हरियाणा की मनीपुरी बहुएं

अफ़लातून अफलू


अफ़लातून समाजवादी चिन्तक हैं . समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिव हैं ,इनसे इनके ई मेल आई डी : aflatoon@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

( विकास के सूचकांक में शीर्षतम राज्यों में शामिल हरियाणा में स्त्रियों के प्रति घोर पुरुषवादी नजरिया व्याप्त है . हाल के दिनों में हरियाणा में कुंवारे लड़कों की शादी बिहारी लड़कियों से जीत के मूल्य के रूप में करवा देने की घोषणा भी हुई . इस छोटे से आलेख में अफ़लातून अफलू हरियाणा की इसी पुरुषवादी व्यवस्था ,पतित राजनीति और विकास के मिथ का जायजा ले रहे हैं .) 


स्त्री-पुरुष विषमता को लोहिया आदि-विषमता कहते थे। जाति जैसा ठहरा हुआ वर्ग भी स्त्री-पुरुष विषमता के खत्म होने के पहले टूट सकता है यह अब सिर्फ अनुमान अथवा कल्पना की बात नहीं रही। हरियाणा की खाप-पंचायतों द्वारा अन्तरजातीय  विवाहों का अनुमोदन इसका जीता जागता नमूना है।जातियों का अस्तित्व रोटी-बेटी संबंध से टिका रहता है। जाति के हितों की रक्षा के लिए बनी ये खाप पंचायतें भी हरयाणवी समाज में लुप्त हो रही बेटियों के दुष्परिणाम से घबड़ा कर जाति-बन्धन शिथिल करने के आदेश दे रही हैं। मुख्य तौर पर कन्या-भ्रूण हत्या के कारण हरियाणा में लिंगानुपात लगातार कम होता जा रहा है। अतिशय चिन्ताजनक लिंगानुपात के कारण गरीब राज्यों से बहुएं ब्याह कर हरियाणा लाई जा रही हैं।   हरित क्रांति से समृद्ध बने प्रान्तों में हरयाणा की भी गिनती होती है। हमारे देश के गैर-बराबरी  बढ़ाने वाले विकास के कारण , बिहार, झारखण्ड,ओडीशा,उत्तर बंग,पूर्वी उत्तर प्रदेश के देहाती बेरोजगार पंजाब ,हरियाणाके खेतों में मजदूरी करने जाते हैं । अब लुप्त हो रही स्त्रियों के कारण इन्हीं राज्यों से हरयाणा में बहुएं भी लाई जा रही हैं। इस प्रकारहरियाणावी  समाज ने अपने प्रान्त की लुप्त की गई स्त्रियों को बचाने का कोई सामाजिक आन्दोलन चलाने के बजाए पिछडे प्रान्तों की बहुओं को लाकर तथा उनसे विवाह करने में जाति के बन्धन छोड़ने की छूट देने को बेहतर समझा है।

इस सन्दर्भ मेंस्त्रीकाल में प्रकाशित अमृता ठाकुर का लेख अवश्य पढ़ें : क्लिक करें : बदलाव की बयार : जद्दोजहद अभी बाकी है

मेरे एक हरियाणावी मित्र की माताजी श्रीमती निर्मला देवी ने बताया कि सभी पर-प्रान्तीय बहुओं को ‘मनीपुरी बहु’ कहा जाता है। गौरतलब है कि इस नामकरण का मणिपुर राज्य से संबध नहीं है अंग्रेजी के शब्द ‘मनी’ से संबंध है। शादी-विवाह के मौकों पर गाए जाने वाले लोक-गीतों को मनीपुरी बहुएं नहीं गा पाती। मुझे यकीन है कि कुछ ही वर्षों में इन लोक गीतों को मनीपुरी बहुएं भी सीख जाती होंगी। पर-प्रान्त में विवाह करने वाली मेरी नानी,मामी,मां और भाभियों द्वारा नई भाषा सीख लेने में गजब की निपुणता प्रकट होती थी।

करीब १८ वर्ष पहले रेवाड़ी जिले के एक गांव में चार पांच दिवसीय कार्यक्रम में शरीक होने का मौका मिला था। गांव के बाहर लगी एक सरकारी सूचना को देख कर मैं चौका था। उस सरकारी बोर्ड में गांव में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या में अन्तर चौंकाने वाला था।लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से काफी कम था। अनुसूचित जाति के स्त्री-पुरुषों की संख्या भी राष्ट्रीय औसत की तुलना में विषम जरूर थी किन्तु गैर – अनुसूचित तबकों से बेहतर थी। मैंने लौट कर मेजबान साथी को इस विषय में एक पत्र लिखा। बहरहाल , २००१ की जनगणना के बाद से हरियाणा में चिन्ताजनक तौर पर घट रहा लिंगानुपात शैक्षणिक चर्चा का विषय बन गया है।

हरियाणा भाजपा के एक नेता द्वारा मुफ्त में बिहारी बहुएं दिलाने के वायदे  से बिहार के कई नेता आहत होकर बयान दे रहे हैं ।हरियाणा में लुप्त हो रही स्त्रियों और पर-प्रान्त की दारिद्र्य झेल रही स्त्रियों के हरियाणा में मनीपुरी बहु बन कर जाने की बाबत इन बयानों में गहराई से चर्चा नहीं की जा रही है और न ही कोई संवेदना प्रकट हो रही है।हरियाणा में यह समझदारी बन चुकी है कि मनीपुरी बहुओं के न आने से वहां कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाएगी। इस समझदारी के व्यापक होने के कारण इस प्रकार के विवाह रुक जाएं यह हरियाणा का कोई भी दल अथवा खाप पंचायत नहीं कहेगी । बिहार के नेता इस संबंध के मुफ्त न होने और विधान सभा चुनाव बाद मुफ्त कर दिए जाने के आश्वासन से अपमान-बोध कर रहे हैं।
हमारे देश की विकास नीति कई बार सामाजिक पहेलियां भी गढ़ देती है। यह विदित है कि केरल और नागालैन्ड में लिंगानुपात स्त्री के हक में है। इन राज्यों की साक्षरता और किसी जमाने में प्रचलित मातृ सत्तात्मक समाज की इस सन्दर्भ में शैक्षिक जगत में चर्चा हो जाया करती है। हकीकत यह है स्त्री-उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में अब केरल भी पीछे नहीं रहा । पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में स्त्री बहुलता वाला लिंगानुपात पाया गया है । पहली नजर में यह अबूझ पहेली लगता है। जनगणना की जिला रपटों के आधार पर स्थानीय अखबारों में इस बाबत कुछ ऊलजलूल सुर्खियां भी प्रकट हो गई थीं। इस तथ्य के बहाने दावा किया जाने लगा कि यह सूचकांक स्त्री की बेहतर हो रही स्थिति का द्योतक है। वास्तविकता यह है कि भारी तादाद में  प्रवासी पुरुष मजदूरों के कारण जनगणना के दौरान लिंगानुपात स्वस्थ हो जाता है ।

भारतीय समाज की यह विडंबना है कि विकास की दौड़ में जिस राज्य को लाभ पहुंचा वहां औरत की स्थिति इतनी चिन्ताजनक है। राजनीति इतने पतनशील दौर से गुजर रही है कि सामाजिक और क्षेत्रीय गैर-बराबरी के मूल मसलों के समाधान की बात तो दूर उन्हें समझना भी नहीं चाहती । किसी रचनात्मक पहल से उम्मीद बचती है।
अमर उजाला से साभार