भिखारी ठाकुर की तुलना शेक्सपियर से करना भिखारी ठाकुर का अपमान है

आँचल 


अंग्रेजी साहित्य की शोधार्थी आंचल भिखारी ठाकुर की तुलना शेक्सपियर से किये जाने को भिखारी ठाकुर का  अपमान बता रही हैं. इस टिप्पणी के अनुसार हमेशा राजघरानों को केंद्र में लेकर नाटक लिखने वाले और महिलाओं का बारम्बार अपमानजनक चित्रण करने वाले शेक्सपियर से आमजनों को पात्र बनाकर महिलाओं के सम्मान में सन्देश देने वाले नाटकों के लेखक भिखारी ठाकुर की तुलना कहीं से भी उचित नहीं है. 

उत्तर प्रदेश से हूँ और 28 जुलाई 2018 के पहले तक मुझे भिखारी ठाकुर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। शायद इसलिए भी कि मैं अंग्रेजी साहित्य की स्टूडेंट हूँ। अभी हाल ही में 28 जुलाई 2018 को पहली बार उनके बारे में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में जाना हुआ, वहाँ उनके ऊपर बनी फिल्म देखी, और उनके कला, और बिहार के लौंडा नाच के बारे में जाना और उनकी जिंदगी और व्यक्तित्व से रू-ब-रू हुई। आज तक मैं जिन भी किताबो को पढ़ी, ड्रामा, या उपन्यास या जो भी पढ़ी कभी भी पहले से कोई धारणा बना कर नही पढ़ी हूँ, न ही कोई पहले से निर्धारित सोच के साथ ही कोई फ़िल्म देखी हूँ। भिखारी ठाकुर के बारे में जानकर लगा कि मुझे उनके बारे में जानकारी होनी चाहिए थी, सवाल यह भी आया कि उनके बारे में मेरे जैसे जाने कितने लोगों को उनके बारे में नहीं मालूम। रही बात उनकी भोजपुरी भाषा की तो किसी भी मलयालम, तेलुगु, कन्नड़ से तो ज़्यादा हिंदी भाषी लोग उनकी भाषा समझ सकते हैं, रही बात उनके लिखे नाटकों की तो हमारी भाषा न होते हुए भी आज बच्चा-बच्चा शेक्सपियर के बारे में जानता है।

रामलीला क्या है? वह भी तो एक नाटक ही है, नाटक जहाँ लोगो  के मनोरंजन के लिए कोई राम बनता है तो कोई रावण, कोई सीता तो कोई अजीब सा मुखोटा लगा कर हनुमान बन जाता है, उस रामलीला का लोग सालो भर इंतेज़ार भी करते हैं। पर क्या भिखारी के नाटक को भी लोग वही तवज्जो देते हैं? क्यों नही जानते उनके बारे में लोग? रामायण में सालो से वही एक ही कहानी को लोग देखते आ रहे हैं, भिखारी हमें ढेर सारी नए नए पात्र कहानी, गीत देते हुए भी क्यूँ गुमनाम से हैं? शायद जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय (जेएनयू/ JNU) न होता तो मैं तो कम से कम उनके बारे में जान ही नहीं पाती।

खैर जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो कुछ लोगो ने, खुद इंटरनेट के गूगल बाबा ने भी उन्हें बिहार का शेक्सपियर कहा और कह कर संबोधित किया गया। मुझे लगा ही होगा कोई शेक्सपियर से मिलता जुलता उनका काम, रचना, या चरित्र। मैं रोमांचित हो गई कि कोई नाटक, या फिल्म दिखाई जाएगी जो शेक्सपियर से मेल खाता हो। जो शेक्सपियर जैसा हो।लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

कार्यक्रम के बाद मैं सोचने पर विवश हो गई कि भिखारी ठाकुर को कोई बिहार का शेक्सपियर कैसे कह सकता है? अंग्रेजी साहित्य के स्टूडेंट होने के नाते मुझे शेक्सपियर के कार्यो की जानकारी है, और आज भिखारी ठाकुर के कार्यो से भी कुछ-कुछ परिचित हुई। जब मैंने दोनो के कार्यो को देखा तो मुझे आश्चर्य हुआ।और मैं सोचने पर विवश हो गई कि भिखारी ठाकुर को किसने और किस आधार पर बिहार का शेक्सपियर कहा? उसके क्या आधार थे? क्या सिर्फ इसलिए कि शेक्सपियर इंग्लैंड का या कहें कि अंग्रेजी का लोकप्रिय उपन्यासकार हैं? या फिर भिखारी ठाकुर नाम शेक्सपियर से जुड़ने के बाद उनका कद ऊँचा हो जाएगा?

