गुलज़ार हुसैन की कवितायें

गुलज़ार हुसैन


गुलज़ार हुसैन जितने संवेदनशील और बेहतरीन कवि हैं उतने ही अच्छे रेखा -चित्रकार. मुम्बई में पत्रकारिता करते हैं . संपर्क: मोबाईल न. 9321031379

( गुलज़ार की १० कवितायें उनके अपने ही रेखांकन के साथ. ये कवितायें एक संवेदनशील कवि  के द्वारा अपने इर्द -गिर्द के समाज के  रेखाचित्र सरीखें हैं . इनकी कविताओं में रेखांकन और रेखांकन में कविता ही वह खासियत है , जो इन्हें दोनो चौद्दियों पर ख़ास बनाते हैं .)

1. रोटी- अचार और लाल चटाई 

निस्संदेह, वह हमेशा उस खजूर की चटाई पर ही नहीं होती थी
जिस पर वह हमेशा मुझे दिखाई देती थी

वह कभी मिट्टी और कभी घास पर भी जाकर बैठती थी
वह पत्ता चुनने और बकरी चराने के समय जंगली कांटों के बीच से भी आगे बढ़ती थी
वह कई बार तालाब के किनारे की गिली मिट्टी पर सहेलियों संग खेलती भी थी

लेकिन जितनी बार मैं उसके घर गया
उतनी बार उसे चटाई पर बैठकर रोटी- अचार खाते देखा

जब शाम को लालटेन लेकर
किताब-कॉपियों के संग उसने बैठना छोड़ दिया
तब उसने चटाई पर बैठकर धूप की किरणों और चांद की रोशनी में छुपी जिंदगी को पढ़ना शुरू किया

खजूर की चटाई उसके जीवन से उतनी ही जुड़ी थी
जितनी रोटी और अचार
उसकी माँ जब जीवित थी, तब बनाई थी उसने तीन चटाइयां
मामी और फूफी के ले जाने के बाद उसके पास एक ही रह गई थी

उस चटाई पर वह उंगली फिराते हुए महसूसती थी माँ का स्पर्श
कि कैसे तन्मयता से माँ  ने बिना चश्मा लगाए हुए उसे बीना था
खजूर की छोटी -छोटी नुकीली पत्तियों को एक- एक करके पिरोया था
अंगुलियों में बार- बार आई चुभन को छुपाते हुए

उसने एक बार कहा था मुझसे
कि भरना चाहती है वह इस रंगहीन चटाई में चटख रंग
वह बनाना चाहती है चटाई पर हरे भरे खेत और पहाड़
लेकिन वह इस तरह तो नहीं रंगना चाहती थी चटाई

इस समाज ने उसे तब तक रंग की एक पुड़िया नहीं सौंपी
जब तक उसकी अखिरी सांस नहीं छीन ली गई

…और जब चाकुओं से गोदी गई उसकी बलत्कृत देह इस चटाई पर रखी गई
तब चटाई पर पसर गया गाढ़ा रंग
और तब बनी चटाई पर लाल रंग की नदी
जिसके आसपास कोई खेत और पहाड़ की हरियाली नहीं थी

उसकी लाल चटाई अब भी वैसे ही गोल मोड़ कर रखी है
जहां चूल्हे के निकट वह अपनी लालटेन रखती थी

2. तेज बारिश में

तेज बारिश में
छतरी होने के बावजूद भीग रही है रुकसाना
शीतल टाकीज का नाईट शो टूटा है अभी अभी
लोग तितर- बितर हो गए हैं
कुछ लोग छतरी खोले घर की ओर भाग रहे हैं
कुछ लोग बस स्टॉप के शेड में छुपे हुए हैं
और कुछ लोग रुकसाना के निकट सिगरेट फूंकते हुए मंडराने लगे हैं

