स्मृतिशेष अनुराधा मंडल की कवितायें .

( अनुराधा मंडल आज ही हमें अलविदा कह गईं ,वे लम्बे समय से बीमार थीं . उन्हें स्तन कैंसर था , जिससे वे 2012 में ही लड कर जीत चुकी थीं . बेहद संवेदंशील इंसान और कवयित्री अनुराधा की जिंदादिली की  कुछ पंक्तियां और दो कवितायें. स्त्रीकाल की ओर से उन्हें विनम्र श्राद्धांजलि !)

अनुराधा का आह्वान : 


कई तकलीफों का मुफ्त इलाज है हंसी। ज़ाहिर है, कैसर होने की खबर पाने के बाद कोई हंसता हुआ डॉक्टर के कमरे से नहीं निकलता, लेकिन ये भी सच है कैंसर हजारों बार हंसने के मौके देता है। हंसी कैंसर से जुड़ी चिंताओं को भुलाने का मौका देती है और मरीजों की जिंदगी के अंधेरे कोनों तक भी पहुंचने के लिए रौशनी की किरण को रास्ता बताती है। एक बीमारी ही तो हुई है, उसकी चिंता में आज जिंदगी जीने से क्यों रुका जाए भला! और अगर सचमुच जिंदगी कम बाकी है तब तो और भी जरूरी है कि सब कुछ किया जाए। भरपूर जी भी लिया जाए, जल्दी-जल्दी। ताकि कुछ बाकी न रह जाए।

कवितायें 

1. मेरे बालों में उलझी मां

मां बहुत याद आती है

सबसे ज्यादा याद आता है

उनका मेरे बाल संवार देना

रोज-ब-रोज

बिना नागा

बहुत छोटी थी मैं तब

बाल छोटे रखने का शौक ठहरा

पर मां!

