दिमाग पर निष्क्रिय होने की चोट उसे निष्क्रिय बनाकर ही छोड्ती है

( सुधा अरोडा का यह आलेख स्त्री
के साथ मानसिक हिंसा की सूक्ष्मतम और निरंतर चलने वाली  प्रक्रियाओं क़ॆऎ स्त्रीवादी व्याख्या करता है .
सुधा अरोडा जितनी मह्त्वपूर्ण कथाकार हैं उतनी ही मह्त्वपूर्ण स्त्रीवादी विचारक .
वे स्त्रीवादी मुद्दों के लिए जमीनी स्तर पर भी सक्रिय रहती हैं . यह आलेख उनके
द्वारा संदीप मील के संपादन में ‘ बीच बहस में स्त्रीवाद’
नामक शीघ्र प्राकश्य पुस्तक के लिए लिखे गये लेख का हिस्सा है,
एक  हिस्सा हमने  कल प्रकाशित किया था . पूरे लेख के लिए मील की
किताब का इंतजार करना होगा . )

सुधा अरोडा

 

मानसिक यातना के सन्दर्भ में कुछेक औसत संवादों की पड़ताल की जा सकती है —
‘‘ यू डोंट हैव ब्रेन्स ’’
‘‘ यू आर ब्यूटी विदाउट ब्रेन्स !’’
‘‘ यू आर अ ब्रेनलेस वुमेन ’’
‘‘ तुममें बुद्धि की बहुत कमी है ’’
‘‘ अक्ल की बात तो कभी करोगी नहीं ’’
‘‘ कभी अपनी अक्ल का इस्तेमाल भी कर लिया करो । ’’
‘‘ तुममें बुद्धि नाम की चीज़ ही नहीं है !’’
‘‘ मुंह मत खोलो , वर्ना
पता चल जाता है कि तुम्हारी अक्ल घुटनों में है । ’’
महिला अगर गृहिणी है तो उसे बाहरी स्पेस के मसलों पर ज़बान खोलने पर तत्काल टोक दिया जाता है । एक
लम्बे अरसे तक उसके स्पेस को दाल
चावल भाजी तरकारी यानी रसोई के क्रियाकलापों तक ही केंद्रित कर दिया जाता रहा है ।
मेरे दादाजी अक्सर मेरी
दादी को टोकते थे – ‘ तुझे जिस बात की समझ न हो , उस पर ज़बान मत खोला कर ! ’
यही वाक्य कुछ अलग तरीके से मेरे पिता मेरी मां से कहते थे – ‘ बिज़नेस
की बात जहां आए , तू अपनी सलाह मत दिया कर ’। मां ज़बान खोलें
, उससे पहले उन्हें चुप रहने की हिदायत इस कदर झिड़क कर
दी जाती थी कि मां ने बोलना ही बंद कर दिया ।
हालांकि बाद में पिता ने यह भी महसूस किया कि व्यवसाय को लेकर भी मां की सलाह हमेशा सही साबित होती थी । इसके
बावजूद मां को किसी भी मसले पर
मुंह खोलने का , सलाह देने का या अपनी शिकायत दर्ज़ करने का कभी अधिकार
नहीं दिया गया ।
आज महिलाएं पढ़ी लिखी हैं । हर सामाजिक-राजनीतिक
मुद्दे पर अपनी राय रखती हैं । उसके बावजूद पुरुष उसी धुरी पर अटका है जो उसके बाप-दादा तय कर गए हैं । आज भी एक
पति अपनी समझदार गृहिणी पत्नी से यही
कहता है कि बिजनेस में अपनी बेशकीमती राय अपने पास ही रखो , यू डोंट हैव एनी बिज़नेस सेंस । या तुम्हारी औकात क्या है !
ऐसे में  जब एक बच्चा अपनी मां के आंसू पोंछते हुए कहता है  -‘‘ क्या
हुआ ममा , एट लीस्ट पापा आपको मारते तो नहीं है न ! ’’ तो समझा जा सकता है कि  उस आठ
साल के बच्चे की भी इस माहौल में एक मानसिकता तैयार हो रही है कि पापा अगर मां पर हाथ नहीं उठाते तो वह उतने बुरे नहीं हैं जितना कि
वे हो सकते थे इसलिए हर वक्त डांटने
या ताने देते रहने को जायज ठहराया जा सकता है ।
इन उच्च मध्यवर्गीय संभ्रांत पतियों
के घरों में अक्सर यह होता है कि पति अपनी गाड़ी की चाभी या कोई ज़रूरी कागज़ कहीं रखकर भूल जाता है और इसके लिए पत्नी पर शब्दों
की मूसलाधार बारिश करता है कि चाभी
कहां रखी है ! इसके लिए वह ज़मीन आसमान एक कर देता है । वह जब चीख चिल्ला कर अपना चेहरा लाल कर रहा होता है , पत्नी चाभी से ज़्यादा अपने पति के बढ़ते हुए रक्तचाप को देखकर चिंतित होती है और उसे अपनी सेहत के
लिए शांत रहने की सलाह देती है ।
अन्ततः चाभी पति के शॉर्ट्स की जेब में रखी हुई मिलती है । वह जानता है कि चाभी उसने रखी थी पर अपनी चीख चिल्लाहट पर सॉरी कहने
के बजाय वह हफ़्तों पत्नी से बात
करना बंद कर देता है । पत्नी अपने घर और रसोई की छोटी सी स्पेस में आखिर कब तक इस अबोले से जूझेगी ?  अन्ततः वह पति से संवाद कायम करने की कोशिश में
उस ग़लती के लिए माफी मांगती है जो उसने की ही नहीं । ….. और यह
एक बेहद सामान्य स्थिति है , जिससे लगभग हर गृहिणी ( हाउसवाइफ़ या होममेकर – जो भी कहें ) गुज़रती है ।
एक पढ़ी लिखी समझदार औरत को भी इसी तरह
काट-छील कर अपने से निचले दर्जे पर पहुंचाने का , बार
बार उसकी पोशाक पर उसके बेवकूफ , ईडियट , मूर्ख
, कूढ़मगज होने के चमकदार तमगे टांगकर उसकी रचनात्मक
प्रतिभा और उसके भीतर के कलाकार को कुंद करने का त्रासद आनंद ( सैडिस्टिक प्लेज़र  )
किसी भी  शालीन दिखने
वाले पति के खाते में दर्ज किया जा सकता है ।

