प्रियंका सिंह
1. पिता
जीवन की आकाश थाली में
चमकीले तारे तुमने ही तो बिखेरे
जिनकी रोशनी बनी
पथ प्रर्दशक हमेशा से
संघर्षों की लड़ाई में
दीवार की टेक रहे तुम
दुखों में मेरे सबने मारी हार
तुम न थके और न झुके तुम
संतप्ता के कुहासे से किया बाहर
रात के स्याह अंधेरे को किया दूरओ पिता तुम मेरे जीवन के नूर
जन्मदाता तुमसे जुड़ी है ऐसी डोर
स्नेह और ममता तुम्हारी
खींच लाएगी
हो चाहे दुनिया का कोई छोर
हो अंधेरी रात
तो बने दीपक
ओ पिता कैसे करूं मैं आभार प्रकट
तुम स्वाभिमान
बाबुल तुम ही प्रेरणा
संबल मेरे
तुम ही अभिमान हो
2. बिटिया
वो जज़्बात जब
पहली बार हुई अवगत
तुम आने वाली हो
था कितना खूबसूरत
देखा जब धड़कता नन्हा दिल
मेरे ही अंदर
एक नई जिंदगी
का देख आगमन
कैसा तो था रोमांच
कैसी तो थी उमंग
चलते चलते जाती थी ठहर
रह रह कर मुस्कान जाती थी बिखर
बुनता मन
कई सुनहले सपने
अब हो रही थी तू बड़ी
पहली करवट वो तेरी
अहसास था वो कितना अप्रतिम
कितना अद्भुत कितनी न्यारा
पढ़ती थी दुआएँ
हिफाज़त की तेरी दिन रात
तेरे दुनिया में आने से पहले
रख अपनी कोख पर हाथ
कहा था ज़िन्दगी है हसीन
और किया वादा
दूंगी तेरा हरदम साथ
सुन तेरा पहला क्रंदन
आँख छलक छलक उठी
देख तुझे पहली बार
मंत्रमुग्ध देखती रही
टकटकी निहार
कुनमुनाती प्यारी सी गुड़िया
हर्ष में डूबा परिवार
तेरे पिता की आँखोँ से टपक रहा
स्निग्ध वात्सल्य, स्नेह और प्यार
झिलमिल आंखों से लिया तुझे अंक
लगाया जिगर को जिगर से
ममता की अविरल धारा गयी फ़ूट
भीग कर उससे तृप्त हुआ मन अकूत
तेरा हाथ रखूंगी हमेशा थाम
जीवनभर की रहूंगी पक्की सहेली
तू ही तो दुनिया मेरी
तू ही लाडो, तू ही संसार
मेरी बिटिया
तू है मेरा प्रेम
है मेरा हर त्योहार
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3. माँ
मां तुम जब जब ममता छलकाती
भीग भीग उसमें पाती सुकून
कैसे अनकहा तूने जाना माँ
तुम्हारा वह जादू
जिससे तुम चेहरे के छिपे भावों
को पढ़ लेती हो
कभी कभी तो जैसे टेलीपैथी होती है
रस्ते में भूख लगी हो
ख्वाहिश जिस खाने की रहती है
घर पर थाली में वही परोसते दिखती हो
यह रहस्य क्या है माँ
मुझको भी समझाओ ना
माँ बनने के सफर में मेरे
मन की उलझनों को समझ
हरबार खोला तुमने गांठें
आज माँ हूँ
न भूलूंगी तेरा उसमें अवदान
लड़ झगड़ कर जब तनातनी होती
मैं क्रोधित
और तुम्हारी ऑंखे झिलमिल हो उठती
रात में सोने से पहले
दरवाज़े पर आगे खड़े होती तुम
कुनमुनाती बच्ची के साथ मुझे अकेले पा
पूछती कुछ चाहिए तो बताना
और मेरी आँखें भर भर आती
देख तेरा अप्रतिम प्यार
और कोई नही दुनिया में
जो रखता अपना अहम किनारे
और करता इतना निश्छल प्यार
माँ तेरी स्नेहिल छुअन
पिघला देती है
कई तकलीफों के पहाड़
दुखदायिनी पीड़ा को हर लेता है
तेरी ममता का अविरल स्रोत
तुमको देखकर लगता है हर बार
माँ तो माँ ही होती है आखिरकार
जो दुनिया की निष्ठुरता से बचाती
अपने आँचल में भर लेती है
जीवन के सबक सिखाती
सबसे अच्छी शिक्षिका
और सबसे गहरी राजदार साथी
तुझसे प्यार का रंग दिनोदिन
होता और गाढ़ा
मुझको जीवन देने वाली
और जीवन के मायने समझाती
माँ
तेरा प्रेम है
अतुलनीय, न्यारा और विलक्षण
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4. साथी
इतनी कॉम्प्लिकेटेड इंसान से निभाना
आसान नहीं है माना
पर तुम
हर बार मेरी खीज और झुंझलाहट
पर प्यार का लेप लगा देते हो
कितनी बार महसूसा है
तुम्हारी नर्म हथेलियों
को अपने माथे पर
उन तनाव और संघर्ष की रातों में
तुम्हारी
मेरे जीवन के उन पुरुषों में होती है गिनती
जिन्होनें मेरे जीवन को सहूलियत दी
अब तुम भी जुड़ गए हो
चाहे रसोई हो या आफिस का लैपटॉप
मेरी अनभिज्ञता को सुलझाते तुम
हमेशा मौजूद हो
न्यू डिश बनाती जैसे माँ साथ होती थी
बिगड़ा बनवाती थी
तुम भी ठीक वैसे ही संभालते हो
मेरी हर संकोच को
पहना दिया विश्वास का गहना
और मेरे हर असंभव
में दिखाई संभावना
मेरी भीगी आंखों से
तुम्हारी आँखों की नमी देखी है
दरगाह पर मेरे लिए दुआ पढ़ते देखी है
पुरुष वर्चस्ववादी समाज में
एक पुरुष होकर भी
तुममे देखा माँ जैसा स्नेह
और एक सहेली की राजदारी
तुम संग लगे
हैं एक परिवार हम
और साथी जीवन के
प्रेमचन्द को पढ़ा था
एक पुरुष में नारी जैसे गुण आ जाएं तो वह है महात्मा
तुममे वह देखा साकार
तुम्हारी कठोरता और कोमलता से
जीवन तरल है
और रहे हमेशा ऐसा ही
कहती
प्रेम से अनुस्यूत
तुम्हारी जीवनसंगिनी
कवयित्री गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में कार्यरत हैं।
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