सामान्यतः इस तरह की तुलना समान क्षेत्र के लोगो, जिसने सामान काम किया हो के बीच किया जाता है, लेकिन यहाँ भिखारी ठाकुर और शेक्सपियर में कोई सम्बन्ध नहीं है। मुझे नहीं मालूम है कि क्यों किसी ने इस बारे अभी तक नहीं सोचा कि उन्हें आजतक बिहार का शेक्सपियर कहा जाता रहा!!!  कम-से-कम बिहार के अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थियों को तो सोचना ही चाहिए था कि भिखारी ठाकुर की तुलना शेक्सपियर से कैसे किया जा सकता है? भिखारी ठाकुर के कार्यो को देखते हुए उनका तुलना शेक्सपियर से करना उनका अपमान है, उनके साथ अन्याय है।

बहुत संक्षिप्त में भिखारी ठाकुर और शेक्सपियर की तुलना इस प्रकार है – 
शेक्सपियर की लेखनी में आपको मुख्यतः यह मिलेगा – 
(1) विलियम शेक्सपियर ने हमेशा ही अपने हर लेखन में जो भी चरित्र लिया वो या तो राजा है, या राजकुमार है, या फिर राजघराने से सम्बंधित रहा है। चाहे वह हैमलेट राजकुमार हो या मैकबेथ राजा या उनके अन्य पात्र। उनके नायक पात्र हमेसा से ही “उच्च घराने” के ही मिलेंगें।
(2) शेक्सपियर ने अपनी रचनाओ में या तो महिलाओं को बहुत ही नकरात्मक तरीके से पेश किया है या फिर उन्हें बहुत ही कम तवज्जो दी है। शेक्सपियर की रचनाओं में महिलायों का न कोई रोल है न ही महत्त्व। उदहारण के तौर पर यदि आप हैमलेट पढ़ेंगे तो वह कहते हैं- ”Frailty thy name is woman”, मतलब “धोखा, गद्दारी ही महिला होने का नाम व मतलब है”, कहीं उन्होंने चुड़ैल के रूप में महिलाओं को दिखलाया,  कहीं धोखेबाज के रूप में-कई जगह तो उनके चरित्र पर लांछन भी लगाए हैं, तब भी पूरी दुनिया उनकी रचनाओं से ही उत्पन्न शब्द Caesarian इस्तेमाल करता है, हर उस महिला के लिए जो कुदरती तरीके से बच्चे को जन्म नही दे सकती, और आज तक वही धारणाबनी चली आ रही है, बड़ी अजीब बात है कि हम उड़ीसा को ओडिसा में बदल सकते हैं, बम्बई को मुम्बई कर दिये, सड़को के नाम जाने क्या से बदल कर क्या कर दिये, यहाँ तक ही विश्विद्यालय तक के नाम,विषय सब कुछ बदल डाले,पर ये Caesarian अभी तक वही का वही है, जाने इस पर कभी डॉक्टर लोग अपना कोई शोध करेंगे कि नहीं यह मुझे नहीं मालूम है।
(नोट: दुनियाँ में पहली बार ऑपरेशन से बच्चे के जन्म द्वितीय मौर्य सम्राट बिन्दुसार (जन्म 320 ईसापूर्व, शासन 298-272 ईसापूर्व) का हुआ था. बिन्दुसार की माँ गलती से जहर खा ली थी, उसके बाद उसकी मृत्यु हो है. बिन्दुसार का जन्म उसकी माँ के मृत्यु के बाद हुआ था.)
(3) शेक्सपियर की लगभग हर रचना में आपको भूत, प्रेत, आत्मा, चुड़ैल, या पिशाच मिलेंगे,जो अनायास ही सही पर अंधविश्वास को कहीं न कहीं बढ़ावा दे रहे हैं।

(4) शेक्सपियर के ज्यादातर लेखन में आपको ज्यादातर खून-खराबा और आपसी रंजिश ज़रूर से मिलेगी,कहीं पति-पत्नी पर शक के चलते उसे मारता है Othello, कही कोई भूत के उत्पन्न होने से भतीजा अपने चाचा को मारने की सोचता है Hamlet .

