दाम्पत्य में ‘बलात्कार का लाइसेंस’ असंवैधानिक है

 अरविन्द जैन 

( भारत में नैतिकता और परिवार की पवित्रता और निजी दायरे की आड में विवाह के भीतर बलात्कार के खिलाफ कानून बनाने के मार्ग  में समाज सहित न्यायपालिका और सरकार में पैठी पितसत्तात्मक सोच सबसे बडी बाधा है. हालात यह है कि विवाह के भीतर बलात्कार को संरक्षण देने वाली व्यव्स्था 15 साल से कम उम्र की पत्नी ( यानी नाबालिग ) के साथ बलात्कार  को भी संरक्षण देती है . और अब तो केंद्र में सीधे तौर सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों का कब्जा है . ह्म यहां , आलेखों , तथ्यों और बहसों के माध्यम से विवाह के भीतर बलात्कार के खिलाफ मुहिम पेश कर रहे हैं . अखिल भारतीय महिला फेडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा इसके लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रही हैं . इस मुहिम में आप भी अपने आलेख और जानकारियां हमें भेज सकते हैं. )

देश की अदालतों में खड़ी आधी-आबादी सोच रही है कि मौजूदा  मर्दवादी  कानूनों से, महिलाओं के खिलाफ लगातार बढती हिंसा-यौनहिंसा-घरेलू हिंसा कैसे रुक पायेगी? क्या पित्र्सत्ता तथाकथित  महान भारतीय सभ्यता, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं  की आड़ में, महिलाओं का  शोषण, उत्पीड़न, दमन और यौनहिंसा ज़ारी रखना चाहती हैं?  पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत का फैसला चर्चा में रहा, जिसमे कहा गया था कि अपनी पत्नी से जबरन यौन सम्बन्ध बलात्कार का अपराध नहीं है. इस सन्दर्भ में भारतीय कानून बेहद विसंगतिपूर्ण और अंतर्विरोधों से भरा पड़ा है. “निर्भया बलात्कार काण्ड” के बाद हुए संशोधन के बावजूद, आज भी विवाहित पुरुष को अपनी १५ साल से बड़ी पत्नी के साथ ‘बलात्कार’ का ‘कानूनी लाइसेंस’ उपलब्ध है.

उल्लेखनीय है कि जनता पार्टी के राज (1978) में जब बाल विवाह रोकथाम अधिनियम,1929 और हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया, तो लड़की की शादी की उम्र 15 साल से   बढ़ाकर 18 साल निर्धारित की गई। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के मुताबिक, किसी भी लड़की की शादी की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना अनिवार्य है। 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी 21 साल से कम उम्र के लड़के के साथ कराना दंडनीय अपराध है और दो साल का सश्रम कारावास या एक लाख रुपये तक का आर्थिक दंड या फिर दोनों हो सकते हैं। मगर शादी के वक्त यदि लड़के की उम्र  18  साल से कम है, तो इसे अपराध ही  नहीं माना जाता।  विवाह और सहमती से सम्भोग की उम्र 18 साल कर दी गई है मगर धारा 375 के अपवाद में आज (२०१४) भी यह प्रावधान बना हुआ है कि अपनी पत्नी जिसकी उम्र 15 साल से अधिक है के साथ जबरन यौन सम्बन्ध ‘बलात्कार’ नहीं माना-समझा जायेगा. लेकिन देश के ‘योग्य नौकरशाह’ और ‘महान नेता’, भारतीय दंड संहिता की धाराओं में संशोधन करना ही ‘भूल’ गए।

कानूनी संशोधन की कहानी  


महादेव बनाम भारत सरकार (2008-२०१३) मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375, 376 की संवैधानिक वैधता को चुनोती देनी वाली याचिका पर बहस के दौरान, इस लेख के लेखक ने दिल्ली उच्चन्यायालय की पूर्ण पीठ के समक्ष बहुत से गंभीर मुद्दे उठाये थे और सरकारी वकीलों ने अक्सर यह कह कर तारीख ली थी कि सरकार कानून में समुचित संशोधन कर रही है. संशोधन विधेयक 2010, २०११ और २०१२ के प्रारूप अदालत में पेश भी किये गए थे. इस संदर्भ में प्राय सभी अख़बारों में रिपोर्ट छपती रही. सात दिसम्बर २०१२ को संशोधन विधेयक २०१२ पर बहस चल ही रही थी कि 16 दिसम्बर २०१२ को “निर्भया बलात्कार काण्ड” सामने आ खड़ा हुआ और देशभर में आन्दोलन हुए. अध्यादेश जारी हुआ और वर्मा कमीशन की रिपोर्ट भी आई और अंतत 3 फरवरी 2013 से अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 लागू हुआ. महादेव केस के तमाम मुद्दे “निर्भया काण्ड” के पीछे छुप गए, जिस पर विस्तार से फिर कभी बात करूंगा.

अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 से पूर्व कानून  


3 फरवरी 2013 से लागू अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 से पहले, बिना सहमति के किसी औरत के साथ यौन संबंध स्थापित करना या 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ (सहमति के साथ भी) संबंध स्थापित करना बलात्कार की श्रेणी में आता था। हालांकि, 15 साल से अधिक  उम्र की अपनी पत्नी के साथ जबर्दस्ती किया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाता रहा  है।  भारतीय दंड संहिता की धारा-376 के अनुसार  किसी महिला के साथ बलात्कार करने वाले को आजीवन कारावास की सजा दी  सकती थी/है लेकिन यदि पति 12 से 15 साल की अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करता तो अधिकतम सजा में “विशेष छूट” थी यानि सिर्फ दो साल की जेल या जुर्माना या दोनों ही हो सकती थे।बलात्कार संज्ञेय  और गैर जमानती अपराध था,  लेकिन 12-15 साल की उम्र  की पत्नी के साथ बलात्कार  संज्ञेय अपराध नहीं माना जाता था और जमानत योग्य अपराध था । 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बलात्कार का मामला हो, तो पुलिस कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकती थी और गरीब नाबालिग लड़की को खुद ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाना और मुकदमे के दौरान काफी कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था।

अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 के बाद कानून  



3 फरवरी 2013 से लागू अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 में बलात्कार को अब ‘यौन हिंसा’ माना गया है और सहमति से सम्भोग की उम्र 16 साल से बढ़ा   कर 18 साल कर दी गई है, जबकि धारा 375 के अपवाद में पत्नी की उम्र 15 साल ही है। 15 साल से कम उम्र की पत्नी से बलात्कार के मामले में अब सजा में कोई ‘विशेष छूट’ नहीं मिलेगी। अपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 पारित करते समय सरकार ने ‘वैवाहिक बलात्कार’ संबंधी न तो विधि आयोग की 205वी रिपोर्ट की सिफारिश को माना और न ही वर्मा आयोग के सुझाव। भारतीय विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि “भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को खत्म कर दिया जाना चाहिए”।

पराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 के बाद अब भी भारतीय दंड संहिता की धारा-375 का अपवाद, पति को अपनी 15 साल से बड़ी उम्र की पत्नी के साथ बलात्कार करने का ‘कानूनी लाइसेंस’ देता है, जो निश्चित रूप से नाबालिग  बच्चियों के साथ मनमाना और विवाहित महिला के साथ कानूनी भेदभावपूर्ण रवैया है। यह दमनकारी, भेदभावपूर्ण कानूनी प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14, 21 में दिए गए विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों ही नहीं बल्कि मानवाधिकारों  का भी हनन है। परिणाम स्वरूप  शादीशुदा महिलाओं के पास चुपचाप यौनहिंसा सहन करने,  बलात्कार की शिकार बने रहने या फिर मानसिक यातना के आधार पर पति से तलाक लेने या घरेलु हिंसा अधिनियम के आधीन कोर्ट-कचहरी करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

सेक्स वर्कर’ और ‘घरेलू दासियां”


वैवाहिक जीवन में बलात्कार की सजा से छूट के कारण भारतीय शादीशुदा महिलाओं की स्थिति  ‘सेक्स वर्कर’ और ‘घरेलू दासियों’ से भी बदतर है, क्योंकि सेक्स वर्कर को ना कहने का अधिकार  है परन्तु शादीशुदा महिला को नहीं है। इकिस्वीं सदी के किसी भी सभ्य समाज में पति को पत्नी के साथ बलात्कार/ यौनहिंसा के  कानूनी लाइसेंस की वकालत करना, सचमुच  “बलात्कार की संस्कृति” को बढ़ावा देना ही कहा जायेगा। परंपरा,  संस्कृति,  संस्कार,  रीति-रिवाजों और रूढ़िवादियों व धर्मशास्त्रियों द्वारा बनाए गए नियमों के आधार पर, ‘वैवाहिक बलात्कार’ को कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। कोई भी धर्म वैवाहिक बलात्कार का समर्थन नहीं करता। हिन्दू अल्पवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा-6 सी, में आज भी यह हास्यास्पद प्रावधान मौजूद है कि  “विवाहित नाबालिग लड़की का संरक्षक उसका पति होता है” भले ही पति और पत्नी दोनों ही नाबालिग हों।