तेज बारिश में
रुकसाना झांकती है बारी- बारी से सबकी आँखों में
जो उसे ही घूर रहीं होतीं हैं लगातार
वह ढूंढती है उन आँखों में
थोड़ी सी कम दरिंदगी वाली दो आँखें
जिनके नीचे न हो षड्यंत्रपूर्ण मुस्कुराहट
वह उनकी  हथेलियों को भी देखती है
कि कहीं किसी की उँगलियों में गिध्द जैसे रक्त पिपासु नाख़ून न हों
वह ताड़ती है उनकी जेबों को भी
ताकि बिना आनाकानी किए वह दे सके
कल के लिए पेट भरने का खर्च

तेज बारिश में
वह बार -बार सड़क की ओर भी देख लेती है
कि कहीं कोई खाकी वर्दी वाला न आ धमके
वह जानती है कि उसका हिस्सा देने के बाद
उसे एक बार भूखा ही रहना पड़ेगा
इसलिए वह जल्दी ही किसी के साथ निकल जाना चाहती है

तेज बारिश में
छतरी ताने कई लोग उसके निकट आते हैं
और मोल -भाव कर खिसक जाते हैं
तब बचे हुए दो -तीन लोगों की फुसफुसाहट
रात का गहराता सन्नाटा
और नाले में पानी की घरघराहट से वह घबरा जाती है
उसे लगता है मूसलाधार बरसात रात भर नहीं रुकेगी
और उसकी खोली में फिर से भर जाएगा पानी
अचानक  उसे खोली में चटाई पर लेटे अपने बेटे की याद हो आती है
वह झट से अपनी छतरी मोड़ती है
और लौट रहे एक आदमी को इशारे से रोक कर कहती है
” …चलो ! उतने में ही सही …”

3. लेकिन वह अभिनेत्री नहीं है

कुर्ला स्टेशन पर
लोकल ट्रेन के डिब्बे में अपनी बेटी का हाथ पकड़े
धड़धड़ाती घुस आई औरत
अचानक जोर- जोर से गाने लगती है

यह  किसी ने सोचा नहीं था क्षण भर पहले
कि सुनना पड़ेगा बेसुरा गाना
औरत गा रही है …परदेशी …परदेशी जाना नहीं …
और उसकी नाबालिग बेटी हथेली पसारे
भटक रही है एक सीट से दूसरी सीट

गाती हुई औरत बार -बार देख लेती है
अपनी बेटी की हथेली पर
जब कोई यात्री उसकी बेटी को दूर हटाते हुए
फेर लेता है उपेक्षा से नजरें
तब गाती हुई औरत की आवाज
ट्रेन की तेज रफ़्तार में कहीं खो जाती है
वह भूल जाती  है लय कई बार
लेकिन जब भी उसकी बेटी की हथेली पर
गिरता है कोई सिक्का
वह ऊँची आवाज़ में गाने लगती है

गाती हुई औरत बार बार भूल जाती  है गाने के बोल
लेकिन वह जोड़ देती है कई शब्द अपने मन से
वह किसी भी हालत में टूटने नहीं देती है
गीत की पंक्तियों की कड़ी
गीत में जुड़े नए अपरिचित शब्द
और टूटते सुर में पसरी पीड़ा
उसका अपना सृजन है

इस समय गीत को रचने और गाने वाली वह स्वयं है
लेकिन वह अभिनेत्री नहीं है

4.  झोपड़ी में गर्भवती औरत

किराए की उस छोटी सी  झोपड़ी में
तिलचट्टों ,चूहों और कनखजूरों के साथ रहती है गर्भवती औरत
देर रात तक पानी भरने
और सुबह जल्दी उठ कर खाना बनाने से थककर चूर हुई औरत
पति के काम पर जाते ही
फर्श पर चटाई बिछा कर पसर जाती है

पतरे की दीवारों से बतियाते
और आटा -चावल के डिब्बों ,झोलों पर
उछालते- कूदते चूहों को देखते हुए न जाने कब उसे नींद आ जाती है

शाम को जब घुटन से बेचैन होकर उसकी आँखें खुलती हैं
तब वह पेट पकड़े लड़खड़ाती हुई
खोलती है दरवाजा
और लेने लगती है लंबी -लंबी सांस
वह सोचती है कि काश इस झोपड़ी में कोई खिड़की होती

