औरत मार्च: बदलते पाकिस्तान की दास्तान


भारत  में बढ़ती फिरकापरस्ती के बरक्स जरा पड़ोसी मुल्क को देखें. वहां से स्त्रियों के हक़ में लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं. पाकिस्तान  औरतों के हक में प्रगतिशील संघर्षों की जमीन बना  है. नूर ज़हीर का यह लेख उसकी तस्वीर पेश कर रहा है: 

21 मार्च को पाकिस्तान के चार प्रदेशों में से एक, ख्वार पख्तून्ख्व (KPK) की एसेंबली ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि ‘औरत मार्च’ के आयोजकों और भाग लेने वालों पर FIR दर्ज हो, उनपर कानूनी कार्यवाही की जाए और उन्हें सजा दी जाए! यह वह प्रदेश है जिसे हम भारत में आज भी नार्थ वेस्ट फ्रंटियर कहते हैं और खान अब्दुल गफ्फार खान की कर्मभूमि की तरह पहचानते हैं. गौर तलब है, कि आठ मार्च को हुआ ‘औरत मार्च’ पाकिस्तान में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनानेकी दूसरी बार हुई कोशिश थी. भारत से लगे हुए देश के बारे में जानकारी हम लोगों की इतनी कम है कि ‘औरत मार्च’ की प्रष्टभूमि पर एक नज़र डालना ज़रूरी है.

पिछले साल पाकिस्तान के कराची शहर में पहली बार अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया .
वैसे पाकिस्तान में महिलाओं को इस दिन का पता न हो ऐसा नहीं है और गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाएं, अपने दफ्तरों और कार्यस्थलों पर इसे मनाती भी रहीं थीं. लेकिन पिछले साल इसे सार्वजानिक रूप से मनाने का फैसला लिया गया . महिलाओं का एक जत्था कराची के बीचो बीच स्थित फ्रायर हॉल पर जमा हुआ और दो किलोमीटर स्थित प्रेस क्लब तक जलूस बनाकर निकलने का इरादा हुआ.  कानून के हिसाब से पुलिस को सूचना दे दी गई और मौलवियों तक
सूचना खुद ही पहुँच गई. महिलाए क्या कर रहीं है इसपर नज़र रखने का काम मौलवी नहीं तो और कौन करेगा ?कराची, सिंध प्रदेश की राजधानी है और यहाँ पर पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) की सरकार है. यह जुल्फिकार अली भुट्टो की बनाई पार्टी है जिसे बेनजीर भुट्टो  ने कई साल तक चलाया, इसके तहत दो बार प्रधान मंत्री रहीं और जिसके चुनावों के प्रचार के दौरान उन्हें शहीद किया गया .

ज़ाहिर है कि मौलवियों का भी एक बड़ा जत्था मौजूद था इस मार्च स्थल पर और महिलाओं पर पथराव करने के इरादे से आया था . सिंध की जनता बराबर ही धार्मिक दक्षिणपंथियों से जूझती रही है, इसलिए उन्हें भी अंदाज़ा था कि कोई अनहोनी हो सकती है. पुलिस तो मौजूद थी ही और उन्हें यह हिदायत भी थी कि उन्हें महिलाओं की सुरक्षा देखनी है . यहाँ यह बताना ज़रूरी
है की सिंध राज्य, पंजाब और खार पख्तुन्ख्वाह (उत्तर पश्चिमी फ्रंटियर) के मुक़ाबले ज्यादा उदारवादी और प्रगतिशील राज्य है, यहाँ अल्पसंख्यकों की गिनती भी पूरे पाकिस्तान में सबसे ज्यादा है, सूफी विचारधारा कट्टर इस्लाम के बजाय ज्यादा प्रमुखता पाती है, और आजकल के पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के महा सचिव बिलावल भुट्टो, (बेनजीर के पुत्र) सौहाद्र बनाए रखने के
लिए इस वर्ष खुद शिवलिंग पर दूध चढाने पहुंचे थे. ( देखें खबर)

महिलाओं के साथ बहुत सारे पुरुष भी थे, क्योंकि उन्हें पता था मौलवीगण महिलाओं की बेईज्ज़ती का कोई मौक़ा छोड़ेंगे नहीं, जिसमे शारीरिक उत्पीडन भी शामिल हो सकता है.
पुलिस और इन आम समर्थकों ने मिलकर मौलवियों से लोहा भी लिया, उन्हें भगाया भी और महिला दिवस, जिसे ‘प्रथम औरत मार्च’ का नाम दिया गया था बहुत कामयाबी से सम्पन्न
हुआ.