कई बार देखने में बेहद
खूबसूरत
और सलीकेदार , प्रतिभावान
औरत का पति , असुरक्षा की भावना के चलते मौखिक रूप से आक्रामक हो जाता है। ऐसा पुरुष जानता है कि वह कमज़ोर
है , इन्फीरियर है , इसलिए
वह सुपीरियॉरिटी का स्वांग रचता है । अपनी हीन भावना को
छिपाने के लिए वह अपनी पत्नी पर
चिल्लाता है , नाराज़ होता है , उसे
घर की नौकरानियों के सामने अपमानित करता है , उस पर
बेबुनियाद आरोप लगाता है और अन्ततः हिंसक हो जाता है ।
एक केस हिस्ट्री  –
उच्च मध्यवर्ग की
एक संभ्रांत

शालीन महिला से सुबह
की सैर के दौरान
पहचान हुई । उसकी
उम्र  साठ
के लगभग थी ।
उस उम्र में भी
वह अपनी जवानी के दिनों
की कुछ धुंधली उम्मीदें , कुछ
मुरझाए हुए सपने आंखों में समेटे
हुए थी । बातचीत
में बेहद  शालीन
और सलीके दार ।
उसके घर की दीवारों
पर खूबसूरत पेंन्टिंग्स लगीं थीं जो
उसने  शादी
से पहले और शादी
के दो-चार साल बाद
तक बनाई थीं ।
पर उसके चेहरे पर एक
खोया सा भाव जमा
बैठा था – जिसे
कहते हैं -‘ लॉस्ट
लुक ‘ ऐसा भाव
जो लंबे अरसे तक ‘ सेंस
ऑफ़ नॉन बिलॉन्गिंग ‘ और ‘ चुप्पी की हिंसा ‘ झेलने से पैदा
होता है । दो
तीन दिन की पहचान
में ही एकाएक खुल कर
अपनी तकलीफ बयान करने लगीं – ” सुधा , आय हैव अब्यूज़्ड
माय बॉडी सो मच
। आय हैव पनिश्ड
इट । टॉर्चर्ड इट ।
नाउ माय बॉडी इज़ टेलिंग
मी – नो मोर ! टेक केअर ऑर आय
लीव यू एंड गो
। ” मैंने अपने शरीर का , अपनी
सेहत का कभी ख्याल
नहीं रखा । अपने
को सज़ा दी , यातना
दी । अब मेरा
शरीर मुझसे कह रहा
है – बहुत हुआ ! अब
मुझे संभालो , नहीं
तो मैं चला !