5. मैंने देखा है तुम्हे

निस्तब्ध रात में
जब घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं
बुझा दी जाती है बत्तियाँ
उस समय मैंने देखा है तुम्हें
शराब पीकर रोते हुए

दो पैग पीने के बाद तुम बिलखने लगती हो
टूटे खिलौने हाथ में लिए उदास बच्ची की तरह
दुःख से थरथराती है तुम्हारी देह सूखे पीले पत्तों सी
आँखें डूबती हुई सी लगती हैं
जैसे किसी शाम में दूर जाती नाव

रोती हुई तुम देती हो गालियाँ
उन सबको जिन्होंने तुम्हें ठगा है
और तुम्हें छोड़ दिया है
इमारतों के जंगल में
पंखहीन

तुम्हारी गालियाँ
उन तड़पती  चिड़ियों की चीख सी लगती है
जिनके पंख
कुतर डाले हैं लोमड़ियों ने

मैंने देखा है तुम्हें
नशे में खिलखिलाते हुए भी
जोर-जोर से ठहाके लगाते हुए भी

तुम सब पर हँसती हो
बारी बारी से
और तुम्हारा चेहरा अचानक तमतमा जाता है
लाल हो जाते हैं तुम्हारे कोमल गालों के उभार
इस लालिमा में
क्रोध और नफरत का उफान है
लेकिन यहाँ प्यार का स्पर्श भी है
हल्का और फीका
खोया -खोया सा

तुम इस प्यार पर भी हँसती हो
और ग्लास उठाते हुए
छलछला जाती हैं तुम्हारी आँखें
6.  सीढियां

इन सीढ़ियों पर कभी कोई दीपक नहीं जलाता
न ही कोई झाड़ू फेरता है
क्योंकि वहाँ पसरे अँधेरे में किसी के पैर घसीटने की आवाज़ आती है
कोई ऊपर से नीचे उतरते हुए बार -बार रोता है
वह चीखता भी है ,लेकिन उसकी आवाज़ बीच में ही टूट जाती है

वह इन सीढ़ियों से उतर कर भाग जाना चाहता है दूर …बहुत दूर
लेकिन कटे हुए उसके दूसरे पैर से रिसता खून उसे चिपका लेता है

लोग सुन सकते हैं उसके हांफने की आवाज़
और सुन सकते हैं उसके गले से लिपटी एक छोटी बच्ची का विलाप भी
वह धीरे -धीरे सिसकती है ,कराहती है ….
उसके गले से निकलती है आवाज़ -” …माँ -माँ ”

उसकी गर्भवती माँ ऊपर ही रह गई है
दो हिस्सों में अलग -थलग
खून से लथपथ ….निर्जीव ….

अब भी साफ़ सुनी जा सकती हैं
पिता और बेटी की तेज धडकनें
पीठ थपथपाने
और कहीं निकट ही ठहाकों की आवाज़

यहाँ सुनी जा सकती हैं
केरोसिन फेंकने और आग की लपटों में दो शरीरों के छटपटाने की आवाज़ भी
जिनके राख बन जाने तक
वहाँ आखिरी बार प्रकाश फैला था

सबने साफ साफ़ देखा था
सीढ़ियों पर पड़े राख के ढेर में
ऊपर से रिसते रक्त की धार

सुना है
अब इन सीढ़ियों की सफाई की जायेगी
इन्हें  चमका कर इस्तेमाल लायक बनाया जाएगा

7. अचानक एक खाली नाव ने उसे बुला लिया

जैसे कोई अभी-अभी 11 वर्ष की सजा काटने के बाद
बेगुनाह साबित हो कर निकला हो
और आकाश को निहारने का प्रयास कर रही उनकी आंखों में पड़ी हों
बारिश की ठंडी बूंदें

जैसे कोई कड़ी धूप से बचने के लिए
निराश बैठा हो सूखे पेड़ के नीचे
और अभी- अभी तेज हवा का झोंका
उसे थमा गया हो सुगंध
धान रोपने के लिए खेत में गुंथी जा रही मिट्टी की
और छोटे खेत के किनारे की पगडंडी पर बच्चों के पैर से रौंदे जा रहे घास की

