवसर पर  लड़कियों को उत्सव के माहौल का आनंद मिलता है। इसका यह भी परिणाम हुआ है वहां रहने वाले कर्मचारी बच्चियों के प्रति संवेदनशील हैं. प्रेम और वांछित होने के अहसास से एक-दूसरे से लगाव पैदा होता है.
इस छोटे से प्रयास से वहां रहने वाली बच्चियों में यह अहसास भर पाया है कि उनकी देखभाल हो रही है.

पूर्णिया में लड़कों के लिए चिल्ड्रेन होम लोगों को वहां की  प्रक्रिया में इंगेज करता है. स्वयंसेवक वहां आते हैं और बच्चों के साथ अलग-अलग एक्टिविटीज करते हैं. इस तरीके के कई लाभ हो सकते हैं, मसलन बाहरी व्यक्तियों द्वारा अनौपचारिक निगरानी और मोनिटरिंग संभव हो पाता है तथा वे इस सम्बन्ध में अपने विचार दे सकते हैं,अपनी चिंताएं जाहिर कर सकते हैं. संगठन बच्चों के परिवार की जानकारी पता करने के लिए एक मोबाइल अप्लिकेशन भी चलाता है.

रिपोर्ट ने इन छः संस्थानों के अलावा कई और संस्थानों में अच्छे प्रसंगों का उल्लेख किया है. मसलन, कहीं-कहीं स्टाफ भी अपने बच्चों के साथ रहते हैं, जिसके कारण कैम्पस में बढ़िया वातावरण होता है. नालंदा के एक शेल्टर होम की महिलायें जब पास के मंदिर तक जाने लगीं तो उसका भी सकारात्मक असर हुआ.

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