अन्य देशों में कानूनी स्थिति 


 बताने की जरूरत नहीं कि दुनिया के करीब 76 देशों में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय अपराध के तौर पर घोषित हो चुका है जबकि भारत सहित पांच देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध तब माना जाता है, जब कानूनी तौर पर दोनों एक-दूसरे से अलग रह रहे हों. 1991 में आर. बनाम आर. (रेप : वैवाहिक छूट) मामले में हाउस ऑफ लॉर्डस  के मुताबिक, ‘कोई भी पति अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने पर अपराधी हो सकता है, क्योंकि पति और पत्नी दोनों समान रूप से शादी के बाद जिम्मेदार होते हैं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता कि शादी के बाद सभी परिस्थितियों में पत्नी यौन संबंध बनाने के लिए खुद को पेश करेगी या मौजूदा शादी के बाद सभी हालातों में पत्नी यौन संबंध बनाने के लिए राजी हो।’ पीपुल्स बनाम लिब्रेटा मामले में न्यूयार्क की अपील कोर्ट ने कहा कि बलात्कार और वैवाहिक जीवन में बलात्कार के बीच अंतर करने का कोई औचित्य नहीं है और विवाह किसी पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने का लाइसेंस नहीं देता। कोर्ट ने न्यूयार्क के उस कानून को असंवैधानिक करार दिया जिसने वैवाहिक बलात्कार को अपराध ना मानने की छूट दे रखी थी।’
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया कि पत्नी की सहमति के बिना वैवाहिक सेक्स बलात्कार के दायरे में आएगा। यह भी कहा गया कि धार्मिक ग्रंथों में भी पुरुषों द्वारा पत्नी के बलात्कार की अनदेखी नहीं की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हिन्दू धर्म में पति और पत्नी की आपसी समझ पर जोर दिया गया है।  ।

‘परिवार की पवित्रता’ की दुहाई 


‘परिवार की पवित्रता’ की दुहाई देते हुए विद्वानों का कहना है कि “दांपत्य में बलात्कार  कानून  की  मांग से  पुरुष समाज भी डरा हुआ है। विवाह और   परिवार   जैसी   संस्थाओं   को   बदनाम   करके  इन  संस्थाओं  की  पवित्रता को खतरे में नहीं डाला जा सकता”।  पुरुष समाज क्यों डरा हुआ है ? विवाह और परिवार  जैसी  संस्थाओं   की पवित्रता को किसने खंडित किया? इसके लिए जिम्मेवार वो बलात्कारी पिता-पति-पुत्र हैं, जिनके कारण संबंधों की किसी भी छत के नीचे स्त्री सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही।
पता नहीं ‘परिवार की पवित्रता’, नैतिकता, मर्यादा और आदर्श भारतीय नारी के धार्मिक उपदेशों से हिंदुस्तान की स्त्री को कब और कैसे मुक्ति मिलेगी? नेहरु जी के शब्दों में ” हम हर भारतीय स्त्री से सीता होने की अपेक्षा करते हैं, मगर पुरुषों  से मर्यादा पुरषोतम राम होने की नहीं”। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि  सदियों पुराने संस्कारों की सीलन- आखिर  कब और कैसे समाप्त होगी?

अरविन्द जैन

अरविन्द जैन  स्त्रीवादी न्यायिक प्रविधि के विशेषग्य हैं . ‘ औरत होने की सजा ‘ नामक किताब के साथ  स्त्री के विरुद्ध न्यायपालिका की सोच और कानूनी अंतर्विरोधों को बारीकी से स्पष्ट करते हुए अरविन्द जैन ने हिन्दी भाषी स्त्रियों को कानूनन शिक्षित करने का काम किया है . संपर्क :  170, लॉयर चैम्बर्स, दिल्ली हाई कोर्ट, नई दिल्ली  इ -मेल bakeelsab@gmail.com, mob: 9810201120

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