प्रसिद्ध फिल्मकार 64 वर्षीय कल्पना लाजमी (1954 – 2018) का मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में २३ सितम्बर २०१८ रविवार की सुबह सुबह साढ़े चार बजे निधन हो गया। उनके भाई देव लाजमी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि ‘वे किडनी के कैंसर से पीड़ित थीं. उनकी किडनी और लीवर ने काम करना बंद कर दिया था।’ उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर साढ़े बारह बजे ओशिवारा श्मशान भूमि में किया जाएगा।
कल्पना लाजमी की विरासत कला और फिल्म जगत थी. वे प्रख्यात चित्रकार ललिता लाजमी की बेटी थीं और फिल्म निर्माता गुरु दत्त की भतीजी थीं, लेकिन कल्पना लाजमी ने वहाँ अपना अलग रास्ता अख्तियार किया. वह स्त्रियोंमुख और समानांतर-यथार्थवादी फिल्मों की तरफ मुड़ी. कल्पना लाजमी ने अपने करियर की शुरुआत अनुभवी फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के साथ सहायक निर्देशक के रूप में शुरू किया जो पादुकोण परिवार के उनके रिश्तेदार भी थे। उनकी फिल्में अक्सर महिलाओं पर केंद्रित रहती थीं। उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में रूदाली, दमन, दरमियान शामिल हैं।
बाद में वह श्याम बेनेगल की ‘भूमिका: द रोल’ में सहायक पोशाक डिजाइनर के रूप में काम करने लगीं। उन्होंने वृत्तचित्र फिल्म डी.जी. के साथ अपना निर्देशन शुरू किया. बाद में 1978 में मूवी पायोनियर और ‘ए वर्क स्टडी इन चाय प्लकिंग’ (1979) और ‘अलोंग द ब्रह्मपुत्र’ (1981) नाम के वृत्तचित्रों का भी निर्देशन किया. उन्होंने 1986 में ‘एक पल’ फिल्म निर्देशक के रूप में शुरुआत की जो शबाना आज़मी और नसीरुद्दीन शाह अभिनीत थे। उन्होंने फिल्म का निर्माण किया, फिल्म लेखन में हिस्सा लिया और गुलजार के साथ फिल्म के लिए पटकथा भी लिखी थी।
उसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने फिल्म निर्देशन से अवकाश लिया और तन्वी आज़मी अभिनीत अपने पहले टेलीविजन धारावाहिक लोहित किनारे (19 88) को निर्देशित करने में जुट गईं. उन्होंने 1993 में डिंपल कपाडिया अभिनीत और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित ‘रुदाली’ के साथ सिनेमा में वापसी की। इस फिल्म के लिए डिम्पल कपाडिया को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.
उनकी अगली फिल्म ‘दर्मियान: इन बिटविन’ (1997) थी जिसकी वे खुद निर्माता-निर्देशक थीं. फिल्म में किरण खेर और तब्बू को उनके प्रभावशाली अभिनय के लिए खूब सराहा गया.
उनकी अगली फिल्म ‘दमन’ 2001 में आई जो वैवाहिक हिंसा पर बनी फिल्म थी. फिल्म को भारत सरकार द्वारा वितरित किया गया था और जिसे आलोचकों द्वारा अत्यधिक प्रशंसित किया गया। यह दूसरी बार था जब एक अभिनेत्री ने स्त्री निर्देशन में बनी फिल्म के तहत रवीना टंडन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था।
उसकी अगली फिल्म थी ‘क्यों’ (2003) जो बहुत अधिक ध्यान नहीं खिंच पायी आलोचकों का. उनकी आखिरी रिलीज फिल्म ‘चिंगारी’ थी जिसमे सुष्मिता सेन ने एक गांव की वेश्या के रूप में अभिनय किया था, वह भी 2006 में रिलीज होने के बाद व्यावसायिक रूप से असफल रही. यह फिल्म भूपेन हजारिका के उपन्यास ‘द प्रॉस्टीट्यूट एंड द पोस्टमैन’ पर आधारित थी। हजारिका उनके पार्टनर भी थे।उनकी मौत पर सिने जगत के कई जानी-मानी हस्तियों ने ट्विटर और अन्य सोशल मिडिया पर शोक सन्देश व्यक्त किया है.
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