मैंने उससे कहा – तुम अकेली
नहीं हो

सभी औरतें यही करती
हैं । और कहीं
तो ज़ोर चलता नहीं , बस , अपने को सज़ा
देने बैठ जाती हैं ।
और कोई रास्ता नहीं होता उनके पास ।
अपने को सज़ा देकर ही उन्हें
सुख मिलता है ।
घर को मिटने से बचाए
रखने का सुख , अपने
को तहस नहस करके
भी अपने को त्याग
के आसन पर बिठाने
का सुख और बच्चों
के सिर पर एक
सुरक्षित छत देने का सुख
उस महिला की शिकायत
थी कि
उसके
पति उससे कभी बात
ही नहीं करते । जब
भी वह उससे कहती हैं कि
मुझसे भी दुनिया की खबरें
शेअर करो जो
अपने दोस्तों से करते
हो तो वे कहते
हैं –

यू डोंट हैव एन
आई.क्यू । बात
उससे की जाती है जिसमें
बात समझने लायक थोड़ी बुद्घि हो – आय कैन टॉक
ओन्ली टु इंटेलिजेंट पर्सन ! ” )
तुम्हारे पास बुद्घि नामकी चीज़ नहीं है , मैं
सिर्फ अक्लमंद लोगों से ही
बात कर सकता हूं  )

आगे बताने लगीं कि
बीसेक साल
पहले
जब कोई मित्र दम्पति मिलने आते थे
और उसके पति से
कहते थे कि यू
आर लकी टू हैव
सच अ ब्यूटीफुल वाइफ़ – आप
खुशकिस्मत हैं कि आपकी
बीवी इतनी खूबसूरत है  तो वे ठहाका
मारकर फौरन विशेषण  जड़
देते – ” ब्यूटी विदाउट ब्रेन्स !” फिर अपनी
पत्नी के माथे पर बिखरे
बालों की लट संवारते
हुए माफी मांगते हुए कहते – ” अरे यार , मैं
तो मज़ाक कर रहा
था । ” पर  शादी के लगातार
चालीस साल तक ‘ यू
डोंट हैव ब्रेन्स ‘ या ‘ यू आर अ
ब्रेनलेस वुमेन ‘ या ‘ यू हैव अ
पॉल्यूटेड माइंड ‘ का
हथौड़ा अपने सिर पर
झेलने के बाद उनका
दिमाग़ धीरे धीरे सचमुच सुन्न हो गया , सोचने – समझने
और रिएक्ट करने की ताकत
खो बैठा , याददाश्त
कमज़ोर हो गई और
वह अपना आत्मविश्वास पूरी तरह खो
बैठीं । अच्छी खासी चित्रकार होते हुए भी
उसकी उंगलियां एक सीधी
लकीर तक खींचना भूल गई , मनोचिकित्सक के पास
जाने लगी और एंटी
डिप्रेसेंट गोलियों की अभ्यस्त
हो गई ।
उसकी शिकायत यह भी
थी कि
वह
कभी अपने पति से
बात ही नहीं कर पाती | घर गृहस्थी के सौ
पचड़े होते हैं पर
सुबह पति से बात
करो तो वह कहता
है – मेरे ऑफिस जाने के समय
ही तुम्हें यह गृह
पुराण लेकर बैठना होता है ? ऑफिस
से वह लौटे तब बात
करो तो फिर बवाल
कि अभी थका हारा
लौटा हूं , चैन
से बैठने तो दो
। छुट्रटी के दिन
बात करो तो वह
या तो क्रिकेट देखने में मशगूल
या नेशनल ज्यॉग्राफिकल चैनल । या
क्रॉसवर्ड या सूडोकू या अखबार
। अपनी शादी की सालगिरह
के एक दिन हल्के
मूड में उसने पति को
उसके प्यार के नाम
से पुकार कर कहा -” अच्छा , यह
बताओ , तुम्हें अगर क्रिकेट
या अपनी बीवी – दोनों
में से किसी एक को
चुनना पड़ जाए तो ? ”

