भगत सिंह: हवा में रहेगी मेरे ख़यालों की बिजली

अंजलि कुमारी,

उसे यह फिक्र है हरदम नया तर्जे–जफा क्या है |
हमें यह शौक है देखें सितम की इन्तहा क्या है|


यह पंक्ति भगत सिंह के द्वारा लिखे उस पत्र से उद्धृत है जो 3 मार्च 1931 को उन्होंने भाई कुलतार सिंह के नाम लिखा था॰ इसके ठीक बीस दिन बाद अँग्रेजी हुकूमत ने उन्हे फांसी दी थी॰ यह सितम की इंतेहा थी जिसने भारतवासियों को झकझोड़ कर रख दिया था॰ 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई॰ जिस उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने उन्हे फांसी दी, उसे भारतवासियों ने पूरा नहीं होने दिया॰ फांसी के बाद देखते-ही-देखते भगत सिंह भारतवासियों के दिलों में देशप्रेम और बलिदान का पर्याय बनकर छा गए॰ यह प्रभाव प्रचंड और प्रभावशाली था, जिसने ब्रितानी हुकूमत के प्रति भारतवासियों के दिलों में जल रही बगावत की धीमी आग को लपटों में तब्दील कर दिया॰

दरअसल गिरफ्तार होने के पीछे भी उनका यही उद्देश्य था॰ बाद में हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाने का साहस भी देश की मुक्ति के महान उद्देश्य से प्रेरित था॰ फांसी से ठीक एक दिन पहले 22 मार्च 1931 को उन्होंने बलिदान से पहले अपने साथियों के नाम अंतिम पत्र में लिखा है, “दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी मताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने कि आरजू किया करेंगी और देश कि आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते कि बात नहीं रहेगी”॰
इस अंतिम पत्र में फांसी को लेकर उनके विचार, उद्देश्य और देश की मुक्ति को लेकर उनकी दृढ़ता, प्रतिबद्धता झलकती है जिसमें फांसी और भीषण दमन को सहने का साहस भी है॰
भगत सिंह के इस महान उद्देश्य को उस समय के क्रांतिकारी जनता ने पूरा किया॰ क्रांतिकारियों का प्रत्येक बलिदान, उनका दमन और फांसी की घटनाओं ने भारतीय जनता में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा, नफरत, आक्रोश को बढ़ाने का काम किया॰ शहीदों का आत्मबलिदान अंग्रेजी साम्राज्य के लिए विनाशकारी साबित हुआ॰ भारतवासियों में अंग्रेजों से मुक्त होने की तीव्र चेतना का संचार हुआ, जिससे स्वाधीनता संघर्ष में लोगों की हिस्सेदारी बढ़ी॰ इसी उद्देश्य के लिए भगत सिंह शहीद हुए थे.


निस्संदेह यह उद्देश्य बहुत बड़ा है॰ लेकिन उससे से भी बड़ी बात है, उद्देश्य के प्रति भगत सिंह की प्रतिबद्धता और आत्मसमर्पण॰ महान उद्देश्य को पाने का यह सीधा सरल रास्ता है॰ संघर्ष और दमन से कतराकर निकलने वालों के लिए यह अग्निपथ है, तो भगतसिंह जैसे लोगों के लिए एकमात्र विकल्प॰ दुनियां को मानवीय बनाने का, बदलने का सच्चा संकल्प लेकर जीनेवाले लोग, हमेशा से इस रास्ते पर चलकर कुर्बानी देते आए हैं॰ भगतसिंह भी हंसते हुए फांसी पर झूल गए॰ जो मृत्यु प्राणिमात्र के लिए भयकारक होती है, भगत सिंह ने उसे महान उद्देश्य के लिए हंसकर अपनाया॰ देशवासियों के प्रति उनके दिल में प्यार और फिक्र की सच्ची भावना थी॰ यही भावना उनके साहस, संघर्ष और बलिदान की मजबूत बुनियाद बनी॰
भगत सिंह एक महान उद्देश्य के लिए छोटी सी उम्र में फांसी के तख्ते पर चढ़ गए॰
27 सितंबर 1907 को अविभाजित भारत के जिला लयालपुर (अब पाकिस्तान) के गांव बंगा में उनका जन्म हुआ था और 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दी गई थी॰ जीवन के 24वें बसंत में उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा॰ अपनी इस छोटी सी उम्र में भगत सिंह जो कर गुजरे वह वास्तव में बहुत बड़ा है, क्योंकि उसमें मनुष्य की चिंता है॰ इसके अभाव में महान उद्देश्य की अवधारणा अर्थहीन है॰ फुले, अंबेडकर, भगत सिंह के विचार इसीलिए महान हैं क्योंकि उसमें शोषितों, वंचितों के मुक्ति की, प्रगति की चिंता है॰ यह चिंता भगतसिंह के बुनियादी सरोकारों में शामिल है॰