इस सफलता का नतीजा यह हुआ कि महिला संस्थाओं ने जिसमे WAF (Women’s Act.on Forum)और ‘तहरीक-ए-निस्वां सबसे प्रमुख थी, ने इस साल भी आठ मार्च मनाने का फैसला
किया. इस फैसले के साथ ही यह सवाल भी उठा कि क्या आठ मार्च केवल महिला दिवस है या यह “कामकाजी महिला दिवस” है ?अगर यह कामकाजी महिला दिवस है तो क्या कामकाजी केवल वे महिलाए हैं जो पढ़ी लिखी हैं, और उच्च पदों पर विराजमान हैं क्योंकि पिछले साल तो केवल उच्च वर्ग की महिलाओं या यूनिवर्सिटी, कॉलेज की युवतियों ने ही भाग लिया था. कामकाजी महिलायें तो घर घर बर्तन मांजने वालियां, सफाई कर्मचारी, अस्पतालों में नर्सें आया वगैरह भी हैं . उन्हें शामिल किये बिना क्या औरत हक की बात, और क्या उस हक के लिए
मोर्चा?

मैं पिछले साल दिसम्बर में पाकिस्तान में कराची में थी, और मैंने देखा कितनी जोर शोर से तैययारी चल रही है, महिला दिवस की जो तीन महीने दूर था . मेरी जानने वाली युवा लड़कियां रोज़ शाम को छोटे छोटे काम और उद्योग में लगी महिलाओं से मिल रहीं थीं, उन्हें बता रहीं थी महिला दिवस का क्या महत्त्व है, क्यों उनकी भागीदारी ज़रूरी है. एक बड़ा जलसा मेरा भी रखा जिसमे तकरीबन सारी छोटे छोटे काम धन्दों वाली महिलायें आई यह जानने के लिए की भारत में हम लोग महिला दिवस कैसे मनाते हैं .

कार्यकर्ताओं की कोशिश का नतीजा यह हुआ कि कराची के अलावा, हैदराबाद (सिंध) और लाहौर में भी महिला संगठनो ने अपने शहर में ‘औरत मार्च’ निकालने का निर्णय लिया . जहाँ पिछले साल इसमें कराची में कुल 250 महिलायें थीं वहीँ इस बार केवल कराची में ही 7500
महिलायें रैली में शामिल हुईं . रैली दो के बजाये 5 किलोमीटर घूमी, हर मोड़ पर जत्थे जुड़ते गए, गिनती बढती गई, पिछले साल पोस्टर दस बारह थे इस बार महिलायें अपने अपने घरों से पोस्टर बनाकर लेकर आईं थीं, और अंत में प्रेस क्लब के सामने एक मंच बनाया गया जिसपर कवितायें, गीत, भाषण और नृत्य का कार्यक्रम था .

शायद सबसे बड़ी उपलब्धि इस बार के ‘औरत मार्च’ की हर वर्ग की भागीदारी थी, और बहुत रोचक, नारी व्यथा को व्यक्त करने वाले पोस्टर. “शुक्र करो बराबरी चाहते हैं, बदला नहीं”, “खाना मैं गरम कर दूँगी, बिस्तर खुद गर्म करो”, “मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी”, “मेरी कमाई पर मेरा हक” जैसे पोस्टर लिए, नारे लगाती, नाचती गाती इतनी महिलायें सड़कों पर उतर आयें और पैत्रिकता की रूह न काँपे? भला ऐसा कैसे संभव है . पहले इस तरह के किसी आन्दोलन को , “अमीर
महिलाओं का, मॉडर्न  फैशनेबल महिलाओं का, पश्चिमी संस्कृति” इत्यादि का कह कर नकारा जा सकता था; इस बार तो हिजाब पहने स्त्रियाँ भी थीं, बुरका पहने भी, अनपढ़ भी, मजदूर भी, छात्राएं भी, डॉक्टर और बैंक मेनेजर भी ! और transgender भी बड़ी तादाद में शामिल हुए !
खलबली मचना स्वाभाविक था . कुछ पत्रकार भी जुटे, कुछ राजनीतिक नेता भी “छि छी, थू थू” करते नज़र आये, कुछ चैनलों ने निंदा की और उच्च वर्गीय वरिष्ठ नागरिकों ने महिलाओं को संयम से काम लेने की सलाह दी .

खैर इन सब से तो यही उम्मीद थी क्योंकि इन सब लोगों ने न कभी हालात बदलने की कोशिश की और न ही कभी सत्ता का पक्ष लेना छोड़ा . जिस प्रतिक्रिया से सबसे ज्यादा हैरानी हुई वह था नामी कवयित्री किश्वर नहीद की . यह वही हैं जिन्होंने “हम गुनाहगार औरतें” जैसी पितृसत्ता विरोधी और नारीवादी कविता लिखी थी. दो साल पहले तक इनसे हर जगह इस कविता को सुनाने की फरमाइश होती थी. इनकी पहचान एक विद्रोही महिला की तरह है जिसने कभी न हिजाब पहना, न सिर ढंका, न कभी सबके सामने वोडका की फरमाइश करने से चूकी, न अपने कई इश्कों का बखान करने से घबराई, और इस सबके बीच एक संस्था चलाती रहीं जो महिलाओं को शिक्षित करके आत्मनिर्भर करने का काम करती है . पचहत्तर साल की उम्र में क्यों उनको यह कहने की ज़रूरत पड़ी, “औरतों को सड़कों पर उतरने की कोई ज़रूरत नहीं, यह सब हमारे इस्लामी संस्कृति के विरुद्ध है, लड़कियों को याद रखना चाहिए कि हमारी संस्कृति में महिला की क्या जगह है.”

जब एक मज़बूत, पितृसत्ता विरोधी, औरतों के हक के लिए लड़ने वाली महिला इस तरह की
कलाबाजी खाए तो भला सत्ता की गद्दियों पर पसरे पुरुष क्यों पीछे रह जाएँ . KPK  में जहाँ प्रधान मंत्री इमरान खान की पार्टी  बहुमत और सरकार  है सर्व सम्मति से पारित इस प्रस्ताव में महिला विधायकों ने भी हस्ताक्षर किये हैं. मौलवियों के इतने बेहूदा, अश्लील बातें कहते हुए विडियो आये, जिसमे वे साफ़ कह रहे हैं, “अगर तेरा जिस्म तेरी मर्ज़ी, तो मेरा जिस्म और मेरी मर्ज़ी कहकर मैं तेरे पर चढ़ पडूंगा.”

लेकिन उम्मीद की किरण भी उजागर हुई है . बिलावल भुट्टो ने बयान जारी किया है कि PPP किसी भी हालत में औरत मार्च में भाग लेने वाली महिलाओं को कोई नुकसान नहीं होने देंगे . ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ़ पाकिस्तान के महा सचिव हारिस खलीक ने महिलाओं के पक्ष में बयान देते हुए कहा है, कि महिलाओं को पूरा हक है कि वे समाज में पनपते अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठायें! कुछ पुरुषों ने वीडियो बनाकर वायरल किये हैं जो सवाल उठाते हैं, “जब ऑनर किल्लिंग में हज़ारों महिलायें मारी जाती हैं, तब क्यों ऐसा प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित नहीं होता? जब बारह साल की लड़की से पैसठ साल का
बूढ़ा जबरन शादी करता है तब ऐसा प्रस्ताव क्यों नहीं आता? बलोच लड़कों को भीड़ यूनिवर्सिटी में घेरकर मारती है, उसका विडियो बनाती है, कोई प्रस्ताव आया? ब्लासफेमी में अल्पसंख्यक वर्षों तक क़ैद रखे जाते हैं कोई प्रस्ताव नहीं करता? खून के बदले में ब्लड मनी और वह न हो तो
अपनी कुंवारी बेटी देने का चलन आज भी जारी है, कोई प्रस्ताव नहीं आता;लेकिन औरतें अपने हक की बात करें तो सबको तकलीफ होती है, सत्ता डगमगाने लगती है और ईमान और इस्लामखतरे में पड़ जाता है. (देखें)

होना तो यह चाहिए था कि इस समय में भारत का हर महिला संगठन पाकिस्तान की इन महिलाओं के साथ होने का बयान जारी करता; महिला आन्दोलन के अंतर्राष्ट्रीयकरण की एक शुरुआत होती और कम से कम दक्षिण एशिया से यह सन्देश जाता कि हम महिलाए सरहदों से ज्यादा अपनी संघर्ष को एहमियत देते हैं. लेकिन भारत के महिला मोर्चों पर सन्नाटा है, शायद हमारे आंदोलनों को भी समय, सरहद, तेरे मेरे, और धर्म की घुन लग गई है.

जो भी परिणाम निकले पाकिस्तान महिलाओं की इस बुनियादी लड़ाई के छिड़ने से यह तो साबित होता है :

मेरे सीने में नहीं
तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग लेकिन
आग जलनी चाहिए

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ISSN 2394-093X
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