खुद चोटी गूंथती, रोज दो बार

घने, लंबे, भारी बाल

कभी उलझते कभी खिंचते

मैं खीझती, झींकती, रोती

पर सुलझने के बाद

चिकने बालों पर कंघी का सरकना

आह! बड़ा आनंद आता

मां की गोदी में बैठे-बैठे

जैसे नैया पार लग गई

फिर उन चिकने तेल सने बालों का चोटियों में गुंथना

लगता पहाड़ की चोटी पर बस पहुंचने को ही हैं

रिबन बंध जाने के बाद

मां का पूरे सिर को चोटियों के आखिरी सिरे तक

सहलाना थपकना

मानो आशीर्वाद है,

बाल अब कभी नहीं उलझेंगे

आशीर्वाद काम करता था-

अगली सुबह तक

किशोर होने पर ज्यादा ताकत आ गई

बालों में, शरीर में और बातों में

मां की गोद छोटी, बाल कटवाने की मेरी जिद बड़ी

और चोटियों की लंबाई मोटाई बड़ी

उलझन बड़ी

कटवाने दो इन्हें या खुद ही बना दो चोटियां

मुझसे न हो सकेगा ये भारी काम

आधी गोदी में आधी जमीन पर बैठी मैं

और बालों की उलझन-सुलझन से निबटती मां

हर दिन

साथ बैठी मौसी से कहती आश्वस्त, मुस्कुराती संतोषी मां

बड़ी हो गई फिर भी…

प्रेम जताने का तरीका है लड़की का, हँ हँ

फिर प्रेम जो सिर चढ़ा

बालों से होता हुआ मां के हाथों को झुरझुरा गया

बालों का सिरा मेरी आंख में चुभा, बह गया

मगर प्रेम वहीं अटका रह गया

बालों में, आंखों के कोरों में

बालों का खिंचना मेरा, रोना-खीझना मां का

शादी के बाद पहले सावन में

केवड़े के पत्तों की वेणी चोटी के बीचो-बीच

मोगरे का मोटा-सा गोल गजरा सिर पर

और उसके बीचो-बीच

नगों-जड़ा बड़ा सा स्वर्णफूल

मां की शादी वाली नौ-गजी

मोरपंखी धर्मावरम धूपछांव साड़ी

लांगदार पहनावे की कौंध

अपनी नजरों से नजर उतारती

मां की आंखों का बादल

फिर मैं और बड़ी हुई और

ऑस्टियोपोरोसिस से मां की हड्डियां बूढ़ी

अबकी जब मैं बैठी मां के पास

जानते हुए कि नहीं बैठ पाऊंगी गोदी में अब कभी

मां ने पसार दिया अपना आंचल

जमीन पर

बोली- बैठ मेरी गोदी में, चोटी बना दूं तेरी

और बलाएं लेते मां के हाथ

सहलाते रहे मेरे सिर और बालों को आखिरी सिरे तक

मैं जानती हूं मां की गोदी कभी

छोटी कमजोर नाकाफी नहीं हो सकती

हमेशा खाली है मेरे बालों की उलझनों के लिए

कुछ बरस और बीते

मेरे लंबे बाल न रहे

और कुछ समय बाद

मां न रही

* नोट- कैंसर के दवाओं से इलाज (कीमोथेरेपी) से बाल झड़ जाते हैं

2. अधूरा

सुनती हूं बहुत कुछ
जो लोग कहते हैं
असंबोधित
कि
अधूरी हूं मैं- एक बार
अधूरी हूं मैं- दूसरी बार
क्या दो अधूरे मिलकर
एक पूरा नहीं होते?
होते ही हैं
चाहे रोटी हो या
मेरा समतल सीना
और अधूरा आखिर
होता क्या है!
जैसे अधूरा चांद? आसमान? पेड़? धरती?
कैसे हो सकता है
कोई इंसान अधूरा!

जैसे कि
केकड़ों की थैलियों से भरा
मेरा बायां स्तन
और कोई सात बरस बाद
दाहिना भी
अगर हट जाए,
कट जाए
मेरे शरीर का कोई हिस्सा
किसी दुर्घटना में
व्याधि में/ उससे निजात पाने में
एक हिस्सा गया तो जाए
बाकी तो बचा रहा!
बाकी शरीर/मन चलता तो है
अपनी पुरानी रफ्तार!
अधूरी हैं वो कोठरियां
शरीर/स्तन के भीतर
जहां पल रहे हों वो केकड़े
अपनी ही थाली में छेद करते हुए।

कोई इंसान हो सकता है भला अधूरा?
जब तक कोई जिंदा है, पूरा है
जान कभी आधी हो सकती है भला!
अधूरा कौन है-
वह, जिसके कंधे ऊंचे हैं
या जिसकी लंबाई नीची
जिसे भरी दोपहरी में अपना ऊनी टोप चाहिए
या जिसे सोने के लिए अपना तकिया
वह, जिसका पेट आगे
या वह,जिसकी पीठ
जो सूरज को बर्दाश्त नहीं कर सकता
या जिसे अंधेरे में परेशानी है
जिसे सुनने की परेशानी है
या जिसे देखने-बोलने की
जो हाजमे से परेशान है या जो भूख से?
आखिर कौन?
मेरी परिभाषा में-
जो टूटने-कटने पर बनाया नहीं जा सकता
जिसे जिलाया नहीं जा सकता
वह अधूरा नहीं हो सकता
अधूरा वह
जो बन रहा है
बन कर पूरा नहीं हुआ जो
जिसे पूरा होना है
देर-सबेर।
कुछ और नहीं।
न इंसान
न कुत्ता
न गाय-बैल
न चींटी
न अमलतास
न धरती
न आसमान
न चांद
न विचार
न कल्पना
न सपने
न कोशिश
न जिजीविषा
कुछ भी नहीं।
पूंछ कटा कुत्ता
बिना सींग के गाय-बैल
पांच टांगों वाली चींटी
छंटा हुआ अमलतास
बंजर धरती
क्षितिज पर रुका आसमान
ग्रहण में ढंका चांद
कोई अधूरा नहीं अगर
तो फिर कैसे
किसी स्त्री के स्तन का न होना
अधूरापन है
सूनापन है?

अनुराधा मंडल आज ही हमें अलविदा कह गईं

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ISSN 2394-093X
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