उसने बिना पलक झपके उसी
सांस में कहा
-” क्रिकेट
ऑफकोर्स ! दरवाज़ा खुला है , बाहर
जा सकती हो ।  ” और उसने उंगली खुले हुए दरवाज़े
की ओर उठा दी
। वह औरत यह
घटना सुनाते हुए भर्राए
गले से कह रही
थी कि एकदम मन हुआ
कि अभी घर छोड़ूं
और निकल जाउं ? लेकिन
कहां ? अच्छी खासी ज़हीन , कामकाजी
पढ़ी लिखी औरतें भी ,  शादी के बाद
एक गृहिणी की भूमिका
अपना कर अपने लौटने के सारे
विकल्प खुद ही बंद
कर देती हैं ।
यह किसी एक महिला की
कहानी नहीं
है , हज़ारों पढ़ी लिखी समझदार औरतें अपने प्रबुद्ध
प्रगतिशील पतियों से साल-दर-साल चौबीसों
घंटे एक से औसत संवाद सुनती चली जाती हैं कि उनमें अक्ल की कमी है , कि वे बेवकूफ
हैं , कि वे किसी काम की नहीं हैं , कि वे हर समय
नुक्ताचीनी करती हैं – अंग्रेजी में जिसे
नैगिंग वाइफ कहते हैं , और अन्ततः वे इस तथ्य में विश्वास जमा लेती हैं कि सचमुच उनमें कोई कमी है , उनका आई .क्यू  निचले दर्जे का है । हीन बना डालने की साजिश के हथौड़े के वार को लगातार दिमाग़ पर
झेलते हुए उनके सोचने समझने की क्षमता
धीरे धीरे क्षीण हो जाती है , घर आए मेहमानों के बीच
बात करते हुए वे डरती हैं कि पता नहीं इस
बौद्धिक चर्चा में वे कोई बेवकूफी की बात न कह बैठें और उनके पति उनकी कौन सी बात को अन्यथा ले बैठें और वे सबके
बीच हंसने की सामग्री बन बैठें । काम
करने या लिखने-पढ़ने का जज़्बा भी इस जबरन पैदा की गई हीन भावना के चलते दम तोड़ देता है ।
एक आदिवासी प्रथा है कि
एक पेड़ को
अगर काटना है तो उस पर
आरी या कुल्हाड़ी नहीं चलाते बल्कि कुछ आदिवासी मर्द औरतें उस
पेड़ को चारों ओर से गोलाकार घेर कर खड़े हो जाते है और
पेड़ को अपशब्द कहने लगते हैं
तू सूख जा , तू मर जा , तुझ पर ईश्वर का कहर बरसे । गालियां देते हैं और
कोसते
हैं । कुछ ही दिनों में
उस पेड़ के पत्ते सूखने लगते हैं और वह अपने आप टूटकर गिर
जाता है । यही हाल उन औरतों का होता है जिन्हें हर
रोज़ ब्रेनलेस या बेवकूफ़ होने का
खिताब दिया जाता है । 
हैरानी होती है कि औरतें इस कदर इन भ्रामक , गलत
और झूठे इल्जामों के ढेर को अपने भीतर पैठने कैसे देती हैं ? कि एक दिन वे सचमुच
यकीन करने लग जाती हैं कि उनके दिमाग के साथ कोई गंभीर समस्या है , कि दे आर ‘ब्यूटी
विदाउट ब्रेन्स , कि उनके दिमाग़ में प्रदूषण है ! यह सुनते सुनते उनका दिमाग़ सचमुच सुन्न और संज्ञाहीन होकर काम करना बंद कर
देता है । मानसिक तनाव के चलते उनकी
सोचने की ताकत धीरे धीरे भोथरी हो जाती है । निस्संदेह इसके कारण उसकी परवरिश , उसके संस्कारों और उसकी हर कीमत पर घर को बचाए रखने
की उसकी सोच से बावस्ता हैं , जहां ज़हीन , प्रतिष्ठित और कामयाब पुरुष को पति के रूप में पाना
ही उसे अपने जीवन का एकमात्र मकसद लगता है और इस सम्बन्ध को बचाए रखने
की ज़िद में वह अपनी  ज़िन्दगी , अपने
सांस लेने के अधिकार तक को दांव पर लगा देती है ।
ऐसे पुरुषों का एक और
कॉमन संवाद है
– ‘‘ तुम हो क्या ! तुम्हारी औकात क्या है ! ’’ अपने से ज़्यादा कमाने या अपने से  पोस्ट
पर काम करने वाली अपनी ज़हीन पत्नी को कहने में भी वे नहीं हिचकते कि    ‘‘ तुम्हारी
औकात क्या है ? ’’ यह बहुत से पतियों का बेहद प्रिय वाक्य है । वे अपनी औकात के प्रति इत्मीनान से आंखें मूंदे उसे अनदेखा
करते रहते हैं और अपनी पत्नी के अस्तित्व
को कुचल कर रख देने वाले ऐसे तीखे संवाद उच्चारित कर अपने को स्वनिर्मित पेडेस्टल पर खड़ा कर लेते हैं ।