भिखारी ठाकुर का नाटक बेटी-बेचवा 

अब आतें हैं भिखारी ठाकुर पर –
अभी तक जितना मैं समझी हूँ उसके अनुसार भिखारी ठाकुर के लेखन और कार्यो में आपको यह सब मिलेगा –
(1) भिकारी ठाकुर ने, गरीब और आम जन की बात की है। समाज के आम लोगो की समस्याओं की ओर उन्होंने ध्यान दिया है।वे किसी भी बड़े आलीशान स्टेज पर नही साधारण से स्टेज का इस्तेमाल करते हैं।
(2) उन्होंने महिलायों के कपडे पहनकर नृत्य किया लेकिन उन्होंने कभी किसी महिला के बारे में नकारात्मक बात नहीं कही,दूसरा वह पहले पुरुष नहीं हैं, जिसने किसी महिला का वेश धारण किया है. भिखारी ठाकुर ने महिला का वेश धारण कर महिलाओ के हक़ ही बात की, उनका मजाक नहीं उड़ाया.
(3) उन्होंने लड़कियों के कम उम्र में ब्याहे और बेचे जाने का विरोध किया।उसके लिए नाटक बनाया, गीत लिखा, और नृत्य-नाटक किया। मनोरंजन के माध्यम से बड़ी-बड़ी बातें सीखा देने से वह साहित्य का असल लक्ष्य प्राप्त कर पाने में बुहत ही सफल रहे।

(4) भिखारी ठाकुर गाँव देहात के समस्यों से समाज को रु-ब-रु करतें हैं, और उसे दूर करने की बात करतें हैं, एक नाटक कार होने के बावजूद भी वह समाज कल्याण की बात भी सोचे, किसी भी उनकी कृति में आपको आपसी जलन, द्वेष नहीं मिलेगा।
(5) भिखारी ठाकुर अपने लेखन, नृत्य, और नाटक से आपको रुला सकते हैं, हँसा सकते हैं, सोचने पर मजबूर कर सकते हैं, लेकिन शेक्सपियर  की तरह वे आपको कभी भी खून-खराबा, आपसी रंजिश, भूत-प्रेत, अंधविश्वास की दुनिया में नहीं ले जाते हैं।

अब आप खुद सोचिए कि क्या भिकारी ठाकुर को बिहार का शेक्सपियर कहना उचित होगा?क्या इंग्लैंड में होगा कोई जिसे भिखारी ऑफ एवन (एवन Avon एक जगह का नाम) कहा जाए? या भिखारी ऑफ Westminster कहा जाए???

भारत जैसे जाति प्रधान देश में वे लोगो को इतना हँसा गए, इतना लोगों के अंदर प्रेम पसार गए और ख़ामोशी से यू ही चले गए, सोच कर देखिये अगर वह भी कोई द्विज सवर्ण होते तो क्या तब भी लोग उनसे ऐसे ही अनजान रहते?? छोटे-छोटे स्कूल तक मे शेक्सपियर के बारे में भारत के कोने-कोने में पढ़ाई होती है, विश्विद्यालयो तक, उनके जाने के कई सौ साल बाद भी आज भी उनकी कृतियों पर शोध हो रहा है, संभाल कर रखी गयी हैं उनकी कृतियों को, क्या हमारे पास हमारे अपने देश के अपने भिखारी ठाकुर की कोई भी कृति है???
किसी लाइब्रेरी में कुछ है-वेद पुराण खोज खोज कर लाये जा रहे हैं, क्या भिखारी ठाकुर का कुछ है हमारे पास, अक्सर ही लोग डिग्री के लिए शोध करते हैं, अपने नाम और यश के लिए विदेशों तक चले जाते हैं, और ऐसे ही कितने भिखारी ठाकुर यूँ ही गुमनाम से रह जाते हैं??

हम ऑस्कर की बात तो बेखौफ करते हैं, क्या कोई इंग्लैंड का आएगा कभी यहाँ भिखारी ठाकुर अवार्ड के लिए?? आखिर हम कब तक ग़ुलाम रहेंगे???, सोचिये की क्या हम सच में आज़ाद हैं?? अगर हैं तो इतने सारे देश के साहित्यकारों के होते हुए भी भिखारी ठाकुर को लोग क्यूँ नहीं जानते?? क्यूँ नहीं उन्हें, उनकी रचनाओं को पढ़ाया जाता?

जाने हम कब नकल बंद करेंगे, भारत मे कितने ही टैलेंट बस गरीबी और जाति व्यवस्था के चलते ही दबा दिए जाते हैं। भिखारी ठाकुर की तुलना शेक्सपियर से करना उनका अपमान है।

आँचल,“Marxist Interpretation of the Select Novels of John Steinbeck” विषय पर शोध कर रहीं हैं। 

साभार: नेशनल प्रेस 

लिंक पर  जाकर सहयोग करें , सदस्यता लें :  डोनेशन/ सदस्यता

आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  अमेजन ,   फ्लिपकार्ट से ऑनलाइन  खरीदें 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016, themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles