बेगूसराय की बिसात पर किसकी होगी शह और किसकी होगी मात?

लालबाबू ललित 

9 फरवरी 2016 से ही कन्हैया कुमार का बेगूसराय में एकतरफा महागठबंधन उम्मीदवार होने की खबरे राष्ट्रीय मीडिया में चलाई जाने लगी थीं. साम-दाम-दंड-भेद में लगे कन्हैया समर्थक जहाँ अपनी असंभव सी जीत को हासिल करने के पासे फेंक रहे हैं वहीं बेगूसराय की जमीनी हकीकत कहती है कि मुकाबला और तनवीर हसन और गिरिराज सिंह के बीच है: लाल बाबू ललित का विश्लेषण और ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट.

तनवीर हसन और गिरिराज सिंह

बेगूसराय सीट एकबारगी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरने लगा जब राजनितिक गलियारों में इस चर्चा ने जोर पकड़ना शुरू किया कि जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष और 9 फरवरी 2016 की इसी कैंपस में हुई एक घटना से अचानक लाइमलाइट में आये कन्हैया कुमार के वहाँ से चुनाव लड़ने की सम्भावना जताई जाने लगी। एकाएक एक दिन विभिन्न चैनलों और वेबपोर्टल पर यह खबर चलाया जाने लगा कि लालू यादव ने इस सीट से महागठबंधन से कन्हैया कुमार को लड़ाने की सहमति दे दी है। इस खबर को चलाने में एंडीटीवी से लेकर कई राष्ट्रीय चैनल थे।  ऐसे जोर- शोर से इस खबर को वायरल किया गया जैसे लगा कि सबकुछ तय हो चुका है, अब बस निर्वाचन आयोग कन्हैया को निर्वाचित होने का प्रमाण पत्र सौंपेगा और कन्हैया संसद में घुसकर मोदी की ऐसी -तैसी कर देंगे।  इस खबर ने कहाँ से अपना वजूद पाया , इस पर अलग- अलग किस्म के कयास लगाए जाने लगे लेकिन बाद में राजद के मनोज कुमार झा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे स्पष्ट किया कि इस संबंध में पार्टी या सहयोगी दलों के साथ किसी भी फोरम पर औपचारिक या अनौपचारिक किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई है तो यह सवाल कहाँ पैदा होता है कि 40 सीटों में से 39 को छोड़कर सिर्फ बेगुसराय सीट के विषय में लालू जी यह घोषणा कर देंगे।  किस सीट से कौन लड़ेगा , किसके खाते में कौन सी सीट जायगी , इसके निर्धारण की एक प्रक्रिया होती है , ऐसे – कैसे किसी के नाम की कोई घोषणा कर देगा।

यह करीब साल भर पहले की बात रही होगी। कुछ दिन यह शोर थमा लेकिन पता नहीं कौन इस खबर को लगातार हवा दे रहा था कि वह सीट तो कन्हैया  कुमार की पक्की है। कयासों का दौर रुक- रुक कर चलता रहा और जब सीटों के बँटवारे का मसौदा शक्ल लेने लगा तब यह देखा गया कि महागठबंधन की बैठकों में राजद , कुशवाहा , मुकेश सहनी , जीतन राम माँझी , शरद यादव आदि तो थे लेकिन वाम दलों की उपस्थिति इन बैठकों में नहीं थी।  जग -जगह से और अलग- अलग वेब चैनल और पोर्टल यह खबर जरूर चला रहे थे कि वाम दलों से भी बातचीत जारी है और महागठबंधन में उनको भी एकमडेट करने की बात चल रही है। लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ दीख नहीं रहा था।  ख़बरें यह भी थी कि वाम दलों के घटक सीपीआई ने 4 से 6 सीट की माँग अपने लिए रखी हुई है और बेगूसराय पर तो किसी तरह का कोई समझौता हो ही नहीं सकता।  वह सीट तो सीपीआई लड़ेगी ही लड़ेगी और कन्हैया कुमार वहां से पार्टी के उम्मीदवार होंगे। उधर सीपीआई माले ने भी अपने लिए 6 सीटों का चयन कर रखा था और 3 से नीचे जिसमें आरा , सिवान और जहानाबाद आदि सीटों पर तो समझौते की कोई बात नहीं होनी थी , इन तीन सीटों पर तो उनको लड़ना ही लड़ना था।  कुछ ऐसा ही हाल सी.पी.एम. का था जो अपने लिए 3 सीट चाह रहे थे। यानी कुल मिलाकर लेफ्ट यूनिटी अपने लिए 12 सीट से कम पर झुकने के लिए तैयार नहीं थे और उसमें भी पूर्व शर्त यह थी कि बेगूसराय पर कोई बातचीत नहीं , वह सीट कन्हैया कुमार के लिए चाहिए ही चाहिए। यह एक फंतासी में जीने वाली स्थिति थी और व्यावहारिक धरातल पर इन शर्तों का माना  जाना लगभग असंभव था।  हकीकत यह है कि सीपीआई माले को छोड़कर किसी भी अन्य वाम दल के लिए किसी सीट पर क्लेम करना सिर्फ हठधर्मिता ही है आज की तारीख में।  कायदे से 2 -3 सीट पर उन लोगों को मान जाना चाहिए था और किसी भी सीट की कोई भी पूर्व शर्त नहीं रखी जानी चाहिए थी।

खैर , यह अव्यावहारिक  समझौता नहीं होना था, नहीं हुआ। सीपीआई  अलग ही चुनाव में गयी और उसने बेगूसराय से कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार घोषित किया। महागठबंधन ने अपने पुराने साथी राजद के डॉ तनवीर हसन को अपना उम्मीदवार घोषित किया। एनडीए  से यहाँ गिरिराज सिंह लड़ रहे हैं।

इस तस्वीर के बाहर आने के बाद कयास को दिया गया हवा

बेगूसराय में बाजी किसके हाथ लगेगी ? 

इस सवाल का जवाब जानने के लिए बेगूसराय की डेमोग्राफिक स्थिति को जानना जरूरी  होगा। लगभग 19 लाख वोटर्स वाले इस क्षेत्र में भूमिहार वोटर्स की आबादी सबसे अधिक है। लगभग इतनी ही या इससे थोड़ा ही कम मुस्लिम मतदाता हैं। यादवों की तादाद तीसरे नंबर पर है। बाकी जातियों और वर्गों की तादाद इन तीनों के बाद ही है। मैंने यहाँ किसी की सम्भावना को टटोलने के लिए सबसे पहले इसी कारक को सामने रखा है , इस पर कइयों को आपत्ति हो सकती है कि जाति ही सबसे बड़ा फैक्टर कैसे हो सकता है ? लेकिन मैं किसी भी तरह की फंतासी में जीने का आदि नहीं हूँ। पूरे बिहार या बिहार ही क्यों , पूरे उत्तर भारत में मतदाता जाति के आधार पर बँटे हुए हैं और इलेक्शन में वोटिंग का सबसे अधिक निर्णायक आधार यह जाति ही है। तो बेगूसराय इससे अछूता नहीं है।  और बेगूसराय में अचानक कोई क्रांति का सूत्रपात हो गया हो , ऐसा भी बिलकुल नहीं है। तो बेगूसराय भी इसी मंथन से होकर गुजरेगा। वहाँ के भूमिहार मतदाता , मुस्लिम मतदाता इस क्षेत्र के उम्मीदवारों की किस्मत निर्धारण करने में सबसे ज्यादा निर्णायक भूमिका अदा करेंगे। 

क्या सोच रहे भूमिहार मतदाता ? 

इस बात को जानने और समझने के लिए जब मैं बेगूसराय पहुँचा तो स्थिति समझने में बहुत देर नहीं लगी।  बरौनी रेलवे स्टेशन से उतरकर मैंने सिमरिया में रात बिताने की सोची। सिमरिया 2 पंचायतों में बाँटा गया है। सिमरिया -1 और सिमरिया -2 . सिमरिया एक में लगभग 5000  वोटर्स हैं जिसमें भूमिहारों की आबादी सबसे अधिक है। मैं वहाँ एक पूर्व जिला पार्षद के घर रुका था, वह भी भूमिहार हैं , जिनकी पत्नी भी 2  बार जिला पार्षद रही थीं। उनका घर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के घर से 2 घर बाद ही है और ये भी उनके सगे- संबंधी ही हैं। उनसे बातचीत हुई और कहा कि आपलोगों ने तो इस सीट को बहुत हॉट बना दिया है जिस पर उनका जवाब था कि बिलकुल नहीं। हमलोगों ने नहीं आप दिल्ली वालों ने इसे बेवजह इसे हवा दी हुई है जबकि जमीन पर कुछ नहीं है।  हमने पूछा कि भूमिहार मतदाता क्या सोच रहा है ? उन्होंने कहा कि आपको क्यों लगता है कि कुछ इतर सोच रहा है ? भूमिहार 90 % वोट भाजपा को करेगा। 10 % में जो कुछ कांग्रेस वाले हैं वह तनवीर हसन को देगा और इसी 10 % सेगमेंट में कुछ वोट कन्हैया को भी मिल जायगा। उनका यह भी कहना था कि भाजपा के उम्मीदवार को सबसे अधिक लीड मटिहानी विधानसभा से मिलेगा जहाँ से जदयू के नरेंद्र सिंह उर्फ़ बोगो सिंह वर्तमान विधायक हैं। उन्होंने कहा कि यह मैं लिखकर दे सकता हूँ कि सिमरिया 1 में 5000 वोट यदि गिरेंगे तो 3000 -3100 भाजपा को मिलेगा बाकी में अन्य सभी होंगे। रात का खाना खाने का मौका मुझे मिला कन्हैया के गाँव बीहट में जहाँ पर एक भोज में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। हुआ यह था कि उक्त महिला जिला पार्षद का मायका बीहट ही था और मायके में भोज था , इसलिए परिवार के सभी लोग वहीँ खाने पर आमंत्रित थे। मैं भी खुश हुआ कि एक साथ सैकड़ों लोगों की बातचीत सुनने का मौका मिलेगा। वहाँ सभी उम्र वर्ग के लोग इकठ्ठा थे।  युवा भी और बुजुर्ग भी।  10 युवा एक साथ कुर्सी पर बैठकर चुनावी चर्चा कर रहे थे।  चर्चा के केंद्र में कन्हैया और गिरिराज ही थे।  कोई भी युवा कन्हैया कह कर नहीं बल्कि कनहैवा कह कर ही संबोधित कर रहा था यहाँ तक कि कन्हैया से बहुत छोटी उम्र का लड़का सब भी।  हालाँकि वे सभी मतदाता थे। वहाँ यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि भूमिहार मतदाता ने अपना मत तय कर लिया है और उनका वोट थोक में भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह को मिलेगा। मेरे इस आकलन को और भी मजबूत पुष्टि मिली जब अगली सुबह मैं गिरिराज सिंह के रोड शो को सिमरिया घाट से विभिन्न इलाकों में फॉलो कर रहा था। सिमरिया में हर 10 घर में से 8 घरों की मुंडेर पर भाजपा के बड़े – बड़े झंडे लहरा रहे थे। कैलकुलस में यदि इंटीग्रेशन की थ्योरी से आप अवगत होंगे तो यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है क़ि सिमरिया को एक पतला स्ट्रिप मानकर और पूरे बेगूसराय को एक सर्कुलर डिस्क मान लें तो पूरे भूमिहार समुदाय का मूड आसानी से समझा जा सकता है कि उनका वोट कंसोलिडेट होकर भाजपा को जा रहा है। यह बात तब और पुष्ट हो गयी जब दिनकर पुस्तकालय में कई भूमिहार शिरोमणियों से बातचीत का मौका मिला। वहाँ कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि कन्हैया को अपने परिवार में भी सारा वोट नहीं मिलेगा।

बेगूसराय के मुस्लिम कहाँ हैं ? 

यह बहुत ही ज्वलंत सवाल है। बेगूसराय भ्रमण के दौरान और विभिन्न लोगों से बातचीत के दौरान जो बात हवा में तैर रही थी कि यहाँ मुस्लिम वोटर्स बँटे हुए हैं।  इसमें कोई शक नहीं कि मुस्लिमों का बड़ा और निर्णायक तबका महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन के साथ खड़ा है। लेकिन यहाँ मुस्लिम वोटर्स को 3 धड़ों में बाँट रहा हूँ। एक वह तबका जो सबसे बड़ा है और तनवीर हसन के साथ है।  एक दूसरा टुकड़ा या स्लाइस है जिसमें मुख्य रूप से युवा हैं, जिसमें कन्हैया का क्रेज है।  यह टुकड़ा कितना बड़ा है , इसको लेकर अलग -अलग तरह के कयास हैं लेकिन यह तय है कि यह बहुत बड़ा नहीं है।  हो सकता है यह 10% हो या 15 % हो 20 % लेकिन किसी भी सूरत में यह 25% नहीं है। यह संभव है कि चुनाव आते -आते यह घटे लेकिन किसी भी हाल में यह बढ़ने वाला नहीं है।  इन दोनों के इतर एक बहुत छोटा तबका मुस्लिमों का ऐसा है जो वेट एंड वाच वाली स्थिति में है। इसमें बौद्धिक तबका है जो यह सुनिश्चित करना चाह रहा है कि भूमिहार का वोट किसे मिलेगा ? कन्हैया को या गिरिराज को ?  यह तबका कन्हैया के साथ जाने की सोच रहा है यदि भूमिहार की बहुतायत आबादी कन्हैया को वोट करती है. लेकिन यदि भूमिहार गिरिराज के पक्ष में गए तो ये तनवीर हसन के लिए वोट करेंगे। हालाँकि अब तक ये निर्णय करने की स्थिति में आ गए होंगे और मुझे लगता है कि अंतिम रूप से इनका वोट राजद के उम्मीदवार को जाने की पूरी सम्भावना है। इनका सीधा मकसद भाजपा विरोधी  मजबूत खेमे की तरफ जाना है।  लेकिन यह तय है बेगूसराय में सबसे अधिक उहापोह में और विभाजित मैंडेट वाला  मुस्लिम वोटर्स ही है।

यादव, कुर्मी , कुशवाहा , मल्लाह  और दलित सहित अन्य OBC ब्लॉक कहाँ खड़ा है ? 

यह बिलकुल साफ़ है कि यादव वोटर्स की 90% आबादी राजद के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करने जा रहा है। बाकी 10 % देशभक्त हिन्दू यादव  भाजपा को भी वोट करेंगे।  कुछ वोट कन्हैया को भी मिल सकते हैं। यादव वोट में बिखराव बहुत कम है ठीक उसी तरह जैसा  कि भूमिहार वोट में है। मल्लाहों की जहाँ तक बात है , यह तबका 2014 में पूरी तरह भाजपा के साथ गया था लेकिन इस बार इसमें भी विभाजन है। और आधा – आधा वाली स्थिति है।  मल्लाहों के वोट तनवीर हसन को बंट मिल रहे हैं और भाजपा को भी।  कुछ निश्चित तौर पर सीपीआई को भी मिल रहा है।  कुर्मी , कुशवाहा सहित OBC का दूसरा ब्लॉक भाजपा की तरफ झुका हुआ है।  दलितों के वोट भी बनते हुए हैं।  इसमें से भाजपा को भी मिलना है , राजद को भी और सीपीआई को भी।  दलितों में भी एक तबका तेजी से उभरा है जो अपने आपको हिन्दू स्वाभिमान से जोड़ रहा है और उनमें फिर एक बार मोदी सरकार का जबरदस्त क्रेज है।

संघर्ष में कौन कहाँ है ? 

जमीन पर देखेंगे तो यह समझते देर न लगेगी कि मुकाबले में गिरिराज सिंह और तनवीर हसन ही हैं। जीत इन दोनों में से ही किसी की होगी।  यह बात भाजपा के लोग भी और राजद के लोग भी मान रहे हैं।  सिर्फ ये दोनों ही नहीं , सामान्य मतदाता भी यह निश्चित तौर पर मान रहे हैं कि मुकाबला तनवीर हसन और गिरिराज सिंह के ही बीच है। दबी जुबान से सीपीआई के कार्यकर्त्ता भी यह मानकर चल रहे हैं।  यह बात मैं सीपीआई काडर के कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर कह रहा हूँ।  जिस समय मैं दिनकर पुस्तकालय में खड़ा था , ठीक उसी समय बीबीसी के रजनीश कुमार अपनी टीम के साथ कुछ लोगों का इंटरव्यू ले रहे थे।  कुल 5 लोगों में से 2 सीपीआई के सक्रिय कार्यकर्त्ता थे।  एक का नाम भी मैं बता सकता हूँ।  वे थे लक्षणदेव सिंह जो सिमरिया निवासी ही हैं और उनका परिवार सीपीआई का काडर है।  उनके साथ एक और भी थे जिससे मैंने बातचीत की और कहा कि आप तो कहीं हैं ही नहीं मुकाबले में।  धीमी जुबान में उन्होंने यह स्वीकार किया कि लोग जाति के नाम पर पूरी तरह बँटे हुए हैं जबकि पूर्व सांसद भोला सिंह ने रत्ती भर भी काम नहीं किया है।  फिर भी वोट ये लोग भाजपा को ही देंगे। किसी को भी बेगूसराय के भले की फिक्र नहीं है। 

सीपीआई क्या सोच रही है ? 

तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार: महागठबंधन से नजदीकी की कोशिश

सीपीआई कुछ नहीं सोच रही है।  उसे यह बखूबी अहसास है कि हारजीत की दौड़ से वह बाहर हो चुकी है। शुरुआत से उसका डेस्पेरशन साफ़ देखा जा सकता है। हद तो तब हो गयी जब इनका यह डेस्पेरशन उलूल -जूलूल हरकतों में बदलता गया। ये पूरी तरह संघी स्टाइल में काम करने लगे।  आज से 15 दिन पहले  किसी शातिर न्यूज़ पोर्टल का हवाला देते हुए लिखा कि तेजस्वी ने अपने बयान में सीपीआई उम्मीदवार के समर्थन की बात कही है।  जबकि यह पूरी तरह फेक था।  इसका अनुमान कोई इसी से लगा सकता है कि तेजस्वी अभी तक वहाँ 2 सभाएँ कर चुके हैं अपने उम्मीदवार के समर्थन में। सर्व वही नहीं , उनके अलावा जीतन राम माँझी सहित उपेंद्र कुशवाहा , मुकेश साहनी ने वहां जगह – जगह सभाएँ कर रहे है।  क्या ये लोग सीपीआई के लिए कैंपेन कर रहे हैं ? कल – परसों एक और हास्यास्पद स्थिति देखने को मिली जब कुछ कन्हैया समर्थक सोशल मीडिया पर तनवीर हसन की कन्हैया के साथ की किसी पुरानी तस्वीर का हवाला देते हुए लिख रहे थे कि तनवीर साहब ने कन्हैया को समर्थन कर देने का फैसला किया है ? यह तो बेवकूफी और शातिरपना की हद थी।  तनवीर हसन मैदान में अभी भी डंटे हुए हैं जबकि सीपीआई के महासचिव तक उन्हें बैठाने की अपील कर रहे हैं ?  अब सीपीआई इस हद तक वहाँ काम कर रही है कि खुद तो नहीं जीत सकते लेकिन मुस्लिम वोटर्स पर फोकस कर तनवीर हसन को हरा दो।  भाजपा का काम मुफ्त में आसान हो रहा है और निश्चित रूप से राजद के उम्मीदवार के पेशानी पर बल पड़  रहे हैं।

अंतिम रूप से क्या होगा ? 

यदि मुस्लिम मतों का विभाजन नहीं रुका तो भाजपा उम्मीदवार का जीतना आसान और लगभग तय हो जायगा लेकिन अंतिम समय में मुस्लिम वोटर्स ने कंसोलिडेट होकर महागठबंधन के पक्ष में वोट करने का निर्णय ले लिया तो पासा महागठबंधन की तरफ भी पलट सकता है भले जीत का मार्जिन कम हो।  उस स्थिति में कन्हैया की हालत बहुत ही बुरी होगी।  लेकिन मुस्लिम मतों में वह विभाजन करने में सफल हो गये तब भी दूसरे स्थान पर आना उनके लिए मुश्किल ही होगी।  हाँ , इस स्थिति में वह राजद उम्मीदवार को हरवाकर भाजपा के गिरिराज सिंह की जीत सुनिश्चित जरूर करेगा।

लालबाबू ललित पेशे से अधिवक्ता हैं और शौकिया राजनीतिक रिपोर्ट के लिए फ्रीलांस जर्नलिज्म करते हैं. संपर्क:8700261438

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ISSN 2394-093X
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