सामान्य संवाद कई हैं और
उनमें से एक है
कि तुम कौन सा दूध की धुली हो । पति की प्रताड़ना से तंग
आकर जब कोई भी औरत अपनी अलग पहचान
बनाना चाहती है तो पुरुष उसके चरित्र पर अपना हंसिया रख देता है । जब भी पति पुरुष का खिलंदड़ापन या उसका लंपट होना पकड़ा जाता है , वह झट अपने चरित्र के दाग को छिपाने के लिए अपनी पत्नी के चरित्र पर लांछन लगाना शुरु
कर देता है । अपने गुनाहों की लकीर को छोटा साबित करने के लिए पति , पत्नी के आरोपित गुनाहों की एक लंबी लकीर सामने आंक कर आश्वस्त हो लेता है । अपनी
पत्नी को झूठा या बदचलन करार देना
उन कमज़ोर पुरुषों का हथियार है जो आत्मविश्लेषण करने या अपने भीतर झांकने से इनकार करते हैं । आक्रामक होना रक्षात्मक होने का ही
हथियार है । इसी महीने 14 जुलाई 2012 को बैंगलोर के एक दंत चिकित्‍सक
डॉक्‍टर का मामला अखबार में आया है कि वह अपनी पत्‍नी को बदसूरत कह कर बार बार और
दहेज की मांग करता था , अपनी पत्‍नी पर शक करता था और अपनी वफादारी साबित करने के
लिये उसने अपनी पत्‍नी को अपना पेशाब पीने पर मजबूर किया । कुंठा और अहंकार की चरम
स्थिति व्‍यक्ति को यातना देने की खौफनाक परिणति तक पहुंचा देती है । यह पत्‍नी तो
अपनी शिकायत लेकर पुलिस स्‍टेशन तक चली गई पर लाखों महिलायें ऐसी हैं जो किसी न
किसी कारणवश अपनी यातना को निजी मसला कहकर उसे घर की चहारदीवारी के भीतर ही दफना
देती है ।
ऐसा नहीं है कि पुरुष
स्त्रियों के हाथों
यातना का शिकार नहीं
होते । कई सामान्य नौकरीपेशा पतियों को अपनी कामकाजी दबंग पत्नियों के विवाहेतर संबंधों को आंखें मूंदकर
स्वीकार करते और सामाजिक भय के कारण पत्नी
की ज़्यादती या आक्रोश को नज़रअंदाज़ करते भी देखा जा सकता है । इसमें संदेह नहीं कि कई औरतें पुरुषों से भी अधिक खूंख्वार और
सैडिस्ट होती हैं । ऐसी औरतों के तांडव
के सामने दस पुरुषों की यातना फीकी पड़ जाए ( बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद की देन ऐसी औरतों की तेज़ी से पनपती हुई जमात के बारे में भी
हमें बात करनी है क्योंकि पितृयार्की
इन्हीं औरतों को आधारस्तंभ बनाकर पनपती है – जब कोई पुरुष अपनी पत्नी को यातना देता है तो अधिकांशतः इसके पीछे उसकी मां ,बहन या उसके जीवन में आयी ‘दूसरी औरत ’ होती है जो बखूबी ‘पत्नी’ की भावात्मक कमजोरी -वल्नरेबिलिटी पहचान कर उसे तहस नहस करने में पुरुष को उकसाती बहकाती है पर क्या इससे
पुरुष क्षम्य हो जाता है ? एक पुरुष
अगर दूसरी औरत के हाथ का खिलौना बनता है और अपने क्रियाकलाप , सोचने -समझने की
सामर्थ्‍य  की चाभी दूसरी औरत के हाथ में
सौंप उसके इंगित पर अपनी पत्नी पर बेवजह खौलता
है तो इससे उसका गुनाह कम नहीं हो जाता )  पर जब हम किसी सामाजिक सामान्य मसले पर बात करते हैं तो अनुपात के तहत ही धारणाएं तय
करते और उनका हल निकालने की कोशिश
करते हैं और मानसिक यातना के मसले में अनुपात 95 / 5 का ही पाया गया है । हो सकता है , अब यह
प्रतिशत बढ़ रहा है । लेकिन यहां हमें उस बड़े अनुपात की बात करनी है , अपवाद की नहीं । हालांकि दोनों तरह की प्रताड़ना में
निबटने के तरीके एक ही है – वह
स्त्री के लिए हों या पुरुष के लिए । जो पक्ष प्रतिकार करने में कमज़ोर होगा , वही प्रताड़ना सहने पर मजबूर कर दिया जाएगा ।

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ISSN 2394-093X
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