प्रेम, संघर्ष, क्रांति, राजनीति, धर्म, सांप्रदायिकता, समाज, छात्र, और नौजवानों पर भगत सिंह ने जो गंभीर लेखन किया है, वह इसी चिंता और चेतना से परिचालित है॰ भगत सिंह कहते थे कि क्रांति की धार, विचारों के शान पर तेज होती है॰ उनकी लेखनी से गुजरते हुये इस कथन की वास्तविकता को महसूस किया जा सकता है॰ भगतसिह के बारे में यह कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनके साथ जितना भावनात्मक लगाव की गुंजाइश है, उतनी ही बौद्धिक मित्रता की भी॰ आज भी सामाजिक चुनौतियों का सामना करने में हमें उनके विचार रौशनी देते हैं॰


हम भारतवासी आज जिस सांप्रदायिकता की चुनौती से गुजर रहे हैं, वह नई नहीं है॰ इतिहास में झांके तो आत्मा कांप उठती है॰ मनुष्य इस मानव विरोधी सोच के विनाशकारी असर में कितना क्रूर और पतित हो सकता है, इसका सबसे शर्मनाक उदाहरण देश के विभाजन से उत्पन्न सांप्रदायिक दंगे में हुई हिंसा है॰ भगत सिंह ने इस समस्या की विकरालता को संभवतः भांप लिया था, इसीलिए फांसी पर चढ़ने से पहले, उन्होने क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत को महसूस किया॰ उन्होने कहा था, “जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है, तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हैं॰ इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने कि जरूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है॰ लोगों को गुमराह करनेवाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती हैं॰ इससे इंसानी प्रगति रुक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है॰ इस परिस्थिति को बदलने के लिए जरूरी है कि क्रांति कि स्पिरिट ताजा की जाये, ताकि इंसानियत के रूह में हरकत पैदा हो॰”

यह बात जो उन्होंने फांसी से कुछ ही समय पहले कही थी उसे बार–बार दुहराने की जरूरत अब तक बनी हुई है॰

23 मार्च 2019 और 23 मार्च 1931, जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी, के बीच लगभग नब्बे वर्ष का फासला है॰ लेकिन अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण, सदी के इस दूरी को पार कर भगत सिंह आज भी संघर्षों में हमारे साथ चलते है॰ क्रांतिकारी विचारों में, जनसंघर्षों में, इंकलाब जिंदाबाद के नारों में भगतसिंह को हम महसूस करते रहते हैं॰
आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के आत्मबलिदान को याद करते हुए भगतसिंह के द्वारा लिखे पत्र की एक पंक्ति याद आ रही है-
“हवा में रहेगी मेरे ख़यालों की बिजली ,
ये मुश्ते -खाक है फानी, रहे रहे न रहे |”


लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग, में
सीनियर रिसर्च फेलो हैं . ईमेल- anjaliutsavjha@gmail.com

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ISSN 2394-093X
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