सत्यप्रकाश की कविताएं (शब्द व अन्य)

सत्यप्रकाश

1. शब्द
किताबों में लिखे शब्द चाभी होते हैं।
इतिहास की कुढ़ संस्कृति के
जिससे कलपुर्जों को खोला जाता है ।
कुछ शब्द बदलते चेहरों का हिसाब होते हैं ।
कुछ शब्दों से खोखली सभ्यताओं को दुरुस्त किया जाता है ।
कुछ शब्दों से पक्की सच्ची सभ्यताओं को
हासिये पर धकेला जाता है ।
शब्द निरंतर गढ़े जाते हैं ।
कुछ शब्द स्त्रियों प रहो रहे अत्याचारों की गवाही देते थे ।
कुछ शब्दों में उनकी गर्भहत्या का हिसाब होता था।
कुछ शब्द उनपर की गयी वाहयात
फब्तियों की गवाही देते हैं।
अब कुछ शब्दों में मोमबत्ती लिए जुलुस दिखाई देते हैं ।
कुछ शब्द उनकी सिसकती दस्तानों को केवल समेट लेते थे ।
अब कुछ शब्दों में स्त्री के मंगल पर जाने का जिक्र होता है ।
अब कुछ शब्दों में देश के लिए मैडल जीते का जिक्र होता है।
शब्द कभी झूठे नहीं होते झूठी वह कलम,
उसको पकड़ने वाले हाथ और
उस हाथ से जुड़ा इंसान होता है ।
कुछ शब्द नेताओं के बेबुनियादी भाषणों
और खोखले वादों में होते हैं ।
कुछ शब्द केवल सच को झूठ में बदलते हैं ।
कुछ शब्द अब केवल किताबों में होते हैं ।
जिसमें अनगिनत परिवारों के भीतर
फ़ैल रहे फरेब का जिक्र होता है।
शब्द तो शिर्फ़ शब्द हैं जो समाज की काली
सच्चाई को केवल गति देता है।
कुछ शब्दों में पूंजीपतियों, बंगलों, गाड़ियों
और घर में बैठे पामेरियन कुत्ते का जिक्र होता है।
कुछ शब्दों में गौरी लंकेश की पीठ पर गोली मारे जाने जिक्र होता है
कुछ शब्दों में नजीब की माँ का इन्साफ के लिए
आंसु बहाने का जिक्र होता है।
अब कुछ शब्दों में बैंक लूट चुके भगौड़ों का जिक्र होता है।
कुछ शब्दों में गरीबों की रोटी और बेटी जिक्र का होता है।
अब कुछशब्दों में बिक चुकी पुलिस का जिक्र होता है।
अब कुछ शब्दों में अस्पतालों में धक्के खाते इंसानों का जिक्र होता है।
अब कुछ जिक्र स्कूलों में बच्चों के साथ यौन उत्पीडन का होता है।
अब कुछ शब्दों में किसानो की आत्महत्याओं का जिक्र होता है।
शब्द तो बस शब्द हैं।
शब्द कभी झूठे नहीं होते झूठी वह कलम,
उसको पकड़ने वाले हाथ और
उस हाथ से जुड़ा इंसान होता है।

2. बम
तमाम फटी, उधड़ी जली कटी
लाशों की एकतरफा जिम्मेदारी के साथ
हत्याएं, अनगिनत हत्याएं केवल खूंखार
हथियार ही नहीं करते।
हत्याएं अक्सर आपके घर में पड़े
धर्मग्रन्थ भी करते हैं।
जिसने सदियों पहले बारूद को

धरती के सीने पर बिछा दिया था
एक जुलुस भी बम है जो उस पुस्तक से
संचालित होता है।
टीका, रोली, रुद्राक्ष और जनेउ भी
बम हैं जिससे अनगिनत
लाशों पर खड़े होकर नए समाज की
नीव राखी जाती है।
बम फटने के इंतज़ार में है।

3 बेटी
बेटी बनो तो बेहया बनो
चाहे कोई काटे, जलाए, उखाड़ फेंके
फिर भी कहीं भी जम जाओ
बनो तो तुम कलम बनो
अपना इतिहास खुद लिख जाओ
हर घर में उजियारा करों
बनो न कभी किसी पुरुष के पैरों की बिवाई
बनो तो तुम सूपर्णखा बनो
जिसके प्रीत ने इतिहास को
अमर बना दिया
बेटी बनो तो दियासलाई बनो
रात में उजियारा करो।।

4. जब दिन में अँधेरा हो
जब दिन में अंधेरों का साया हो
तो समझ लेना कि यह सत्य नहीं
असत्य का बोलबाला है,बेबसी है,
विसंगति है, अपनों के भीतर कड़वाहट है,
छलावा है, विपरीत ताकतों का।
जब दरवाजे पर कोई नेता दस्तक दे
तो समझ लेना लूटेरा आया है
तुम्हारे बच्चों की रोटियों को छीनने
हत्यारे खड़े हैं इंतजार में
हाथों में लिए बंदूकें, तलवारें, भाले
बेदखल, लाचार, असहाय बनाने
तुम्हारे आशियाने को।।

सत्यप्रकाश गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी केंद्र में शोधरत हैं. संपर्क: satyaprakashrla@gmail.com 

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ISSN 2394-093X
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