जैसे कोई तालाब में डूबने जा रहा हो
और अचानक एक खाली नाव ने उसे बुला लिया हो

जीने के लिए कोई भी बहाना अप्रिय नहीं होता
हर मोड़ पर मुस्कुरा के मिलती है जिंदगी
कान में कहती है- लड़ो
जैसे लड़ रही है चिड़िया तिनके और दाने के लिए

8.  जिन्दगी का नया गीत

जिन पंछियों के घोंसले उजाड़ दिए जाते हैं
वे नहीं छोड़ देते हैं अपना वतन
वे दाना चुगते हैं अपने बच्चों का पेट भरने के लिए
आंधी से उजड़ गये खेतों से भी
वे उन तालाबों के निकट भी ठन्डे पानी की तलाश में भटकते हैं
जिनके पानी का रंग लाल हो गया होता है उनके अपनों के खून से
वे फिर से आशियाना बनाने के लिए उन्हीं पेड़ों पर मंडराते हैं, तिनके ले ले कर
जिन पेड़ों की शाखाओं पर उन्हें पकड़ने के लिए जाले लगा दिए गए हैं
वे सशंकित हैं, चिंतित हैं, लेकिन डरे हुए नहीं हैं
आप अब उन्हें हथेलियों पर मूंगफली रख कर नजदीक नहीं बुला सकते
वे फुर्र से उड़ जाएंगे जिन्दगी का नया गीत गाते हुए…..

9. जहाँ काली पड़ गई जमीन

अब शाम में अंधेरा घिरते ही
घोड़े की हिनहिनाहट नहीं सुनाई पड़ती
तो बेचैनी में खटिया से उठकर टहलने लगता है बूढा
फिर बीड़ी जलाने से पहले
खांसता रहता है देर तक

वह बार – बार उधर देखता है
जहां बंधा रहता था घोड़ा खूंटे से
अब उस जगह पर दीवार के किनारे पड़ा है तांगे का पुराना पहिया
और पहिए पर मटमैली बोरियां
जो रात में ठंड से बचाती थी घोड़े को

वह उस जगह से थोड़ी दूर पर देखता है
जहां काली पड़ गई है जमीन
वहीं पर अलाव लगाती थी बुढ़िया
और बुदबुदाते हुए काली चाय ले आती थी

खजूर के पेड़ के नीचे
अब भी उल्टी पड़ी है टोकरी
जिसमें घास रखकर वह हिनहिनाते घोड़े के पास जाती थी
और उसकी पीठ पर चपत लगाते हुए
देती थी गालियाँ

खटिया पर लेटते हुए सोचता है बूढा
कि पहले कभी इस तरह अंधेरे में
वह नहीं बैठा रहता था चुपचाप
शाम ढलते ही बुढ़िया जला देती थी लालटेन

10. इस गुलमोहर को खून से सींचा गया है

मुजफ्फरपुर की सड़कों पर गुजरते हुए
एक घर की चारदीवारी के अन्दर
गुलमोहर के लाल फूल देखकर मैं ठहर गया
पल भर

मेरे मित्र ने बताया
कि इस घर में रहता था एक सिख परिवार
लेकिन वह अचानक न जाने कहाँ चला गया
जब चौरासी के सिख विरोधी दंगों की आंच यहाँ तक पहुंची
तब जला दी गईं  थी कई दुकाने
और लाठी -बन्दूक के सहारे
खाली करा दिए गए थे कई घर

सिखों को मारने,लूटने और भगाने के बाद भी
घर सुनसान नहीं हुए
क्योंकि दूसरों के घरों के चिराग बुझाने के बाद
वहाँ अपने दीपक जलाने वाले पहुँच गए

यह गुलमोहर का पेड़ तब से खड़ा है चुपचाप
इसके तने पर अब भी हैं तलवार से बने घाव के चिन्ह
इसकी जड़ों को खून से सींचा गया है
इसलिए इसके लाल -लाल फूलों को देखकर
लोग ठहर जाते हैं कुछ देर

लोग कहते हैं
रात होते ही
इन लाल फूलों से टपकते हैं आंसू

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ISSN 2394-093X
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