केंद्र सरकार के न चाहने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने खत्म की व्यभिचार की धारा: महिला विरोधी थी यह धारा



स्त्रीकाल डेस्क 


केंद्र सरकार के न चाहने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को भारतीय आचार दंड संहिता (आईपीसी) की धारा (व्यभिचार) को हटा दिया है. 158 साल पुरानी इस धारा पर फैसला सुनाते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश  दीपक मिश्रा ने कहा, “यह अपराध नहीं होना चाहिए.”  कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. कोर्ट ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के अनुकूल नहीं है. जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है. कोर्ट ने कहा कि यह कानून महिला की चाहत और सेक्सुअल च्वॉयस का असम्मान करता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि यदि व्यभिचार की वजह से एक जीवनसाथी खुदकुशी कर लेता है और यह बात अदालत में साबित हो जाए, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलेगा. कोर्ट ने कहा कि पुरुष हमेशा फुसलाने वाला, महिला हमेशा पीड़िता – ऐसा अब नहीं होता.

क्‍या थी धारा 497 
आईपीसी की धारा निरस्त धारा के अनुसार  497 के तहत अगर शादीशुदा पुरुष किसी अन्‍य शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाता है तो यह अपराध है. लेकिन इसमें शादीशुदा महिला के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है.
धारा को इन शब्दों में पढ़ा जा सकता है: 

Whoever has sexual intercourse with a person who is and whom he knows or has reason to believe to be the wife of another man, without the consent or connivance of that man, such sexual intercourse not amounting to the offence of rape, is guilty of the offence of adultery, and shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to five years, or with fine, or with both. In such case the wife shall not be punishable as an abettor.

कोई भी व्यक्ति किसी ऐसी स्त्री से, जो दूसरे की पत्नी हो, या वह व्यक्ति यह जानता हो या विश्वास करता हो कि वह दूसरे की पत्नी है, बिना उसके पति की अनुमति या सहयोग के, शारीरिक संबंध बनाता हो और ऐसा शारीरिक सम्बन्ध यदि बलात्कार न हो तो वह ऐडलटरी, व्यभिचार, जारकर्म का दोषी है. वह 5 सालों तक की सजा, या आर्थिक दंड, या दोनो का, भागी होगा. और वह पत्नी अपराध की सहभागी की तरह दंड की पात्र नहीं होगी.

व्याख्या से स्पष्ट है कि कथित व्यभिचार में शामिल महिला के पति के चाहने पर ही उसमें शामिल पुरुष पर मुकदमा हो सकता है. यानी सहमति से स्त्री संबंध रख सकती थी.  इस कानून के तहत अगर आरोपी पुरुष पर आरोप साबित होते है तो उसे अधिकत्‍तम पांच साल की सजा हो सकती है. इस मामले की शिकायत किसी पुलिस स्‍टेशन में नहीं की जाती है बल्कि इसकी शिकायत मजिस्‍ट्रेट से की जाती है और कोर्ट को सबूत पेश किए जाते हैं.

केन्‍द्र सरकार ने दी थी ये दलीलें 
केंद्र सरकार ने IPC की धारा 497 का समर्थन किया था. केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी ये कह चुका कि जारता विवाह संस्थान के लिए खतरा है और परिवारों पर भी इसका असर पड़ता है.
केंद्र सरकार की तरफ असिस्टेंट सोलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने कहा था अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव को लेकर कानून को देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिये से.

पढ़ें: असीमित व्यभिचार का कानूनी दरवाजा: बहन के नाम वकील भाई की पाती

फैसले की मुख्य बातें: 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को बताया असंवैधानिक , कहा-चीन, जापान, ब्राजील में ये अपराध नहीं
चीफ जस्टिस ने कहा-व्यभिचार  कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है.
चीफ जस्टिस ने कहा-इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा – भारतीय संविधान की खूबसूरती ये है कि ये I, me and U को शामिल करता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-जो भी सिस्टम महिला की गरिमा से विपरीत या भेदभाव करता है वो संविधान के गुस्से को आमंत्रित करता है. जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वो अंसवैंधानिक है
पांच में से दो जज  व्यभिचार कानून को रद्द करने को लेकर हुए एकमत. बहुमत से दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-यह पूर्णता निजता का मामला है, महिला को समाज की चाहत के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता.
इनपुट एनडीटीवी

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